चीं चीं चीं चीं गाती चिड़िया
दाना चुगकर खाती चिड़िया
ज्यों ही छूना चाहे मुन्नी
फुर से है उड़ जाती चिडिय़ा ।
चुन चुन तिनका लाती चिड़िया
अपना नीड़ बनाती चिड़िया
उड़ती फिरती कसरत करती
सबके मन को भाती चिड़िया ।
सुबह सवेरे आती चिड़िया
आसमान में छाती चिड़िया
अब उठ जाओ राजू कहकर
हाथ नहीं आ पाती चिड़िया ।
✍️ डॉ रीता सिंह, आशियाना , मुरादाबाद
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चकित हुए बच्चे सभी,
देख मोर का नृत्य,
कितने सुंदर पंख हैं,
कितना सुंदर कृत्य।
बादल आए झूमकर,
पड़ती मंद फुहार,
पीहू-पीहू के बोल की,
छाई मस्त बहार।
पंखों को झखझोर कर
होकर खुद में मस्त,
घूम - घूम हर ओर ही,
करे मयूरा नृत्य।
चुप होकर देखें सभी,
इसका अद्भुत नृत्य,
करें सराहना ईश की,
देख-देख यह दृश्य।
हम सबभी मिलकर करें,
ऐसा सुंदर नृत्य,
सारी कटुता त्यागकर,
बोलें मीठा सत्य।
रखें बदलकर आज हम,
जीवन के परिदृश्य,
केवल अपनापन बचे,
हो कटुता अदृश्य।
✍️ वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी', मुरादाबाद/उ,प्र, मोबाइल फोन नम्बर 9719275453
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देखो गुब्बारे वाला आया ।
रंग बिरंगे गुब्बारे लाया ।।
पापा मुझको भी दिला दो ।
मै भी इन्हें उडाऊगा।।
खिलौने नहीं है मेरे पास।
सारे दिन रहता मैं उदास ।।
आप तो चले जाते ड्यूटी पर।
मम्मी करती घर के काम।।
बाहर कहीं जाने नहीं देते।
कहते गंदे बच्चों में मत खेलों।।
तो फिर मै क्या करू देखो ।
पापा मुझको गुब्बारे दिलादो।।
✍️ चन्द्रकला भागीरथी, धामपुर जिला बिजनौर
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मेरा घोड़ा बड़ा निराला
दूर दूर तक उड़कर जाता।
भैया के संग मुझे बिठाकर
दुनिया की यह सैर कराता,
कभी हमें कश्मीर घुमाता,
कभी हमें यह रूस घुमाता।
पल में हम अमरीका होते,
बुआ से अपनी लाड लड़ाते।
दादी आओ बैठो इसपर
तुमको भी मैं सैर कराऊं
लकड़ी का मत समझो इसको
अरबी घोड़ा, उड़न खटोला।
जहाँ कहोगी वहीं चलेंगे
मस्ती हम भरपूर करेंगे,
मिलना गर तुमको मामा से
देर नहीं, बस यूँ पहुचेगे।
नाम रखा है इसका चेतक
नहीं माँगता दाना-पानी
मेरा घोड़ा इतना अच्छा
नहीं कोई है इसका सानी।
सव-रचित
✍️ उमाकांत गुप्त, मुरादाबाद
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अध्यापक जी ने कक्षा में, पूछा एक सवाल।
चांद और पृथ्वी में संबंध, बतलाओ तत्काल।
सारे बच्चे थे भौचक्के, क्या है यह जंजाल?
सर जी ने पूछा है हमसे, कैसा आज सवाल।
सर जी मैं बतलाऊं उत्तर, उठकर गप्पू बोला।
कक्षा में तो आता नहीं तू ,खबरदार! मुंह खोला।
सब बच्चों के कहने पर फिर, सर ने दे दिया मौका।
देखो! प्यारे गप्पू ने फिर, मारा कैसे चौका।
चांद और पृथ्वी का रिश्ता, हमको दिया दिखाई।
पृथ्वी तो है प्यारी बहना और चांद है भाई।
अध्यापक गुस्से में बोले, पूरी बात बताओ।
भाई और बहिन का रिश्ता, कैसे है समझाओ।
पप्पू बोला बतलाता हूँ, ओ! गुरुदेव हमारे।
समझाता हूंँ, सुनो ध्यान से, तुम भी बच्चे सारे।
जब चन्दा है मामा अपना,धरती अपनी मैया।
फिर क्यों नहीं होगा धरती का, चंदा प्यारा भैया ।
फिर क्या था पूरी कक्षा ने, खूब बजाईं ताली।
रहे ताकते अध्यापक जी, कक्षा हो गई खाली।
✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग' , शिव बाबा सदन, कृष्णाकुंज बहजोई -244410(संभल )
उत्तर प्रदेश
मो. 9548812618
ईमेल-deepakchirag.giswami@ gmail.com
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रिमझिम- रिमझिम बारिश आयी
ठंडी हवा का झोंका लायी
उमड़ -घुमड़ कर बादल आये
मौसम ने भी ली अँगड़ाई।
नाचा मोर, पपीहा बोला
चातक ने भी तान लगायी,
मेंढक बोला टर्र -टर्र टर्र
कोयल ने भी कूक सुनायी।
भीगें पत्ते,भीगें डाली
भीगी भीगी है अमराई
भीगे राजू , भीगे गुड़िया
पिंकी छाता लेकर आयी।
✍️मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद
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पर्वत से ऊपर उड़ते ही
एक परिंदा बोला
मुझसे ऊपर कोई नहीं है
जग भर में, मैं डोला
ऊपर बैठे चंदा ने तब
अपना मुख यूँ खोला-
मुझसे भी ऊँचा है पगले
सूरज का वह गोला,
इस प्रकार चंदा ने उसको
ऊँचाई दिखलाई !
