शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की लघुकथा ------काली आंखें

 


गंगा शरद् ॠतु में अपने शान्त स्वभाव में बहते हुए मन में शान्ति अनुभव करती प्रतीत हो रही थी ।जैसे निर्मल मन वाली कोई पवित्र आत्मा । गंगा भी हम जैसे मानवों के कलुष धोने के लिए धरती पर परोपकार करने के लिए ही प्रकट हुई है ।।गंगा के परोपकार की यात्रा अनवरत चल ही रही है लेकिन हमारे प्रयासों में आज तक कोई सच्चाई नही आई ।इंसानों की इतनी तामसिकता ही आपदाओं का बुलावा है ।तो... बात मैं, कर रही थी हमारी कुत्सित और कुंठित भावनाओं की और गंगा के तट पर बैठे -बैठे आज एकाएक मुझे अतीत की स्मृति हो आयी । पावन नदियों के किनारे स्त्री पुरुष बालक बालिकाएँ, किशोर किशोरियाँ आबाल वृद्ध ,अमीर गरीब सब एक तट पर ही समान्यतः स्नान करते रहें हैं और किस पुरुष की निगाहें क्या देख रही रहीं हैं वह उसके संस्कारों पर ही निर्भर है या दैव कृपा पर । गंगा माँ तो अपने सभी प्रकार के बच्चों को समान भाव से अभिसिक्त करती है तो आज तट पर बैठे हुए चारों तरफ वो काली निगाहें साथ चलने लगीं । मम्मी पापा के साथ फैमिली ट्रिप पर मैं गंगा स्नान के लिए आयी थी और साथ में पापा पड़ोसी के किसी रिश्तेदार को भी साथ में गंगा -स्नान कराने के लिए ले आए थे । ग्यारह -बारह साल की उम्र में किसी बालिका को इतनी तमीज नही होती कि वह किसी गलत बात का विरोध कर सके या किसी को वह बात बता सके लेकिन नाव में बैठे बैठे एकटक देखते रहना और नजर पडते ही ऐसे रियक्ट करना कि जैसे चोरी पकड़ी गई हो ।बड़ा अजीब लग रहा था लेकिन क्या कह सकते थे ।फिर गंगा स्नान के बाद जैसे ही कपड़े बदलने के लिए कुटिया में आयी तो लगा कुटिया की दीवार से कोई आंखें नजरें गड़ाए हुए हैं ।मेरी जान निकल रही थी कौन है वहाँ ? कौन है वहाँ ?? और जल्दी जल्दी चेंज कर के मम्मी के पास भागी । फिर अगले दिन वही डर । लेकिन मम्मी से कह नही पायी ।फिर पुनः वही काली आकृति । जोर से चीखी तब कुछ अश्लील से शब्द । घबराहट के मारे शीघ्रता से बाहर निकली तो देखा कि वही व्यक्ति जो हमारे साथ आया था वही तेजी से वहाँ निकला और भागा ।जाकर मम्मी को बताया तो मम्मी ने सान्त्वना दी सहलाया लेकिन उस समय कुछ कहा नही लेकिन उन आँखों की भयावहता आज भी सिहरन पैदा कर देती है और मन में एक ग्लानि का भाव ।आज तो बच्चों को हम अच्छे स्पर्श और गन्दे स्पर्श के बारे में समझातें हैं और उन्हें अलर्ट करतें हैं । इतनी हिम्मत हमारे समाज ने पैदा कर ली है और यह जरूरी भी है ।

✍️ मनोरमा शर्मा, अमरोहा ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें