मंगलवार, 1 जून 2021

वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद ' में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 25 मई 2021 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों रंजना हरित, नरेन्द्र सिंह नीहार, कमाल ज़ैदी "वफ़ा", डाॅ ममता सिंह, अशोक विद्रोही, डॉ अर्चना गुप्ता, दीपक गोस्वामी 'चिराग', नीमा शर्मा हंसमुख, सीमा रानी, वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", कंचन खन्ना , राजीव प्रखर की कविताएं और विवेक आहूजा की कहानी ------


देखो - देखो मोटर आती ,

इधर उधर से धूल उड़ाती ।

              पेट्रोल की बू फैलाती ,

              बड़े वेग से दौड़ी जाती। 

इसमें नहीं जुते हैं घोड़े, 

 बंधे नहीं  बैल के जोड़े ।

        इसको एक चलाती कल है ,

          इसमें भरा तेल का बल है।

 ड्राइवर साहब हॉक रहे हैं,

 शीशे  में  से   झांक रहे हैं।

          देख किसी को आगे आते।

         भों- भोंं  करके उसे भगाते।

 इसके आगे से हट जाओ ,

भागो - भागो प्राण बचाओ। 

         बीच सड़क में जो आओगे,

          गिरकर घायल हो जाओगे


✍️  रंजना  हरित, बिजनौर, उत्तर प्रदेश

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उछल - कूदकर  हुई उमंगित,

नवल प्रभात की प्रथम किरण।

हँसती - गाती  दौड़ लगाती,

छैल छबीली मृदुल पवन।

मुर्गा जागा उठकर भागा,

चढ़ छप्पर पर बांग लगाये।

जगे गाँव के लोग सभी,

अपने - अपने पथ पर धाये। 

तोता बोला सुन - ओ मैना। 

सैर सुबह की बहुत सुहानी। 

आलस छोड़ निकल भी आओ, 

फिर ढूंढेंगे दाना - पानी। 

छुटकू फुदकू खनकू सारे, 

अब राहों पर घूम रहे हैं। 

खगकुल गाता वन्दनवारे, 

अपनी मंजिल चूम रहे हैं। 

कूक रही कोयलिया प्यारी,

मनभावन से सभी नज़ारे। 

दस्तक देती घूम रही है, 

सुबह सभी के द्वारे - द्वारे।। 

 

✍️ नरेन्द्र सिंह नीहार, नई दिल्ली

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सबसे अच्छा होता पढ़ाना,

सबसे बुरा आपस मे लड़ाना।

घर मे जो भी आये अतिथि,

इज्ज़त से ही उसे बिठाना।

पहले उसको पानी पिलाना,

फिर मम्मी पापा को बुलाना।

मृदु भाषी बनकर बच्चो,

सबके दिल मे जगह बनाना।

कटु वचन न कहना किसी से,

जो रूठा है उसे मनाना।

नानी के घर  भी जाना तो,

साथ मे बस्ता लेकर जाना।

खेल कूद भी बुरा नही है,

लेकिन अच्छा पढ़ना पढ़ाना।


✍️ कमाल ज़ैदी "वफ़ा"

प्रधानाचार्य,अम्बेडकर हाई स्कूल

सिरसी (संभल)9456031926

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कठिन समय है मत घबराओ। 

हर पल आगे बढ़ते जाओ।। 


रात नहीं ये टिकने वाली।

चाहे हो कितनी भी काली। 

मायूसी को दूर भगाओ।।

हर पल आगे बढ़ते जाओ।। 


गम की बदली छट जायेगी। 

भोर सुहानी फिर आयेगी। 

मन में ये विश्वास जगाओ।। 

हर पल आगे बढ़ते जाओ।। 


सुख दुःख है जीवन का हिस्सा। 

यही बनेगा कल फिर किस्सा।। 

रुक कर मत यूँ समय गवाँओ।। 

हर पल आगे बढ़ते जाओ।। 


चुनौतियों से तुम मत ड़रना। 

साहस का दम हर पल भरना। 

शैल चीर के राह बनाओ।। 

हर पल आगे बढ़ते जाओ।। 


कठिन समय है मत घबराओ। 

हर पल आगे बढ़ते जाओ।। 


✍️ डाॅ ममता सिंह, मुरादाबाद

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इन्द्र धनुष का  रंग निराला!

इसका रूप बड़ा मतवाला!!

       वर्षा     रुकी  बदरिया   छाई

       जब सूरज ने झलक दिखाई।

सूरज  की  विपरीत  दिशा में,

यह न  दिखेगा कभी निशा में,

       अद्भुत दृश्य नजर एक आया।

       सात  रंगो  ने  जिसे   बनाया।।

जादू  जैसा  कोई चलाएं,

कैसे इंद्रधनुष बन जाए ?

       इंद्रदेव      वर्षा   करते   हैं।

       इस जग की पीड़ा हरते हैं।।

मेघों   से   जल   बूंदे    झड़तीं,

सूर्य किरण उन पर जब पड़तीं,

      सातों   रंग  उभर  तब  आते।

      मिलकर इंद्रधनुष बन जाते।।

दौड़ दौड़ बच्चों की टोली,

इसे  निहारे  करे  ठिठोली।

      बैंगनी, नीला फिर आसमानी।

      देखो   अम्मा !    देखो नानी !

हरा,   पीला,  नारंगी , लाल।

सात रंगों ने किया कमाल।।

      सब मिल अद्भुत छटा दिखाते

      सब  बच्चों  के  मन  को भाते

बच्चों  बात    हमारी  मानो !

इसमें छुपा रहस्य पहिचानो !

       मिलजुल  कर जब रहते सारे,

       रंग   निखरते  कितने   प्यारे?

तुम सब भी मिल जुल कर रहना !

इंद्रधनुष  सम  जग  से    कहना !

       अगणित  जन  जन भिन्न प्रकार,

       मिल   कर    बनता  है  संसार।।

अलग अलग हम भले अनेक,

सब मिल कर बन जायें एक !

      इससे कितना सुख पाओगे !

      सबके  प्यारे  बन  जाओगे !!


 ✍️ अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद, मोबाइल 8218825541

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किसने है ये स्कूल बनाए 

कोई हमको जरा बताए 


टीचर जी से डर लगता है

रोज रोज पढ़ना पड़ता है


होमवर्क लगता है दुश्मन

मम्मी से करवाता अनबन 


दोस्त यहां बस मिलते प्यारे 

शोर मचाते मिल कर सारे 


टन टन टन जब घंटी बजती 

लगे जेल से छुट्टी मिलती


कितना प्यारा होता बचपन 

नहीं अगर पढ़ने का बंधन


✍️ डॉ अर्चना गुप्ता, मुरादाबाद

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नील गगन के प्यारे तारे। 

कितने सुंदर कितने न्यारे ।

आसमान में ऊँचे ऐसे ।

चमके हो हीरों के जैसे ।


चाँद तुम्हारे पापा शायद,

साथ तुम्हारे आते हैं।

शैतानी न करो कोई तुम, 

हर पल यह समझाते हैं ।


कितने भाई तुम्हारे हैं ये, 

एक ही जैसे दिखते हो ।

सोच-सोच हैरानी होती। 

नभ में कैसे टिकते हो ।


क्या तुम भी विद्यालय जाते?,

 किस कक्षा में पढ़ते हो।

 हम बच्चों के जैसे तुम भी 

क्या आपस में लड़ते हो ।


ओ! तारे चमकीलापन यह तुमने कैसे पाया है। 

सच-सच बतलाना तुम भैया किसने तुम्हें बनाया है?


✍️ -दीपक गोस्वामी 'चिराग', बहजोई (सम्भल) उ.प्र. मो. 9548812618

ईमेल 

deepakchirag.goswami@gmailL.com

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मुख की शोभा होते दाँत

रोज सफाई करो तुम इनकी

कभी न खाओगे तुम मात।।

जब आये चेहरे पर मुस्कान

दाँत प्रकट होते श्रीमान।

सुंदर मुख मोती से चमके

दाँतो की शोभा यूँ दमके ॥

खाने का आता है स्वाद

मुहँ में अगर हो दाँत जनाब।

नही लगाना कभी औजार

हो जाते है दाँत बेकार ॥

सुबह सवेरे उठकर

मंझन दाँत में नित कर।

रखोगे दाँतो की सफ़ाई

करे दाँत तुमसे वफाई ॥


✍️ नीमा शर्मा हंसमुख, नजीबाबाद बिजनौर

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ओ चमकीले से प्यारे तारे, 

लगते क्याें तुम इतने प्यारे |

 आसमान में चमकाे ऐसे ,

हीराें का सरदार हो जैसे |


मामा चंदा साथ तुम्हारे, 

हरदम हँसकर रहते हैं |

कभी इधर , कभी उधर, 

बस दोडाे़ तुमसे कहते हैं |


कभी स्कूल भी जाते हो क्या? 

दोस्तों संग गप्प लड़ाते हाे क्या? 

मित्राें मंडली संग घूम घूमकर ,

कभी चाट पकौड़ी खाते हाे क्या |


घर पर मम्मी रोज तुम्हारी, 

तुमकाे भी समझाती होगी |

ज्यादा ऊँचे पर मत जाना, 

बड़ी मुश्किल व परेशानी होगी |


बोलाे इतने ऊँचे आसमान में ,

कैसे तुम जी भर दौड़ लगाते हाे |

क्याें नही फिसलतें पैर तुम्हारे, 

क्या जादू टोना कराते हो  ?


✍🏻सीमा रानी, पुष्कर नगर , अमरोहा 

सम्पर्क सूत्र 7536800712

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कहा  भैंस  ने  गैया  मुझसे,

बहस   कभी   मत   करना,

खाकर  पन्नी, कूड़ा  कचरा,

पेट      यहाँ    तू    भरना।

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शुद्ध  नीर,भूसा, चोकर तो,

नहीं      भाग्य    में      तेरे,

चना,बिनोला,खलचोकरतो,

बदा      भाग्य     में     मेरे,

दूर  खड़ी   ऐसे  खाने  की,

सिर्फ       सोचती    रहना।


मेरा  मालिक  मेरे तन  को,

शीशे        सा    चमकाता,

दुहकर  दूध तुझे गौपालक,

घरसे          दूर     भगाता,

तेरे  मालिक  को आता  है,

सिर्फ     दिखावा    करना।


मेरा मालिक  मुझे नित्य ही,

गुड़   और    तेल   पिलाता,

तेरा मालिक तुझको केवल,

सूखी        घास   खिलाता,

उसको नहींअखरता कतई,

तेरा         जीना      मरना।


बहन बहुत मत शेखी मारो,

थोड़ा      चुपभी      जाओ,

मेरे  लाख गुणों का भी  तो,

वर्णन      सुनती      जाओ,

जो   बोलूँगी  सच   बोलूँगी,

झूठ    नहीं    कुछ  कहना।


मेरे    रोम - रोम   में  रहता,

सब     देवों     का     वास,

मेरी  पूजा से  होता  जाता,

सबका    तन-मन     साफ,

सच कहती हूँ  प्यारे  बच्चो,

मानो        मेरा       कहना।

                      

व्यर्थ बहस करने से अच्छा,

होता    है     चुप     रहना।


✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", मुरादाबाद/उ,प्र, मोबाइल फोन नम्बर 9719275453

