भाई ! केवल भाई नहीं तुम
रीढ़ सकल परिवार की,
वरद हस्त अग्रज का सिर धर
हो निश्चिंत विचरते,
क्या पहाड़ सी मुश्किल सम्मुख
तनिक न चिंता करते,
हर कठिनाई भाई के संग
नतमस्तक संसार की,,
भाई ! केवल भाई नहीं तुम..
अनुज भ्रात बाहुबल अपना
हर पौरुष की परिणति,
सदा चहकता आंगन तुमसे
सुख वैभव धन सम्मति,
तुम भविष्य के कीर्तिमान
तुम भव्य ध्वजा विस्तार की,,
भाई ! केवल भाई नहीं तुम..,
एक सूत्र में पिरो पिता ने
जब तक हमें संवारा,
सभी अंगुलियां बन मुष्टिक सम
जीत लिया जग सारा,
वंश वृद्धि को शिला तदंतर
रखी नवल घरद्वार की ,,..
भाई ! केवल भाई नहीं तुम
रीढ़ सकल परिवार की...
✍️ मनोज मनु, मुरादाबाद
आदरणीय बड़े भाई सम्मानित ब्लॉग पर मेरी रचना प्रसारित करने हेतु आपका आभार!
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏
हटाएं