जाने हम कौन सी दुनिया में जिया करते हैं ।
खिड़की दरवाज़े सभी बंद रखा करते हैं ।।
आदमी ने ही किया ख़ुद को अकेला अब तो ,
कर लिया अपने ही रिश्तों से किनारा अब तो ,
दिल के दरवाजे पे जड़ डाला है ताला अब तो ,
ख़ुद अंधेरों को गले से है लगाया अब तो ,
सिर्फ़ अपने में ही घुट-घुट के रहा करते हैं ।।
एक बेचैनी हर-इक शख़्स पे हावी है यहां ,
आजकल धोखा-धड़ी सबको डराती है यहां ,
ज़िंदगी अब न सरल जितनी थी पहले वो कभी ,
आदमी इतना अकेला न था पहले तो कभी ,
लोग ख़ुद पर भी भरोसा न किया करते हैं ।।
भीड़ में खोये हैं सब लोग अकेले पन की ,
पूछता कोई नहीं बात किसी के मन की ,
अब जुटाने की अधिक चिंता है सब को धन की ,
फ़िक्र करता है भला कौन किसी जीवन की ,
लोग शंकाओं से भयभीत रहा करते हैं ।।
अपने भाई से अधिक चाह है धन पाने की ,
और धन के लिए रिश्तों से भी टकराने की ,
दोस्ती टूटती जाती है बिखरते रिश्ते ,
ख़ून के रिश्ते भी विश्वस्त नहीं हैं लगते ,
अब तो अपनों को यहां लोग ठगा करते हैं ।।
मशविरा मेरा है मिल-जुलके सभी साथ चलो ,
भूलकर शिकवे-गिले मिल के सभी बात करो ,
फ़ासला दरमियां अपनों के ज़रा कम कर दो ,
ज़ालिमों की सभी चालों पे ज़रा ध्यान रखो ,
चाल वो काट दो ज़ालिम जो चला करते हैं ।।
✍️ ओंकार सिंह'ओंकार'
1-बी-241बुद्धि विहार, मझोला,
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश) 244001
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें