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शनिवार, 29 फ़रवरी 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार प्रदीप गुप्ता की कविता
भीतर का दानव भीड़ को दंगाइयों में बदल रहा है .......
लोग कहते हैं आदमी में देवत्व है
इसके बारे में तो मैं विश्वास पूर्वक नहीं बता सकता हूँलेकिन इन दिनों एक बात मुझे स्पष्ट हो चुकी है
पिछले कुछ वर्षों से
आदमी की नसों में धीरे धीरे
विभिन्न डिजिटल प्लेटफार्म के ज़रिए
नफ़रत का जो सुप्त ज़हर पहुँचाया जा रहा है
उसने जगा दिया है भीतर बैठे दानव को
यह दानव पहले ज़बान के ज़रिए बाहर निकलता है
चीखता है चिल्लाता है
सार्वजनिक विमर्श को घटिया बनाता है .
फिर धीरे धीरे भुजाओं पर भी सवार हो जाता है
और भोले भाले लोगों को भीड़ तंत्र में बदल देता है
एक ऐसी भीड़
जो पत्थर से लेकर पिस्टल और गन कुछ भी चला सकती है
शहर के शहर जला सकती है
बरसों के भाई-चारे को तार तार कर सकती है
किसी बेगुनाह आदमी की जान लेने को
जस्टिफ़ाई कर सकती है .
ज़रूरत है इस दानव से निपटने की ,
नहीं तो सभ्य समाज
आदिम-युग में वापस चला जाएगा
अभी भी थोड़ा समय बचा है
रोकना ही होगा इस दानव को .
**प्रदीप गुप्ता , मुंबई
मोबाइल फोन नंबर 9920205614
( श्री प्रदीप गुप्ता मूल रूप से मुरादाबाद के हैं वर्तमान में मुंबई में निवास कर रहे हैं )
मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कविता -- रोटी ...
वह देखती है
मेरी तरफ,
उम्मीदों से।
क्योंकि मैं....
लिख सकती हूँ,
रोटी।
उसने सुनी थी,
भूख पर....
मेरी शानदार रचना।
उसे कुछ समझ नहीं आया,
सिवाय रोटी के।
तब से उसकी निगाह,
पीछा करती है,
हर वक़्त मेरा।
पता नहीं क्यों,
उसे लगने लगा है,
रोटी पर लिखने वाले,
रोटी ला भी सकते हैं।
पर उसे नहीं पता
मैं खुद भी ढूँढ रही हूँ
रोटी....
इस तरह
अपने भूखे मन के लिए।
पर उसे देखकर
मेरा मन भर आया है।
अब नहीं करता मन,
रोटी पर लिखने का।
मैं असहाय हो गयी हूँ,
शब्दों की पोटली से,
कविता तो निकल आयेगी,
पर रोटी.......
✍हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी का गीत -- तुम मंदिर का फर्श बिछाओ हम मस्जिद की नींव धरेंगे...
तुम मंदिर का फर्श बिछाओ
हम मस्ज़िद की नींव धरेंगे
ईश्वर अल्लाह को पाने का
पावनतम संकल्प करेंगे।
**********
श्रद्धा बहुत बड़ी होती है
मानव बड़ा नहीं होता है
बिन श्रद्धा के इस धरती पर
कोई खड़ा नहीं होता है
भव्य बनाने हर देवालय
मन में सुंदर भाव भरेंगे।
तुम मंदिर का,,,,,,,,,,,,,,,,,,
इसमें रोज़ लड़ाई कैसी
सारा जग उसका ही तो है
हम सबका सारा सरमाया
ले - देकर उसका ही तो है
प्यार - प्रीत से मंदिर-मस्जिद
मिल-जुल कर तामीर करेंगे।
तुम मंदिर का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
एक न हो पाए सदियों से
इसमें भी ग़लती किसकी है?
अलग-अलग धर्मों की चक्की
में मानवता ही पिसती है
सर्व - धर्म समभाव बढ़ाने
का हर पल अभ्यास करेंगे।
तुम मंदिर का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
उन्मादी हो हमने उसको
न्यायालय में भेज दिया है
देकर अजब दलीलें हमने
खुद पर भी संदेह किया है
अज्ञानी बनकर अंधों की
नगरी में क्यों पाँव धरेंगे?
तुम मंदिर का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
हर दिल में ईश्वर बसता है
इसमें ज़रा झाँक कर देखें
नेक राह पर चलकर अपनी
कुटिल बुद्धि के रथ को रोकें
अहम वहम की इस खाई में
क्योंकर हम हरबार गिरेंगे?
तुम मंदिर का----------------
**वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
62-ए, बुद्धि विहार सेक्टर 7 ए
निकट वैदिक वानप्रस्थ आश्रम
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर - 9719275453
हम मस्ज़िद की नींव धरेंगे
ईश्वर अल्लाह को पाने का
पावनतम संकल्प करेंगे।
**********
श्रद्धा बहुत बड़ी होती है
मानव बड़ा नहीं होता है
बिन श्रद्धा के इस धरती पर
कोई खड़ा नहीं होता है
भव्य बनाने हर देवालय
मन में सुंदर भाव भरेंगे।
तुम मंदिर का,,,,,,,,,,,,,,,,,,
इसमें रोज़ लड़ाई कैसी
सारा जग उसका ही तो है
हम सबका सारा सरमाया
ले - देकर उसका ही तो है
प्यार - प्रीत से मंदिर-मस्जिद
मिल-जुल कर तामीर करेंगे।
तुम मंदिर का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
एक न हो पाए सदियों से
इसमें भी ग़लती किसकी है?
अलग-अलग धर्मों की चक्की
में मानवता ही पिसती है
सर्व - धर्म समभाव बढ़ाने
का हर पल अभ्यास करेंगे।
तुम मंदिर का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
उन्मादी हो हमने उसको
न्यायालय में भेज दिया है
देकर अजब दलीलें हमने
खुद पर भी संदेह किया है
अज्ञानी बनकर अंधों की
नगरी में क्यों पाँव धरेंगे?
तुम मंदिर का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
हर दिल में ईश्वर बसता है
इसमें ज़रा झाँक कर देखें
नेक राह पर चलकर अपनी
कुटिल बुद्धि के रथ को रोकें
अहम वहम की इस खाई में
क्योंकर हम हरबार गिरेंगे?
तुम मंदिर का----------------
**वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
62-ए, बुद्धि विहार सेक्टर 7 ए
निकट वैदिक वानप्रस्थ आश्रम
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर - 9719275453
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी की कविता -- मुझे अंधा हो जाना चाहिए..
तुम सवर्ण हो, अवर्ण हो तुम
तुम अर्जुन हो, कर्ण हो तुम
तुम ऊँच हो , नीच हो तुम
तुम आँगन हो, दहलीज हो तुम
तुम बहु, अल्पसंख्यक हो तुम
तुम धर्म हो, मज़हब हो तुम
कहने को तो,
नारों में भाई - भाई हो तुम
पर असलियत में,
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई हो तुम।
और न जाने
क्या - क्या तुम हो,
सही मायने में
कुत्ते की दुम हो ।
तुम कहते हो कि तुम
ग़रीब, असहाय और नंगे हो,
यह अलग बात है कि तुम
सिर्फ लड़ाई, झगड़े और दंगे हो।
तुम कहते हो कि तुम
जाँत-पाँत से
ऊपर उठ कर सुलझे हुए हो ,
ये अलग बात है कि तुम
आज तक भी
मन्दिर, मस्जिद, चर्च और
गुरुद्वारे में उलझे हुए हो ।
तुम्हारी करतूतों ने
देश में
दुखड़े ही दुखड़े भर दिये हैं ,
तुम अपने आप को
दूसरों से तो जोड़ते क्या
तुमने अपनी-अपनी
आस्थाओं के भी टुकड़े कर लिए हैं ।
फिर भी कहतो हो कि
तुम हरेक पल
देश और समाज की
प्रगति की फ़रियाद में हो ,
ये अलग बात है कि तुम
सबकुछ पहले हो
बस,हिन्दुस्तानी बाद में हो ।
इसीलिए तो
तुम हो नहीं पाये
इंसान से आदमी
आदमी से इंसान ,
ईमान से धर्म
और धर्म से ईमान ।
तुम चाहते हो
इस महावृक्ष की
शाख-शाख को काटो ,
फिर मनचाहे अनुपात में
आपस में बाँटो ।
क़द्र करने लायक तुम्हारे हौसले हैं ,
काटो, बाँटो पर सोचो
महावृक्ष की इन
शाखों पर कुछ और भी घोंसले हैं ।
जिनमें
कल फिर निर्माण यात्रा पर
निकल पड़ने वाले
सुस्ता रहे होंगे, सो रहे होंगे ,
सोते हुए भी रो रहे होंगे ।
सँजोए हुए केवल यही डर ,
उनकी ज़िंदगी भी
न जाने कब
हो जाए किसी बम का सफ़र ।
क्या कहा ?
तुम्हें कोई याद नहीं
गाँधी, सुभाष
ऊधमसिंह या अब्दुल हमीद,
तुम्हारी करतूतों पर
शर्मिंदा होते
दिखाई नहीं देते, तुमको
अपने देश के
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और शहीद ।
तो सुनो, मैं कहता हूँ--
मुझे अंधा हो जाना चाहिए
यदि अपने देश में
रहने वाले सब
मुझे अपने दिखाई नहीं देते ,
बेशक,
मेरा गला काटकर
शहर के
किसी ख़ास चौराहे पर
लटका देना चाहिए
यदि मुझे
भारत में रहकर
भारत के
सपने दिखाई नहीं देते ।।
## डॉ मक्खन मुरादाबादी
झ-28, नवीन नगर, कांठ रोड
मुरादाबाद- 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9319086769
मुरादाबाद की साहित्यकार अस्मिता पाठक की कविता - सच मत बोलो ...
मीडिया तुम बोलो,
माइक्रोफोन को हाथ में पकड़ो
और ऊँची आवाज़ में छोटे-मोटे मामलों पर
बहस करो....
उनके नीचे
....हालात खुद ब खुद दब जाएंगे।
क्योंकि आम लोग तुम पर
विश्वास करते हैं
इसलिए कहो
कहो कि सब अच्छा है,
कहो कि रात हो रही है
और सुबह सूरज दीख रहा है।
कि तापमान कम है तो क्या हुआ,
कंबल, हीटर, छत सबके पास है।
मगर;
मगर, मत कहना जो सच है
मत कहना कि कोई मुश्किल में है
और कोई रोज़ मर रहा है
वरना जो लोग तुम पर विश्वास करते हैं
वे लड़ने लगेंगे,
वे उस भगवान से लड़ने लगेंगे
जिसने तुम्हें खरीद लिया था
इसलिए तुम सब बोलो
मगर,
सच मत बोलो...
**अस्मिता पाठक
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
माइक्रोफोन को हाथ में पकड़ो
और ऊँची आवाज़ में छोटे-मोटे मामलों पर
बहस करो....
उनके नीचे
....हालात खुद ब खुद दब जाएंगे।
क्योंकि आम लोग तुम पर
विश्वास करते हैं
इसलिए कहो
कहो कि सब अच्छा है,
कहो कि रात हो रही है
और सुबह सूरज दीख रहा है।
कि तापमान कम है तो क्या हुआ,
कंबल, हीटर, छत सबके पास है।
मगर;
मगर, मत कहना जो सच है
मत कहना कि कोई मुश्किल में है
और कोई रोज़ मर रहा है
वरना जो लोग तुम पर विश्वास करते हैं
वे लड़ने लगेंगे,
वे उस भगवान से लड़ने लगेंगे
जिसने तुम्हें खरीद लिया था
इसलिए तुम सब बोलो
मगर,
सच मत बोलो...
**अस्मिता पाठक
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ राकेश चक्र की कविता -- मेरे देश में ....
