शनिवार, 30 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष दिग्गज मुरादाबादी की बाल कविताएं ---- ये कविताएं ली गई हैं राजीव सक्सेना की कृति " समय की रेत पर" से ।उनकी यह कृति सागर तरंग प्रकाशन द्वारा वर्ष 2006 में प्रकाशित हुई थी ।



:::::::::प्रस्तुति:::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश,भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार अंकित गुप्ता "अंक" की दस ग़ज़लें और उन पर मुरादाबाद लिटरेरी क्लब द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा ----


वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक ग्रुप  'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' माध्यम से 28/29 मई 2020 को ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा की गई जिसमें 'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत युवा साहित्यकार अंकित गुप्ता "अंक"  की गजलों पर स्थानीय साहित्यकारों ने  विचारों का आदान प्रदान किया। सबसे पहले अंकित गुप्ता "अंक" द्वारा निम्न दस ग़ज़लें पटल पर प्रस्तुत की गयीं
*(1)*
किसी को इश्क़ में हासिल हुआ है क्या
मगर इसके बिना जग में रखा है क्या

हक़ीक़त में तुम्हें पाना है नामुमकिन
तो सपने देखना भी अब ख़ता है क्या

हर इक शै में तो तुम भी हो नहीं सकते
मुझे इस बात का धोखा हुआ है क्या

सवेरे से बहुत बेजान सी है धूप
उदासी आपकी इसको पता है क्या

बहुत मुद्दत से ख़ुद को ढूँढता हूँ मैं
तुम्हें मुझसा कहीं कोई मिला है क्या

मिरे बारे में दुनिया कुछ कहे लेकिन
मिरा अच्छा-बुरा तुमसे छुपा है क्या

तनावों के हैं दिन, तन्हाइयों की रात
नई तहज़ीब में इसके सिवा है क्या

*(2)*
फूल,  ख़ुशबू, तितलियाँ,  बादे-सबा कुछ भी नहीं
आपके बिन ज़िंदगी में अब बचा कुछ भी नहीं

कर लिया ऐसे मुक़य्यद ख़ुद को उसके प्यार में
सोचकर उसको मुझे अब सोचना कुछ भी नहीं

मौत आए तो ज़रा आज़ादियों की रह खुले
ज़िंदगी तो क़ैदख़ाने के सिवा कुछ भी नहीं

आपके जाने से दिल का गाँव वीरां हो गया
यों जला कुछ भी नहीं लेकिन बचा कुछ भी नहीं

इक हवा ज़ुल्फ़े-परीशां आपकी सुलझा गई
आप धोखे में हैं मैंने तो किया कुछ भी नहीं

आँख बंद करता हूँ तो दिखती नहीं नाकामियाँ
जाग जाने से बड़ी अब बददुआ कुछ भी नहीं

*(3)*
ये  जो  तुझसे  दूर  हूँ  मैं
थोड़ा-सा  मजबूर  हूँ  मैं

सुब्ह, ज़रा-सा सब्र तो कर
ख़ाब में उनके चूर हूँ मैं

तेरी नज़र में कुछ न सही
अपनी नज़र में तूर हूँ मैं

बज़्मे-रक़ीब में मेरा ज़िक्र
क्या इतना मशहूर हूँ मैं

मैं हालात का  मारा  हूँ
तुमको लगा मग़रूर हूँ मैं

रोज़ मिलूँ नींदों के पार
फिर तुझसे कब दूर हूँ मैं

अंदर आँसू का सैलाब
बाहर से मसरूर हूँ मैं

*(4)*
यूँ भी सफ़र का लुत्फ़ उठाया जा सकता है
हर मंज़िल को राह बनाया जा सकता है

तुमसे दिल का रोग लगाया जा सकता है
मन को ऐसे भी बहलाया जा सकता है

आओ, बैठें, बात करें, रिश्ते सुलझाएँ
चुप्पी से बस बैर बढ़ाया जा सकता है

माना हमसे खुलकर मिलना है अब मुश्किल
पलकोंं के उस पार तो आया जा सकता है

देखूँ हूँ जब तुमको अकसर सोचूँ हूँ मैं
क्या ऐसा गौहर भी बनाया जा सकता है

फिर से ये अरमां जागे हैं तुमसे मिलकर
फिर से कोई ख़ाब सजाया जा सकता है

जब हम ही आधी कोशिश करके हारे तो
क़िस्मत पर क्या दोष लगाया जा सकता है

*(5)*
मेरा बिगड़ा हुआ हर काम बना करता है
कोई तो है जो मेरे हक़ में दुआ करता है

झिड़कियाँ बाप की और माँ का दुलारा करना
ये वो सरमाया है जो कुछ को मिला करता है

मुझे तन्हाइयों की धूप का डर कुछ भी नहीं
तेरी यादों का शजर साथ चला करता है

कब टिकता है बुरा वक़्त ज़ियादा दिन तक
सूखे पेड़ों को कोई फिर से हरा करता है

ये तो है अश्क छुपाने का तरीक़ा वर्ना
कौन इस दौरे-परेशां में हँसा करता है

ज़िंदगी किसके चले जाने से रूकती है यहाँ
हर एक  रात ये बाज़ार सजा करता है

*(6)*
उन्हें हर बात मेरी भा रही है
ख़ुदाई नेअमतें बरसा रही है

वो अब जो देखता है मुस्कुरा कर
मुझे उम्मीद बँधती जा रही है

भरे बाज़ार के इन क़हक़हों में
'ख़मोशी उँगलियाँ चटख़ा रही है'

दिखे हुब्बुल-वतन पर भी सियासत
ये 'आज़ादी' कहाँ ले जा रही है

चला है ज़िक्र महफ़िल में मेरा और
तेरे चेहरे पे' रंगत आ रही है

तुझे नफ़रत है मुझसे मान तो लूँ
तेरी सूरत तुझे झुठला रही है

मैं वो हिन्दोस्तां हूँ ठीक से देख
रवादारी मेरा विरसा रही है

ज़रा पेचीदगी रख शख़्सियत में
ये आसानी मुझे उलझा रही है

*(7)*
दुख से यारी कर लो तुम
जीवन भारी कर लो तुम

मर्द से आगे वो निकली
फ़तवे जारी कर लो तुम

मन है चंचल, भटकेगा
पहरेदारी  कर लो तुम

सच से, वफ़ा से तुमको क्या
'दुनियादारी' कर  लो  तुम

होगा जल्द हिसाबे-ज़ुल्म
बस तैयारी कर लो तुम

'अंक' लगाके प्यार का रोग
रातें भारी कर लो तुम

*(8)*
रूह की तह को छुए,  दिल की ज़ुबां तक पहुँचे
ऐसा कोई तो हो जो दर्दे-निहां तक पहुँचे

बस ज़रा वक़्त ही में सुब्ह हुई जाती है
पंछी धूप के पैरों के निशां तक पहुँचे

मैं तो बैठा हूँ मज़ारों पे' वफ़ा की अब तक
ज़रा अपनी भी कहो आप कहाँ तक पहुँचे

तेरे जीवन में ख़ुदा इतनी मसर्रत भर दे
कभी उसमें न मेरी आहो-फ़ुग़ां  तक पहुँचे

अहले उल्फ़त तो इशारों को समझ लेते हैं
क्या ज़रूरी है जो दिल में है ज़ुबां तक पहुँचे

हमने भर दी है बहरहाल मुहब्बत में उड़ां
देखिए नन्हा परिन्दा ये कहाँ तक पहुँचे

सोचती रहती है हर दौर की ग़ज़लों की शुआअ
किस तरह 'मीर' के उस ऊँचे मकां तक पहुँचे

*(9)*
ख़ुद ही को इस तरह से सज़ा दे रहा हूँ मैं
दुश्मन को ज़िंदगी की दुआ  दे रहा हूँ मैं

