बुधवार, 26 मई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार की नज़्म ------आदमी ने ही किया ख़ुद को अकेला अब तो , कर लिया अपने ही रिश्तों से किनारा अब तो , दिल के दरवाजे पे जड़ डाला है ताला अब तो , ख़ुद अंधेरों को गले से है लगाया अब तो ,

 


जाने हम कौन सी दुनिया में जिया करते हैं ।

खिड़की दरवाज़े सभी  बंद रखा करते हैं ।।


आदमी ने ही किया ख़ुद को अकेला अब तो ,

कर लिया अपने ही रिश्तों से किनारा अब तो ,

दिल के दरवाजे पे जड़ डाला है ताला अब तो ,

ख़ुद अंधेरों को गले से है लगाया अब तो ,

सिर्फ़ अपने में ही घुट-घुट के रहा करते हैं ।।


एक बेचैनी हर-इक शख़्स पे हावी है यहां ,

आजकल धोखा-धड़ी सबको डराती है यहां ,

ज़िंदगी अब न सरल जितनी थी पहले वो कभी ,

आदमी इतना अकेला न था पहले तो कभी ,

लोग ख़ुद पर भी भरोसा न किया करते हैं ।।


भीड़ में खोये हैं सब लोग अकेले पन की ,

पूछता कोई नहीं बात किसी के मन की ,

अब जुटाने की अधिक चिंता है सब को धन की ,

फ़िक्र करता है भला कौन किसी जीवन की ,

लोग शंकाओं से भयभीत रहा करते हैं  ।।


अपने भाई से अधिक चाह है धन पाने की ,

और धन के लिए रिश्तों से भी टकराने की ,

दोस्ती   टूटती  जाती है    बिखरते  रिश्ते ,

ख़ून के रिश्ते भी विश्वस्त नहीं हैं लगते ,

अब तो अपनों को यहां लोग ठगा करते हैं ।।


मशविरा मेरा है मिल-जुलके सभी साथ चलो ,

भूलकर शिकवे-गिले मिल के सभी बात करो ,

फ़ासला दरमियां अपनों के ज़रा कम कर दो ,

ज़ालिमों की सभी चालों पे ज़रा ध्यान रखो ,

चाल वो काट दो ज़ालिम जो चला करते हैं ।।


✍️ ओंकार सिंह'ओंकार'

1-बी-241बुद्धि विहार, मझोला,

मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश) 244001

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