मंगलवार, 26 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा----अपराध बोध से मुक्ति



"माँ,देखो मेरी नौकरी का नियुक्ति पत्र आया है"खुशी से चहकता हुआ महेश बोला।बेटे का नियुक्ति पत्र देखकर उसकी आँखों में आँसू आ गये।मां की आंखों मे आँसू देखकर महेश बोला,"आज बाबा भी होते तो कितना अच्छा होता ।"
महेश की बात सुनकर उसके आँसू थम गये।अगर आज वो जिन्दा होते तो शायद उसका बेटा आज यहां तक न पहुंच पाता।उसे याद है उसके पति का शराब पीना और रात को धुत होकर आना मारना पीटना।एक अच्छी नौकरी होने के बाद भी घर मे उसेऔर बच्चों को पैसों का अभाव बना रहता।एकबार मन किया कि उसे छोड दे मगर बच्चों का पालन कैसे कर पायेगी।फिर एक दिन रात को शराब के नशे में घुत रघु घर आया।वह हिम्मत कर दरवाजे पर खडी हो गयीं।अंदर न घुसने देने पर हाथापाई हो गयीं और लडखडाने के कारण रघु सीढियों से नीचे गिर गया।उसका सिर फट गया खून बह रहा था ,वह नीचे दौडी,मगर दो सीढियां उतरने के बाद वह रुक गई।नाजाने क्या सोचकर वह.कमरे मे वापस आगयी।सुबह जल्दी पडोसियों ने जगाया किरघु को चोट आयी है।अस्पताल से उसकी मृत देह आयी।वह बुत बनी रही समस्त संस्कार जैसे तैसे निपटे।एक अपराध बोध था मन मे।परिवार में लोगो ने रघु के स्थान पर उसकी नियुक्ति मे मदद की।तब से उसने माता पिता दोनो की जिम्मेदारी पूरी की।बेटी कीशिक्षा पूरी करवायी,बेटे को भी इस लायक बनाया।
आज वह हर अपराध बोध से मुक्त थी।

✍️ डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

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