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नंदू  गोपी और गोपाल 

गए घूमने तीनों भोपाल ।


नानी नाना दादा दादी 

मम्मी पापा मामा मामी ।


संग गया सारा परिवार 

झूमे नाचें मौज उड़ाएं 


ताल तलैया देखें तीनों 

झूमें गाएं नहाएं तीनों ।


फिरउपवन की सैर करी 

सूरत आंखों में भर ली ।


हाथ पकड़े नाना नानी 

नहीं करने देते सैतानी ।


दादी दादा ज्ञान बढ़ाएं 

सब चीजों को समझाएं ।


संग  खाएं चाय पकौड़ी 

खूब मचाएं धमा चौकड़ी ।


हंसते गाते रास्ते कट जाएं 

आकर पढ़ाई में लग जाएं ।


✍️ राशि सिंह, मुरादाबाद उत्तर प्रदेश

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वृक्ष मनोहर प्यारे प्यारे

कुदरत की आँखों के तारे 

दानी बनकर खड़े हुए हैं

शांत भाव सारे के सारे ।

वृक्ष मनोहर प्यारे प्यारे ।।


पशु पक्षी और कीट पतंगे

नभ जल थल के सब ही प्राणी

जीव जीव इन पर निर्भर है

दाता जग के सबसे न्यारे ।

वृक्ष मनोहर प्यारे प्यारे ।।


बने दधीचि से महा त्यागी

अंग अंग करते न्यौछावर ,

मूल फूल फल पत्र से लेकर

सबकुछ इस जगती पर वारे ।

वृक्ष मनोहर प्यारे प्यारे ।


✍️ डॉ रीता सिंह, आशियाना , मुरादाबाद

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मां अब वो दिन- कब आयेंगे,

मोबाइल से- छुटकारा कब पायेंगे।

आंखें अब- दुख  रही हैं इतनी,

मां स्कूल फिर हम- कब जायेंगे।

अब मनाह नहीं- तुम करती हो,

मोबाइल लिये -पीछे चलती हो।

पढ़ाई करलो-जिद्द करती हो,

स्कूल के वैन- बस कब आयेंगे,

मां स्कूल अब-कब हम जायेंगे।

जी करता है हाथों-से कुछ करलूं,

अपने घर को- पेंटिंग से भर दूं।

वीणा सरस्वती- वादन से स्वर लूं।

दिन पुराने कब- लौट कर आएंगे।

शीशम-पीपल बरगद के पेड़ लगाकर,

आक्सीजन बने,रखूं पर्यावरण बचाकर।

बर्बाद न करूं- पानी मैं बहाकर।

महामारी के दिन-स्वतः लौट जाएंगे,

मां फिर तो स्कूल- खुल जायेंगे,

लोक डाउन हमेशा- हट जायेंगे।

पहले दिन मां- फिर आएंगे- आयेंगे।


✍️ सुदेश आर्य-"गौड़ ग्रेशियस", मुरादाबाद

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बच्चे सच्चे कल का भविष्य

बनेंगे अच्छे नागरिक

हमें उनको सही संस्कार देने होंगे

ये कर लो सब प्रण रे भाई

ये कर लो सब प्रण।।


कैसे विपत्ति का करेगें सामना

कैसे प्रकृति को रखे सुरक्षित

राम चरित्र उनको सुनाए

कृष्ण का गीता पाठ पढाए

हमारी संस्कृति है इतनी प्यारी

विदेशों ने भी इस को अपनाया

ये सब उनको बताओ रे भाई

ये सब उनको बताओ।।


माता-पिता की सेवा करो

भाई बहनों संग प्यार से रहो

नाना नानी दादा दादी का रखो ख्याल

ऐसे बनो देश के तुम सुंदर लाल

ये सब उनको सिखाओ रे भाई

ये सब उनको सिखाओ।।


✍️ चन्द्रकला भागीरथी

धामपुर जिला बिजनौर

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बाल कथा  ----


आज काफी लंबे समय बाद जंगल के राजा शेर🐅ने आपसी भाईचारे को बनाए रखने के लिए सभी जीव जंतुओं की जंगल में एक सभा का आयोजन किया। सर्वप्रथम गधा कुमार जी🐴 ने खड़े होकर अपनी समस्या रखने के लिए महाराज से गुजारिश की जो कि तुरंत स्वीकार कर ली गई ।तत्पश्चात गधे कुमार जी 🐴ने कहना शुरू किया "महाराज मुझे अपने जीव जंतु समुदाय से कोई शिकायत नहीं है परंतु मानव जाति ने मेरा जीना मुश्किल करा हुआ है" आगे बताते हुए गधा कुमार जी बोले "मानव👨‍💼 दिन रात मुझे सामान ढोने पर लगाए रहता है और एक पल भी मुझे आराम करने नहीं देता" ऊपर से मानव जाति ने मेरा मजाक उड़ाने के लिए कहावते तक बना रखी है, जैसे गधे के सिर पर सींग, अबे गधे , ओए गधे आदि इसके बाद में गधे ने रूआंसु होकर कहा सरकार इतनी मेहनत करने के बाद भी मानव समाज में मेरी कोई इज्जत नहीं है। अभी गधे जी🐴 की बात पूरी भी ना हो पाई थी कि बैल 🐂 ने भी सभा में शोर मचा दिया "महाराज में भी कुछ कहना चाहता हूं" महाराज ने कहा बोलो आप भी अपनी समस्या बेहिचक होकर सभा में रख सकते हैं ।बैल जी 🐂बोले "महाराज मेरी भी शिकायत मानव जाति से ही है" उन्होंने बताया कि "मानव अपनी खेती में मेरा खूब इस्तेमाल करता है और इनका हल जोतते जोतते मेरी टांग टूट जाती है व मुझे वह जरा सा भी आराम नहीं करने देता, इतना ही नहीं जब मेरी उम्र हो जाती है तो वह मुझे कसाई को बेच देता है" बैल ने आगे कहा "महाराज आप ही बताएं क्या मुझे आराम करने का कोई हक नहीं" 

                 बैल की बात समाप्त होते ही तोता श्री 🦜, कबूतर श्री 🕊आदि पक्षी भी अपनी शिकायत सभा में रखने को आतुर हो गए ।सभी जंतुओं ने उन्हें समझाया जल्दी मत करो तुम्हें भी अपनी शिकायत करने का पूरा मौका दिया जाएगा ।शेर महाराज 🐅ने पक्षी समुदाय से अपना पक्ष रखने को कहा तो तोता श्री 🦜फुदक कर सभा के मध्य आ गए और तीखी आवाज में बोले "महाराज मानव ने हमें तो बिल्कुल गुलाम ही बना रखा है और हमारा जीवन सालों साल पिंजरे में कैद होकर ही रह जाता और पिंजरे में ही हम लोग मर जाते हैं, महाराज हमें पिंजरे की गुलामी से आजादी दिलाई जाए" महाराज ने पक्षी समुदाय की बात को बड़े ध्यान से सुनी , कुछ पक्षीयो ने अपने भक्षण की शिकायत भी की , भक्षण की बात सुन मुर्गा 🐓और बकरे🐐 ने शोर मचा दिया जोर से सभा में दहाड़े मार-मार कर रोने लगे , शेर महाराज ने उन्हें बमुश्किल चुप कराया और उनसे रोने का कारण पूछा तो वह रोते हुए बोले "महाराज मानव से हमारी रक्षा करें इन लोगों ने तो हमारा जीवन दूभर कर दिया है इनकी कोई दावत होती है वह हमारी जान लेकर ही जाती है" और तो और हम लोग तो अपनी पूरी जिंदगी भी नहीं कर पाते इससे पहले ही मानव👨‍💼 हमारा भक्षण कर लेता है सब की समस्याएं सुन महाराज शेर 🐅ने लंबी सांस लेते हुए कहा आप सब की समस्याएं काफी गंभीर हैं । और इन सब के निस्तारण की भी अति आवश्यकता है। पर मानव को कौन समझाएगा महाराज ने सबसे मानव के सुधार के लिए अपने सुझाव रखने को कहा । करीब करीब सभी छोटे-बड़े जीव-जंतुओं ने एक सुर में महाराज से कहा "अब बात समझाने से आगे निकल चुकी है" अगर हम मानव को समझाने जाएंगे तो वह हम लोगों को और भी ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है। अतः अब मानव 👨‍💼को सबक सिखाने का वक्त आ गया और सभी जीव जंतु समुदाय ने सर्वसम्मति से मानव जाति के विरुद्ध जंग का प्रस्ताव पास कर दिया। महाराज ने सभी को समझाया की जंग से कोई फायदा नहीं आपस में ही बैठ कर सुलाह कर लेते हैं। परंतु कोई भी जीव मानने को तैयार नहीं हुआ । सभी ने महाराज 🐅से आग्रह किया कि मानव को एक बार सबक सिखाना अत्यंत आवश्यक है और जंग की पूरी रूपरेखा बनाने के लिए महाराज जी को नियुक्त कर दिया । सभी जीव जंतुओं की मर्जी के आगे महाराज जी की एक न चली और उन्होंने जीव जंतुओं की जंग में पूरा साथ देने का वादा किया व अगले दिन सब को सभा स्थल पर पुनः बुलाया । 

        अगले दिन पूरा जीव जंतु समुदाय सभा स्थल पर एकत्र हुआ और महाराज शेर से जंग की तैयारी का हाल पूछा तो महाराज जी ने कहा मैंने मानव को सबक सिखाने के लिए एक योजना बनाई है। और इस योजना में "कोरोना विषाणु" बेटा हमारी मदद करेगा सभी जीव जंतुओं ने महाराज से पूछा यह कैसे संभव है ।कोरोना तो बहुत छोटा है और नंगी आंखों से हम इसे देख भी नहीं सकते फिर यह हमारी मदद किस प्रकार कर सकेगा ।महाराज ने कहा कोरोना ही हमारी मदद कर सकता है और मानव को अच्छी तरह सबक सिखा सकता है ।उन्होंने करोना बेटा को बुलाया और उसे आदेश दिया कि पृथ्वी के पूर्वी हिस्से में किसी खाद पदार्थ में मिलकर अपना दुष्प्रभाव दिखाना शुरू करो वह एक से दूसरे दूसरे से तीसरे फिर हजारों लाखों करोड़ों लोगों में अपना दुष्प्रभाव पृथ्वी के सभी देशों में फैला दो। महाराज से आज्ञा लेकर कोरोना विषाणु ने पूर्व से पश्चिम तक पूरी पृथ्वी पर अपना दुष्प्रभाव चलाना शुरु कर दिया। धीरे धीरे दुष्प्रभाव से हजारों लाखों फिर करोड़ों लोग प्रभावित होने लगे। लाखों की संख्या में मानव मरने लगे। सभी जीव जंतुओं को मानव द्वारा अपने ऊपर किए गए अत्याचार का बदला मिल गया था और सब एकत्र होकर महाराज के पास आए व बोले "महाराज मानव जाति को अब काफी सबक मिल चुका है ,अब आप कोरोना को वापसी का आदेश दें" 

                           महाराज शेर ने तुरंत कोरोना को बुलवाया और उससे मानव जाति पर उसके प्रभाव की रिपोर्ट मांगी। कोरोना विषाणु ने सीना चौड़ा कर महाराज से कहा कि "मै आपको अभी अपने प्रभाव की छमाही रिपोर्ट देता हूं" यह कहकर करोना ने बताना शुरू किया "मानव मेरे प्रभाव से मुंह पर कपड़ा बांधकर घूमता है , मदिरा जो पीने की वस्तु है उसे मेरे प्रभाव को कम करने के लिए हाथों में लगा कर घूम रहा है, इसके अलावा सबसे मजेदार बात यह है कि मानव एक दूसरे से दूर दूर होकर बैठता है और दूर दूर होकर ही घूम रहा है" यह कहकर कोरोना ने एक जबरदस्त ठहाका लगाया सभी जीव जंतु छमाही रिपोर्ट सुनकर अति प्रसन्न हुए ,तत्पश्चात सभी जीव जंतुओं ने महाराज से कहा अब बहुत हुआ मानव को सबक मिल चुका है आप कोरोना से कहे कि वह अपने प्रभाव को खत्म करें और शांत हो जाए महाराज ने कोरोना को तुरंत आदेश दिया कि वह अपना बोरिया बिस्तर समेट कर पूरे विश्व से रवाना हो जाए । किंतु करोना तो घमंड में चूर हो चुका था उसने महाराज की बात को मानने से साफ इंकार कर दिया और बोला "आप सभी जीव जंतुओं में मैं सबसे ताकतवर हूं ,जो काम आप सब मिलकर नहीं कर सके वह मैंने अकेले कर दिखाया लिहाजा अब तो जब मेरा मन करेगा तभी मैं वापसी करूंगा" यह सुन सभी जीव जंतु बहुत गुस्सा हुए और उन्होंने कोरोना को सभा से धक्के मार कर अपनी जमात से बाहर कर दिया। 

                         कोरोना की इस हरकत पर सभी जीव जंतु बहुत दुखी थे और महाराज शेर से उन्होंने कहा अब इस मुसीबत से मानव को निजात दिलाने के लिए कुछ युक्ति करें महाराज ने कहा "देखो मैं कुछ करता हूं" उन्होंने सबसे कहा "पृथ्वी पर भारतवर्ष के पीएम बहुत अच्छे व्यक्ति हैं मैं उन्हें अपने पत्रवाहक कबूतर को भेजकर खबर करता हूं" कि कैसे जीव-जंतुओं की नासमझी के कारण यह समस्या खड़ी हो गई है व करोना बागी हो गया है।महाराज ने आगे लिखा "अब हम लोगों ने करोना को अपनी जमात से भी बाहर कर दिया है अतः आप जो कठोर से कठोर कार्यवाही करोना के खिलाफ करना चाहे हमारा आपको पूर्ण समर्थन रहेगा" यह कहकर उन्होंने कबूतर जी को पत्र देकर रवाना किया ।

 तत्पश्चात भारतवर्ष के पीएम ने सभी जीव जंतुओं का शुक्रिया अदा करा व अपने वैज्ञानिकों, डॉक्टरों की पूरी टीम को करोना पर कार्यवाही के लिए लगा दिया और जल्द ही पूरा विश्व कोरोना के प्रभाव से मुक्त हो गया। इस प्रकार सभी जीव जंतुओं ने महाराज शेर के सम्मुख अपनी गलती स्वीकारी , अब उन्हे अच्छे से समझ आ चुका था कि दुनिया को प्यार से ही जीता जा सकता है ना कि बदले से, और सभी ने महाराज शेर के समक्ष प्रण किया कि अब वह मानव जाति के साथ प्रेम से ही जीवन व्यतीत करेंगे ।


