शिवरात्रि का पर्व है ।कांवरियों के लिए भंडारा चल रहा है
"सभी को भोग लगवाइए ।आइए आइए बैठिए ।यहां बैठिए ,और लीजिए "।चारों ओर शोर मच रहा है तभी सतीश माहेश्वरी ,जो कि भंडारे के आयोजक थे, वहाँ आएऔर खान पान की व्यवस्था देखी ।राशन पानी लगभग सब लग चुका था आखिरी खेप ही बची थी ।आधा-आधा बोरी कच्चा राशन बचा था ।दोपहर होने वाली है और शहर से बहुत से प्रतिष्ठित साथियों को उसने बुलावा दे रखा था वे सब आयेंगें तो अवश्य ही ।अगर राशन खत्म हो गया तो उनका आतिथ्य कैसे होगा ?इसलिए कांवरियों के लिए भंडारा बन्द कराना ही सही होगा ।इसलिए यह सोचकर उन्होंने भोजन की व्यवस्था देख रहे सभी कारीगरों को धीरे से संकेत दिया । बाहर शामियाने में विश्राम कर रहे कांवरियों को जल पीकर ही संतोष करना पड़ा ।उधर सतीश माहेश्वरी ने सगर्व मुस्कान बिखेरते हुए सबको विदा किया और कहा ,"आज का भंडारा समाप्त हो चुका है ,माॅफ कीजिए ।" कांवरिए जल ग्रहण कर आगे चल पड़े । कुछ कांवरियों को उन अतिथियों के सामने भी भी तो खिलाना पड़ेगा यह सोचकर शामियाने के पर्दे बन्द करवा दिए गए और सतीश जी उन मेहमानों को फोन करने लगे ।
✍️ मनोरमा शर्मा, अमरोहा
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