ये है मेरा देश
यहाँ है मुक्त लोकतंत्र
बेलौश आजादी का
राह चलते
कोई भी कस सकता है तंज
मेरी दुलारी बेटियों पर
आबरू पर प्रहार
बलात्कार
है कर सकता
आग ही आग से सत्कार
सदा खामोश हैं रहते
देशद्रोही गद्दार
है खा सकता
कोई भी
कमीशन दलाली
सफेद झक्क कपड़े पहनकर
महिमामण्डित होकर
खुले आम ढिढोरा पीटता
कि मैं हूँ दूध से धुला
ईमानदार आदमी
है कहता रहा कब से
मुझे वोट दो
कुर्सी दो
स्वयं का इंसाफ करने के लिए
यहाँ है जला सकता
सफाई करके कूड़ा-कचरा
कूड़े के पहाड़
ई कचरा
या कुछ भी
यहाँ कोई भी
है चला सकता
लापरवाही से वाहन
है बजा सकता
तेज आवाज का हॉर्न
या डीजे कहीं भी
कभी भी
दाग सकता है बम -पटाखा
पर्व त्यौहारों
क्रिकेट मैच के जीतने पर
विदेशी साल के आगमन पर
या भ्रष्टाचार की विजय पर भी
सीना चौड़ा करके
यहाँ मूत और है शौच
कर सकता कहीं भी
खुले में
सड़कों और रेल पटरियों के किनारे
है डाल सकता
कूड़ा कचरा
यहाँ कोई भी
करा सकता है दंगा-फसाद
तिल का पहाड़
मजहब का
झंडा उठाए
अर्थ का अनर्थ करके
यहाँ कोई भी
लूट खसोट कर है सकता
नकली सामान
और कंपनी बनाकर
व्यापार का अनर्गल प्रचार कर
कभी भी
कहीं भी
यहाँ कोई भी है काट सकता
आदमी
आदमी की जेब
हरियाली के रखवाले पेड़ों को
कहीं भी
कैसे भी
सड़कों के चौड़ीकरण
के नाम पर
जला सकता है जंगल
खेतों में पराली
धूल झोंककर आँखों में
यहाँ कानून तोड़ है सकता
कोई भी
कहीं भी
कैसे भी
क्योंकि है पूर्ण आजादी
मेरे देश में
कहाँ मिटा भ्रष्टाचार
सभी चाहते संविधान प्रदत्त
अधिकार ही अधिकार
कर्तव्यों पर प्रहार
बस दलाली
कमीशन खोरी
अनाचार
पापाचार
बेटियों पर बलात्कार
मेरे देश में
बढ़ती रही
भीड़ ही भीड़ हर जगह
प्रदूषण
खरदूषण
शोषण
शोर शराबा चीत्कार
महंगाई
नोट की छपाई
कूड़ा कचरा
और न जाने क्या-क्या
रहे पीठ थपथपाते
सफेदपोश
केवल वोट की तलाश में
मेरे देश में
सत्तर वर्षों से
** डॉ राकेश चक्र
90 बी, शिवपुरी
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456201857
Rakeshchakra00@gmail.com
यहाँ है मुक्त लोकतंत्र
बेलौश आजादी का
राह चलते
कोई भी कस सकता है तंज
मेरी दुलारी बेटियों पर
आबरू पर प्रहार
बलात्कार
है कर सकता
आग ही आग से सत्कार
सदा खामोश हैं रहते
देशद्रोही गद्दार
है खा सकता
कोई भी
कमीशन दलाली
सफेद झक्क कपड़े पहनकर
महिमामण्डित होकर
खुले आम ढिढोरा पीटता
कि मैं हूँ दूध से धुला
ईमानदार आदमी
है कहता रहा कब से
मुझे वोट दो
कुर्सी दो
स्वयं का इंसाफ करने के लिए
यहाँ है जला सकता
सफाई करके कूड़ा-कचरा
कूड़े के पहाड़
ई कचरा
या कुछ भी
यहाँ कोई भी
है चला सकता
लापरवाही से वाहन
है बजा सकता
तेज आवाज का हॉर्न
या डीजे कहीं भी
कभी भी
दाग सकता है बम -पटाखा
पर्व त्यौहारों
क्रिकेट मैच के जीतने पर
विदेशी साल के आगमन पर
या भ्रष्टाचार की विजय पर भी
सीना चौड़ा करके
यहाँ मूत और है शौच
कर सकता कहीं भी
खुले में
सड़कों और रेल पटरियों के किनारे
है डाल सकता
कूड़ा कचरा
यहाँ कोई भी
करा सकता है दंगा-फसाद
तिल का पहाड़
मजहब का
झंडा उठाए
अर्थ का अनर्थ करके
यहाँ कोई भी
लूट खसोट कर है सकता
नकली सामान
और कंपनी बनाकर
व्यापार का अनर्गल प्रचार कर
कभी भी
कहीं भी
यहाँ कोई भी है काट सकता
आदमी
आदमी की जेब
हरियाली के रखवाले पेड़ों को
कहीं भी
कैसे भी
सड़कों के चौड़ीकरण
के नाम पर
जला सकता है जंगल
खेतों में पराली
धूल झोंककर आँखों में
यहाँ कानून तोड़ है सकता
कोई भी
कहीं भी
कैसे भी
क्योंकि है पूर्ण आजादी
मेरे देश में
कहाँ मिटा भ्रष्टाचार
सभी चाहते संविधान प्रदत्त
अधिकार ही अधिकार
कर्तव्यों पर प्रहार
बस दलाली
कमीशन खोरी
अनाचार
पापाचार
बेटियों पर बलात्कार
मेरे देश में
बढ़ती रही
भीड़ ही भीड़ हर जगह
प्रदूषण
खरदूषण
शोषण
शोर शराबा चीत्कार
महंगाई
नोट की छपाई
कूड़ा कचरा
और न जाने क्या-क्या
रहे पीठ थपथपाते
सफेदपोश
केवल वोट की तलाश में
मेरे देश में
सत्तर वर्षों से
** डॉ राकेश चक्र
90 बी, शिवपुरी
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456201857
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शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020
गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार( वर्तमान में आगरा निवासी ) ए टी जाकिर की कविता ---इन्होंने की बेईमानी है .....