✍️ विवेक आहूजा, बिलारी

जिला मुरादाबाद

Vivekahuja288@gmail.com

@9410416986

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मुरादाबाद मंडल के चन्दौसी (जनपद सम्भल ) के साहित्यकार डॉ मूलचन्द्र गौतम का व्यंग्य ----बहुरूपिये वायरस की बेइज्जती

 


कोरोना वायरस किसी बहुरूपिये मायावी राक्षस से कम नहीं है।जिन्होंने राम रावण युद्ध का वर्णन पढा है वे जानते हैं कि इसे पराजित और परास्त करना कितना कठिन काम है।यह रक्तबीज है,कालिया नाग है ,मारीच है जो आसानी से नष्ट होने को तैयार नहीं।महामारियों के इतिहास में कोरोना ने प्लेग को बहुत पीछे छोड़ दिया है।लोग अपनों को कन्धा देने तक को तैयार नहीं।अस्थि चयन और विसर्जन तो दूर की बात है।कलिकाल   में समस्त आसुरी शक्तियां इसी में  समाहित हो गयी हैं।पहले एक मामूली सा राक्षस तैंतीस करोड देवताओं पर भारी पडता था तो मानुषों की तो कोई गिनती ही नहीं।कोरोना को भी अपनी बेइज्जती कतई बर्दाश्त नहीं।बेइज्जती से यह सुरसा के मुँह की तरह विशालकाय होता चला जाता है।बाबा ने पहले ही आगाह कर दिया था -खल परिहरइ  स्वान की नाईं।

       पूरी दुनिया के तमाम वैज्ञानिक,डाक्टर और विशेषज्ञ रातदिन इसकी काट  ढूंढने में लगे हुए हैं।तरह-तरह के टीके ईजाद किये जा रहे हैं।टोने टोटके अलग।ऊपर से नीम हकीमों के नुस्खे-काढे। हर तरह का धंधा चालू आहे ।इन  सब उपायों और उपचारों से इसका गुस्सा आसमान तक पहुँच गया है।कोरोना को कष्ट है कि जो गालियां देश के नेताओं के लिये फिक्स हैं वो उसे क्यों दी जा रही हैं?क्या इसलिये कि उसने विश्व की हर सत्ता और व्यवस्था की पोल खोल दी है?

      इसीलिए माबदौलत ने तय किया है कि बाबा की रणनीति के तहत इसे तरह-तरह की निंदा से नहीं प्रशंसा से मारा जाना चाहिये।बाबा ने भी सर्वप्रथम खल वन्दना करके इसके कोप से आत्मरक्षा की थी।इसीलिए चतुर सुजानों ने इसकी प्रशंसा और अभिनंदन -वंदन के ढेर लगा दिये हैं ताकि वे इसके प्राणघातक कहर से सुरक्षित रह सकें।कोरोना चालीसा में  इस बहुरूपिये को ब्रह्म ही स्थापित कर दिया गया है।चमगादड के इस वंशज की महिमा अपरंपार है।इसके मेहमानों तक को उल्टा लटकना पडता है तो दमघोंटू शिकारों का क्या कहिये?

      आज भी मोहल्ले का शार्प शूटर सबसे पहले उनसे हिसाब चुकता करता है जो उसे नमस्ते नहीं करते।हर आते-जाते से उसका सवाल होता है कितने भाई हो ,जबाब मिलते ही उनकी संख्या में एक बढाकर पूछता है ,इतने होते तो मेरा क्या कर लेते और उसकी ढिशूम ढिशूम चालू हो जाती है।बयरु अकारण सब काहू सौं।ऐसा नहीं कि यह गुण्डा आदर करने वालों पर कोई रहम दिखाता है बल्कि उनको बेगारी में पकड लेता है और जिन्दगी भर उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी से गुलामी कराता है।गिद्ध सबसे पहले अपने शिकार की आँखें नौंचता है ताकि उसे कुछ दिखाई न दे।यह बाली की तरह सबसे पहले जीव के फेफड़ों को जकड़ता है ताकि मरीज इसके सामने  बेदम हो जाय ।क्या कल्कि अवतार का यही सही समय है?

✍️ डॉ मूलचंद्र गौतम , शक्ति नगर,चंदौसी,जनपद संभल 244412, मोबाइल  8218636741

शुक्रवार, 28 मई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में मुंबई निवासी) प्रदीप गुप्ता का व्यंग्य --विशेषज्ञता की हद


 वो ज़माना गया जब हमारे घर में कोई  बीमार पड़ जाता था तो हम सीधे अपनी गली मोहल्ले के डाक्टर के पास जाये थे . इसे फ़ैमिली डाक्टर भी कहा जाता था. यह एक ऐसा बंदा होता था जिसे परिवार के हर सदस्य के स्वास्थ्य के बारे में बारीक से बारीक जानकारी होती थी , उसे यह भी पता होता था कि अम्मा जी  को शुगर रहती है , पापा जी के घुटनों में दर्द रहता है इसलिए वो इलाज के दौरान वही दवाई लिखता या देता था जिससे उनकी मेडिकल कंडिशन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न हो . 

अब तो हाल यह है कि मुहल्ले के नुक्कड़ पर केवल वही डाक्टर बचे हैं जिनके नाम के आगे एबीसीडी , फिर आरएमपी या फिर जीएमपी क़िस्म की डिग्रियाँ लगी होती हैं . बाक़ी लोग इलाज कराने के लिए या तो सीधे पाँच सितारा अस्पताल जाते हैं नहीं तो फिर किसी स्पेशलिस्ट के पास. इलाज शुरू होने से पहले ही ये डाक्टर कई सारे टेस्ट करवाने के लिए लिख देते हैं , उनका सीधा तर्क रहता है कि जब तक वे बीमारी के बारे में मुतमयीन नहीं हो जाएँगे तब तक दवा नहीं देंगे . डाक्टर की फ़ीस मात्र एक हज़ार और टेस्टों की लागत यही कोई दस हज़ार . मरीज इस बात से संतुष्ट हो जाता है  कि डाक्टर बेफ़जूल दवाई देने के पक्ष में नहीं है . लेकिन डाक्टर और टेस्टिंग लैब का सही सही रिश्ता क्या होता है यह मुझे कुछ महीने पहले ही पता लगा . मेरे पैर में दर्द था और पाँच सितारा अस्पताल के डाक्टर भास्कर ने मुझे हार्ट का कलर डापलर करने की पर्ची थमा दी थी. जिस लैब की पर्ची थी वह मेरे घर से काफ़ी दूर थी , मेरे घर के क़रीब एक नई लैब खुली थी मैंने  सोचा क्यों न वहीं से टेस्ट करवा लिया जाए , लैब में पहुँचा , मेरी पर्ची पढ़ कर कर काउंटर पर बैठी रिसेप्शनिस्ट सीधे  अपनी लैब के स्वामी के चेम्बर में पहुँच गयी  . वो बहुत ही इक्सायटेड लग रही थी . वहाँ का पूरा सेट-अप छोटा सा ही था, चेम्बर में हो रही उन दोनों की बात आराम से सुन पा रहा था , लैब स्वामी कह रहा था ,’ जूली , डाक्टर भास्कर को फ़ोन लगाओ , उनको बोलो सर आपका खाता खोल दिया है , हम अभी नए हैं हम  तीस परसेंट के साथ दस परसेंट बोनस भी दे रहे हैं. तब समझ  में आया कि स्पेशलिस्ट डाक्टर क्यों कई क़िस्म के टेस्ट की परची बना  कर देता है. मेरे एक जनरल फिज़िशियन मित्र तो उस पर्ची को देख कर कई मिनट तक पेट पकड़ कर हंसते रहे , कहने लगे मुझे आज ही पता चला कि पैर के दर्द के कारण का पता हार्ट के कलर डोपलर से चल सकता है. 

इन दिनों चिकित्सा विज्ञान में इतनी तरक़्क़ी हो गयी है कि शरीर के छोटे छोटे भागों के विशेषज्ञ बन चुके हैं मसलन दांत को ही लीजिए , दांत में इंप्लांट का विशेषज्ञ अलग है , रूट कैनाल का अलग. एक दिन तो हद  ही हो गई , मेरे एक मित्र एक सितारा हास्पिटल में ईएनटी विभाग में गए , वहाँ बैठे डाक्टर को कान देखने के लिए कहा , डाक्टर बोला ‘सॉरी मैं तो नाक का विशेषज्ञ हूँ ‘ हमारे मित्र उस सितारा अस्पताल में घूम घूम कर और विभाग में बैठे बैठे परेशान हो चुके थे डाक्टर से मुख़ातिब हुए कहने लगे, ‘ठीक है सर मेरा कान मत देखिए पर इतना बता दीजिए आप  नाक के बाएं छेद  के विशेषज्ञ हैं या फिर  दाएँ के ‘.

सच कहूँ तो ऐसे डाक्टर ज़्यादा ज़रूरी हैं जो आपके पूरे शरीर को समझ कर आप का निदान कर सकें .

✍️ प्रदीप गुप्ता

B-1006 Mantri Serene, Mantri Park, Film City Road , Mumbai 400065

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य ----बेटा ! बड़े होकर क्या बनोगे ? -

 

       जब बच्चा दूसरी या तीसरी कक्षा में आ जाता है ,तब रिश्तेदार घर पर आने के बाद बच्चों को पुचकारते हुए उससे पहला सवाल यही करते हैं " क्यों बेटा ! बड़े होकर क्या बनोगे ? "

         यह सवाल कुछ इस अंदाज में किया जाता है ,जैसे प्रश्न पूछने वाले के हाथ में वरदान देने की क्षमता है अथवा बच्चे को खुली छूट मिली हुई है कि बेटा आज जो चाहो वह मांग लो तुम्हें मिल जाएगा ।

    कक्षा चार में बच्चों को अपने जीवन की न तो नई राह पकड़नी होती है और न ही  विषयों का चयन कर के किसी लाइन में जाना होता है । हमारे जमाने में कक्षा नौ में यह तय किया जाता था कि बच्चा विज्ञान-गणित की लाइन में जाएगा अथवा वाणिज्य - भूगोल - इतिहास पढ़ेगा ? कक्षा 8 तक सबको समान रूप से सभी विषय पढ़ने होते थे । लेकिन बच्चों से बहुत छुटपन से यह पूछा जाता रहा है और वह इसका कोई न कोई बढ़िया-सा जवाब देते रहे हैं । 

          दुकानदारों के बच्चे कक्षा आठ तक अनेक संभावनाओं को अपने आप में समेटे हुए रहते हैं । जिनकी लुटिया हाई स्कूल में डूब जाती है ,वह स्वयं और उनके माता-पिता भी यह सोच कर बैठ जाते हैं कि अब तो बंदे को दुकान पर ही बैठना है। उसके बाद इंटर या बी.ए. करना केवल एक औपचारिकता रह जाती है । 

        ज्यादातर मामलों में प्रतियोगिता इतनी तगड़ी है कि जो व्यक्ति जो बनने की सोचता है ,वह नहीं बन पाता । एक लाख लोग प्रतियोगिता में बैठते हैं ,चयन केवल दो हजार का होता है । बाकी अठानवे हजार उन क्षेत्रों में चले जाते हैं ,जहां जाने की वह इससे पहले नहीं सोचते थे ।

                   ले-देकर राजनीति का बिजनेस ही एक ऐसा है ,जिसमें कुछ सोचने वाली बात नहीं है  । नेता का बेटा है ,तो नेता ही बनेगा । इस काम में हालांकि कंपटीशन है ,लेकिन नेता जब अपने बेटे को प्रमोट करेगा तब वह सफल अवश्य रहेगा । अनेक नेता अपने पुत्रों को कक्षा बारह के बाद नेतागिरी के क्षेत्र में उतारना शुरू कर देते हैं । कुछ नेता प्रारंभ में अपने बच्चों को पढ़ने की खुली छूट देते हैं ।

             "जाओ बेटा ! विदेश से कोई डिग्री लेकर आओ । अपने पढ़े लिखे होने की गहरी छाप जब तक एक विदेशी डिग्री के साथ भारत की जनता के ऊपर नहीं छोड़ोगे ,तब तक यहां के लोग तुम्हें पढ़ा-लिखा नहीं मानेंगे !" 

