सूरज उजला उजला घूमे दिन भी अब फूला न समाय
धूप हवा में इतराती है मादक गंध जो फैली जाय ।
सर्दी की ठिठुरन की सी -सी हडियन को न और सताए
सूर्य देव की अनुकम्पा से धरती उपवन सी सरसाय ।
आया ऋतुराज बसन्त सुनो अवनि का आंचल लहराए
होली खेलें अब मस्ती से ऋतु बसन्त सु मन हरषाए ।
दही बड़े और गुंजिया खाकर होली में हम धूम मचाएं
मुक्त रहें अब सभी नशे से होली की गरिमा न जाए ।
✍️ मनोरमा शर्मा , अमरोहा ।
आया ऋतुराज बसन्त सुनो अवनि का आंचल लहराए ----बहुत अच्छी पंक्तियां हैं मनोरमा जी।
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