फूफा जी श्री चन्द्र दत्त त्यागी श्रीगंगा धाम तिगरी के रहने वाले थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे।सामाजिक और राजनीतिक व्यक्ति थे। राजनीति में बहुत अधिक सक्रिय नहीं थे तो निष्क्रिय भी नहीं थे।संतुलित सक्रियता को जीने वाले बहुत ही भले व्यक्ति थे,भलमनसाहत के आदर्श और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी फूपा जी बाजार गंज के जिस मकान में रहते थे वह तीन मंजिला था। दूसरी और तीसरी मंजिल पर उनका रहन-सहन था और ग्रांउड फ्लोर पर मकान मालिक की आभूषणों की दुकान थी। दुमंजिले पर एक कमरा, कमरे के आगे लगभग उस ही के बराबर लॉबी थी और लैट्रीन तथा बाथरूम।तिमंजिले पर एक टीन शेडिड कमरा और टीन शेडिड रसोई थी तथा छोटा सा आँगन था।इस छोटी-सी जगह में फूफाजी और बुआ जी के छोटे-बड़े छः बच्चे तो रहते ही थे, फूफा जी के दो युवा भतीजे और मेरे एक चाचा जी भी वहीं रहते थे और अब एक मैं पहुँच गया था। ऊपर से चार-पांच मेहमान भी लगभग रोज़ ही आ जाया करते थे।ये सब ग्रामीण परिवेश के वह लोग होते थे जो अपने कार्यों से मुरादाबाद आए होते थे और समय से लौट नहीं पाते थे। बुआ जी बड़ी भली और नेक महिला थीं। आने-जाने वालों को देखकर कभी भी नाक-भौंह नहीं सिकोड़ती थीं अपितु आगंतुकों को देख कर उनका चेहरा खिल जाता था। मानों सबकी भरपूर सेवा ही उनका धर्म था। इस सेवा भाव से ही उनका परमानन्द बसता था। उनकी कोई मिसाल मिलना अब तो संभव है ही नहीं,उस समय भी असंभव ही था।
एक कमरे,आँगन,टीन शेडिड एक कमरे और टीन शेडिड रसोई वाले मकान में इतने व्यक्तियों का रहना-सहना और आगंतुकों को भी समायोजित करके इस रहन-सहन को व्यवस्थित रखना कोई आसान कार्य नहीं था, पर इसे फूफा जी और बुआ जी के बेमिसाल आचरण से अपनी दिनचर्या में ढाल रखा था। यह सब वैसा ही था जैसा कि सुनने को मिलता रहता है कि कहीं जगह हो या न हो दिल में जगह होनी चाहिए।सब सध जाता है। मेरी दृष्टि में वह छोटा-सा मकान नहीं था अपितु बड़ा सा दिल था।
बुआ जी लगभग सुबह से शाम तक चूल्हे पर ही चढ़ी रहती थीं। लेकिन वह इस बोझ को हँहते-हँसते सुबह से शाम तक ढोते-ढोते इतना हल्का कर लेती थीं कि उन्हें पता ही नहीं चलता था। वह पूजे जाने योग्य थीं किन्तु दिन भर औरों को जिमाते-जिमाते ही खुद जिम जाती थीं।एक झटके में सो जातीं थीं और एक झटके में उठ बैठती थीं। उनकी अपनी दिनचर्या थी।जिसका पूरा आनन्द लेकर जीतीं थीं,वह। उनके इस व्यवहार की चर्चा और प्रशंसा हर जगह होती मिल जाती थी।वह अद्भुत थीं। उनके जैसा होना नामुमकिन है। इतना संयम व्यवहार में ढाल लेना एक करिश्मा ही है।वह स्वयं भी एक करिश्मा ही थीं।
जहाँ दाना-पानी मिलता है,पंछी वहाँ गिरते ही हैं। लोग भी वहीं आते-जाते हैं,जहाँ उनकी पूछ होती है, यानी कि आवभगत होती है। फूफा जी के यहाँ सभी आगंतुकों की आवभगत बड़े प्रेम से होती थी, तभी तो वहाँ हर समय चहल-पहल रहती थी। वह घर हर समय हँसने-मुस्कराने से गुलजार रहता था। चाय के कप प्लेट उठते रहते थे और दूसरे लगते रहते थे। ऐसे ही सुबह से शाम हो जाती थी। बुआ जी को रसोई में और हम बच्चों - मेरी फुफेरी बहन कुसुम जो मेरे ही साथ की थी और छोटा फुफेरा भाई अनिल जिसे घर में मुन्नू कहा जाता था और मुझसे दो साल छोटा था,को - ऊपर से नीचे जीना चढ़ते-उतरते कब समय बीत जाता था, पता ही नहीं चलता था। इस सबमें एक आंतरिक आनन्द को जीने के अभ्यस्त हो गए थे हम सब लोग। मैं और मुन्नू इस सबका आनन्द तो लेते ही थे, साथ ही एक और आनन्द का बड़े चाव से आनन्द लेते नहीं अघाते थे।
इतनी आवभगत के लिए रसोई हर समय तैयार रहनी चाहिए,यानी कि रसोई में सभी आवश्यक सामान उपलब्ध रहना चाहिए,यह सब तो महीने का आता था तो रहता ही था। किन्तु सबसे पहली आवश्यकता तो चूल्हा सुलगा रहने की है।उसके लिए उस समय लकड़ी ही एकमात्र साधन थी। छुट-पुट आवश्यकता तो स्टोव से सँभाल ली जाती थी,पर हर समय चूल्हा गर्म रखने के लिए तो इन लकड़ियों का ही