अबकी न होगी चूक मेरे क़त्ल में कोई
क़ातिल को फिर से घर का पता दे रहा हूँ मैं

मिलने की चाह में तुम्हें रुसवाई का है डर
आओ के आफ़ताब बुझा दे रहा हूँ मैं

यादों की गर्द ओढ़ के राहों में इश्क़ की
तुझ संग बीते पल को सदा दे रहा हूँ मैं

पहलूए- मौत जिस्म ज़रा चैन से रहे
लो, ज़िंदगी की छाँव बिछा दे रहा हूँ मैं

तेरी अना की रात मिटाने के वास्ते
फिर-फिर वफ़ा के दीप जला दे रहा हूँ मैं

*(10)*
ज़रा ज़िंदगी का नज़रिया बदलिए
कभी तो किताबों से बाहर निकलिए

मज़ा लीजिए ज़िंदगी का मुसलसल
अना भूलकर बारिशों में टहलिए

मोहब्बत की राहें बड़ी आत्शी  हैं
सँभलिए, सँभलिए, सँभलिए, सँभलिए

ये दिल आपका शर्तिया होगा रौशन
कभी शम्अ की सम्त इक बार जलिए

रिवायत की बेड़ी न रस्मों के बंधन
मैं पगली पवन हूँ मेरे साथ चलिए

यहाँ अब भी रुककर अदब का चलन है
दयारे-ग़ज़ल से ठहर कर निकलिए

जवानी की रुत तो सँभलने की रुत है
ये किसने कहा है इसी में फिसलिए।
      अंकित की इन ग़ज़लों पर विचार व्यक्त करते हुए प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा कि "अंकित ने गीत, दोहे, ग़ज़लें आदि सभी रूपों में लिखा है। उनमें अपने समकाल की आहटों को बुनने की कोशिश की है।"
     विख्यात व्यंग कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि "अंक की ग़ज़लों में कथ्य मज़बूत है। अंक में रचनात्मकता भरी हुई है तथा क्षमताओं की भी कोई कमी नहीं है"।
     वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि "अंकित की ग़ज़लों में कहने का सलीका भी है और कहन के साथ प्रकृति से मनुष्य का भावात्मक रिश्ता जोड़ने की सफल कोशिश भी है।"
      मशहूर शायरा डॉ मीना नकवी ने कहा कि "अंकित ने कम उम्र में ही साहित्य के बड़े कैनवास पर शब्दों के मनभावन रंगों से ग़ज़ल के इंद्रधनुषी चित्र अंकित किए हैं"।
      वरिष्ठ कवि शिशुपाल मधुकर ने कहा कि "अंकित के कथ्य में जहां नयापन है वहीं उनका शिल्प भी काफी मजबूत है"।
      नवगीत कवि योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि "यहां प्रस्तुत अंकित की ग़ज़लें परंपरागत मिज़ाज की ग़ज़लें हैं। उनकी ग़ज़लों में इश्क़ और महबूब की बात बहुत सलीक़े से कही गई है।"
     वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि "प्रस्तुत ग़ज़लों से ऐसा लगता है कि अंकित गुप्ता अंक स्वयं को एक ग़ज़लकार के रूप में स्थापित करना चाहते हैं"।
      युवा शायर राहुल शर्मा ने कहा कि "प्रतीकों बिंबो उपमानों को नए तरीके से प्रस्तुत करना अंकित की वह खूबी है जो बड़े शायरों में भी ढलती उम्र में ही दिखाई देनी शुरू होती है"।
     युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि "अंकित गुप्ता अंक की ग़ज़लें कहीं न कहीं अंतर्मन को स्पर्श अवश्य करती हैं और उनका उत्कृष्ट व्यक्तित्व उनकी रचनाओं में भी झलकता है।"
    युवा शायर फरहत अली खान ने कहा कि "अंकित में असीमित इमकानात मौजूद हैं खासकर इसलिए क्योंकि वह एक बढ़िया लर्नर और बहुत संजीदा क़ारी हैं"।
    युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि "अंकित जी की ग़ज़लों में कहन प्रभावी है। कई शेर स्तरीय हैं और लगता है कि अंकित जी के कदम सही राह पर हैं"।
    युवा कवियत्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि "यहां प्रेषित सभी ग़ज़लें अंकित जी के अध्ययन को प्रमाणित करती हैं। कुल मिलाकर अंकित अंक एक संभावनाशील और प्रेरक रचनाकार हैं"।
     ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि "नौजवान शायर होने के बावजूद अंकित का इश्क़ बड़ा ठहराव लिए हुए है। यह उसकी शख्सियत का हिस्सा है। वो जिंदगी और शायरी दोनों में बहुत शालीन है।"

::::::::प्रस्तुति::::::

✍️  ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मोबाइल- 8755681225

मुरादाबाद के साहित्यकार सतीश फिगार की 11 गजलें ----- यह गजलें उनके काव्य संग्रह "कसक" से ली गई है । यह संग्रह वर्ष 2010 में प्रकाशित हुआ था ।













:::::::प्रस्तुति::::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822





शुक्रवार, 29 मई 2020

वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में मंगलवार 26 मई 2020 को आयोजित बाल साहित्य गोष्ठी में शामिल मुरादाबाद मंडल के साहित्यकारों सर्वश्री जितेंद्र कमल आनन्द, प्रीति चौधरी, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, डॉ अर्चना गुप्ता, सीमा रानी, डॉ पुनीत कुमार , अशोक विद्रोही, शिव अवतार रस्तोगी सरस, श्री कृष्ण शुक्ल, डॉ प्रीति हुंकार , स्वदेश सिंह, कमाल जैदी वफ़ा, रामकिशोर वर्मा, मनोरमा शर्मा, राजीव प्रखर और अंदाज अमरोहवी की कविताएं तथा नृपेंद्र शर्मा सागर की कहानी ------


 आओ राजू , आओ श्यामू!
आओ , चलो बरसा मनायें !!

पानी बरसा रिमझिम-रिमझिम
बूँदें चमकी चमचम-चमचम  ,
मेंढक बोला टर्-टर्-टर्टर -----
हम सब में है दमदम-दमदम ,
आओ राजू, मेरे बाजू!
हम भी कोई गीत सुनायें !!

कोयल ने भी छेड़ी तान ,
शुरू किया कौए ने गान;
भालू ने फिर ढोल बजाया,
नाचा रामू कहना मान  !
आओ काकू, आओ चाचा
गायें खुद भी और गवायें !!

✍️जितेन्द्र कमल आनंद
साईं विहार कालोनी
रामपुर
उत्तर प्रदेश , भारत
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***सबसे प्यारा बचपन

बचपन की दुनिया कितनी यह निराली है
तोतली जुबां में खुशियों की कहानी है

छल और कपट से होती है कोसों दूर
बचपन की वो बातें होती सुहानी है

महकता है घर का आँगन , कोना-कोना
गूँजती उसमें जब बच्चों की किलकारी है

तरोताज़ा करतीं हर हफ़्ते रचनाएं
मंगलवार बाल गोष्ठी यह सुखकारी है

गुड्डे-गुड़ियाँ सँग में छुक-छुक रेल चलाएं
तोता  मैना के किस्से अब भी जारी हैं

पढ़े और मिले बचपन से अपने किस्से
लिखें बाल रचना ये प्रार्थना हमारी है
                               
  ✍️  प्रीति चौधरी
  गजरौला,अमरोहा
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मैंनें   तुमको  बोला  अम्मा
चंदा  के   घर   जाने    को
लेकिन तुम तैयार नहीं  हो
हाथ  पकड़  ले  जाने  को।
         ---------------
रोज़ बहाना करके मुझको
तरह-तरह   समझाती  हो
पापा की गाड़ी  खराब   है
कह  करके  बहलाती   हो
कहतीं पापा फोन  कर रहे
मैकेनिक    बुलवाने    को।

आज कह रही हो  सर्दी है
कल  कह  देना   गर्मी   है
फिर कह देना बर्फ गिरेगी
अच्छी    सर्दी    गर्मी    है
चंदा  मामा  को  ही बोलो
जल्दी  से   घर  आने  को।

छोड़ो कार वार को अम्मा
मेरी    गाड़ी    पर    बैठो
धीरे - धीरे    हम   पहुंचेंगे
चंदा  मामा   के  घर   को
फ्रूटी, चॉकलेट  रख लेना
रस्ता   सरल  बनाने   को।

समझ गया चंदा मामा भी
अम्मा   से   डर   जाते  हैं
इसीलिए  तो डर  के  मारे
बादल  में  छुप   जाते   हैं
अम्मा तुमने  बोला इनको
अनायास  छुप  जाने  को।

मुन्ना कुछ दिन चंदा मामा
तुम्हें   नज़र   ना   आएंगे
वह अपने घटने बढ़ने की
सारी    कला    दिखाएंगे
खूब  बड़े  होकर  आएंगे
अपने  घर  ले  जाने  को।
       
✍️  वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद
मोबाइल फोन नम्बर- 9719275453
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#भगवान को चिंटू की चिट्ठी                 