       नेतापुत्र विदेश जाते हैं और मटरगश्ती करने के बाद कोई न कोई डिग्री लेकर आ जाते हैं । यद्यपि अनेक मामलों में वह डिग्री भी विवादास्पद हो जाती है । नेतागिरी के काम में केवल जींस और टीशर्ट के स्थान पर खद्दर का सफेद कुर्ता-पजामा पहनने का अभ्यास करना होता है। यह कार्य बच्चे सरलता से कर लेते हैं । भाषण देना भी धीरे-धीरे  सीख जाते हैं । 

               जनता की समस्याओं के बारे में उन्हें शुरू में दिक्कत आती है । वह सोचते हैं कि हमारा इन समस्याओं से क्या मतलब ? हमें तो विधायक ,सांसद और मंत्री बन कर मजे मारना हैं । लेकिन उनके नेता-पिता समझाते हैं :- "बेटा समस्याओं के पास जाओ।  समस्याओं को अपना समझो । उन्हें गोद में उठाओ । पुचकारों ,दुलारो ,फिर उसके बाद गोद से उतारकर उन्हें उनके हाल पर छोड़ दो और वापस आकर प्रीतिभोज से युक्त एक बढ़िया - सी प्रेस - कॉन्फ्रेंस में जोरदार भाषण दो । चुने हुए पत्रकारों के, चुने हुए प्रश्नों के ,पहले से याद किए हुए उत्तर दो । देखते ही देखते तुम एक जमीन से जुड़े हुए नेता बन जाओगे ।"

           यद्यपि इन सारे कार्यों के लिए बहुत योजनाबद्ध तरीके से काम करना पड़ता है । फिर भी कई नेताओं के बेटे राजनीति में असफल रह जाते हैं । इसका एक कारण यह भी होता है कि दूसरे नेताओं के बेटे तथा दूसरे नेता-पितागण उनकी टांग खींचते रहते हैं। यह लोग सोचते हैं कि अगर अमुक नेता का बेटा एमएलए बन गया तो  हमारा बेटा क्या घास खोदेगा ? राजनीति में प्रतियोगिता बहुत ज्यादा है । कुछ गिनी-चुनी विधानसभा और लोकसभा की सीटें हैं । यद्यपि आजकल ग्राम-प्रधानी का आकर्षण भी कम नहीं है । पता नहीं इसमें कौन-सी चीनी की चाशनी है  कि बड़े से बड़े लोग ग्राम-प्रधानी के लिए खिंचे चले आ रहे हैं । खैर ,सीटें फिर भी कम हैं। उम्मीदवार ज्यादा है । 

      कुछ लोग अपने बलबूते पर नेता बनते हैं । कुछ लोगों को उनके मां-बाप जबरदस्ती नेता बनाते हैं । कुछ लोगों को खुद का भी शौक होता है और उनके माता-पिता भी उन्हें बढ़ावा देते हैं । आदमी अगर नेता बनना चाहे तो इसमें बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं है। हालांकि टिकट मिलना एक टेढ़ी खीर होता है । फिर उसके बाद चुनाव में तरह-तरह की धांधली और जुगाड़बाजी अतिरिक्त समस्या होती है । पैसा पानी की तरह बहाना पड़ता है ,जो नेता-पुत्रों के लिए आमतौर पर कोई मुश्किल नहीं होती । आदमी एक-दो चुनाव हारेगा ,बाद में जीतेगा । मंत्री बन जाएगा । फिर उसके बाद पौ-बारह। पांचों उंगलियां घी में रहेंगी । पीढ़ी दर पीढ़ी धंधा चलता रहेगा। समस्या मध्यम वर्ग के सामने आती है। बचपन में उससे जो प्रश्न पूछा जाता है कि बेटा ! बड़े होकर क्या बनोगे ,वह बड़े होने के बाद भी उसके सामने मुँह बाए खड़ा रहता है। नौकरी मिलती नहीं है ,बिजनेस खड़ा नहीं हो पाता ।

 ✍️ रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर [उत्तर प्रदेश], मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार रंजना हरित जी लघुकथा ----- संवेदना


 आज पड़ोसन नीलम के पति  की कोरोना  बीमारी से  चले जाने की खबर सुनकर .... अंजना के पैरो तले ,...जैसे जमीन खिसक गई। 

वह जल्दी किचन से निकलकर

 हाथ में मास्क ....लेकर नीलम के घर जाने के लिए निकली।

 तभी ट्रिन.... ट्रिन..... ट्रिन .... फिर ... घंटी सुनते ही बेटी ने फोन उठाते हुए कहा- 

 मम्मी  ...! दिल्ली से अनीता  मौसी.. का ...फोन है ।

(बचपन की सहेली अनीता  का फोन सुनने के लिए .... रूक जाती है।)

हे भगवान... क्या कह रही होगी?

(मन ही मन सोचती है,ये कैसा  अनर्थ ...।)

 हां ! !!!!बोल ...अनीता 

कैसी है?

क्या बोलूं ....अंजना..

 भाभी हॉस्पिटल में है। (रोते हुए बोली)  सांस लेने में काफी दिक्कत हो रही  थी , और अब डॉ....ने...

अरे!!!... कैसे... हो गया .? कैसे... हो आप सब ? 

क्या भाभी कोरोना पॉजिटिव है?

हां ....अंजना ।

 उनको ...कैसे हो गया ?

 वह ...तो...कभी कही आती ....जाती... ही नहीं .?

(उधर से सहेली अनीता ने जो बताया )

क्या बताऊं ? बहन अंजना !...

भाभी.... पड़ोस में ही कोरोना पेशेंट की मृत्यु होने पर उनके घर संवेदना व्यक्त करने और उन्हें सभालने चली गई थी ।

बस .......भाभी जब से ही..

कोरोना पॉजिटिव हो गई।.

 अंजना को अनीता का फोन.. सुनते -सुनते ...लगा... शरीर में जैसे जान ही न हो।

अंजना के  हाथ से मास्क और मोबाइल गिर ही गया । 

और..पड़ोस में ,.बाहर नीलम के घर से जोर - जोर से ... रोने की आवाज तेज होती जा रही थी।

फोन सुनते-  सुनते  अंजना सोच में पर पड़ गई।

बाहर .... नीलम के घर.जाऊं ..

   या नहीं जाऊं ..

सहेली अनीता की भाभी   की तरह संक्रमित होकर अस्पताल में एडमिट होने के खौफ ने दरवाजे से बाहर नहीं जाने दिया।

✍️ रंजना हरित, बिजनौर, उत्तर प्रदेश

मुरादाबाद की साहित्यकार इंदु रानी की कहानी ----महान पिता


 "रेलवे की मामूली सी प्राइवेट नौकरी और माँ-पिता से लेकर छोटे भाई,बीमार बड़े भाई के बेटे व खुद के तीन बच्चों की पूरी पूरी जिम्मेदारी ऐसे में एक पिता के नाते किस तरह मैं घर की गाड़ी चला पा रहा हूँ ये तो सिर्फ ईश्वर या मेरा दिल जानता है तनु की माँ.."! एक पिता कराहते हुए पास में सर दबाती अपनी पत्नी से। 

"हां जी वो तो मैं खुद समझ रही हूँ आप खुद के लिए कम और औरों के लिए ज्यादा जी रहे हैं और अब बिटिया भी ग्रेजुएशन कर चुकी उसका मन आगे की पढ़ाई को है..!"पत्नी बोली।

"हां पर मुझे  तो जिम्मेदारी निपटाने की सूझ रही बिटिया को दायरे मे रह कर सामान्य सी पढ़ाई करने की सलाह देते हुए उसे समझा बुझा दिया है मैंने । आखिर, अपने दोनों लड़कों को भी तो लैब टेक्नीशियन और एक्सरा टेक्नीशियन बनाना है और दहेज के लिए धन भी एकत्र करना है फिर छोटी बेटी भी बड़ी हो रही ,बहुत बहुत जिम्मेदारी हैं भाग्यवान"!

बिटिया पल्ले की आड़ से सुन कर मायूस हो गयी...

       पर बिटिया को तो धुन थी हट के पढ़ाई करने की सो उसने चुपके से एक पत्र अपने चाचा को लिखा जिसकी अंतिम पंक्तियां थी- "आप कृपा कर मुझ पर भरोसा रखिये,पढ़ाई पूरी होने पर जब जॉब लगेगी तो मैं सब उधार चुका दूँगी.."! तभी इत्तेफाक से उसके पिता उसे लिखते हुए पकड़ लेते हैं और हाथों से ले कर पढ़ने लगते हैं। उनकी आँख डबडबा जाती है। मन भर आता है।  खुद को सम्भालते हुए वो पत्र  हाथ में मोड़ते हुए रख लेते और शाम को पत्नी से सारे वाकये का जिक्र करते हुए कह उठते हैं - "जब इतनी ही लगन है हमारी बिटिया को तो क्यों न हम दहेज के सारे पैसे रुपए बिटिया की खुद की ही पढ़ाई पर ही लगा के देखें,अरे क्या पता वो हमारे इन्हीं दोनों लड़कों सी निकले। भाग्यवान, कम से कम उसका दिल तो रह जाएगा..!चल बाबली कोई बात नहीं भले हम एक टाइम की सब्जी दोनों टाइम चला लेंगे पर बच्चों के शौक तो पूरे हो सकेंगे..."! 

पिता ने बस यही सोच बिटिया पे भरोसा करते हुए अपने से बहुत दूर दाखिला करवा के छात्रावास में रहने और पढ़ने लिखने को छोड़ दिया और खुद जिम्मेदारियों में दब कर एक टाइम की सब्जी दोनों टाइम पत्नी के साथ खुशी-खुशी बाँट के जीता रहा। इस सोच के साथ के यही बच्चे  तो आगे चल के सहारा होंगे। भले अंत समय कुछ पास हो न हो बच्चों की ये दौलत तो कम से कम होगी।

✍️ इंदु रानी, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ---रिश्तों का महत्व


 'हम दोनो ही कोरोना पॉजिटिव हैं, राजेश। अब कैसे होगा । घर पर क्वारनटीन...........रोहित को कौन सम्भालेगा। माँ जी भी तो हैं......'।उषा परेशान हो राजेश से कहे जा रही थी। ' देखते हैं , पहले घर चलो ।' राजेश ने गाड़ी घर की तरफ मोड़ दी। उसने फोन पर माँ को बता दिया कि हम दोनो..........

जैसे ही गाड़ी की आवाज सुनी ,  माँ ने कहा बेटे-बहू, मैनें  दोनो अलग अलग कमरों में तुम्हारी जरूरत का सब सामान रख दिया है। गरम पानी अभी रखा है। जाओ सीधे अपने अपने कमरे में जाओ। सब सही हो जायगा, चिंता मत करो। रोहित अपने कमरे में  है।

माँ ने 14 दिन तक कोरोना प्रोटोकाल का पूरा अनुपालन करते हुए, बहू बेटे का ध्यान रखा। रोहित को भी संभाल लिया।

उषा और राजेश धीरे -धीरे सही होने लगे।

माँ के प्रयास से दोनो 14 दिन में बिलकुल सही हो गये।

सही होकर उषा माँ के गले लगकर बहुत रोई। उसे याद आया कि वह अभी कुछ दिन पहले ही राजेश से लड़ रही थी कि माँ को गाँव छोड दो। आज इस बुरे समय से उषा को रिश्तों का महत्व समझ आ गया।

✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा

                                     

मुरादाबाद की साहित्यकार ( वर्तमान में नोएडा निवासी ) सपना सक्सेना दत्ता की कहानी ---भलाई हमेशा वापस आती है


सुधा कार्यालय में अकेले बैठी थी। लगभग साढ़े छः बजे पति से बात हुई थी । वे उसे लेने कार्यालय आने वाले थे परंतु तेज आँधी बारिश के चलते रास्ते में एक पेड़ गिर जाने से वे रास्ता खुलने का इंतजार कर रहे थे और सुधा ढलती हुई शाम में अपने पति का ।

       अधिकांश स्टाफ या तो बीमार था या घर में किसी के बीमार होने पर क़वारन्टीन। कोरोना की तीसरी लहर और तेज़ आँधी तूफान से मौसम ने भयावह रूप ले लिया था ।यह देखते हुए उसने अपनी चार माह पश्चात सेवानिवृत्त होने वाले इंचार्ज एवं अपनी पियोन को जिद करके घर भेज दिया था । उसकी संतोष आंटी बार-बार कह रही थी बिटिया अकेले कैसे बैठोगी  आफिस में ? वह हँस कर बोली- कोई बात नहीं ये हमेशा समय पर आ जाते हैं। अभी मेट्रो भी नहीं चल रही है। आप समय रहते निकल जाओ। कार्यालय प्रथम तल पर था। थोड़ी देर के बाद उसने कार्यालय के बाहर कॉरीडोर में चहल कदमी करते हुए देखा कि आसपास के सभी कार्यालय बंद हो चुके थे। सामने बस सुनसान सड़क दिखाई दे रही थी। वह वापस आकर अपनी कुर्सी पर बैठ गई  तभी अचानक बिजली की फुर्ती से कई बंदर गुस्से में खों खों चिल्लाते हुए उसके  ऑफिस में घुस आये । सुधा तेजी से अंदर की ओर भागी और अंदर वाले चेंबर में जाते ही उसने दरवाजा बंद कर लिया। चेम्बर भी क्या था बस एक आठ फुट की दीवार मात्र थी जिसके ऊपर छत तक खुला था। एक छलांग में ही बन्दर अंदर चले आते। वह साँस रोककर  दरार में से देख रही थी। वे तीन बन्दर बुरी तरह से लड़ रहे थे। सुधा का फोन भी सामने टेबल पर पड़ा था वह चाह कर भी बंदरों के बीच में अपना फोन लाने की स्थिति में नहीं थी उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए।  तभी उसे शोर मचाते हुए किसी के आने की आवाज सुनाई दी वह समझ गई कि यह तो वह भिखारी है जिसको प्रतिदिन अपने खाने में से दो रोटियाँ दे देती है । थोड़ी देर बाद वह एक  लोहे की रॉड पीटता हुआ आया और उसने उन बंदरों को भगा दिया वह बाहर से बोला मैडम जी अब घर जाओ हमने बंदरों को भगा दिया है ।

सुधा बाहर आई तब तक वह भिखारी लोहे की रॉड को जमीन पर घसीटता हुआ कॉरिडोर में दूर चला जा रहा था। और सामने से उसके पतिदेव आ रहे थे। सुधा के माथे पर पसीना व चेहरे पर मुस्कान थी । उसके दिल ने कहा कि भलाई हमेशा ही वापस आती है।  


✍️  सपना सक्सेना दत्ता, सेक्टर 137, नोएडा 

गुरुवार, 27 मई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी --नौकरानी


.... "मालकिन आपने तो 1200 रुपए ही दिये हैं..... मेरे 1500 रुपए होते हैं।"".....