य गुल बेचते हैं, चमन बेचते हैं,
औ ज़रूरत पड़े तो कफ़न बेचते हैं |
ये कुरसी की ख़ातिर अमन बेचते हैं,
मेरा हिन्द – मेरा वतन बेचते हैं |
--तो अपने वतन के लोगों को इक बात बतानी है !
सर से अब गुज़रा पानी है,
इन्होंने की बेईमानी है |
सोने की चिड़िया भारत की अब इतनी पहचान है,
पर्वत से सागर तक भूखा – नंगा हिन्दुस्तान है |
रिश्वत का बाज़ार गर्म, और हाय ! दलाली शान है,
सुनकर गाली सा लगता है, यहाँ सुखी इंसान है |
--तो बात तरक्क़ी की करना एक ग़लतबयानी है !
बात हमको कह्लानी है,
इन्होंने की बेईमानी है |
बरसों से खाते आये हैं, पेट नहीं पर भर पाया,
पहले हिन्दू – मुस्लिम बांटे, फिर सिखों को उकसाया |
हक़ इनके हिस्से में आये, फ़र्ज़ है जनता ने पाया,
इस पर भी कुरसी डोली तो, बेशुमार को मरवाया |
--तो ऐसा लगता है कि होनी ख़तम कहानी है !
कि अब इक आँधी आनी है |
इन्होंने की बेईमानी है |
जब तक तुम बांटे जाओगे गीता और क़ुरान में,
तब तक बांटेंगे तुमको ये दीन – मज़हब, ईमान में |
कभी लड़ायेंगे तुमको ये नक्सल के मैदान में,
मोहरा कभी बनायेंगे तुमको ये ख़ालिस्तान में |
--तो छोटी सी इक बात मुझे तुमसे मनवानी है !
कि तुममें एकता आनी है,
तो उनकी कुरसी जानी है,
जिन्होंने की बेईमानी है |
✍️ ए. टी. ज़ाकिर
फ्लैट नम्बर 43, सेकेंड फ्लोर
पंचवटी, पार्श्वनाथ कालोनी
ताजनगरी फेस 2, फतेहाबाद रोड
आगरा-282 001
मोबाइल फोन नंबर. 9760613902,
847 695 4471.
Mail- atzakir@gmail.com
✍️ ए. टी. ज़ाकिर
फ्लैट नम्बर 43, सेकेंड फ्लोर
पंचवटी, पार्श्वनाथ कालोनी
ताजनगरी फेस 2, फतेहाबाद रोड
आगरा-282 001
मोबाइल फोन नंबर. 9760613902,
847 695 4471.
Mail- atzakir@gmail.com
मुरादाबाद के साहित्यकार अखिलेश वर्मा की लघुकथा .....
#ज़हर
"क्या करें ...
हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ गया है ...यही हाल रहा
तो पूरा सर्प समाज कीड़ों के नाम से जाना जाएगा ।". सर्पो की सभा में कोबरा साँप उठकर बोला ..
"सत्य है सत्य है ।"..सभी बूढ़े और जहरीले सांपों ने एक साथ समर्थन किया ..
"हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा ! पर क्यूँ ?".. नन्हा साँप आश्चर्यचकित होकर बोला.
"अरे बेटा ! क्या बताएँ तुम्हें !! आज आदमी हम साँपों से कहीं ज्यादा ज़हरीला हो गया है . उसकी ज़बान में ही नहीं .. शरीर में ही नहीं .. ख़ून में ही नहीं ... उसकी नीयत में भी ज़हर भरा हुआ है .. पैसे कमाने के लिए षडयंत्र और झूठ उसके हथियार बने हुए हैं ... धन के लालच में हर वस्तु में मिलावट ! ज़हर ही खाता है .. ज़हर ही उगलता है. ऐसे में हमारा ज़हर बेकार है हम कीड़े बनकर रह जाएँगे ।" ... मोटे अजगर ने नन्हें साँप को समझाते हुए कहा ।
- अखिलेश वर्मा
मुरादाबाद
"क्या करें ...
हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ गया है ...यही हाल रहा
तो पूरा सर्प समाज कीड़ों के नाम से जाना जाएगा ।". सर्पो की सभा में कोबरा साँप उठकर बोला ..
"सत्य है सत्य है ।"..सभी बूढ़े और जहरीले सांपों ने एक साथ समर्थन किया ..
"हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा ! पर क्यूँ ?".. नन्हा साँप आश्चर्यचकित होकर बोला.
"अरे बेटा ! क्या बताएँ तुम्हें !! आज आदमी हम साँपों से कहीं ज्यादा ज़हरीला हो गया है . उसकी ज़बान में ही नहीं .. शरीर में ही नहीं .. ख़ून में ही नहीं ... उसकी नीयत में भी ज़हर भरा हुआ है .. पैसे कमाने के लिए षडयंत्र और झूठ उसके हथियार बने हुए हैं ... धन के लालच में हर वस्तु में मिलावट ! ज़हर ही खाता है .. ज़हर ही उगलता है. ऐसे में हमारा ज़हर बेकार है हम कीड़े बनकर रह जाएँगे ।" ... मोटे अजगर ने नन्हें साँप को समझाते हुए कहा ।
- अखिलेश वर्मा
मुरादाबाद
मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की कहानी ...
#मज़बूरी
नन्ही रौनक गुब्बारे को देख कर मचल उठी, "अम्मा अम्मा हमें भी गुब्बारा दिलाओ ना.. दिलाओ ना अम्मा, हम तो लेंगे वो लाल बाला, दिलाओ ना अम्मा।"
"भइया कितने का है ?" कांता ने गुब्बारे वाले से पूछा।
"दस रुपए का है बहन जी, ले लीजिए बच्ची का दिल बहल जाएगा।" गुब्बारे वाले ने आशा भरी निगाह से देखकर कहा।
" द..स रुपया", कांता के मुंह से जैसे उसकी निराश उसकी मजबूरी निकली हो।
"रहने दो भय्या बाद में दिला दूंगी , अभी (पैसे,, )खुल्ले नहीं है भय्या", वह अपने चेहरे के भावों को छिपाती हुई बोली।
"चल रौनक हमें तेरे पापा की दवाई भी लेनी है ना",
कांता रौनक का हाथ पकड़े लगभग घसीटते हुए चल पड़ी।
कांता एक पच्चीस छब्बीस वर्ष की आकर्षक महिला है, लेकिन शायद गरीबी के चलते उसका रूप कुछ दब सा गया है।
वह चलते चलते सोचने लगती है :- सात साल पहले उसकी शादी हुई थी, साधारण से समारोह में मोहन के साथ।
गरीबी के चलते उसके पिता उसके लिए बहुत अच्छा घर-वर तो नहीं ढूंढ पाए फिर भी अपनी हैसियत से बढ़कर उन्होंने मोहन से इसकी शादी की।
मोहन गांव का सीधा सादा नौजवान था, सांवला रंग, मजबूत बदन, आकर्षक चेहरा, ऊपर से गोरी, छरहरी, अप्सरा सी कांता से उसे प्रेम भी बहुत था।
कांता खुश थी अपनी किस्मत पर।
मोहन का गांव में पक्का मकान था, जो उसने अपनी मेहनत की कमाई से बनाया था।
कांता अपने जीवन में बहुत खुश थी, मोहन कारखाने में काम करता था और इतने पैसे कमा लेता था कि उनकी जिंदगी आराम से चल रही थी।
शादी के दो साल के अंदर ही उनके घर 'रौनक' ने जन्म लिया, दोनों ने बहुत उत्सव मनाया मिठाइयां बांटी।
जिंदगी बहुत अच्छी चल रही थी लेकिन शायद उनके सुख को किसी की नज़र लग गयी।
रौनक का पांचवा जन्मदिन था, मोहन ने ठेकेदार से बता दिया था कि वह आज जल्दी जाएगा, लेकिन ठेकेदार ने उसे काम का ढेर बता कर कहा, "इसे खत्म करके चले जाना बाकी तुम देखलो।"
कुछ काम का दबाब, कुछ घर जाने की जल्दी, इसी हड़बड़ाहट में मोहन चूक कर गया और मशीन में माल की जगह उसके हाथ चले गए.....।
जब अस्पताल में उसे होश आया वह अपने दोनों हाथ कोहनी से नीचे, खो चुका था।
कांता का रो रोकर बुरा हाल था, ठेकेदार उसकी मरहम पट्टी करा कर पांच हजार रुपए और आठ सौ का उसका हिसाब देकर कर्तव्य मुक्त हो गया ।
मोहन के हाथों में सेप्टिक हो गया था डॉक्टरों ने कहा कि मोहन को बचाना मुश्किल है।
सारी जमापूंजी, अपने सारे जेवर जो मोहन ने बड़े प्यार से इसके लिए बनाए थे और मकान बेचकर मिले सारे पैसे लगाकर कांता ने मोहन की जिंदगी तो खरीद ली, लेकिन उसके पास रहने और खाने को कुछ नहीं बचा।
हार कर कांता ने शहर में किराए से एक झोंपड़ी ली है, जहां वह लोगों के घरों में साफ सफाई का काम करती है।
रौनक को वह ज्यादातर अपने साथ ही रखती है।
उसकी कमाई का ज़्यादातर हिस्सा तो मोहन की दवाइयों पर ही खर्च हो जाता है और खाने कपड़े की उसकी चिंता हमेशा बनी रहती है।
यूँ तो शहर में कई लोगों ने उसकी खूबसूरती को देखकर उसकी मजबूरी का फायदा उठाने की कोशिशें की, उसे बड़ा लालच भी दिया लेकिन उसने कभी अपनी मज़बूरी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया, उसने कभी अपनी मजबूरी को जरूरत नहीं बनाया।
वह अपनी जिंदगी से समझौता कर चुकी है लेकिन कभी अपनी मज़बूरी से समझौता नहीं किया उसने।
आज भी अपनी मजबूरी के चलते वह रौनक को गुब्बारा नहीं दिला पाई जिसका पछतावा आँसू बनकर उसकी आंख से ढलक गया जिसे उसने सफाई से रौनक की नज़र बचाकर पोंछ दिया...।
©नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा
जिला मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
नन्ही रौनक गुब्बारे को देख कर मचल उठी, "अम्मा अम्मा हमें भी गुब्बारा दिलाओ ना.. दिलाओ ना अम्मा, हम तो लेंगे वो लाल बाला, दिलाओ ना अम्मा।"
"भइया कितने का है ?" कांता ने गुब्बारे वाले से पूछा।
"दस रुपए का है बहन जी, ले लीजिए बच्ची का दिल बहल जाएगा।" गुब्बारे वाले ने आशा भरी निगाह से देखकर कहा।
" द..स रुपया", कांता के मुंह से जैसे उसकी निराश उसकी मजबूरी निकली हो।
"रहने दो भय्या बाद में दिला दूंगी , अभी (पैसे,, )खुल्ले नहीं है भय्या", वह अपने चेहरे के भावों को छिपाती हुई बोली।
"चल रौनक हमें तेरे पापा की दवाई भी लेनी है ना",
कांता रौनक का हाथ पकड़े लगभग घसीटते हुए चल पड़ी।
कांता एक पच्चीस छब्बीस वर्ष की आकर्षक महिला है, लेकिन शायद गरीबी के चलते उसका रूप कुछ दब सा गया है।
वह चलते चलते सोचने लगती है :- सात साल पहले उसकी शादी हुई थी, साधारण से समारोह में मोहन के साथ।