एकमात्र सहारा था ,क्योंकि कोयला उस समय इतना प्रचलन में नहीं था।बाकी सब साधन बाद के दिनों के हैं। फटी हुई (छेपट)लकड़ी टाल से आती थी। वह जलने योग्य सूखी नहीं होती थी,अपितु सदैव पर्याप्त गीली ही होती थी। ठेले वाला तिमंजिले तक चढ़ा जाता था और फिर शुरू होती थी - मेरी और मुन्नू की पारी।उस गीली और फटी हुई छेपट लकड़ी को रसोई और कमरे की टीन वाली छत पर सूखने के लिए चढ़ाना। हममें से एक छत पर चढ़ता था और एक नीचे से उसे पकड़ाता था।इस प्रकार उन लड़कियों को दोनों छतों पर सूखने के लिए रख दिया जाता था।यही क्रिया उन्हें उतारने में भी रहती थी। लेकिन यह मुश्किल कार्य था। रसोई और कमरे की छत पर जाने के लिए कोई सीढ़ी तो थी नहीं दोनों छतों पर चढ़ने के लिए एक-एक ओर से चार इंच की दीवार का सहारा था।चढ़ते हुए भी डर लगता था और ऊपर चढ़कर भी डर ही लगता था क्योंकि उस मकान की एक दिशा में तो सड़क थी, और शेष तीनों दिशाओं में एक-एक मंजिल के ही मकान बने हुए थे। ऊपर से नीचे को देखते थे तो रूह काँपती थी।हम दोनों भाइयों ने इस डर को दसियों वर्ष जिया है। किन्तु इसका भी अपना एक आनन्द था, जिसके लिए हम दोनों लकड़ी का हाथ ठेला आते ही इस आनन्द के लिए उत्सुकता से भर जाते थे और अपने कार्य पर लग जाते थे। कभी इससे बचते नहीं थे।
फूफा जी और बुआ जी की इस आवभगत की क्षेत्र में बड़ी प्रशंसा होती थी। आवभगत ही उनकी पूँजी थी। उनकी आवभगत का ही यह परिणाम था कि किसी-किसी दिन मेहमानों की संख्या बढ़ जाती थी। जगह का अभाव तो था ही कभी-कभी कपड़ों का भी अभाव हो जाता था।ऐसी स्थिति में मैं और मुन्नू फूफा जी के बड़े भाई सम मित्र गणपति शर्मा जी के यहाँ सोने के लिए चले जाते थे। उनकी सिविल लाइन में बहुत बड़ी कोठी थी और उनके परिवार के सभी लोग फूफा जी के परिवार से बहुत लगाव रखते थे। महीने में मेरी और मुन्नू की कई-कई रातें वहीं गुज़रती थीं। प्रातः काल में जल्दी उठकर हम दोनों अपने घर आकर प्रातः कालीन कार्यों से निवृत्त होकर अपने-अपने स्कूल चले जाते थे। इस परिवेश में अपनी पढ़ाई इस लिए हो पाई है। क्योंकि पढ़ाई के लिए फूफा जी और बुआ जी दोनों ही प्रोत्साहित करते रहते थे। मुझ पर जितनी भी पढ़ाई है,यह उनके प्रोत्साहित करते रहने का ही परिणाम है।
फूफा जी गंगा धाम तिगरी के रहने वाले थे।वहाँ पर प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगता है। फूफा जी क्योंकि राजनीतिक और सामाजिक व्यक्ति थे,इस कारण से प्रशासन पर भी उनकी अच्छी पकड़ थी।मेले की व्यवस्थाओं में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती थी।सारा सरकारी अमला उनके ही मकान पर मीटिंग किया करता था और मेले की रूपरेखा को अंतिम रूप देता था। प्रशासन पर इतनी पकड़ के बावजूद ही फूफा जी वहाँ पर वह सारे प्रबंध करा सके जिससे कि तिगरी गंगा के कटान से बची रहे।तिगरी अपनी जगह सुरक्षित है तो इसलिए कि उसके लिए फूफा जी ने हर संभव प्रयास करके अपनी मातृभूमि की रक्षा की है। गंगा मेले का हम सबने भी कई बार खूब आनन्द लिया है। बुआ जी और फूफा जी अपने हर कार्य से सही में देवता तुल्य थे, जिन्होंने अपना सर्वस्व समाज की सेवा में ही झोंक दिया। कमाकर भी कुछ नहीं जोड़ा,जबकि मुरादाबाद से रामनगर को उनकी बस चला करती थी।
✍️डॉ. मक्खन मुरादाबादी
झ-28, नवीन नगर
काँठ रोड, मुरादाबाद- 244001
मोबाइल: 9319086769
पहला भाग पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए
⬇️⬇️⬇️⬇️
https://sahityikmoradabad.blogspot.com/2024/01/blog-post_28.html
दूसरा भाग पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए
⬇️⬇️⬇️
https://sahityikmoradabad.blogspot.com/2024/04/blog-post_3.html
तीसरा भाग पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए
⬇️⬇️⬇️
https://sahityikmoradabad.blogspot.com/2024/08/3.html
चौथा भाग पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए
⬇️⬇️⬇️
https://sahityikmoradabad.blogspot.com/2024/08/4.html
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें