बुधवार, 27 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रशांत मिश्र की कहानी----------वो यौद्धा था


आज जब कोरोना से डरकर लोग घर की दहलीज में रहकर अपने जीवन को बचाने का प्रयास कर रहे हैं, अपने घर का दरवाजा भी छु कर हाथों को रगड़-रगड़ के धो रहे हैं। ऐसे में एक चेहरा मेरी आँखों में जैसे मानों छप सा गया है, इस घर में रहते
हुए मुझे दो साल से अधिक का समय हो गया जीवन की भागदौड़ में इंसानों से ज्यादा पैसों की अहमियत ने स्थान ले लिया था ।
जब जिंदगी थोड़ी थमी तो एहसास हुआ एक शख्स का, जो मेरे जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। लॉकडाउन में मैं अपने घर में बैठा आराम से खा पी रहा था । काम वाली आंटी नहीं आ रहीं थी पर इतना काम करने में कोई दिक्कत नहीं थी । लेकिन ५ दिन आनंद लेने के बाद यह एहसास हुआ की घर में कूड़े का ढेर लग गया है और उसमें अब बदबू आ रही है । तो मन में घबराहट सी हुई ।
सोच रहा था इसके साथ कैसे रह पाउँगा बाहर फैंकने भी नहीं जा सकते और कूड़े वाला भी नहीं आ रहा है । अभी लॉकडाउन के कई दिन बाकी थे।
अक्सर में सुबह जल्दी चला जाता था काम वाली कूड़ा निकाल कर गेट पर रख देती थी और कूड़े वाला आ कर उसे ले जाता था । मुझे कभी यह सोचना भी नहीं पड़ा की घर के कूड़े का क्या होता है । परन्तु अब मज़बूरी थी । तो मैंने मन सिकोड़ते हुए और मुहँ बनाते हुए आपने सामने के फ़्लैट में रह रही एक आंटी से अपनी व्यथा सुनाई । उन्होंने मुझे पहचाना भी नहीं सोचिए
हम २ वर्षों से अधिक समय से आमने-सामने रह रहे थे परन्तु ...???
इतनी देर में सामने से एक लड़का आया जिसे देखकर वो मुस्कुराई और मेरी तरफ देखते हुए बोली लो आ गया आपकी समस्या का इलाज
वो मेरा कूड़ा वाला था जिसे मैं पहली बार देख रहा था ।
मैंने पूछा भाई कहाँ था इतने दिन से .................................?
उसने कहा –“सामने वाली आंटी से पूछा था तो कह रही थी कि आप कभी  दिखते ही नहीं“
मैं आपके यहाँ कूड़ा लेने रोज आता हँ”, आपका कूड़ा बाहर रखा नहीं दिख तो मुझे लगा कि कहीं आप अपने घर चले गए होंगें । आप गए नहीं ?(उसने मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा) ”
(मैं सोच में पड़ गया कि आज से पहले कभी देखा ही नहीं । लेकिन वास्तविकता ये थी कि पिछले २ वर्षों में मैंने कभी उसके होने की जरुरत नहीं समझी और उसे अनदेखा करता रहा ।)
मैं मन ही मन में अपनी बेवकूफी पर हंस रहा था और गर्दन घुमाते हुए मैंने उसे “नहीं” कहा । फिर मैंने पूछा लॉक डाउन में छुट्टी नहीं है ? तो उसने मुस्कुराते हुए कहा साहब हम भी छुट्टी पर चले जाएंगे तो आपका क्या होगा?
वो सही कह रहा था, यह एक सच्ची घटना है। उसका नाम मुकेश है । वास्तव में हमारे जीवन मैं ऐसे कई लोग होते हैं जो बिना किसी राग के हमें सहयोग कर रहे होते हैं जब हम कुछ भी छु कर मौत के भय से हाथ धो रहे हैं तब भी वो मुस्कुराते हुए
अपनी जिम्मेदारी को निभा रहा है हर घर का कूड़ा उठा रहा है |

सलाम है ऐसे योद्धा को

✍️ प्रशान्त मिश्र
मुरादाबाद

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