"अबकी तो मुझे बच्चों की फीस भी भरनी है।दूसरे मालिकों ने और भी मेरे पैसे कम कर दिए मैडम ऐसा मत करो हम गरीब लोग बिना पैसों के गुजारा कैसे करेंगे.."

     "तुमने जो लॉकडाउन में छुट्टी करी थी उसी के पैसे मैंने काट लिये हैं।"

"मैडम इतने कम पैसों में हमारा पूरा नहीं पड़ता "।

      "तुम्हारा पूरा नहीं पड़ता है तो काम छोड़ दो" मीरा मैडम ने कहा।

... हार कर सावित्री मन मार कर 12 00 रुपए ही ले कर चली गई........।

...... अगले दिन कामवाली के न आने पर दीप्ति ने कहा ,"बिना कामवाली के मैं काम नहीं करूंगी "।

........इस बात को लेकर घर में बहुत हंगामा हो गया । सास बहू में झगड़ा बढ़ते-बढ़ते बात  इतनी ‌बढ़ गई कि दीप्ति घर छोड़कर चली गई साथ में बैग में भरकर अपना सामान ले गई "अब आपसे मै अदालत में मिलूंगी.... मैंने भी एक एक को जेल न करा दी तो मेरा नाम दीप्ति नहीं.।"

 ...... शाम हो चुकी थी शहर से जाने वाली आखरी बस भी चली गई थी । सारे घर वाले परेशान हो गए ।सब जगह ढूंढा मगर जिद्दी दीप्ति कहीं नहीं मिली दीप्ति के घरवालों को फोन किया उनसे पूछा "दीप्ति घर  पहुंची ?......  उन्होंने  कहा नहीं घर तो नहीं पहुंची क्या बात है......?  क्या हुआ?.... क्यों चली गई?? .... क्या हुआ ?"

आखिर पुलिस मैं रिपोर्ट लिखवाई पुलिस ने बहुत ढूंढा.... परंतु कहीं पता नहीं चला....... घर वाले बहुत परेशान हो गये हैं गंभीर सोच में पड़ गए कि यदि....... नहीं मिली तो क्या होगा

 ....."दीप्ति के मायके वालों ने केस लगा दिया तो लाखों रुपए के नीचे आ जाएंगे" मीरा ने कहा और बैठ कर रोने लगी।

  ....... सारे घर वाले एक जगह बैठे थे और यही विषम चल रहा था कि तभी देखा सावित्री बहू का बैग लिए चली आ रही है पीछे पीछे  दीप्ति भी थी ।

          सावित्री ने कहा "मैडम मैं शाम को बस स्टैंड से निकल रही थी सारी वसें जा चुकीं थी और दीप्ति मैडम बस स्टैंड पर अंधेरे में बैठे हुईं थीं...... कुछ गुंडे वहां पर इकट्ठे हो गए और मैडम के साथ बदतमीजी करने लगे ".....वो तो अच्छा हुआ मैं वहां पहुंच गई मैंने सारे गुंडों को धमकाया और दीप्ति मैडम को साथ लेकर अपने घर चली गई मैं रात तो रात को ही  आना चाहती थी मगर दीप्ति मैडम किसी भी कीमत पर लौटने को तैयार नहीं हुईं कहने लगी मैं सुबह ही निकल जाऊंगी  रात भर समझाने बुझाने से मैडम की समझ में आया।

... ‌अब मैडम बहू को प्यार से रखो यहां का माहौल अच्छा नहीं है....

        यह कहकर सावित्री लौटने लगी

तभी मीरा मैडम ने ... आगे बढ़कर सावित्री को गले लगा लिया बोलीं...."आज से तू इस घर की नौकरानी नहीं बेटी की तरह है ....कल से काम पर आ जाना......!"

✍️ अशोक विद्रोही,412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद, मोबाइल फोन 8218825541



    

         

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की लघुकथा------ चमचे

 


आज घर में समारोह था।मंगलगीत गाये जा रहे थे।स्वादिष्ट व्यंजनों से पात्र भरकर पंडाल में रखे जा रहे थे। पात्रों से भीनी -भीनी सुगंध आ रही थी।

  जैसे ही भोजन प्रारंभ हुआ,एक साथ बहुत से चमचे खीर के पात्र में डाले जाने लगे।खीर का पात्र यह देख बाकी व्यंजनों वाले पात्रों  की ओर देख कर गर्व से मुस्कुराया..और बोला,"देखा तुमने! कितने चमचे मेरे साथ हैं...!तुममें से बहुतों को तो एक भी चमचा नसीब नहीं हुआ...!!"

लेकिन कुछ ही देर में अचानक इतने सारे चमचे खीर के पात्र  में होने के कारण पात्र  की खीर जल्दी समाप्त होने लगी थी।खीर जैसे- जैसे खत्म हो रही थी चमचों की रगड़ से पात्र की दीवारें क्षतिग्रस्त होने लगीं और अंततः खीर के पात्र का संतुलन बिगड़ा और वह  धरती  पर औंधा लुढ़क गया। 

  खीर का पात्र गिरने से मालिक को अतिथियों के सामने बहुत अपमान महसूस हुआ ।उसने तुरंत नौकरों को बुलाया और झेंप मिटाने के लिए गुर्रा कर बोला,"यह खराब तली का पात्र यहाँ किसने रखा था...?जाओ!इस बेकार पात्र को कबाड़ में डाल दो!!....और दूसरा पात्र यहाँ रखो ।जल्दी करो..!!"

यह देख बाकी  व्यंजनों वाले पात्र,  अब खीर वाले पात्र की हँसी उड़ाने लगे...।और  चमचे..!!  वे अब अन्य व्यंजन वाले पात्रों की ओर तेजी से लपक रहे थे।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद

बुधवार, 26 मई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष दयानंद गुप्त की कहानी --- न मंदिर न मस्जिद । यह कहानी उनके कहानी संग्रह 'मंजिल' में संगृहीत है। हमने इसे लिया है दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय मुरादाबाद की वार्षिक पत्रिका भारती के श्री दयानन्द गुप्ता स्मृति विशेषांक से ...


 गोधूलि की वेला हो चुकी थी। पूरब से नीलिमा का एक परदा उठकर सूर्यास्त के स्वर्णिम मेघों को ढकने के लिये पश्चिम की ओर बढ़ रहा था । संसार के दीपक कुल के स्नेहाकुल अधर स्निग्ध होकर हास्य-आलोक विकीर्ण करने को सम्प्रति सजीव हो चुके थे। दिन कुछ ही देर का अतिथि था। उसकी प्रवास यात्रा की शहनाई वन से लौटती हुई विहग-बालिकाएँ बजा रही थीं।

मन्दिर में शंख और मस्जिद में अज़ान का स्वर सुनाई दिया। हिन्दू और मुस्लिम भक्त अपने-अपने उपास्य देव के चरणों की शरण ग्रहण करने को गृहों से निकले । इसी समय एक मुसलमान भिक्षुक एक आबनूस का सोटा, उसी का भिक्षा-पात्र तथा काला कम्बल कन्धे पर लादे धीरे-धीरे रामानुज गली से गुज़रा। वह सूफ़ी था और बहुत दूर से इस नगर में पहली बार आया था। थकान भिक्षु की शक्तियों पर आधिपत्य जमा चुकी थी और अब वह आगे एक भी क़दम उठा नहीं सकता था। उसने कितने ही बालवयोवृद्धों से प्रश्न किया कि अभी नगर की मस्जिद कितनी दूर और है, किन्तु लोगों ने उसकी बात को सुनी अनसुनी करके टाल दिया। वह कुछ कदम आगे और बढ़ा चारों ओर उसके नेत्र किसी स्वच्छ स्थान की ओर दौड़ रहे थे। राधा-कृष्ण का विशाल मन्दिर सामने खड़ा हुआ था । उसके सिंह द्वार के दोनों ओर स्फटिक शिलाओं का दुग्ध धवल शीतल-वक्ष प्रस्तार चबूतरा था । भिक्षक ने एक तरफ के चबूतरे पर अपना कम्बल बिछा कर काबे की ओर मुख करके इबादत शुरू कर दी ।

मन्दिर में अभी आरती आरम्भ ही हुई थी। पुजारी मन्त्र पढ़ता हुआ प्रदीप्त आरती-दान लिये हुये मन्दिर की देहरी पर विशाल घृत दीप धरने आया। दीप रखकर वह फिर अन्दर अपने उपास्यदेव के पास जाने ही को था कि उसकी दृष्टि घुटने और कुहनियों के सहारे नमाज़ में झुके हुए मुस्लिम साधु की ओर गई । वह अवाक् रह गया। साधु अपनी वन्दना में तल्लीन था। आरती का रव उसे सुनाई नहीं दिया । म्लेच्छ के मन्दिर पर चढ़ आने के विचार ही से पुजारी की नस-नस में आग लग गई। वह अपने मन्त्र भूल गया और उसने डांट बताते हुए साधु से कहा -

"यह मन्दिर है। क्या तुम्हें इतना भी दिखाई नहीं देता ? "

"दिखाई क्यों नहीं देता इसी वजह से तो मैं यहां खुदा की इबादत करने बैठ गया। इससे ज्यादा पाक जगह और कौन-सी हो सकती है ?" मुस्लिम साधु ने उत्तर में कहा ।

"लेकिन तुम्हारे यहां बैठ जाने से यह अपवित्र और भ्रष्ट हो गई। यह स्थान म्लेच्छों के लिये नहीं हैं। "

"जनाब खुदा के सभी बन्दे हैं। सभी का खुदा एक है । चाहे आप उसे भगवान कहें या मैं उसे अल्लाह कहूं, लेकिन वह एक है। फिर उसी के बन्दों में ऐसी नापाक तफरीक क्यों ? आप भी तो पूजा ही कर रहे हैं और मैं भी नमाज पढ़ रहा हूं, तो यह जगह मेरे ही उसी काम के करने से नापाक क्यों हो जायगी ?".

"चाहे आप कुछ भी क्यों न कहें, हम अपने मन्दिर पर किसी भी यवन को चढ़ने नहीं दे सकते । आप मस्जिद में जाकर नमाज पढ़िये । "

" ऐ पुजारी ! तुम अपने बुतों को क्या इतना कमजोर समझते हो कि मेरे चबूतरे पर चढ़ आने से घबरा गये ? यहां नजदीक कोई मस्जिद नहीं वरना मैं तुम्हें वहां ले चलता और दिखला देता कि तुम भी वहां शौक से अपनी पूजा कर सकते हो।" 

" तो यह मन्दिर और मस्जिद अलग अलग क्यों ?"

सिर्फ इन्सान की नासमझी की वजह से, जैसे हिन्दू और मुस्लिम अपने को अलग-अलग समझते हैं। अगर मन्दिर और मस्जिद का कोई मतलब है तो सिर्फ इतना ही कि हमें खुदा को याद करने के लिए साफ जगह मिल सके। हम सब वहाँ इकट्ठे होकर मुहब्बत भरे दिल से पाक परवरदिगार को याद कर सके। मन्दिर और मस्जिद मुहब्बत के मकतब है, न कि फसाद के क्लब।"

"हमारे आपके खाने-पीने रहने-सहने व आदर्श विश्वासों में इतना अधिक अन्तर है कि यह असम्भव है कि मन्दिर और मस्जिद एक हो सके।"

"तो हम दोनों ही को क्यों न छोड़ दें ? खुदा को आप भी मानते हैं और हम भी अगर इब्तिलाफ़ है तो सिर्फ उस जगह पहुंचने के रास्ते पर क्या दो मुख्तलिफ रास्तों के चलने वाले मुसाफिर को एक ही जगह पहुंचने पर भी आपस में झगड़ना चाहिये ? हरगिज नहीं रही खाने-पीने व रहने-सहने की बात यह तो महज ऊपरी बाते हैं। ये चीजें मुल्क मुल्क के साथ आबो-हवा के साथ कौम-कौम के साथ तब्दील होती रहती है। आप ही रोजमर्रा न एक-सा खाते हैं, न पहनते हैं। यह तो साबित ही है कि एक मालिक के खादिमों में बाहमी मुहब्बत रहनी ही चाहिए।"

"मुझे तुम्हारी बातों पर विश्वास हो रहा है लेकिन यह बताओ कि तुम्हारे यहाँ भी यह कमजोरी है या नहीं। मस्जिद में  क्या मुझे आरती और पूजा करने की आज्ञा होगी?"