सदा समझना छोटा ख़ुद को
गुर की बात सिखाई !!
✍️ रमेश 'अधीर', चन्दौसी
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गिल्लू और गिलहरी चिंकी
मेरी छत पर आते हैं
चिड़ियों को जो दाना डालूं
उसको चट कर जाते हैं
गोपू और बंदरिया कम्मो
खो-खो बोला करते हैं
खाने पीने की तलाश में
घर-घर डोला करते हैं
गोपू बन्दर ने गिल्लू से
पूछा एक दिन बातों में
"तुम चिंकी संग कहां चले
जाते हो ! हर दिन रातों में"?
हमने श्रम और बड़े जतन से
घर एक यहां बनाया है !
कपड़ों की कतरन, धागों से
मिलकर उसे सजाया है !!
गोपूऔर कम्मो दोनों को
तनिक बात ये न भायी
खिल्ली लगे उड़ा ने दोनों
उनको बहुत हंसी आई !!
किंतु ये क्या ! काली काली
नभ घनघोर घटा छाई
गरज गरज कर बरस उठे घन
चली बेग से पुरवाई
भीग रहे थे गोपू कम्मो
रिमझिम सी बरसातों में
बड़े चैन से गिल्लू चिंकी
बैठे थे अपने घर में
बच्चों ! कर्म करो तो जग में
बड़े काम हो जाते हैं
गोपू जैसे बने निठल्ले
समय चूक पछताते हैं !!
✍️ अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
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दाना चुगने चिड़िया रानी,
फुदक फुदक जब आती है।
मेरी प्यारी छोटी गुड़िया,
फूली नहीं समाती है।।
थोड़ा सा ही दाना चुग कर,
झट से वो उड़ जाती है।
फिट रखती है सदा स्वयं को,
दवा कहाँ वो खाती है।।
पढ़ने जाती कहीं नहीं है,
फिर भी जल्दी उठती है।
सर्दी बारिश या हो गर्मी,
श्रम से कभी न ड़रती है।।
तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर,
घर वह एक बनाती है।
छोटी सी है पर बच्चों को,
जीना ख़ूब सिखाती है।।
✍️ डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद
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खनकेंगी दौलत की फसलें,
फूल खिलेंगे तब रुपयों के।
मां की बातों से हो असहमत,
मैं भिड़ाने चली अब तो जुगत।
मैंने अपनी गुल्लक से ,
सिक्के अनगिनत निकाले।
पहले से तैयार भूमि में ,
चुपके से सारे बो डाले।
प्रतिपल तत्पर सेवा में,
खाद ,पानी भर भर डाले।
भूले से भी बंध्य धरा में,
कोई न अंकुर कोंपल वाले।
जो सिक्के अंदर थे माटी में,
ऊपर से बस घास जमी थी।
हाय हताशा बाबरिया सी ,
होकर अब तो रोने लगी थी।
मुंह लटकाए घूम रही थी
पापा से तब ग्रंथि खोली,
चिपक हिय से मन भर रोली।
तब पापा ने सब समझाया ।
मेहनत का प्रतिफल समझाया।
सजीव निर्जीव का भेद बताया।
रेखा तब मैंने तब यह माना,
श्रम से सुंदर बीज पनपते।
सपनों की फसलें महकेंगी।
बस तुम श्रम करते जाना,
जीवन में नित बढ़ते जाना।
✍️ रेखा रानी
विजयनगर
गजरौला
जनपद अमरोहा।
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कब तक घर में बंद रहूँगा।
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छोटू पापा से ये बोला, कब तक घर में बंद रहूँगा
बैठे बैठे ऊब गया हूँ, कब जाकर के मैं खेलूंगा।
पापा ने उसको समझाया, बाहर जाने में खतरा है।
बाहर कोरोना का संकट, जाने कहाँ कहाँ पसरा है।
कुछ दिन घर में बंद रहेंगे, इसकी कड़ी टूट जाएगी।
बाहर आने जाने पर से, पाबंदी भी हट जाएगी।
तो क्या मैं घर के अंदर ही, निपट अकेला पड़ा रहूँगा।
बैट बॉल, से दूर बताओ, घर में कब तक सड़ा रहूँगा।
घर में कहाँ अकेले हो तुम, मैं भी तो हूँ, मम्मी भी हैं।
घर में रहकर खेल खेलने, के कितने ही साधन भी हैं।।
कुछ दिन हमको दोस्त समझ लो, लूडो, बिजनैस, कैरम खेलो।
जब चाहे साथी बच्चों से, तुरत वीडियो चैटिंग कर लो।।
मान गया छोटू फिर बोला, अच्छा घर में ही खेलूँगा।
रोज हराऊँगा दोनों को, घर में तो मैं ही जीतूँगा।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG-69,
रामगंगा विहार, मुरादाबाद।
मोबाइल नं.9456641400
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