मंगलवार, 25 मई 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीरा कश्यप का गीत ---काल है निर्मम बना ,नित रक्तबीज सा बढ़ रहा, साँसों का कोई मोल नहीं , चीखते हर ओर ऑंसू -


 मौन रहकर कब तलक 

गीत अधरों पर सजेंगे 

वेदना मन की सिसकती

विकल ,क़ुछ कह न पाती ।

        काल है निर्मम बना ,नित

        रक्तबीज सा बढ़ रहा 

        साँसों का कोई मोल नहीं

        चीखते हर ओर ऑंसू ।

देखकर अब दृश्य दारुण 

थिर नहीं मन ,काँपता है

मन विकल अब हो रहा 

है कयामत की रात आयी ।

          सो गये आँखों के सपने

           अपने सभी के खो गये

           यादों में रह गये शेष  

            वे दूर इतने हो गये ..।

जिनके सहारे अब तक 

जिंदगी जीती है हमने 

आस्था ,सेवा ,समर्पण के

प्रेम मय बीज  बो गये वे ।

         आस का था दीप जलता 

         पर हवा का रूख है तेज 

          व्यथा से भर टूटता मन 

         दर्द का है शोर ,हर ओर ।

संवेदनाएं मौन हैं अब 

भाव सारे रो रहे हैं ..

उलझे सवालों में सब ऐसे

मिलता नहीं उत्तर कहीं  ।

       वेदना की आँधियों में 

       तूफानों से घिर रहें हम 

      अब व्यथा को देखकर 

        गीत कैसे गा मिलेगा ।

वेदना मन की सिसकती 

कह नहीं अब क़ुछ पाती ।

✍️ डॉ मीरा कश्यप, हिन्दी विभागाध्यक्ष, केजीके महाविद्यालय, मुरादाबाद

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