बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की लघुकथा ----- बोझिल परम्पराएं

 


भाभी मुझे पैसे दे दो मुझे जरुरत आन पड़ी है 

मैंने कल दीदी से भी बोला था आप स्कूल गईं हुईं थीं ,मुझे आज पाँच सौ रुपए दे दो ।मैं थोड़ी झुंझलायी कि यह हमेशा ही यही करती है ,महीना पूरा होने नही देती, बीस तारीख को ही तकाज़ा हाजिर रहता है ।रानी मैंने तुमसे कई बार कहा कि महीना पूरा तो होने दिया करो ।

भाभी मेरा महीना तो बीस को ही होता है ,वहबोली ।

पिछले दिनों जब लाॅकडाउन चल रहा था, मैंने तुम्हे तीन महीने बिना काम के ही पैसे दिए थे या नही ,दिए थे और तुम बीस तारीख का ही रोना लिए रहती हो ।दस दिन तुम उसी में एडजेस्ट कर लो और न जाने कितनी बार तुम लम्बी लम्बी छुट्टियाँ कर लेती हो ,तो ???  मैंने कभी तुम्हारे पैसे काटे ??

काम बाली बाई रानी चुपचाप सुन रही थी ,बोली ,ना भाभी मेरे घर सास की बरसी है उसी के सामान के लिए मुझे चाहिए ।मेहमान आयेंगें ,रिश्तेदार आयेंगें और हमारे यहाँ ननदों को कपड़े लत्ते देकर विदा किया जाता है ।पण्डित जी जीमेंगें ।सामान बगैहरा दिया जायेगा ,बहुत खर्चा है ।

मेरा लहजा कुछ ठंडा पड़ चुका था ।मैं बोली , ऐसे हालात में तुम्हे इतना सब क्यों करना है ? तुम्हारा आदमी इतने दिनों से काम धंधे से छूटा पड़ा था ,तीन -तीन बेटियाँ हैं ,कैसे करोगी यह सब ?

भाभी जी लोकलिहाज को करना ही पड़ेगा । हमारे जेठ तो खत्म हो गए तब से जेठानी तो कुछ खर्चा करती नही और देवर करना नही चाहता , वह तो सास की एक कोठरी हड़पने की चाहत में नाराज़ हुआ बैठा है ,तो बचे हम । हम भी न करेंगें तो बताओ बिरादरी बाले क्या कहेंगें । सासु जी की आत्मा भी हमें ही कोसेगी ।करना तो पड़ेगा ही ।खैर मैं ज्यादा और सुनने के मूड में नही थी ।मैंने उसे पैसे दिए और अपने काम में व्यस्त हो गई ।

मैं इस धार्मिक महाभोज के बारे में सोचने लगी कि बताओ ये गरीब मजदूर वर्ग भी अपने ये रस्मोरिवाज़ दिन रात मेहनत करके , पाई पाई जोड़कर या हो सकता है कि अपने काम से एडवांस ले लेते हों तब भी भरसक निभाना चाहता है ।अपनी इन पुरातन परम्पराओं का बोझ मेरे मन पर भी भारी होने लगा हालांकि हम भी यही सब करते ही आ रहें हैं ।

✍️मनोरमा शर्मा, अमरोहा

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