सेवा में ,
भगवान जी

मैं आपका अपना चिंटू, मैं आजकल अपने घर में हूँ और ठीक ही हूँ। उम्मीद है आप भी अपने मन्दिर में ठीक ही होंगे।
भगवान जी, आप तो जानते ही हो कि हम हर साल गर्मी की छुट्टियों में नानी के घर जाते थे।हम वहाँ खूब आम जामुन लीची और आड़ू खाते थे। हमारे नाना जी का बहुत बड़ा बगीचा है जिसमें आम, अमरूद, आड़ू, लीची, नाशपाती, अनार, चीकू और भी बहुत सारे फलों के पेड़ हैं।
    हमारी नानी कहती थी, "इतने आम खाये हैं अब जामुन भी खाओ, नहीं तो बीमार कर देंगे आम तुम्हें। फिर भी हम जमकर आम खाते थे। जामुन मुझे बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगते उनसे मेरे दांत गन्दे हो जाते थे ,फिर भी मुझे जामुन खाने पड़ते थे।
    भगवान जी आपको पता है? इस साल कोरोना के चलते हम नानी के घर नहीं जा पाएँगे। मुझे नानी के घर की बहुत याद आती है। नानी का गाँव कितना सुंदर है। चारों तरफ बाग बगीचे, तालाब और नदी।
     "भगवान जी आप भी तो अपनी नानी के घर जाते होंगे? तो क्या इस बार आप भी मेरी ही तरफ घर में बंद होकर रहोगे? हाँ रहना ही पड़ेगा बाहर आपने कोरोना जो फैला रखा है।
     सुना है आपने अपने मन्दिर भी बंद कर रखे हैं जिससे कोई आपके पास शिकायत लेकर ना आये। भगवान जी हम बच्चों से ऐसी क्या गलती हो गयी जो अपने हमें घरों में कैद करवाकर खुद मन्दिर मरण बन्द होकर बैठ गए।
    ऐसा तो मैं भी कभी कभी करता हूँ जब मम्मी से रूठ जाता हूँ भगवान जी लेकिन मैं तो थोड़ी ही देर में मनाने से  मान जाता हूँ लेकिन भगवान जी आपको तो सारे ही लोग रोज ही मना रहे हैं और अब तो गर्मी भी कितनी बढ़ गयी है भगवान जी मेरा नदी में नहाने का कितना मन होता है इस गर्मी में। भगवान जी आपको भी तो बन्द मन्दिर में बहुत गर्मी लगती होगी ना। पहले सारे लोग जल ले जाकर आपको कितना नहलाते थे।
     भगवान जी, आप इस कोरोना को अब वापस बुला लीजिये ना। भगवान जी, अब लोगों को बहुत सजा मिल गयी है। भगवान जी, देखो नस सभी माफी मांग रहे हैं।इस बार माफ कर दो ना भगवान जी, फिर कोई भी गलती नहीं करेगा। भगवान जी अब सब ध्यान रखेंगे।
माफ कर दो ना भगवान जी।         
 आपका
 चिंटू

✍️  नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद
9045548008
--------------------------------

***लॉकडाउन
**********

शेरू बिल्लू कालू टाइगर,
शोर मचाएं भौक भौंककर।

ऐसी भी क्या आफत आई,
क्यों इतनी खामोशी छाई।

कोई नहीं किसी से बोले,
ना ही दरवाजे को खोले।

बच्चे भी स्कूल नहीं जाते,
शोर शराबा नहीं मचाते।

कोई कारण हमें बताए,
सन्नाटे से हम उकताए ।

पास खड़ी थी बिल्ली रानी,
बोली मुझसे सुनो कहानी।

घूम रहा  कोरोना बाहर,
घुस जाये ना घर के अंदर।।

इसीलिए लॉकडाउन लगा है,
घर रहने को कहा गया है।

खतरनाक है ये बीमारी,
मुश्किल में है जान हमारी।

सुन कर हुए सभी चौकन्ने,
अजनबियों पर लगे भौंकने।

✍️  डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
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 ***चंदा मामा

बिल्ली मौसी सुनो ध्यान से
 घर चंदा मामा के मैं जाऊंगा |
 मामा के घर लड्डू पूरी और
 समोसे जी भर के खाऊंगा |
 मामी से नित नई नई फरमाइश,
बड़े प्रेम से जिद करके मनाऊंगा |

फिर  मामा संग उड़नखटाेले पर
चढ़कर दूर दूर तक जाऊंगा |
वहाँ दूर गगन से तुम्हें देखकर ,
मै जी भर कर तुम्हें चिढाऊंगा |
मेरी प्यारी मौसी सुनाे गौर से ,
 सबकाे जीभर मुँह पिचकाऊंगा |

और जब वापस घर मै आऊँगा ,
 सारे दोस्तों को बढा चढाकर
 वहाँ के किस्से खूब सुनाऊंगा |
 सब मित्राें पर रौब जमाकर,
 कुछ सच्चा कुछ झूठ सुनाकर
 सबका लीडर मै बन जाऊँगा |

✍🏻सीमा रानी
 अमराेहा
----------------------------------

 विप्पु जी शैतान बहुत
जाने किस धुन में रहते
जो भी उनको कहना होता
उसको शोर मचा कहते

चाहें कुछ भी चीज दीजिए
उसको फैंक दिया करते
एक नहीं, मै लूंगा दो
सबसे यही कहा करते

हमको लगता ये आदत
छोड़ नहीं पाएंगे वो
शादी करने जाएंगे तो
लाएंगे दुल्हन भी दो

✍️,- डॉ पुनीत कुमार
T,-2/505
,आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M -,9837189600
------------------------------

***भारत के बच्चे
       
हम भारत के बच्चे ,
अपने खेल निराले हैं
          बड़े-बड़े करतब करके ,
          किस्से रच डाले हैं
    खेल ,कबड्डी
    ,गुल्ली डंडा,
   , मत चूको चौहान,
               ,सांप नेवला,
               ,शेर और बकरी,
               ,मेरा देश महान,
खो-खो,और ,शतरंज के
 मोहरे, देखें भाले हैं
         बड़े-बड़े करतब करके
         किस्से रच डाले हैं
     चक्रव्यूह की कला
     गर्भ में सीखी
     अभिमन्यु ने
              ‌‌ दुर्ग तोड़ना
               सैन्य सजाना
               सीखा वीर शिवा ने
शेरों तक के दांत कभी,
हमने गिन डाले हैं
        बड़े-बड़े करतब कर के,
         किस्से रच डाले हैं
     आरूणी से
     गुरु भक्त,हम
     एकलव्य जैसे  साधक
                    भक्त ध्रुव से अटल
                   रहे और बने प्रहलाद
                    प्रभुआराधक
लवकुश हैं हम,अश्वमेध के अश्व संभाले हैं
बड़े-बड़े करतब करके किस्से रच डाले हैं
           ‌‌
 ✍️ अशोक विद्रोही
                8218825541
         412प्रकाश नगर मुरादाबाद
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 ***प्रार्थना"
हम सब प्रभु से करें प्रार्थना,
जिसने हमें बनाया है।
फूल,फली, फल पत्ते प्राणी
सबमें जिसकी छाया है(१)
जिसने सूरज, चाँद बनाये
तारों को चमकाया है।
जिसने जंगल,नगर बसाये
फूलों को महकाया है। (२)
जिसके कारण वर्षा होती,
पर्वत पर है हरियाली।
मोर नाचते हैं जंगल में
कूक रही कोयल काली। (३)
जो रखता है ध्यान सभी का,
हम उसका गुण- गान करें
प्रात: उठ कर ,हाथ जोड़ कर
आओ उसे प्रणाम करें। (४)

✍️ शिव अवतार रस्तोगी सरस
मुरादाबाद 244001
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बाबा लॉकडाउन खुलवा दो,
सबसे मिलने आना है।
गर्मी की छुट्टी में सबके,
साथ घूमने जाना है।
माह मई का बीत रहा है,
बंद घरों में पड़े पड़े।
रोज सड़क को ताक रहा हूँ ,
बस खिड़की पर खड़े खड़े।।
मेरा मन करता है चलकर,
पैदल पैदल आ जाऊँ।
दादी के संग लूडो खेलूँ,
संग आपके बतियाऊँ।
लॉकडाउन में लगता अब तो,
घर भी जेलखाना है।
बाबा लॉकडाउन खुलवा दो,
सबसे मिलने आना है।

✍️  श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG - 69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद।
मोबाइल नं. 9456641400
-----------------------------

***** नानी मां की प्यारी गइया

प्यारी सी मेरी ननिहाल
प्यारी सी  है नानी मईया।
मीठा -मीठा दूध पिलाती ,
नानी मां की प्यारी गइया।
कपिला उसका नाम रखा है,
हरी घास उसको पसंद है ।
देख के अपना छोटा बछड़ा ,
वो मुस्काती मंद- मंद है।
रंभा -रंभा के पानी माँगे,
बंधी नीम की शीतल छैया।
नानी मां की,,,,,,,,,
इसके बछड़े बैल बनेंगे ,
खेतों में फिर काम करेंगे।
नही अन्न की कमी रहेगी ,
खलिहानों में पर्व मनेंगे।
खुशहाली घर- घर में होगी,
झूम उठेंगे कृषक भइया।
नानी मां की,,,,,,,,,,,,,,,,