"होनी चाहिए अगर नहीं है तो यह इंसानी फितरत और कमजोरी है ।" 

" तो आप नमाज पढ़िये , तब तक मैं भी पूजा समाप्त कर लूं।"

पुजारी भीतर चला गया। अब भक्त पर्याप्त संख्या में आने लगे थे। उनका एक झुण्ड मुस्लिम साधु को घेर कर खड़ा हो गया और उसे वहाँ से चले जाने के लिए आग्रह व धमकियाँ देने लगा। बाहर कोलाहल बढ़ता जा रहा था। एक बार फिर पुजारी की आराधना में बाधा आ खड़ी हुई। बाहर आकर उसने क्रोधित जनसमुदाय को अभी अभी सीखे हुए मनोगत तर्कों से शान्त करने की चेष्टा की, लेकिन किसी ने उसे 'पागल', किसी ने 'विधर्मी' व 'धोकेवाज़' व 'भ्रष्ट आदि सम्बोधनों से पुकारा। पुजारी की भीड़ के आगे एक न चली। भीड़ ने मुस्लिम साधु को धक्का देकर नीचे उतार दिया और उसका सामान इधर उधर फेंक दिया। पुजारी से यह सब न देखा गया । उसने भी मन्दिर की सेवा से तिलांजलि दे दी और वह उसके साथ-साथ हो लिया ।

दोनों चुपचाप चले जा रहे थे। वे लगभग बीस मिनट चले होंगे कि उन्हें एक मस्जिद दिखाई दी। दोनों वहीं रुक गये। पुजारी ने साधु की ओर देखा और साधु ने  पुजारी की ओर। साधु मस्जिद की तरफ बढ़ा और पीछे पीछे पुजारी भी। अभी तक नमाज चल ही रही थी।  शायद समाप्त होने का समय आ गया था। साधु मस्जिद की देहरी पर पहुंचकर खड़ा हो गया और उसने पुजारी से कहा----

"अन्दर आ जाओ पुजारी, और उस खुदा की, जिस तरह मिजाज चाहे, पूजा करो।"

उपस्थित व्यक्तियों में यह सुनकर एक सनसनाहट-सी दौड़ गई। उसके कान और ध्यान इधर ही थे।

पुजारी धीरे-धीरे बढ़ा और नमाजियों की कतार पार करके वह सबसे आगे करबद्ध खड़ा हो गया, ठीक इमाम के आगे, जो पूरी कतार के आगे खड़ा हुआ था। पुजारी ने उच्च स्वर में उच्चारण आरम्भ किया


" वामांके च विभाति भूधरसुता देवापगे मस्तके भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसिव्यालराट् । सोयं भूति विभूषण: सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा शर्वः सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशंकरः पातुमाम्।"

अचानक अपरिचित भाषा को सुनकर पहिले तो इमाम को आश्चर्य हुआ और पुजारी जी सुख से श्लोक पढ़े चले गये, लेकिन फिर सबसे पहिला हाथ इमाम का ही उसके ऊपर पड़ा। फिर तो सब ने उसे मारना शुरू कर दिया। लात घूंसे थप्पड़ सभी कुछ लगे। 'काफिर- काफिर' की आवाजों से मस्जिद का वातावरण गूंज उठा। मुस्लिम साधु ने भरसक उसे बचाने का प्रयत्न किया। बहुत-सी चोटें जो पुजारी के लगतीं, वे उसके लगीं ।पुजारी को नमाज़ियों ने इमाम की आज्ञा पाकर मस्जिद से इतनी अधिक उद्दंडता नृशंसता व बर्बरता के साथ निकाल दिया, जितनी कि मुस्लिम-साधु को निकालने में हिन्दू भक्तों ने भी व्यवहार में नहीं लाई थी।

दोनों एक जीवन-नौका में सवार हो चुके थे। फिर भविष्य में न कभी पुजारी को मन्दिर की ओर न फ़क़ीर को ही मस्जिद की जाने की जरूरत पड़ी । उनका ध्येय इन दोनों से बहुत ऊपर था। जहाँ न मन्दिर की ही जरूरत होती है, न मस्जिद की। उनका सन्देश दोनों ही को दूर करने का था ।

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में मुंबई निवासी) प्रदीप गुप्ता का व्यंग्य --- टाइम हो तो पढ़ लेना : हम तो पेलेंगे

 


       शीर्षक से यह ग़लतफ़हमी मत पाल लीजियेगा कि आगे आप कोई  X - Rated  रचना पढ़ने जा रहे हैं. वैसे अगर ऐसा  भी होता तो भी अब  डरने की बात नहीं रह गयी है , इन दिनों तो  X - Rated फिल्मों के कलाकारों  (जी हाँ इशारा सही समझ रहे हैं )  को भी महिमामंडित किया जाने लगा है , सन्नी लियोन को बालीबुड के पत्रकार अब एडल्ट फिल्म एक्टर  कह कर सम्मानित करने लगे हैं.  

     पर हमारा मंतव्य तो  बिलकुल नई  विधा को लेकर है। यह विधा है  सोशल मीडिया  की,  जिस ने बिलकुल अपने छोटे कस्बों के पुराने दिनों की याद दिला दी है. उन दिनों  हमारे मोहल्ले में शर्मा चाचाजी के साले साहब की बला की खूबसूरत  बेटी किट्टी के आगमन से  मोहल्ले वालों का ईमान डिग गया  था।  हमारे पूरे फत्तू गैंग के मेम्बरान रोजाना उन पोशाकों में नज़र आने लगे थे जिसे पहन कर शादी व्याह या फिर कालेज की पिकनिक पर  जाया करते थे. हमारा दोस्त कल्लू जो महीने में कभी कभार नहाता था  रोजाना ख़ास फ़िल्मी सुंदरियों के पसंदीदा साबुन लक्स से नहा कर शर्माजी के  घर के सामने ही बैठा नज़र आता था।  हमारे एक और  दोस्त  रमणीक जिन्होने पैसे बचाने के लिए  सालों साल  तक  बाल न कटाने का संकल्प लिया था और जिनके  इस ऊलजलूल संकल्प के साये में जुओं ने उनके बालों को अभयारण्य बना लिया था, अचानक वे रातों रात ठीक जितेंदर शैली के हेयर स्टाइल में नज़र आने लगे थे। लौंडो की बात  छोड़ो , पके बालों वाले भी टिप टाप नज़र आने लगे थे. बस कुछ ही दिनों के बाद किट्टी की वर्चुअल मोहब्बत में दोस्तों के बीच चक्कू छुरियां चलने की नौबत आ निकली।  चढ्ढी बढ्ढी दोस्त अचानक एक दूसरे के खूंखार दुश्मन बन गए।

     तो भाई लोगों, जैसे ही फेस बुक और वाट्स एप शुरू हुए  हमने इन  पर अपना खाता बना लिया।  अतीत  में तो हमारे  छोटे से  मोहल्ले में  शर्मा  चाचाजी के साले साहब की बेटी किट्टी ने ही हलचल मचा दी थी , यहाँ वर्चुअल स्पेस  में  तो हलचल ही हलचल थी रोज नये  से नये  खूबसूरत परी चेहरों  से फ्रेंडशिप के  अनुरोध हमारे खाते में आने शुरू हो गए  , इन्हे देख कर सबसे पहले तो हमने शहर के बेहतरीन फोटोग्राफर कक्क्ड़ से अपनी तस्वीर खिंचवा ली। कक्क्ड़  खाली पीली फोटोग्राफर ही नहीं था फोटोशॉप विशेषज्ञ भी था. उसने हमें तस्वीर में फोटोशॉप  करके रणवीर कपूर से भी बेहतर बना  दिया था ।  धीरे धीरे हमारी  मित्र संख्या का ग्राफ तेजी से  ऊपर उठने लगा।  पहले सेंचुरी पूरी हुई, फिर डबल सेंचुरी , भाई लोग आठ महीने में यह आंकड़ा चार डिजिट को पार कर गया जब की  हकीकत की दुनिया में फत्तू गैंग , कलीग, बीबी की सहेलियों  और रिश्तेदारों को भी जोड़कर जान पहचान के लोगों की तादाद  बमुश्किल तमाम पैंतालीस से अधिक नहीं थी।  हमारा समय अब समाचार पत्र, मैगजीन पढ़ने  , टहलने , खेलने, दोस्तों से गप बाज़ी करने से भी ज्यादा डेस्क टाप, लैपटॉप, स्मर्टफ़ोन के फेसबुक आइकॉन को दबाने में लगने लगा। अपने नए वर्चुअल दोस्तों को प्रभावित करने के लिए  महापुरुषों, खिलाडियों, बिज़नेस टायकून, के हाई  फंडू किस्म के कोटेशन खोजता  , यही  नहीं फोटोशॉप विशेषज्ञ  कक्कड़  नियमित रूप से  मुझे अनेकों जानी अनजानी लोकेशन में चिपकाए मेरे चेहरे वाले फोटो बनाता, इन फोटो में  कभी मैं गोवा के बीच पे दिखाई देता तो कभी केरल के रेन फारेस्ट में दीखता।  और मैं इन सब को दनादन पेल रहा था।  उसके बाद मैं सांस रोक कर इंतजार करता गिनता कि मेरे वर्चुअल दोस्तों खास तौर पर परीशां चेहरों  में से कितनों  ने इन्हे लाइक किया , अगर मेरे पोस्ट को उनमें से कोई फॉरवर्ड करता तो मेरा दिन बन जाता। यह सिलसिला एक  खूबसूरत ख्वाब  की तरह से चलता ही रहता, लेकिन इसमें अचानक जबरदस्त ब्रेक लग गया।  हुआ कुछ यूँ कि हमारे सबसे बड़े सालारजंग साहब अपने टूर के सिलसिले में हमारे शहर में आये हुए थे जाहिर सी बात है हमारे घर ही रुके हुए थे , कसम से वे  बड़े संजीदा किस्म के इंसान थे घंटे भर बैठते तो मुश्किल से कोई बोल फूटता था. उसदिन मेरे कमरे में ही बैठे हुए थे , उन्हें जरा दो नम्बर की काल आयी हुई थी तो मेरे कमरे के वाश रूम में चले गए , इससे पहले उनकी उँगलियाँ ठक ठक उनके स्मार्टफोन पर चल रही थीं , ऐसे ही उत्सुकतावश मैंने उनका मोबाइल उठाया , देखा फेसबुक ऐप खुला हुआ था।  भाई लोग बारी मेरे गश खा कर गिरने की थी , जिस फेसबुक महिला मित्र से दिन में कम से कम चार पांच बार शब्द सन्देश, फोटो आदान प्रदान करता था, जिनकी तस्वीरों में मुझे परी   नज़र आती थीं  , वो आई डी हमारे इन्ही सालारजंग ने क्रिएट की थी ! जब उनकी फ्रेंडलिस्ट देखी  तो पाया 4950 मित्र थे जो ज्यादातर पुरुष थे।  अब तो अपना फेसबुक के महिला मित्रों की जात  से भरोसा ही उठ गया है , क्या पता मेरे कितने ही  बॉस लोग और अधीनस्थ भी ऐसी ही  फेक महिला आई डी के जरिए  मुझको उल्लू बना रहे होंगे !