गरीबी के चलते उसके पिता उसके लिए बहुत अच्छा घर-वर तो नहीं ढूंढ पाए फिर भी अपनी हैसियत से बढ़कर उन्होंने मोहन से इसकी शादी की।
मोहन गांव का सीधा सादा नौजवान था, सांवला रंग, मजबूत बदन, आकर्षक चेहरा, ऊपर से गोरी, छरहरी, अप्सरा सी कांता से उसे प्रेम भी बहुत था।
कांता खुश थी अपनी किस्मत पर।
मोहन का गांव में पक्का मकान था, जो उसने अपनी मेहनत की कमाई से बनाया था।
कांता अपने जीवन में बहुत खुश थी, मोहन कारखाने में काम करता था और इतने पैसे कमा लेता था कि उनकी जिंदगी आराम से चल रही थी।
शादी के दो साल के अंदर ही उनके घर 'रौनक' ने जन्म लिया, दोनों ने बहुत उत्सव मनाया मिठाइयां बांटी।
जिंदगी बहुत अच्छी चल रही थी लेकिन शायद उनके सुख को किसी की नज़र लग गयी।
रौनक का पांचवा जन्मदिन था, मोहन ने ठेकेदार से बता दिया था कि वह आज जल्दी जाएगा, लेकिन ठेकेदार ने उसे काम का ढेर बता कर कहा, "इसे खत्म करके चले जाना बाकी तुम देखलो।"
कुछ काम का दबाब, कुछ घर जाने की जल्दी, इसी हड़बड़ाहट में मोहन चूक कर गया और मशीन में माल की जगह उसके हाथ चले गए.....।
जब अस्पताल में उसे होश आया वह अपने दोनों हाथ कोहनी से नीचे, खो चुका था।
कांता का रो रोकर बुरा हाल था, ठेकेदार उसकी मरहम पट्टी करा कर पांच हजार रुपए और आठ सौ का उसका हिसाब देकर कर्तव्य मुक्त हो गया ।
मोहन के हाथों में सेप्टिक हो गया था डॉक्टरों ने कहा कि मोहन को बचाना मुश्किल है।
सारी जमापूंजी, अपने सारे जेवर जो मोहन ने बड़े प्यार से इसके लिए बनाए थे और मकान बेचकर मिले सारे पैसे लगाकर कांता ने मोहन की जिंदगी तो खरीद ली, लेकिन उसके पास रहने और खाने को कुछ नहीं बचा।
हार कर कांता ने शहर में किराए से एक झोंपड़ी ली है, जहां वह लोगों के घरों में साफ सफाई का काम करती है।
रौनक को वह ज्यादातर अपने साथ ही रखती है।
उसकी कमाई का ज़्यादातर हिस्सा तो मोहन की दवाइयों पर ही खर्च हो जाता है और खाने कपड़े की उसकी चिंता हमेशा बनी रहती है।
यूँ तो शहर में कई लोगों ने उसकी खूबसूरती को देखकर उसकी मजबूरी का फायदा उठाने की कोशिशें की, उसे बड़ा लालच भी दिया लेकिन उसने कभी अपनी मज़बूरी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया, उसने कभी अपनी मजबूरी को जरूरत नहीं बनाया।
वह अपनी जिंदगी से समझौता कर चुकी है लेकिन कभी अपनी मज़बूरी से समझौता नहीं किया उसने।
आज भी अपनी मजबूरी के चलते वह रौनक को गुब्बारा नहीं दिला पाई जिसका पछतावा आँसू बनकर उसकी आंख से ढलक गया जिसे उसने सफाई से रौनक की नज़र बचाकर पोंछ दिया...।
©नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा
जिला मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज कुमार मनु की लघुकथा
*दांव-पेंच*
किसी गाँव में एक दिन कुश्ती स्पर्धा का आयोजन किया गया । हर साल की तरह इस साल भी दूर -दूर से बड़े- बड़े पहलवान आये। उन पहलवानों में एक पहलवान ऐसा भी था, जिसे हराना सब के बस की बात नहीं थी। जाने-माने पहलवान भी उसके सामने ज्यादा देर टिक नहीं पाते थे।
स्पर्धा शुरू होने से पहले मुखिया जी आये और बोले , ” भाइयों , इस वर्ष के विजेता को हम 3 लाख रुपये इनाम में देंगे। “
इनामी राशि बड़ी थी , पहलवान और भी जोश में भर गए और मुकाबले के लिए तैयार हो गए।कुश्ती आरम्भ हुई और वही पहलवान सभी को बारी-बारी से चित करता रहा । जब हट्टे-कट्टे पहलवान भी उसके सामने टिक न पाये तो उसका आत्म-विश्वास और भी बढ़ गया और उसने वहाँ मौजूद दर्शकों को भी चुनौती दे डाली – " है कोई माई का लाल जो मेरे सामने खड़े होने की भी हिम्मत करे !! … "
वहीं खड़ा एक दुबला पतला व्यक्ति यह कुश्ती देख रहा था, पहलवान की चुनौती सुन उसने मैदान में उतरने का निर्णय लिया,और पहलवान के सामने जा कर खड़ा हो गया।
यह देख वह पहलवान उस पर हँसने लग गया और उसके पास जाकर कहा, तू मुझसे लड़ेगा…होश में तो है ना?
तब उस दुबले पतले व्यक्ति ने चतुराई से काम लिया और उस पहलवान के कान मे कहा, “अरे पहलवान जी मैं कहाँ आपके सामने टिक पाऊंगा,आप ये कुश्ती हार जाओ मैं आपको ईनाम के सारे पैसे तो दूँगा ही और साथ में 3लाख रुपये और दूँगा,आप कल मेरे घर आकर ले जाना। आपका क्या है , सब जानते हैं कि आप कितने महान हैं , एक बार हारने से आपकी ख्याति कम थोड़े ही हो जायेगी…”
कुश्ती शुरू होती है ,पहलवान कुछ देर लड़ने का नाटक करता है और फिर हार जाता है। यह देख सभी लोग उसकी खिल्ली उड़ाने लगते हैं और उसे घोर निंदा से गुजरना पड़ता है।
अगले दिन वह पहलवान शर्त के पैसे लेने उस दुबले व्यक्ति के घर जाता है,और 6लाख रुपये माँगता है.
तब वह दुबला व्यक्ति बोलता है , ''भाई किस बात के पैसे?"
“अरे वही जो तुमने मैदान में मुझसे देने का वादा किया था।", पहलवान आश्चर्य से देखते हुए कहता है।
दुबला व्यक्ति हँसते हुए बोला “वह तो मैदान की बात थी,जहाँ तुम अपने दाँव-पेंच लगा रहे थे और मैंने अपना… पर इस बार मेरे दांव-पेंच तुम पर भारी पड़े और मैं जीत गया। ''
** मनोज कुमार मनु
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
किसी गाँव में एक दिन कुश्ती स्पर्धा का आयोजन किया गया । हर साल की तरह इस साल भी दूर -दूर से बड़े- बड़े पहलवान आये। उन पहलवानों में एक पहलवान ऐसा भी था, जिसे हराना सब के बस की बात नहीं थी। जाने-माने पहलवान भी उसके सामने ज्यादा देर टिक नहीं पाते थे।
स्पर्धा शुरू होने से पहले मुखिया जी आये और बोले , ” भाइयों , इस वर्ष के विजेता को हम 3 लाख रुपये इनाम में देंगे। “
इनामी राशि बड़ी थी , पहलवान और भी जोश में भर गए और मुकाबले के लिए तैयार हो गए।कुश्ती आरम्भ हुई और वही पहलवान सभी को बारी-बारी से चित करता रहा । जब हट्टे-कट्टे पहलवान भी उसके सामने टिक न पाये तो उसका आत्म-विश्वास और भी बढ़ गया और उसने वहाँ मौजूद दर्शकों को भी चुनौती दे डाली – " है कोई माई का लाल जो मेरे सामने खड़े होने की भी हिम्मत करे !! … "
वहीं खड़ा एक दुबला पतला व्यक्ति यह कुश्ती देख रहा था, पहलवान की चुनौती सुन उसने मैदान में उतरने का निर्णय लिया,और पहलवान के सामने जा कर खड़ा हो गया।
यह देख वह पहलवान उस पर हँसने लग गया और उसके पास जाकर कहा, तू मुझसे लड़ेगा…होश में तो है ना?
तब उस दुबले पतले व्यक्ति ने चतुराई से काम लिया और उस पहलवान के कान मे कहा, “अरे पहलवान जी मैं कहाँ आपके सामने टिक पाऊंगा,आप ये कुश्ती हार जाओ मैं आपको ईनाम के सारे पैसे तो दूँगा ही और साथ में 3लाख रुपये और दूँगा,आप कल मेरे घर आकर ले जाना। आपका क्या है , सब जानते हैं कि आप कितने महान हैं , एक बार हारने से आपकी ख्याति कम थोड़े ही हो जायेगी…”
कुश्ती शुरू होती है ,पहलवान कुछ देर लड़ने का नाटक करता है और फिर हार जाता है। यह देख सभी लोग उसकी खिल्ली उड़ाने लगते हैं और उसे घोर निंदा से गुजरना पड़ता है।
अगले दिन वह पहलवान शर्त के पैसे लेने उस दुबले व्यक्ति के घर जाता है,और 6लाख रुपये माँगता है.
तब वह दुबला व्यक्ति बोलता है , ''भाई किस बात के पैसे?"
“अरे वही जो तुमने मैदान में मुझसे देने का वादा किया था।", पहलवान आश्चर्य से देखते हुए कहता है।
दुबला व्यक्ति हँसते हुए बोला “वह तो मैदान की बात थी,जहाँ तुम अपने दाँव-पेंच लगा रहे थे और मैंने अपना… पर इस बार मेरे दांव-पेंच तुम पर भारी पड़े और मैं जीत गया। ''
** मनोज कुमार मनु
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की लघुकथा ....
लूट..
सुपरररर...!.वाहहहहहह..!!क्या डिज़ाइनर पीस है..!!!
क्या प्राइज़ है इसका..?सुधा ने एक चाइनीज़ आइटम की ओर इशारा करते हुए,सेल्समैन से पूछा।"ओनली फोर थाउजेंड मैम..!"सेल्समैन ने बड़ी ही शालीनता से उत्तर दिया।"ओके,प्लीज़ पैक इट,फोर मी.."यह सुनकर सुधा के पति रमेश ,जो कि बहुत देर से चुप थे,थोड़ा फुसफुसाते हुए बोले,तुम्हें ये पीस ज्यादा महँगा नहीं लग रहा,कहीं ओर देखते हैं न..!" सुधा ने हलके से कोहनी मारते हुए रमेश से चुप रहने का इशारा किया,और बनावटी हँसी हँसते हुए सैल्समैन से बोली,"प्लीज़,हरी अप..हमें अभी और भी शापिंग करनी है....," "जी मैम"कहते हुए सैल्समैन ने आइटम पैक कर दिया।
"तुम हर जगह अपनी कंजूसी दिखाते रहते हो...कम से कम प्रेस्टीज का तो ध्यान रखा करो...."सुधा ,रमेश को लैक्चर देते हुए शापिंग माल की सीढिय़ों से नीचे उतरते हुए बोली।"ओके बाबा...जो करना है करो..,थोड़े दिये भी तो ले लो,दीवाली पूजन के लिये"रमेश ने थोड़ी तल्ख़ी से कहा।"ओहहहह...यार मैं तो भूल ही गयी थी..."कहते हुए सुधा शापिंग माल के बाहर दिये लेकर बैठी एक बूढ़ी महिला की ओर बढ़ी और उपेक्षा से पूछा ,"ये दीपक कैसे दिये?."
बूढ़ी बोली,"ले लो बेटा...पचास रुपये सैकड़ा ...लगा दूँगी"," "हैं...!! पचास रुपये सैकड़ा....!!.अरे लूट मचा रखी है तुम लोगो ने...!पचास रुपये सैकड़ा कहाँ हो रहे हैं ? चलो जी...आगे देखते हैं...।"
इसके पहले बूढ़ी कुछ कह पाती ,बड़बड़ाती हुई सुधा रमेश के साथ तेजी से बाज़ार की भीड़ में आगे बढ़ गयी....।
**मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
सुपरररर...!.वाहहहहहह..!!क्या डिज़ाइनर पीस है..!!!