✍️ डॉ प्रीति हुँकार
मिलन विहार
मुरादाबाद।
-----------------------------

*गुड़िया रानी*

मेरी  गुड़िया  हुई बीमार
सौ डिग्री उसे चढ़ा बुखार

मम्मी जल्दी फोन लगाओ
डॉक्टर  को तुरन्त  बुलाओ

डॉक्टर अंकल सुनो  पुकार
मेरी गुड़िया का करो उपचार

मीठी गोली उसको भायें
सुई देख  रोने लग जायें

कल बरसा रिमझिम पानी
 भीग गई थी गुड़िया रानी

 ✍️स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
 मुरादाबाद
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                                                                  बहुत याद आता है पिछला ज़माना,
वो लड़ना लड़ाना वो उधम मचाना।                                      बहुत यादआता है----
कभी रूठ जाना कभी मान जाना,
सदा अपनी च्वाइस का ही लंच  खाना ।
                बहुत यादआता है---
वो कपड़े पहनकर के टाई लगाना,
चमकदार जूते पे पालिश कराना।
              बहुत याद आता है -----
वो कालू के घर जाके घण्टी बजाना,
ठहाका लगाकर तुरत भाग जाना।
               बहुत याद आता है----
छिपाकर जो रखती थी अम्मा मलाई,
वो चुपके से जाकर मलाई का खाना।
               बहुत याद आता है--
वो नन्हू के इंजन पा जाकर नहाना,
उछलना, फिसलना,वो गिरना गिराना।                                   बहुत याद आता है----
 वो अम्मा के बटुवे से पैसे चुराना,                         पिताजी के डंडे की फिर मार खाना ।                                   बहुत याद आता है-----
वो कोठे पा जाकर पतंग का उड़ाना,
पतंग कट जो जाये तो लंगर लड़ाना।
              बहुत याद आता है-----
रवि से जो कल हमने कुट्टी करी थी,
हुई जब सुबह तो उसे भूल जाना।
             बहुत याद आता है------
                                                                       ✍️ कमाल ज़ैदी "वफ़ा"
सिरसी (सम्भल)
9456031926
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*बस्ता लेकर घर जाते जब*

घंटी जब टनटन बजती है ,
बंद पुस्तिका को करती है ।
मन का कमल खिला हो जैसे
पढ़ने से छुट्टी मिलती है ।।

संगी-साथी हंसते-गाते
बस्ते को कंधे पर लाते।
घर की ओर चलें जब हम सब
नदिया पर हम सब रुक जाते ।।

कागज की सब नाव बनाते
नदिया में फिर उसे बहाते ।
किस की नाव डूबती देखो
राम नाम भी जपते जाते ।।

तैरी जिसकी नाव दूर तक
आंखें रहतीं उसी छोर तक।
ताली मिलकर सभी बजाते
नौका ओझल हो जाने तक ।।

कागज का वह नाव बनाना
आपस में हिलमिल टकराना।
बदल गयी अब दुनिया सारी
याद झरोखे से कुछ आना ।।

✍️ राम किशोर वर्मा
  रामपुर
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प्यारे -प्यारे सूरज दादा ,मन को तुम सरसाते हो
मन्द पवन के पंखों पर जब,अपना रथ दमकाते हो ।
नई सुबह का नया उजाला,जग को तुम दे जाते हो
तेज तुम्हारा प्रखर है दादा,अंशुमान कहलाते हो ।
क्यूँ नाक पर गुस्सा रहता,दादागिरि दिखाते हो
ऐसा लगता है मुझको तो ,डांट बहुत तुम खाते हो ।
हाथ आग का गोला लेकर,घनचक्कर बन जाते हो
दादा आग बबूला होकर ,अब तो हमें डराते हो ।
भूख-प्यास सेअकुलाए तुम ,जग में क्या ढूंढ रहे हो
हरियाली से घिरे हुए किस,कानन को खोज रहे हो ।
टीचर कहती है मेरी,तुम,बड़े-बड़े वृक्ष उपजाओ
नदियों की कल-कल धारा से,दिनकर की प्यास बुझाओ ।
प्रकृति से खिलवाड़ करे कोइ,कतइ न तुमको यह भाता
इसीलिए क्रोधित होते हैं,गुस्सा नाक पर आता ।प्रातःसुबह नहाकर मैं भी,करता हूँ अर्पण मीठा जल
वन्दन तुमको हे हरि देना ,आशीर्वाद सबको निर्मल ।
न्यारे-न्यारे सूरज दादा ,नवजीवन तुम देते हो
धरती के कण-कण में फिर से ,उल्लास नया भर देते हो ।।

✍️  मनोरमा शर्मा
अमरोहा
मोबा.नं.-7017514665
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:::::प्रस्तुति:::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की कविता------ पुरुष हूं मैं


🎤✍️ इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद 244001

गुरुवार, 28 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार फक्कड़ मुरादाबादी की हास्य कविताएं


मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की कविता ------ याद आती है तुम्हारी मुझे


मुरादाबाद मंडल के चन्दौसी जनपद संभल ( वर्तमान में अलीगढ़ निवासी) के साहित्यकार लव कुमार प्रणय की गीतिका


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ सरोजिनी अग्रवाल का नाटक ---- आदमी कहां गया













✍️ डॉ सरोजिनी अग्रवाल
ए -15, देव विहार कालोनी
कमिश्नर आवास के निकट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456011596

बुधवार, 27 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ सुधीर कुमार अरोड़ा की कविता ------ मां


मैं और यह सर्द हवा
आग और बर्फ की तरह
खुले आसमान के नीचे
रहते हैं खुलकर!

एक समय था
जब यह सर्द हवा
अपने नुकीले दांतों से
मुझे काटती थी

समय का चक्र बदला
प्रकति बदली
आग बर्फ हो गई
बर्फ आग

आज यह बर्फीली आग
मुझे काटती नहीं
बल्कि
मेरा चुम्बन करती है
अपने प्यार का इज़हार
करने के लिए
मेरे अस्थिपंजर में प्रवेश कर जाती है

मैंने भी एक सच जान लिया है
कि
हम एक दूसरे के बिना अधूरे हैं

मैं ही दर्शक हूँ
मैं ही कलाकार
चल पड़ा हूँ, बस चल पड़ा हूँ
बिना जाने
कि कहाँ होगा पड़ाव
बस चल पड़ा हूँ इस वृत्ताकार पथ पर
जो
मुझे बार-बार ला देता है
जहाँ पर मुझे मिलता है
एक भिखारी

मैंने पूछा
तुम यहाँ क्यों आते हो
यहाँ तो भीख भी नहीं मिलती
यह जगह लोगों को दुखी बना देती है
एहसास कराते हुए
कि
एक दिन तुम्हे भी यहाँ आना है

वह मुस्कराया
बोला
न मैं बुद्धिमान
न मैं दुखी
मैं तो बस आता हूँ
सिर्फ सर्द हवाओं से बचने के लिए
ये चिताएँ मुझे गर्माहट देती हैं
मेरे अस्तित्व को बरक़रार रखती हैं
हालाँकि
यह बात दूसरी है
कि
जब ये चिताएँ चिताएँ नहीं थी
तब भी आग में जलती थी
फर्क सिर्फ इतना हैं
कि तब अन्दर से जलती थी
अब बाहर से

चिंता की आग
किसी काम की नहीं होती
उसके अपनों को ही
ठंडा कर देती है

लेकिन
चिता की आग
काम को जलाती हैं
और
पंछी को मुक्त कराती हैं

मुझ स्वार्थी के लिए तो बस
इतना है कि
कम से कम मुझे यह आग
बचाती हैं
अपनी गर्माहट से
मैं जिन्दा हूँ
चिता से
चिंता तो मुझे मार ही डालती

काम आग है
आग ही मेरा काम
और
मैं भलीभांति जान गया हूँ
कि
इस आग का अस्तित्व बर्फ में छिपा हैं
इसलिए
ये सर्द हवायें मुझे सताती हुई नहीं लगती
क्योंकि
मैं इन्हें अब प्यार करता हूँ
और यह भी सच है
कि
बर्फ और आग के बीच ही मैं जिन्दा हूँ

एक चिता मेरे अपने की
देख रहा था
निहार रहा था
उस पवित्र आत्मा को जिसने मुझे जन्म दिया
मुझे लगा
वह आत्मा मुझे आशीर्वाद दे रही थी

बेटे, हरहाल में खुश रहना
चिता की वो लपटें मुझे झुलसा नहीं रही थी
बल्कि ममता का गर्म स्पर्श दें रही थी

मैं जान गया
एक सच-
सच उस भिखारी का
उसके बार-बार मिलने का
एक चिता जो मेरे लिए मेरी माँ की चिता थी
लेकिन
भिखारी के लिये अस्तित्व की वजह

मैं उसके सामने नतमस्तक हो गया
सभी चिताएं ममता का स्पर्श दे रहीं थी
इसलिये वह खुश था

मैं सोचने लगा
कि
भिखारी कौन है
वह जिसके पास कुछ नहीं,
फिर भी खुश हैं
या मैं
जिसके पास सब कुछ हैं
फिर भी खुश नहीं हूं।

✍️  डॉ सुधीर कुमार अरोड़ा
अध्यक्ष
अंग्रेजी विभाग
महाराजा हरिश्चन्द्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय
लाजपतनगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघुकथा------ करीब का दुकानदार


 लॉकडाउन चल रहा था । घर में दाल समाप्त हो गई । दिनेश बाबू हाथ में झोला लेकर गली के नुक्कड़ पर हरिराम की जनरल मर्चेंट की दुकान पर चले गए । एक किलो अरहर की दाल ली । पैसे देते -  देते कुछ ख्याल आया । बोले "एक किलो मूँग की दाल भी दे दो ।" दुकानदार ने एक किलो मूँग की दाल भी दे दी। फिर पैसे माँगे तो दिनेश बाबू की जेब में पैसे कम थे। वह तो केवल एक किलो अरहर की दाल खरीदने के हिसाब से ही गए थे । कहने लगे "इतने रुपए रख लो । बाकी बाद में दे जाऊँगा ।"
    दुकानदार बोला "नए ग्राहकों से हम उधार नहीं करते!"
    " मैं नया नहीं हूँ। यहीं पड़ोस में रहता हूँ।"- सुनकर दुकानदार ने आँखें चौड़ी करके दिनेश बाबू को एक निगाह से देखा और कहा "झूठ मत बोलो भाई साहब ! अगर पड़ोस में रहते होते तो कभी तो दर्शन देते ?"
     अपमानित होकर दिनेश बाबू केवल एक किलो अरहर की दाल लेकर घर लौट आए। काफी देर तक सोफे पर पड़े हुए सोचने लगे कि 20 साल की जिंदगी मैं सिर्फ इतना ही कमाया कि आज घर के पड़ोस में दुकानदार से चार पैसे का उधार भी नहीं ला सकता।
          फिर जब विचार करने लगे तो उन्हें अपनी गलती महसूस होने लगी। असल में उनकी दिनचर्या भी यही थी कि सुबह उठे, नहा धोकर नाश्ता करके कार में बैठे और सीधे ऑफिस चले गए । जब शाम को लौटना हुआ तो जो - जो सामान की लिस्ट खरीदारी की हुआ करती थी ,वह मॉल में जाकर वहाँ पर बड़ी-बड़ी दुकानों से खरीद लिया । घर के आस-पास के न दुकानदारों से उनका परिचय हुआ और न कभी उन दुकानों में जाकर उन्होंने कभी झाँका । हाँ ! बचपन में जब पिताजी को कोई सामान मँगवाना होता था तो वह दिनेश बाबू को आस पड़ोस की ही किसी दुकान पर भेजते थे । दुकानदार भी उन दिनों दिनेश बाबू को देखकर पहचान जाते थे । अनेक बार पिताजी की उँगली पकड़कर जब दिनेश बाबू बचपन में बाजार से गुजरते थे तो कम से कम 20 दुकानों पर पिता जी नमस्ते करते हुए आगे बढ़ते थे । उस समय घर में पैसा कम था लेकिन आस पड़ोस में इज्जत और जान पहचान आज के मुकाबले में कई गुना ज्यादा थी । तभी पत्नी ने आकर पूछा "ऐसे कैसे मुँह लटकाए बैठे हुए हो ? क्या सोच रहे हो ? "
       दिनेश बाबू ने दृढ़ संकल्प के साथ कहा "अब हमेशा करीब के दुकानदार से ही सामान लेंगे। वही हमारा मित्र है  ।"

✍️ रवि प्रकाश
 बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार विभांशु दुबे विदीप्त की लघुकथा -------- गिद्ध

       
       पड़ोस के गांव में महामारी घिर आयी थीl सैकड़ों लोग देखते ही देखते उसकी चपेट में आ गए थेl कुछ तुरंत मर गए; जो जिंदा बच गए वो मौत का इंतजार कर रहे थेl जो थोड़े बहुत काम करने लायक थे, वे बीमारों की तिमारदारी में लाग गएl सूचना मिलते ही काफी लोग गांव की ओर दौड़ पड़ेl इनमे से सबसे पहले थे डॉक्टर और प्रशासन के लोग, जो पीड़ितों की सहायता कर रहे थेl डॉक्टर जिसे बचा सकते थे उसे बचा रहे थे, जिसकी मौत निश्चित थी,उसका दर्द कम करके मौत को थोड़ा आसान बना रहे थेl प्रशासन के लोग गांव वालों के लिए व्यवस्था बनाने में लगे हुए थे, मृतकों के अंतिम क्रिया और उससे संक्रमण न फैले, उसका ख्याल रख रहे थेl इसके बाद जो लोग पहुंचे वो कुछ भले मानस थे, सो लोगों की सेवा में लग गए l बीमार को पानी देना, उसे भोजन करा देना, व्यवस्था बनाने में शासन की मदद करने में लग गएl फिर कुछ ऊंचे लोग भी पहुंचे, जो दान 'दिखाने' आए थेl एक निवाला मुँह में डालकर दस लोग उसकी फोटो निकलवा रहे थेl फिर कुछ "सत्यान्वेषी"  भी पहुंचेl मरे हुए की लाश का तमाशा दुनिया को दिखाने और अधमरे के मरने का सजीव वर्णन करनेl ऐसे तो बहुत थे, उनकी भीड़ लग गयी वहाँl सफेदपोश भी आए हुए थेl उनके लिए तो यही मौका था बिसात चमकाने काl जो 'अंदर' थे, वो जिंदा की गिनती करवाने लगे थे, जो 'बाहर' थे, वो लाशों की गिनती कर रहे थेl ये सब वो पांच साल का 'छोटू' देख रहा था, जिसके मुँह में न जाने कितने दिन से निवाला नहीं गया थाl उसने ऊपर मंडराते गिद्ध को देखा फिर उसने अपनी मां की तरफ देखाl उसकी मां की आंखे अब उसे रोटी की झूठी तसल्ली नहीं दे पा रही थींl ये सब लोग थे वहाँ और पहाड़ की चोटी पर बैठा शेर अपने शावक के साथ ये सब देख रहा थाl अचानक गिद्ध छोटू के पास आयाl वो ऊपर से सबको देख रहा था, जितने भी लोग शहर से आए थे, सबकोl शेर का शावक ये देखकर सोच रहा था कि ये गिद्ध उस बच्चे की मौत का इंतजार करेगा और फिर उसकी लाश से अपनी भूख मिटायेगाl लेकिन उस गिद्ध ने अपनी चोंच में दबी रोटी का टुकड़ा उस बच्चे के सामने रख दिया और थोड़ी देर देख वहाँ से चला गया।
उस बच्चे ने अपनी मां की ओर देखा और आँखों ही आँखों में उससे सवाल पूछ डाला, वहीँ शेर के शावक ने भी शेर से वही सवाल पूछा । ज़वाब न शेर दे पाया न ही उसकी मां। सवाल था, गिद्ध कौन? आखिरकार कौन था गिद्ध? ज़वाब शेर को भी पता था, और उस बच्चे को भी ।बस उन्होंने एक दूसरे की आँखों में देखा और शायद उन्हें ज़वाब मिल गया।


✍️विभांशु दुबे विदीप्त
गोविंद नगर
मुरादाबाद 244001

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रशांत मिश्र की कहानी----------वो यौद्धा था


आज जब कोरोना से डरकर लोग घर की दहलीज में रहकर अपने जीवन को बचाने का प्रयास कर रहे हैं, अपने घर का दरवाजा भी छु कर हाथों को रगड़-रगड़ के धो रहे हैं। ऐसे में एक चेहरा मेरी आँखों में जैसे मानों छप सा गया है, इस घर में रहते
हुए मुझे दो साल से अधिक का समय हो गया जीवन की भागदौड़ में इंसानों से ज्यादा पैसों की अहमियत ने स्थान ले लिया था ।
जब जिंदगी थोड़ी थमी तो एहसास हुआ एक शख्स का, जो मेरे जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। लॉकडाउन में मैं अपने घर में बैठा आराम से खा पी रहा था । काम वाली आंटी नहीं आ रहीं थी पर इतना काम करने में कोई दिक्कत नहीं थी । लेकिन ५ दिन आनंद लेने के बाद यह एहसास हुआ की घर में कूड़े का ढेर लग गया है और उसमें अब बदबू आ रही है । तो मन में घबराहट सी हुई ।
सोच रहा था इसके साथ कैसे रह पाउँगा बाहर फैंकने भी नहीं जा सकते और कूड़े वाला भी नहीं आ रहा है । अभी लॉकडाउन के कई दिन बाकी थे।
अक्सर में सुबह जल्दी चला जाता था काम वाली कूड़ा निकाल कर गेट पर रख देती थी और कूड़े वाला आ कर उसे ले जाता था । मुझे कभी यह सोचना भी नहीं पड़ा की घर के कूड़े का क्या होता है । परन्तु अब मज़बूरी थी । तो मैंने मन सिकोड़ते हुए और मुहँ बनाते हुए आपने सामने के फ़्लैट में रह रही एक आंटी से अपनी व्यथा सुनाई । उन्होंने मुझे पहचाना भी नहीं सोचिए
हम २ वर्षों से अधिक समय से आमने-सामने रह रहे थे परन्तु ...???
इतनी देर में सामने से एक लड़का आया जिसे देखकर वो मुस्कुराई और मेरी तरफ देखते हुए बोली लो आ गया आपकी समस्या का इलाज
वो मेरा कूड़ा वाला था जिसे मैं पहली बार देख रहा था ।
मैंने पूछा भाई कहाँ था इतने दिन से .................................?
उसने कहा –“सामने वाली आंटी से पूछा था तो कह रही थी कि आप कभी  दिखते ही नहीं“
मैं आपके यहाँ कूड़ा लेने रोज आता हँ”, आपका कूड़ा बाहर रखा नहीं दिख तो मुझे लगा कि कहीं आप अपने घर चले गए होंगें । आप गए नहीं ?(उसने मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा) ”
(मैं सोच में पड़ गया कि आज से पहले कभी देखा ही नहीं । लेकिन वास्तविकता ये थी कि पिछले २ वर्षों में मैंने कभी उसके होने की जरुरत नहीं समझी और उसे अनदेखा करता रहा ।)
मैं मन ही मन में अपनी बेवकूफी पर हंस रहा था और गर्दन घुमाते हुए मैंने उसे “नहीं” कहा । फिर मैंने पूछा लॉक डाउन में छुट्टी नहीं है ? तो उसने मुस्कुराते हुए कहा साहब हम भी छुट्टी पर चले जाएंगे तो आपका क्या होगा?
वो सही कह रहा था, यह एक सच्ची घटना है। उसका नाम मुकेश है । वास्तव में हमारे जीवन मैं ऐसे कई लोग होते हैं जो बिना किसी राग के हमें सहयोग कर रहे होते हैं जब हम कुछ भी छु कर मौत के भय से हाथ धो रहे हैं तब भी वो मुस्कुराते हुए
अपनी जिम्मेदारी को निभा रहा है हर घर का कूड़ा उठा रहा है |

सलाम है ऐसे योद्धा को

✍️ प्रशान्त मिश्र
मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघु कथा ----- रोटी


​रोजी रोटी की तलाश में दीना ने अपनी जन्मभूमि से दूर जहां उसका बचपन और युवावस्था के कई साल गुजरे ,बचपन के संगी साथी और घर परिवार के लोगों का साथ छूटा इस  बात  से  भी  गुरेज  नहीं  किया .
​ उसको  याद  है  जब  वह  पहली  बार  शहर  आया  तो  उसकी  हालत  कैसी  थी ? बड़ी  मुश्किल  से  एक   कंट्रक्शन  कंपनी  में  दिहाड़ी  मजदूर  की  नौकरी  मिली  थी  जिसमें  गाँव  की  अपेक्षा  मजदूरी  तो  ज्यादा  थी  मगर  खेतों  से  उठने  वाली  सौंधी  खुशबू  दूर  दूर  तक  महसूस  नहीं  होती  थी .
बड़ी मुश्किल से एक गन्दी सी बस्ती में एक छोटा सा पिंजड़ा नुमा कमरा मिला था जिसमें सीलन की दुर्गन्ध और धुप और हवा तो दूर दूर तक नहीं आते थे । गावं में घर कच्चा और घास फूस का तो था मगर हवा पानी और धुप फ्री था जितना ले  सको उतना .
​पेड़ों की शीतल हवा ...और पक्षियों का मधुर कलरव सब कुछ कितना मीठा था .
​कभी कभी दीना बहुत उदास हो जाता था मगर वहां पर कोई भी सुख दुःख पूछने वाला नहीं था .लेकिन जब कभी बीच बीच में वह गाँव आता था तब खुद पर बड़ा रीझता था क्योंकि अब उसके पास अच्छे कपडे होते थे .थोड़े दिन बाद गाँव की कच्ची कोठरी को पक्का भी बना लिया था उसने जिससे उसके अडोसी पडोसी भी शहर जाने के लिए प्रेरित हुए बिना नहीं रह सके .
​उसको क्या पता था कि शहर उसके लिए किराए की जगह मात्र है उसकी जड़ें तो अब भी गावं में ही है .
​कोरोना के कारण शहर में काम धंधे बंद हो गए ऐसे में जब फांकों की स्थिति आ गई तो उसको वही गाँव फिर से याद आने लगा था जिससे उसको कुछ दिन पहले वितृष्णा सी होने लगी थी . वह व्याकुल हो उठा अपनी जड़ों की तरफ लौटने को .और पैदल ही निकल पड़ा अपने गाँव की तरफ धुप ,भूख और गर्मी की परवाह किये बिना .उसको आज भी विशवास था की उसकी जन्मभूमि उसको गले जरूर लगाएगी .
​उसने गाँव में घुसते ही सबसे पहले वहां की मिटटी को माथे से लगाया और पीछे मुड़कर सपने के सापेक्ष से शहर को अलविदा भी कह दिया .
​अब फिर से वह हकीकत और प्रेम से रूबरू हो गया था .
​घर में अपनों का साथ और प्रेम उसको बेशकीमती लग रहा था जिसको उसने सिरे से नकारने  की  कुचेष्टा की थी ,jजिस गाँव को वह नादानी के कारण हेय की दृष्टि से देखने लगा था उसी गाँव ने उसको फिर से प्रेम के मोहपाश में कैद कर लिया .


​ ✍️ राशि सिंह
​मुरादाबाद  244001


मुरादाबाद की साहित्यकार निवेदिता सक्सेना की लघु कथा -------- हे भगवान



नोनू और मनु मीरा के दो बेटे, दोनों ही छोटे थे।
,शैतान,नटखट ,चुलबुले दोनों दुनिया से अनजान सिर्फ अपनी दुनिया में मगन,।बचपन का आनंद लेकर जी रहे थे।
मीरा जब भी उन्हें  सुलाती तब अक्सर कहानिया सुनाया करती थी ,और कहानी के अंत  में अपने बच्चों से कहती कि बेटा छोटे बच्चों की पुकार भगवान बहुत जल्दी सुनते हैं ,इसलिए हमेशा भगवान से अपने घर परिवार की सलामती की प्रार्थना किया ।
करो दोनों बच्चे हाथ जोड़कर भगवान का धन्यवाद करते । दोनोंआपस में साथ साथ खेलते भी बहुत है और लड़ाई भी बहुत करते थे ना कभी कभी मीरा बहुत परेशान हो जाती थी जोर से चिल्लाने लगती,,,,,,,,' हे भगवान; मुझे उठा ले,  और कभी-कभी तो उन पर हाथ भी उठा देती , पर वह दोनों अपनी मस्ती में मस्त रहते थे नोनू छोटा था ,और मनु बड़ा ।
नादान नोनू अपनी मां की झुंझलाहट को देखता और बार बार दोबारा गलती ना करने के लिए कहता पर अबोधबालक फिर अपने भाई से लड़ाई लड़ता मां झुंझलाहट में अक्सर बड़बड डाती रहती ।;हे भगवान ;मुझे उठा ले, !
आज घर पर मेहमान आने वाले थे बहुत सारा काम था और उस पर  रविवार का दिन  बच्चे भी घर पर थे छोटे-छोटे बच्चों को संभालना मेहमानों के खातिर करना मीरा एक बार फिर झुंझला रही थी ,रात भर कमर दर्द से परेशान रही थी ।
सुबह सुबह कुछ लोगो के आने की खबर ,
मीरा महमान नवाजी में बहुत आगे थी तबियत कैसी भी हो पर किसी के आने की खबर उसमे ऊर्जा भर देती थी,।
 बच्चे बीच बीच में लड़ाई भी कर रहे थे ,बहुत देर से समझाने की कोशिश कर रही थी , बच्चे तो बच्चे  माने कैसे  एक बार फिर सर पकड़ कर बैठ गई मीरा।
: हे भगवान मुझे उठा ले;
 नादान नोनू बार-बार इस तरह से अपनी मां को करते देख एक दिन कह उठा हे भगवान आप बच्चो की बात जल्दी सुनते हो , मेरी बात सुन लो ,मेरी मां जो बार बार कहती है ,मुझे उठा लो ,
मुझे उठा लो ,
उनकी प्रार्थना सुन लो,, हे भगवान,,।