      यही नहीं इन दिनों सोशल मीडिया पर रातों रात अनगिनित डाक्टर, वैद्य , हकीम , नैचुरोपैथ , योगगुरु उग आये हैं,  इनके पास कैंसर से ले के बबासीर और डायबिटीज की बीमारियों को  रातों रात ठीक करने का नुस्खा  मौजूद है।  जैसे ही ऐसा कोई नुस्खा अपने पेज पर दिखाई दिया , यार लोग दनादन पेलना शुरू कर देते हैं , इससे भी खतरनाक यह कि कई बार डाक्टर द्वारा दी गयी दवाई छोड़ कर इन नुस्खों पर अमल करना शुरू कर  देते हैं , बाद में बीमारी और घातक बन जाती है।  कल तो गज़ब हो गया घर के पास वाले बाजार में पाइनएप्पल बेचने वाला   भय्या  अपने  ठेले पर पाइनएप्पल छील छील कर बेचने की लिए रख रहा था , छिलके  एक बोरे में भर रहा था. मेरे पडोसी रंगनाथन वहीँ खड़े थे और बोरे में  से  थोड़े से छिलके निकाल कर अपने थैले में डाल रहे थे।  मेरी  प्रश्नवाचक मुद्रा को देख कर कहने लगे  मैंने  कल ही व्हाट्सप पर पढ़ा है कि अगर पाइनएप्पल के  छिलकों को रात भर पानी में भिगो कर गुदा पर रगड़ा जाय तो बबासीर ठीक हो जाती है अब आपसे क्या छिपाना मुझे बबासीर है।  आज सुबह सबेरे मेरे घर की घंटी बजी , देखा रंगनाथन खड़े हैं चेहरा ऐसा  जैसे किसी भूत ने निचोड़  लिया हो , कहने लगे ,' गुप्ताजी गाड़ी निकालो कोकिलाबेन हॉस्पिटल चलना है.' मैंने पूछा क्या हुआ ?  कहने लगे क्या  बताऊं अभी पाइनएप्पल के छिलके रगड़े थे बहुत गड़बड़  हो गया, रगड़ने से खून निकलने लगा बंद ही नहीं हो रहा है।

       इन दिनों सोशल मीडिया पर इस पेलम पेल वाले खेल का सबसे ज्यादा फायदा राजनीतिक दल उठा रहे हैं  , हर दल के अपने अपने आईटी सेल हैं , जिनके संचालक अब ज़मीन से जुड़े नेताओं  से भी ज़्यादा सम्मान पाते हैं, इन सेल में  बैठे हुए लोगों का काम इतिहास के गढ़े  मुर्दे उखाड कर  छीछालेदर करना या फिर अपने तरीके से राजनैतिक नैरेटिव गढ़ना होता है , हमारे सालारजंग साहब की तरह से  इन लोगों ने हज़ारों आईडी बना ली हैं उनसे लाखों लोगों को फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट भेजते रहते हैं , और तो और हमारी सोसाइटी जैसी बाक़ी सोसाइटियों में लाखों लोग ठलुआगिरी  करने वाले वैठे हुए हैं, जैसे ही कोई नया अधसच्चा  अधपक्का शिगूफा छोड़ा जाता है ये ठलुए लपक कर दनादन अपनी फ्रेंड लिस्ट में पेलना शुरू कर देते हैं। मजे की बात यह कि इससे अच्छे अच्छे दोस्तों की दोस्तियां खटाई में पड़  गयी हैं, उसकी वजह यह कि अगर कोई वास्तविक जगत का मित्र उन्हें उनके द्वारा पेली गयी पोस्ट की हकीकत के बारे में बताता है तो वे इसे सीधे सीधे दुश्मनी में बदल लेते हैं  राजनैतिक प्रचार या दुष्प्रचार का इतना सस्ता और कोई तरीका नहीं है। मजे की बात यह है कि इन्ही अधकचरे सच को कई बार समाचारपत्रों के आलसी रिपोर्टर भी उठा लेते हैं फिर जरा हमारे आपके जैसे अलर्ट पाठक के ध्यान दिलाये जाने पर समाचारपत्र  के किसी अंदर के पेज पर  मुश्किल से ढूंढी जाने वाली जगह में क्षमा याचना कर लेते हैं।

यह पेलम पेल का जो खेल सोशल मीडिया पर चालू है, अच्छे भले लोगों को बॉट (Bots) में बदल रहा है और हकीकी जिंदगी के दोस्तों को दुश्मनों में बदल रहा  है , हम तो यही कहेंगे कि यह और कुछ नहीं वरन बीमार होते समाज का लक्षण है।

✍️ प्रदीप गुप्ता

B-1006 Mantri Serene, Mantri Park, Film City Road , Mumbai 400065

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार की नज़्म ------आदमी ने ही किया ख़ुद को अकेला अब तो , कर लिया अपने ही रिश्तों से किनारा अब तो , दिल के दरवाजे पे जड़ डाला है ताला अब तो , ख़ुद अंधेरों को गले से है लगाया अब तो ,

 


जाने हम कौन सी दुनिया में जिया करते हैं ।

खिड़की दरवाज़े सभी  बंद रखा करते हैं ।।


आदमी ने ही किया ख़ुद को अकेला अब तो ,

कर लिया अपने ही रिश्तों से किनारा अब तो ,

दिल के दरवाजे पे जड़ डाला है ताला अब तो ,

ख़ुद अंधेरों को गले से है लगाया अब तो ,

सिर्फ़ अपने में ही घुट-घुट के रहा करते हैं ।।


एक बेचैनी हर-इक शख़्स पे हावी है यहां ,

आजकल धोखा-धड़ी सबको डराती है यहां ,

ज़िंदगी अब न सरल जितनी थी पहले वो कभी ,

आदमी इतना अकेला न था पहले तो कभी ,

लोग ख़ुद पर भी भरोसा न किया करते हैं ।।


भीड़ में खोये हैं सब लोग अकेले पन की ,

पूछता कोई नहीं बात किसी के मन की ,

अब जुटाने की अधिक चिंता है सब को धन की ,

फ़िक्र करता है भला कौन किसी जीवन की ,

लोग शंकाओं से भयभीत रहा करते हैं  ।।


अपने भाई से अधिक चाह है धन पाने की ,

और धन के लिए रिश्तों से भी टकराने की ,

दोस्ती   टूटती  जाती है    बिखरते  रिश्ते ,

ख़ून के रिश्ते भी विश्वस्त नहीं हैं लगते ,

अब तो अपनों को यहां लोग ठगा करते हैं ।।


मशविरा मेरा है मिल-जुलके सभी साथ चलो ,

भूलकर शिकवे-गिले मिल के सभी बात करो ,

फ़ासला दरमियां अपनों के ज़रा कम कर दो ,

ज़ालिमों की सभी चालों पे ज़रा ध्यान रखो ,

चाल वो काट दो ज़ालिम जो चला करते हैं ।।


✍️ ओंकार सिंह'ओंकार'

1-बी-241बुद्धि विहार, मझोला,

मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश) 244001

मंगलवार, 25 मई 2021

वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद ' में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 18 मई 2021 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ रीता सिंह, वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी', चन्द्रकला भागीरथी, उमाकांत गुप्त, दीपक गोस्वामी 'चिराग' , मीनाक्षी ठाकुर, रमेश 'अधीर', अशोक विद्रोही, डाॅ ममता सिंह, रेखा रानी, श्रीकृष्ण शुक्ल, कंचन खन्ना, ज्ञान प्रकाश राही और राजीव प्रखर की रचनाएं .....


चीं चीं चीं चीं गाती चिड़िया

दाना चुगकर खाती चिड़िया

ज्यों ही छूना चाहे मुन्नी

फुर से है उड़ जाती चिडिय़ा ।


चुन चुन तिनका लाती चिड़िया

अपना नीड़ बनाती चिड़िया 

उड़ती फिरती कसरत करती

सबके मन को भाती चिड़िया ।


सुबह सवेरे आती चिड़िया

आसमान में छाती चिड़िया

अब उठ जाओ राजू कहकर

हाथ नहीं आ पाती चिड़िया ।


✍️ डॉ रीता सिंह, आशियाना , मुरादाबाद

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चकित हुए बच्चे सभी,

देख    मोर  का   नृत्य,

कितने  सुंदर  पंख   हैं,

कितना    सुंदर   कृत्य।


बादल   आए   झूमकर,

पड़ती      मंद    फुहार,

पीहू-पीहू  के बोल  की,

छाई       मस्त    बहार।


पंखों  को  झखझोर कर

होकर    खुद   में   मस्त,

घूम - घूम  हर  ओर  ही,

करे       मयूरा      नृत्य।


चुप  होकर  देखें   सभी,

इसका    अद्भुत    नृत्य,

करें  सराहना  ईश   की,

देख-देख   यह     दृश्य।


हम सबभी मिलकर करें,

ऐसा        सुंदर      नृत्य,

सारी   कटुता   त्यागकर,

बोलें       मीठा     सत्य। 


रखें बदलकर आज  हम,

जीवन     के     परिदृश्य,

केवल  अपनापन    बचे,

हो      कटुता     अदृश्य।

✍️ वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी', मुरादाबाद/उ,प्र, मोबाइल फोन नम्बर  9719275453

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देखो गुब्बारे वाला आया ।

रंग बिरंगे गुब्बारे लाया ।।


पापा मुझको भी दिला दो ।

मै भी इन्हें उडाऊगा।।


खिलौने नहीं है मेरे पास।

सारे दिन रहता मैं उदास ।।


आप तो चले जाते ड्यूटी पर।

मम्मी करती घर के काम।।


बाहर कहीं जाने नहीं देते।

कहते गंदे बच्चों में मत खेलों।।


तो फिर मै क्या करू देखो ।

पापा मुझको गुब्बारे दिलादो।।


✍️ चन्द्रकला भागीरथी, धामपुर जिला बिजनौर

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मेरा घोड़ा बड़ा निराला 

दूर दूर तक उड़कर जाता। 

भैया के संग मुझे बिठाकर 

दुनिया की यह सैर कराता,

कभी हमें कश्मीर घुमाता, 

कभी हमें यह रूस घुमाता। 

पल में हम अमरीका होते,

बुआ से अपनी लाड लड़ाते। 

दादी आओ बैठो इसपर

तुमको भी मैं सैर कराऊं

लकड़ी का मत समझो इसको 

अरबी घोड़ा, उड़न खटोला। 

जहाँ कहोगी वहीं चलेंगे 

मस्ती हम भरपूर करेंगे, 

मिलना गर तुमको मामा से

देर नहीं, बस यूँ पहुचेगे। 

नाम रखा है इसका चेतक 

नहीं माँगता दाना-पानी 

मेरा घोड़ा इतना अच्छा 

नहीं कोई है इसका सानी।

सव-रचित 

✍️ उमाकांत गुप्त, मुरादाबाद

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अध्यापक जी ने कक्षा में, पूछा एक सवाल। 

चांद और पृथ्वी में संबंध, बतलाओ तत्काल।


 सारे बच्चे थे भौचक्के, क्या है यह जंजाल?

सर जी ने पूछा है हमसे, कैसा आज सवाल। 


सर जी मैं बतलाऊं उत्तर, उठकर गप्पू बोला। 

कक्षा में तो आता नहीं तू ,खबरदार! मुंह खोला। 


सब बच्चों के कहने पर फिर, सर ने दे दिया मौका।

 देखो! प्यारे गप्पू ने फिर, मारा कैसे चौका। 


चांद और पृथ्वी का रिश्ता, हमको दिया दिखाई। 

पृथ्वी तो है प्यारी बहना और चांद है भाई। 


अध्यापक गुस्से में बोले, पूरी बात बताओ। 

भाई और बहिन का रिश्ता, कैसे है समझाओ। 


पप्पू बोला बतलाता हूँ, ओ! गुरुदेव हमारे। 

समझाता हूंँ, सुनो ध्यान से,  तुम भी बच्चे सारे। 


जब चन्दा है मामा अपना,धरती अपनी मैया। 

फिर क्यों नहीं होगा धरती का, चंदा प्यारा भैया ।


फिर क्या था पूरी कक्षा ने, खूब बजाईं ताली। 

रहे ताकते अध्यापक जी, कक्षा हो गई खाली। 


✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग' ,  शिव बाबा सदन, कृष्णाकुंज बहजोई -244410(संभल )

उत्तर प्रदेश

मो. 9548812618

ईमेल-deepakchirag.giswami@ gmail.com

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रिमझिम- रिमझिम बारिश आयी

ठंडी हवा का झोंका लायी

उमड़ -घुमड़ कर बादल आये

मौसम ने भी ली अँगड़ाई।


नाचा मोर, पपीहा बोला

चातक ने भी तान लगायी,

मेंढक बोला टर्र -टर्र टर्र

कोयल ने भी कूक सुनायी।


भीगें पत्ते,भीगें डाली

भीगी भीगी है अमराई

भीगे राजू , भीगे गुड़िया

पिंकी छाता लेकर आयी।


✍️मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद

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पर्वत से ऊपर उड़ते ही

एक परिंदा बोला

मुझसे ऊपर कोई नहीं है

जग भर में, मैं डोला

ऊपर बैठे चंदा ने तब

अपना मुख यूँ खोला-

मुझसे भी ऊँचा है पगले 

सूरज का वह गोला,

इस प्रकार चंदा ने उसको

ऊँचाई दिखलाई !

सदा समझना छोटा ख़ुद को

गुर की बात सिखाई !!

 

✍️ रमेश 'अधीर', चन्दौसी

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गिल्लू और गिलहरी चिंकी 

मेरी छत पर आते हैं

चिड़ियों को जो दाना डालूं 

उसको चट कर जाते हैं

        गोपू और बंदरिया कम्मो

        खो-खो बोला करते हैं

        खाने पीने की तलाश में

        घर-घर डोला करते हैं

गोपू बन्दर ने गिल्लू से 

पूछा एक दिन बातों में

"तुम चिंकी संग कहां चले 

जाते हो ! हर दिन रातों में"?

       हमने श्रम और बड़े जतन से

       घर एक यहां बनाया है !

       कपड़ों की कतरन, धागों से

       मिलकर उसे सजाया है !!

गोपूऔर कम्मो दोनों को 

तनिक बात ये न भायी

खिल्ली लगे उड़ा ने दोनों

उनको बहुत हंसी आई !!

