बुधवार, 27 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ सुधीर कुमार अरोड़ा की कविता ------ मां


मैं और यह सर्द हवा
आग और बर्फ की तरह
खुले आसमान के नीचे
रहते हैं खुलकर!

एक समय था
जब यह सर्द हवा
अपने नुकीले दांतों से
मुझे काटती थी

समय का चक्र बदला
प्रकति बदली
आग बर्फ हो गई
बर्फ आग

आज यह बर्फीली आग
मुझे काटती नहीं
बल्कि
मेरा चुम्बन करती है
अपने प्यार का इज़हार
करने के लिए
मेरे अस्थिपंजर में प्रवेश कर जाती है

मैंने भी एक सच जान लिया है
कि
हम एक दूसरे के बिना अधूरे हैं

मैं ही दर्शक हूँ
मैं ही कलाकार
चल पड़ा हूँ, बस चल पड़ा हूँ
बिना जाने
कि कहाँ होगा पड़ाव
बस चल पड़ा हूँ इस वृत्ताकार पथ पर
जो
मुझे बार-बार ला देता है
जहाँ पर मुझे मिलता है
एक भिखारी

मैंने पूछा
तुम यहाँ क्यों आते हो
यहाँ तो भीख भी नहीं मिलती
यह जगह लोगों को दुखी बना देती है
एहसास कराते हुए
कि
एक दिन तुम्हे भी यहाँ आना है

वह मुस्कराया
बोला
न मैं बुद्धिमान
न मैं दुखी
मैं तो बस आता हूँ
सिर्फ सर्द हवाओं से बचने के लिए
ये चिताएँ मुझे गर्माहट देती हैं
मेरे अस्तित्व को बरक़रार रखती हैं
हालाँकि
यह बात दूसरी है
कि
जब ये चिताएँ चिताएँ नहीं थी
तब भी आग में जलती थी
फर्क सिर्फ इतना हैं
कि तब अन्दर से जलती थी
अब बाहर से

चिंता की आग
किसी काम की नहीं होती
उसके अपनों को ही
ठंडा कर देती है

लेकिन
चिता की आग
काम को जलाती हैं
और
पंछी को मुक्त कराती हैं

मुझ स्वार्थी के लिए तो बस
इतना है कि
कम से कम मुझे यह आग
बचाती हैं
अपनी गर्माहट से
मैं जिन्दा हूँ
चिता से
चिंता तो मुझे मार ही डालती

काम आग है
आग ही मेरा काम
और
मैं भलीभांति जान गया हूँ
कि
इस आग का अस्तित्व बर्फ में छिपा हैं
इसलिए
ये सर्द हवायें मुझे सताती हुई नहीं लगती
क्योंकि
मैं इन्हें अब प्यार करता हूँ
और यह भी सच है
कि
बर्फ और आग के बीच ही मैं जिन्दा हूँ

एक चिता मेरे अपने की
देख रहा था
निहार रहा था
उस पवित्र आत्मा को जिसने मुझे जन्म दिया
मुझे लगा
वह आत्मा मुझे आशीर्वाद दे रही थी

बेटे, हरहाल में खुश रहना
चिता की वो लपटें मुझे झुलसा नहीं रही थी
बल्कि ममता का गर्म स्पर्श दें रही थी

मैं जान गया
एक सच-
सच उस भिखारी का
उसके बार-बार मिलने का
एक चिता जो मेरे लिए मेरी माँ की चिता थी
लेकिन
भिखारी के लिये अस्तित्व की वजह

मैं उसके सामने नतमस्तक हो गया
सभी चिताएं ममता का स्पर्श दे रहीं थी
इसलिये वह खुश था

मैं सोचने लगा
कि
भिखारी कौन है
वह जिसके पास कुछ नहीं,
फिर भी खुश हैं
या मैं
जिसके पास सब कुछ हैं
फिर भी खुश नहीं हूं।

✍️  डॉ सुधीर कुमार अरोड़ा
अध्यक्ष
अंग्रेजी विभाग
महाराजा हरिश्चन्द्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय
लाजपतनगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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