 ✍️ निवेदिता सक्सेना
मुरादाबाद 244001

मंगलवार, 26 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की कहानी ------- कर्तव्य


      बाहर शहनाइयों का शोर, मेहमानों की चहल-पहल और शादी की सजावटों के बीच, सुरेखा सोच रहीं थी कि अब जल्दी ही उनकी बेटी संजना विदा होकर ससुराल चली जायेगी ।
बेटी का विवाह करके उनका बहुत बड़ा कर्तव्य पूरा हो जाएगा लेकिन बेटी से बिछोह का ख्याल अनायास ही उनकी आंखें भिगो गया।
उन्हें याद आने लगा पच्चीस साल पहले का एक ऐसा ही दिन, ऐसी ही सजावट ऐसी ही चहल-पहल।
अंतर बस ये था कि उस दिन दुल्हन सुरेखा खुद थीं। अपने आप में सिमटी, सहमी हुई सी उन्नीस साल की सौन्दर्यपूर्णा, सुकुमारी, सुरेखा।
उस दिन भी उनके मन में विछोह के ख्याल आ रहे थे, अपने परिवार अपने माता-पिता से विछोह के ख्याल। बार-बार उनकी आंखें भीग रही थी ऊपर से उन्होंने अपने होने वाले पति सुरेश को देखा तक भी नहीं था।
सुरेखा, ससुराल आकर दो ही दिन में वह समझ गयी कि सुरेश बहुत सुलझे हुए, मितभाषी और हँसमुख इंसान हैं और सुरेखा अब उनकी जिंदगी। सुरेखा को अपने मान पर अभिमान था कि सुरेश उसे सर आंखों पर रखते हैं।
प्यार के दिन गुजरते देर नही लगती, ऐसे ही सुरेश और सुरेखा के प्यार के भी दस साल देखते ही देखते गुजर गए। इसी बीच सुरेखा दो बेटियों संजना और सपना की माँ बन गयी।
दो बेटियाँ!!?
उसकी ससुराल में उसके दो बेटियां होने पर सुरेखा के सम्मान में बहुत कमी आ गई थी। अलबत्ता सुरेश जरूर हमेशा मुस्कुराकर कहते - "अरे बेटियाँ तो आजकल बेटों से बहुत आगे हैं। ऊपर से बुढ़ापे में भी बेटियां, बेटों से अधिक ध्यान रखती हैं मां बाप का।"
और फिर हँसते हुए कहते - "सुरु तुम देखना, मेरी बेटियां डॉक्टर बनेंगी और मेरा नाम रोशन करेंगीं।"
कुछ दिन से सुरेश के सीने में हल्का दर्द हो जाता था। सुरेखा उन्हें अस्पताल दिखाने जाने को कहती तो वह ये कहकर टाल देते - "अरे कुछ नहीं हुआ, बस जरा गैस है; चूर्ण ले लूँगा ठीक हो जाएगा।"
लेकिन उस दिन दर्द न चूर्ण से ठीक हुए ना गोली से... सुरेखा जल्दी में उन्हें लेकर अस्पताल गयी, तब पता चला हार्ट अटैक आया है। और स्थिति घातक है बीमारी बहुत बढ़ चुकी है। रात-दिन एक करके भी डॉक्टर सुरेश को बचा ना सके।
सुरेखा अपनी दो बेटियों को लेकर अकेली रह गई। ससुराल वालों ने उसे ये कहकर घर से निकाल दिया कि "उसके दो बेटियां पैदा करने के कारण ही सुरेश दिल का मरीज बन गया, यही उनके बेटे की मौत का कारण है।"
सुरेखा रोती रही लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी।
अब महानगर में अकेली औरत दो बेटियां लेकर कहाँ जाए! मायके में भी स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी। फिर भी वह मायके आ गयी।
सुरेखा धीरे धीरे सामान्य हो गयी, पढ़ी-लिखी तो वह थी ही, तो थोड़े प्रयास से उसे एक हॉस्पिटल में नौकरी मिल गई।
अपनी मेहनत से सुरेखा ने सालभर में ही खुद को संभाल लिया और मायके के पास ही अलग किराये का मकान ले लिया।
दोनों बेटियां स्कूल में पढ़ती थीं जिंदगी ठीक चल रही थी अचानक एक दिन छोटी बेटी सपना चक्कर खाकर गिर गयी।
डॉक्टर को दिखाने पर पता लगा कि मिर्गी की बीमारी है।
सुरेखा एक बार फिर परेशान हो गई । सपना के दौरे बढ़ते ही जा रहे थे अच्छे से अच्छा इलाज कराया लेकिन कुछ लाभ ना हुआ।
सुरेखा के पति सुरेश ने सुरेखा के नाम से एक जमीन खरीदी थी वह भी बिक कर सपना के इलाज की भेंट चढ़ गई।
एक दिन सुरेखा को किसी ने बताया कि कोई वैध हैं जो मिर्गी का इलाज करते हैं।
पहले तो इसे विश्वास नहीं हुआ, उसने सोचा जब इतने बड़े बड़े डॉक्टरों की दवाइयां ठीक नहीं कर पायीं तो जड़ी बूटियां,,,,??
लेकिन उनकी बड़ी बहन के कहने पर सुरेखा वैध जी से मिली और सपना के लिए दवाइयां ले आयी। उसे उस इलाज से आश्चर्यजनक परिणाम मिले।
तीन महीने में ही सपना पूरी तरह ठीक हो गयी।
इसी बीच संजना ने एक बैंक में संविदा पर नौकरी कर ली। सुरेखा का परिवार फिर अपनी जिंदगी में खुश था। संजना और सुरेखा की मिली-जुली कमाई से उनका जीवन सामान्य चल रहा था।
और आज संजना की शादी, सुरेखा फिर अकेली.....
अभी वह सोच ही रही थी तभी संजना की आवाज आई, "मम्मा कहाँ हो आप ??, बारात आ चुकी है सब आप ही को ढूंढ रहे हैं जल्दी चलिए।"
"हाँ!!, चल आती हूँ ", सुरेखा ने चुपके से आँसू पोंछ कर कहा।
सुरेखा जब नीचे आयी तो 'हेमन्त' दूल्हा बना घोड़ी पर बैठा द्वार पर पहुंच चुका था।  सुरेखा ने मुस्कुराकर उसकी आरती की।
एक बार फिर उसकी आँखें आँसुओं से भर गयीं। लेकिन ये खुशी के आँसू थे क्योंकि हेमन्त ने उसे वचन दिया था कि "संजना अपनी आधी तनख्वाह सपना की शादी तक सुरेखा को देती रहेगी और हेमन्त को भी वह दामाद नहीं बेटा ही समझे।"
हेमंत एक कॉरपोरेट कंपनी में अच्छे पद पर है।
शादी में दहेज लेने पर जब हेमन्त अड़ गए थे, तब सुरेखा बहुत परेशान हो गयी थी। उसने डरते हुए पूछा था -  "क्या चाहिए दहेज में बता दीजिए? हम सोचकर जबाब देंगे।"
बदले में हेमन्त ने मुस्कुराकर एक पर्चा उनकी तरफ बढ़ा कर कहा था , "हमें तो अभी जबाब चाहिए तुरंत।"
कांपते हाथों से सुरेखा ने पर्चा खोला तो उसमें लिखा था, "एक मां के प्रति हमारा कर्तव्य निभाने देने का वचन और मुझे दामाद नही बेटे का मान।"
सुरेखा की आँखे तब भी भीग गयीं थीं और उसने बस हाँ में सर हिलाया था।
सुरेखा बहुत खुश थी, हेमन्त जैसा दामाद पाकर।
जो उसे एक सगे बेटे से बढ़कर मान देता है।
संजना को भी हेमन्त ने कह दिया कि "मां को किसी चीज़ के लिए परेशान ना करे ; संजना को शादी में जो जरूरत की चीज हो हेमन्त खुद दिला देगा।"
"कहाँ खो गयीं मम्मा", इस बार हेमन्त ने सुरेखा की तन्द्रा तोड़ी।
और वह, "कहीं नहीं!!" कह कर मुस्कुरादी।
सुरेखा समझ ही नहीं पाती है कि कर्तव्य कौन निभा रहा है। वह या उसके बेटियाँ और दामाद हेमन्त।
अब तो सपना ने भी जॉब शुरू कर दी है।फिर भी हेमन्त और संजना रोज एक बार सुरेखा से जरूर बात करते हैं और उसकी हर ज़रूरत का ध्यान रखते हैं।

 ✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा (मुरादाबाद)
Mo.९०४५५४८००८

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ------जा को राखें साइयां...