       किंतु ये क्या ! काली काली

       नभ घनघोर घटा छाई

       गरज गरज कर बरस उठे घन

       चली बेग से पुरवाई

भीग रहे थे गोपू कम्मो

रिमझिम सी बरसातों में

बड़े चैन से गिल्लू चिंकी

बैठे थे अपने घर में

       बच्चों ! कर्म करो तो जग में

       बड़े काम हो जाते हैं

      गोपू जैसे बने निठल्ले

      समय चूक पछताते हैं !!


✍️ अशोक विद्रोही,  412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

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दाना चुगने चिड़िया रानी, 

फुदक फुदक जब आती है। 

मेरी प्यारी छोटी गुड़िया, 

फूली नहीं समाती है।। 


थोड़ा सा ही दाना चुग कर, 

झट से वो उड़ जाती है।

फिट रखती है सदा स्वयं को, 

दवा कहाँ वो खाती है।। 


पढ़ने जाती कहीं नहीं है, 

फिर भी जल्दी उठती है। 

सर्दी बारिश या हो गर्मी, 

श्रम से कभी न ड़रती है।। 


तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर, 

घर वह एक बनाती है। 

छोटी सी है पर बच्चों को, 

जीना ख़ूब सिखाती है।। 


✍️ डाॅ ममता सिंह

मुरादाबाद

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खनकेंगी दौलत की फसलें,

फूल खिलेंगे तब रुपयों के।

मां की बातों से हो असहमत,

मैं  भिड़ाने चली अब तो जुगत।

  मैंने अपनी गुल्लक से ,

सिक्के अनगिनत निकाले। 

  पहले से तैयार भूमि में ,

चुपके से सारे बो डाले।

प्रतिपल तत्पर सेवा में,

खाद ,पानी भर भर डाले।

भूले से भी बंध्य धरा में,

कोई न अंकुर कोंपल वाले।

जो सिक्के अंदर थे माटी में,

ऊपर से बस घास जमी थी।

हाय हताशा बाबरिया सी ,

होकर अब तो रोने लगी थी।

मुंह लटकाए घूम रही थी

पापा से तब ग्रंथि खोली,

चिपक हिय से मन भर रोली।

तब पापा ने सब समझाया ।

मेहनत का प्रतिफल समझाया।

 सजीव निर्जीव का भेद बताया।

रेखा तब मैंने  तब यह माना,

 श्रम से सुंदर बीज पनपते।

सपनों की फसलें महकेंगी।

बस तुम श्रम करते जाना,

जीवन में नित बढ़ते जाना।

  

✍️ रेखा रानी

विजयनगर

गजरौला

जनपद अमरोहा।

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कब तक घर में बंद रहूँगा।

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छोटू पापा से ये बोला, कब तक घर में बंद रहूँगा

बैठे बैठे ऊब गया हूँ, कब जाकर के मैं खेलूंगा।


पापा ने उसको समझाया, बाहर जाने में खतरा है।

बाहर कोरोना का संकट, जाने कहाँ कहाँ पसरा है।

कुछ दिन घर में बंद रहेंगे, इसकी कड़ी टूट जाएगी।

बाहर आने जाने पर से, पाबंदी भी हट जाएगी।

तो क्या मैं घर के अंदर ही, निपट अकेला पड़ा रहूँगा।

बैट बॉल, से दूर बताओ, घर में कब तक सड़ा रहूँगा।


घर में कहाँ अकेले हो तुम, मैं भी तो हूँ, मम्मी भी हैं।

घर में रहकर खेल खेलने, के कितने ही साधन भी हैं।।

कुछ दिन हमको दोस्त समझ लो, लूडो, बिजनैस, कैरम खेलो।

जब चाहे साथी बच्चों से, तुरत वीडियो चैटिंग कर लो।।

मान गया छोटू फिर बोला, अच्छा घर में ही खेलूँगा।

रोज हराऊँगा दोनों को, घर में तो मैं ही जीतूँगा।


✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल,

MMIG-69, 

रामगंगा विहार, मुरादाबाद।

मोबाइल नं.9456641400

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मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मरगूब अमरोही की रचना-हम तो इंसान हैं,एकदम नादान हैं


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीरा कश्यप का गीत ---काल है निर्मम बना ,नित रक्तबीज सा बढ़ रहा, साँसों का कोई मोल नहीं , चीखते हर ओर ऑंसू -


 मौन रहकर कब तलक 

गीत अधरों पर सजेंगे 

वेदना मन की सिसकती

विकल ,क़ुछ कह न पाती ।

        काल है निर्मम बना ,नित

        रक्तबीज सा बढ़ रहा 

        साँसों का कोई मोल नहीं

        चीखते हर ओर ऑंसू ।

देखकर अब दृश्य दारुण 

थिर नहीं मन ,काँपता है

मन विकल अब हो रहा 

है कयामत की रात आयी ।

          सो गये आँखों के सपने

           अपने सभी के खो गये

           यादों में रह गये शेष  

            वे दूर इतने हो गये ..।

जिनके सहारे अब तक 

जिंदगी जीती है हमने 

आस्था ,सेवा ,समर्पण के

प्रेम मय बीज  बो गये वे ।

         आस का था दीप जलता 

         पर हवा का रूख है तेज 

          व्यथा से भर टूटता मन 

         दर्द का है शोर ,हर ओर ।

संवेदनाएं मौन हैं अब 

भाव सारे रो रहे हैं ..

उलझे सवालों में सब ऐसे

मिलता नहीं उत्तर कहीं  ।

       वेदना की आँधियों में 

       तूफानों से घिर रहें हम 

      अब व्यथा को देखकर 

        गीत कैसे गा मिलेगा ।

वेदना मन की सिसकती 

कह नहीं अब क़ुछ पाती ।

✍️ डॉ मीरा कश्यप, हिन्दी विभागाध्यक्ष, केजीके महाविद्यालय, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज मनु का गीत ----भाई ! केवल भाई नहीं तुम रीढ़ सकल परिवार की,


भाई ! केवल भाई नहीं तुम

रीढ़ सकल परिवार की,

वरद हस्त अग्रज का सिर धर

हो निश्चिंत  विचरते,

क्या पहाड़ सी मुश्किल सम्मुख

 तनिक न चिंता करते,

हर कठिनाई भाई के संग

नतमस्तक संसार की,,

     भाई ! केवल भाई नहीं तुम..

अनुज भ्रात बाहुबल अपना

हर पौरुष की परिणति,

सदा चहकता आंगन तुमसे

सुख वैभव धन सम्मति,

तुम भविष्य के कीर्तिमान

तुम भव्य ध्वजा विस्तार की,,

    भाई ! केवल भाई नहीं तुम..,

एक सूत्र में पिरो पिता ने 

जब तक हमें संवारा,

सभी अंगुलियां बन मुष्टिक सम

जीत लिया जग सारा,

वंश वृद्धि को शिला तदंतर 

रखी नवल घरद्वार की ,,..

       भाई ! केवल भाई नहीं तुम

       रीढ़ सकल परिवार की...

 ✍️ मनोज मनु,  मुरादाबाद

सोमवार, 24 मई 2021

मुरादाबाद मंडल के जैतरा धामपुर (वर्तमान में नई दिल्ली निवासी) के साहित्यकार नरेन्द्र सिंह नीहार की लघुकथा ---सांसों की डोर



मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य ----रामभरोसे तुम कौन हो ?


 तुलसीदास जी ने एक दोहा लिखा था जो इस प्रकार है:-

एक  भरोसो  एक  बल ,एक  आस विश्वास 

एक राम घनश्याम हित ,चातक तुलसीदास

                  अर्थात एक राम के भरोसे यह तुलसीदास है । यह रामभरोसे अपने आप में आस्था का परिचायक था । न जाने कितनी शताब्दियों से रामभरोसे ईश्वर के प्रति जनता के गहरे विश्वास को प्रतिबिंबित करता रहा । कब यह हास्य और व्यंग्य में बदल गया ,कुछ समझ में नहीं आता । राम पर भरोसा करना बुरी बात नहीं होती है । इसकी तो प्रशंसा होनी चाहिए । आदमी राम पर भरोसा करे और यह सोचे कि राम के भरोसे हम चल रहे हैं ,राम के भरोसे हमारा काम अवश्य होगा ,राम के भरोसे हम जीवित रहेंगे ,राम के भरोसे हम इस संसार में धन-संपत्ति सुख संपदा एकत्र करेंगे तो इसमें बुरा नहीं है ।

                   रामभरोसे का मतलब है एक आस्थावान व्यवस्था ,आस्था पर आधारित समाज ,ईश्वर के प्रति गहरी समर्पण भावना का परिचायक तंत्र । मगर अब रामभरोसे का मतलब अस्त-व्यस्त होने लगा । जो चीज जर्जर है उसे रामभरोसे कह दिया जाता है । जिस चीज में हजारों छिद्र हों, वह रामभरोसे कहलाती है । जहाँ कोई नियमबद्धता न हो ,वह रामभरोसे हो गया । जहाँ कुछ अता-पता न मिले वह रामभरोसे है । जिस के डूबने की आशंका ज्यादा है ,उसे रामभरोसे कहा जाता है । गरज यह है कि एक जमाने में जिसके साथ जीवन की आशा जुड़ती थी अब वह रामभरोसे शब्द मरण के साथ जुड़ कर रह गया है । 

      किसी को अगर किसी के आलसीपन को उभार कर टिप्पणी करनी है ,तो वह कह देता है कि भाई साहब ! आप तो रामभरोसे लग रहे हैं । सबसे बड़ी मुश्किल तो उन लोगों की आ गई जिनका नाम ही रामभरोसे है । वह बेचारे क्या करें ? सड़क पर जा रहे हैं और किसी ने बुला लिया कि "रामभरोसे ! जरा इधर तो आइए ! "

           अब सबकी नजरें उनकी तरफ उठ गईं और लोग देखने लगे कि अरे ! यही रामभरोसे हैं ! इन्हीं के ऊपर सारी व्यवस्थाओं का बोझ टिका हुआ है ! वह बेचारे अपनी सफाई देते फिरते हैं कि हम वह राम भरोसे नहीं है ,जो आप समझ रहे हैं । हम सही मायने में सही वाले रामभरोसे हैं। लेकिन कौन ,किसको ,कहाँ तक ,कितना समझाए ! रामभरोसे दुखी है । वह कोने में सिर झुकाए बैठा हुआ है । कह रहा है - "हमारे तो नाम का बंटाधार हो गया ! अब कौन अपना नाम रामभरोसे रखेगा ! " एक अच्छा - भला नाम देखते - देखते कुछ सालों में कितना बिगड़ जाता है ,यह रामभरोसे के उदाहरण से समझा जा सकता है ।

 ✍️रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कविता ----चुनाव


 आज फिर चुनाव था,

चुनाव होना था

राहत और आफ़त के बीच

 ज़िंदगी और मौत के बीच

हमेशा की तरह आज भी

बहुत तेज हवाएँ थीं

अड़ियलपन पर ख़ताएँ थीं

अचानक हवाओं ने तेजी पकड़ी

एक आँधी  आयी तगड़ी

और  सबकुछ समेटने लगी

मानवता तार- तार होने लगी

लाख लगाये मौत पर पहरे

मगर तबाही की  थी लहरें

लीलने लगी अचानक ही गाँव के गाँव

लो आखिर हो ही गया था चुनाव!!!


✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की कविता --देशद्रोही नेता


एक देशद्रोही नेता को

जिंदा शेर के सामने डालने

की सज़ा सुनाई गई

नेता जी घबरा गए,

जोर जोर से चिल्लाए ।

बोले

माई बाप मुझे क्षमा करें

अब कोई गलत काम नहीं करूंगा,

जैसा आप चाहेंगे

वैसा ही काम करूंगा।

देश के प्रति बफादार रहूंगा।

परन्तु

उसकी एक न सुनी गई

नेता जी को शेर के पिंजरे

में डाल दिया गया,

शेर दहाड़ा,

नेता जी के पास दौड़ा।

उसी क्षण वापस लौट गया,

एक ओर बैठ गया।

नेता जी की जान में जान आई,

बोले

मुझे क्यों नहीं खाया भाई।

शेर बोला,

तेरे खून से मिलावटों ,

घोटालों तथा मासूमों की 

हत्याओं की बू आ रही है।

तुझको 

खाने में मुझे शर्म आ रही है।

अरे,

तेरे शरीर को तो गिद्ध भी

नहीं खायेंगे।

खायेंगे तो खुद ही मर जायेंगे।

मैं तो, फिर भी जंगल

का बादशाह हूँ,

तू ,न बादशाह है न वज़ीर

बस धरती पर बोझ है

अरे,

धिक्कार है तेरे जीवन को

तूने देश को खा लिया

मैं,

तुझे क्या खाऊंगा ।

और यदि खा भी लिया तो

कैसे पचा पाऊंगा ।।


✍️ अशोक विश्नोई , मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के साहित्यकार रमेश अधीर की ग़ज़ल ---- एक साल से अधिक हुआ है कब तक झेलें कोरोना, टूट रहा है हर सब्र का बिखरे माणिक मोती हैं .....


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर के साहित्यकार डॉ अजय जनमेजय के दो गीत .....