....हेलो !,,अब रानी की कैसी हालत है? बेटा! डाक्टर से पूछ कर बताओ,,....,,अभी कुछ नहीं कहा जा सकता !नानाजी!!..मम्मी 60% जल गयीं हैं!....अगले 24घन्टे बहुत भारी हैं,,!!कह कर निशू ने फोन रख... दिया,,यह सुनकर रानी के चाचा की आंखों से आंसुओं का बांध फूट पड़ा ...कल से बार बार सम्पर्क करने पर इतना ही पता लग सका.... बड़े भैया की तीनों बेटियों में सबसे बड़ी रानी...उसका ये नाम दादा ने रखा था दिवाली के दिन जन्मी रानी का पहला नाम लक्ष्मी रखा गया सब लच्छो-लच्छो कहने लगे दादाजी को बुरा लगा तो लाड़ में नाम बदल कर  रानी कर दिया... रानी पूरे घर में सभी की बहुत लाडली थी सुंदर गोल मटोल घर में अकेला छोटा बच्चा ........
...परन्तु रानी के संघर्षों की एक लम्बी दास्तान है जो फिर कभी.... सुनना ।
    रानी डॉक्टर है और मरीजों की सेवा बड़े मनोयोग से करती है अच्छी सेवा के कारण रानी को जहां बहुत ज्यादा जरूरत होती है वहीं पोस्टिंग  मिलती है  कई साल पहले रानी के पति का एक एक्सीडेंट में देहांत हो गया था तब से संघर्ष और ज्यादा हो गए रानी ने बच्चों को ही आगे नहीं पढ़ाया बल्कि स्वयं की रुकी पढ़ाई को भी फिर से शुरू किया और धीरे-धीरे वह एक डॉक्टर बन गई... गवर्नमेंट जॉब भी मिल गई ....बच्चों को बड़ा करके पैरों पर खड़ा किया उसके बाद दोनों की शादी कर दी.. बेटा सीआरपीएफ में ऑफिसर है और बेटी की शादी एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर से हुई  है ...बेटी नर्सिंग कॉलेज में लेक्चरर के पद पर है  ।
....  हॉस्पिटल से लौटने पर किचन में गैस की गंध के कारण शक हुआ सिलेंडर लीक कर रहा है रानी ने गैस डिलीवरी ब्वॉय को बुलाया डिलीवरी ब्वॉय ने गैस चेक करने के लिए जैसे ही माचिस की तीली जलाई ... भड़ाक से ....पूरी किचन में भयंकर आग फैल गयी...... क्योंकि रानी पास ही खड़ी थी उसके दोनों हाथ पूरा चेहरा बाल गला तथा गर्दन बुरी तरह जल गए डिलीवरी बॉय भी बुरी तरह जल गया .. और मकान मालिक और उसकी पत्नी भी बचाने की बजह से आग की चपेट में आ गए पहले उन्हें लोकल हॉस्पिटल श्रीनगर में ले गए ...वहां से जौली ग्रांट देहरादून के लिए रेफर कर दिया गया.... और जौलीग्रांट से भी उसकी गंभीर स्थिति को देखते हुए लाला लाजपत राय हॉस्पिटल दिल्ली के लिए रेफर कर दिया गया वहीं रानी को इंटेंसिव केयर यूनिट में चिकित्सा प्रदान की जा रही है और अभी तक कुछ पता नहीं है कि क्या होगा.... *****इन्तजार  करते-करते शाम हो गई शाम को रानी के बेटे निशु का फोन आया ***********नानाजी  !..
,,अब मम्मी की तबीयत कुछ ठीक है,, वीडियो कॉल पर रानी को देखकर रोंगटे खड़े हो गए इतनी सुंदर लड़की का क्या हाल हुआ है डॉक्टरों ने अभी भी कहा है कि ,,अभी कुछ कह पाना बहुत मुश्किल है,,
     सभी संबंधी एवं मित्रगण भगवान से प्रार्थना करने लगे .... कि हे प्रभु रानी के प्राण बचाओ  किसी तरह.... सभी के लिए इतना सेवा भाव ....समर्पित रहने वाली लड़की की यह दशा देखकर ....सभी दुखी थे 3 दिन बाद ***उक्त हॉस्पिटल को ही कोरोना डिटेन्शन सेंटर डिक्लेअर कर दिया गया और वहां से रानी को तुरंत निकालने के लिए कह दिया गया ....अब और मुसीबत ....जैसे-तैसे रानी को बेटी के ही  फ्लैट में शिफ्ट किया गया... डॉक्टर को वहीं बुलाया जाता है  इलाज के लिए..
  आखिर रानी के प्राण बच गए रानी के बच्चों और संबंधियों की दुआएं शाय़द काम आ गईं शायद.!.... शरीर के घाव तो न जाने कब तक भरेंगे परंतु   ......रानी ने फिर एक बार मौत को हरा दिया........
 ..... किसी ने सही कहा है...
""जाको राखे साइयां मार सके न कोय .""....
                   
✍️ अशोक विद्रोही
 412 प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 8218825541

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा----अपराध बोध से मुक्ति



"माँ,देखो मेरी नौकरी का नियुक्ति पत्र आया है"खुशी से चहकता हुआ महेश बोला।बेटे का नियुक्ति पत्र देखकर उसकी आँखों में आँसू आ गये।मां की आंखों मे आँसू देखकर महेश बोला,"आज बाबा भी होते तो कितना अच्छा होता ।"
महेश की बात सुनकर उसके आँसू थम गये।अगर आज वो जिन्दा होते तो शायद उसका बेटा आज यहां तक न पहुंच पाता।उसे याद है उसके पति का शराब पीना और रात को धुत होकर आना मारना पीटना।एक अच्छी नौकरी होने के बाद भी घर मे उसेऔर बच्चों को पैसों का अभाव बना रहता।एकबार मन किया कि उसे छोड दे मगर बच्चों का पालन कैसे कर पायेगी।फिर एक दिन रात को शराब के नशे में घुत रघु घर आया।वह हिम्मत कर दरवाजे पर खडी हो गयीं।अंदर न घुसने देने पर हाथापाई हो गयीं और लडखडाने के कारण रघु सीढियों से नीचे गिर गया।उसका सिर फट गया खून बह रहा था ,वह नीचे दौडी,मगर दो सीढियां उतरने के बाद वह रुक गई।नाजाने क्या सोचकर वह.कमरे मे वापस आगयी।सुबह जल्दी पडोसियों ने जगाया किरघु को चोट आयी है।अस्पताल से उसकी मृत देह आयी।वह बुत बनी रही समस्त संस्कार जैसे तैसे निपटे।एक अपराध बोध था मन मे।परिवार में लोगो ने रघु के स्थान पर उसकी नियुक्ति मे मदद की।तब से उसने माता पिता दोनो की जिम्मेदारी पूरी की।बेटी कीशिक्षा पूरी करवायी,बेटे को भी इस लायक बनाया।
आज वह हर अपराध बोध से मुक्त थी।

✍️ डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -----बेबसी


      बुलाको काकी के पति सत्ताइस साल की उम्र में चार बच्चों के साथ उन्हें इस संसार अकेला छोड़ चल बसे ।काकी ने खेतों में धान गेहूं काट  कर बच्चों को जवान कर दिया ।दोनों लड़कों औऱ दो लड़कियों का विवाह किया ।विवाह के बाद दोनों लड़कियां ससुराल की होकर  रह गई।बीमार मां ने बुलाया तो भी नहीं आई।दोनोंं लड़कोंं की बहुएं अपने आदमियों के संग दिल्ली चली गई । फिर इन्हें याद नहीं आया कि इनकी बूढ़ी अम्मा गांव में पड़ी है।
आज एक लंबे अरसे के बाद विश्व  व्यापी आपदा के चलते जब सारे काम धंधे बंद हुए तो एक बार फिर अम्मा की याद आई । चल पड़े उसी ओर जहाँ काकी की आंखें वर्षो उनका इंतजार करते- करते थक गई थीं ।आज अचानक सब आये तो उसे लगा कि शायद उसके बेटे बहु को उसकी याद आई होगी ,तभी वे भागे चले आये। काकी के शरीर में फिर वही ताजगी उमड़ने लगी  लेकिन वह नहीं जानती थी आज अगर यह आपदा न आती तो  उसके बेटे बहु कभी इस ओर अपना रुख न करते ।

✍️ डॉ प्रीति हुँकार
 मुरादाबाद 244001