क्या प्राइज़ है इसका..?सुधा ने एक चाइनीज़ आइटम की ओर इशारा करते हुए,सेल्समैन से पूछा।"ओनली फोर थाउजेंड मैम..!"सेल्समैन ने बड़ी ही शालीनता से उत्तर दिया।"ओके,प्लीज़ पैक इट,फोर मी.."यह सुनकर सुधा के पति रमेश ,जो कि बहुत देर से चुप थे,थोड़ा फुसफुसाते हुए बोले,तुम्हें ये पीस ज्यादा महँगा नहीं लग रहा,कहीं ओर देखते हैं न..!" सुधा ने हलके से कोहनी मारते हुए रमेश से चुप रहने का इशारा किया,और बनावटी हँसी हँसते हुए सैल्समैन से बोली,"प्लीज़,हरी अप..हमें अभी और भी शापिंग करनी है....," "जी मैम"कहते हुए सैल्समैन ने आइटम पैक कर दिया।
"तुम हर जगह अपनी कंजूसी दिखाते रहते हो...कम से कम प्रेस्टीज का तो ध्यान रखा करो...."सुधा ,रमेश को लैक्चर देते हुए शापिंग माल की सीढिय़ों से नीचे उतरते हुए बोली।"ओके बाबा...जो करना है करो..,थोड़े दिये भी तो ले लो,दीवाली पूजन के लिये"रमेश ने थोड़ी तल्ख़ी से कहा।"ओहहहह...यार मैं तो भूल ही गयी थी..."कहते हुए सुधा शापिंग माल के बाहर दिये लेकर बैठी एक बूढ़ी महिला की ओर बढ़ी और उपेक्षा से पूछा ,"ये दीपक कैसे दिये?."
बूढ़ी बोली,"ले लो बेटा...पचास रुपये सैकड़ा ...लगा दूँगी"," "हैं...!! पचास रुपये सैकड़ा....!!.अरे लूट मचा रखी है तुम लोगो ने...!पचास रुपये सैकड़ा कहाँ हो रहे हैं ? चलो जी...आगे देखते हैं...।"
इसके पहले बूढ़ी कुछ कह पाती ,बड़बड़ाती हुई सुधा रमेश के साथ तेजी से बाज़ार की भीड़ में आगे बढ़ गयी....।
**मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा
अभिशाप
--------------
उन्होंने अपने बेटे के विवाह पर बहुत मासूमियत से कहा था - "अरे, यह कोई दहेज थोड़े ही है। यह तो दो परिवारों के बीच बनने वाले आपसी सम्बंधों का शगुन है। इतना तो सभी करते हैं।"
आज उन्हीं की बेटी का विवाह है। वह गला फाड़-फाड़ कर फिर चिल्ला रहे हैं - "दहेज एक सामाजिक अभिशाप है, इसे जड़ से समाप्त करना ही होगा.
- राजीव 'प्रखर'
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
--------------
उन्होंने अपने बेटे के विवाह पर बहुत मासूमियत से कहा था - "अरे, यह कोई दहेज थोड़े ही है। यह तो दो परिवारों के बीच बनने वाले आपसी सम्बंधों का शगुन है। इतना तो सभी करते हैं।"
आज उन्हीं की बेटी का विवाह है। वह गला फाड़-फाड़ कर फिर चिल्ला रहे हैं - "दहेज एक सामाजिक अभिशाप है, इसे जड़ से समाप्त करना ही होगा.
- राजीव 'प्रखर'
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
बुधवार, 26 फ़रवरी 2020
मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हस्ताक्षर की ओर से 21 फरवरी 2020 को मिलन विहार स्थित सनातन धर्मशाला में दोहा गोष्ठी का अनूठा आयोजन किया गया। इस आयोजन में सर्वश्री अभिषेक रुहेला, अंकित कुमार अंक, राजीव प्रखर, मोनिका मासूम, मनोज मनु, हेमा तिवारी भट्ट, केपी सिंह सरल, योगेंद्र वर्मा व्योम, श्री कृष्ण शुक्ल, ओंकार सिंह, ओंकार सिंह विवेक, डॉ अजय अनुपम, रामदत्त द्विवेदी, शिशुपाल मधुकर, अशोक विश्नोई और माहेश्वर तिवारी ने अपने दोहों का पाठ किया ----
सोमवार, 24 फ़रवरी 2020
वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक रविवार को वाट्स एप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन होता है। रविवार 23 फरवरी 2020 को आयोजित 190 वें आयोजन में सर्व श्री योगेंद्र वर्मा व्योम, रवि प्रकाश, श्री कृष्ण शुक्ल, सन्तोष कुमार शुक्ल, राजीव प्रखर, मुजाहिद चौधरी, डॉ अलका अग्रवाल ,अशोक विद्रोही , मनोज मनु ने अपनी हस्तलिपि में रचनाएं साझा की ----
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की दो काव्य-कृतियों 'अर्चना की कुंडलियाँ' भाग-1' एवं 'अर्चना की कुंडलियाँ भाग-2' का रविवार 23 फरवरी 2020 को भव्य विमोचन
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता द्वारा रचित कुंडलियाँ संग्रह - 'अर्चना की कुंडलियाँ' (भाग-१ एवं भाग-२) का भव्य विमोचन-समारोह, साहित्यपीडिया के तत्वावधान में, आज स्वतंत्रता सेनानी भवन मुरादाबाद में आयोजित किया गया। डॉ० पंकज 'दर्पण' के संचालन में आयोजित इस समारोह का शुभारंभ मां सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। मां सरस्वती की वंदना मयंक शर्मा ने प्रस्तुत की।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध नवगीतकार यश भारती माहेश्वर तिवारी ने कहा -
"कुंडलियाँ काव्य का वह रूप है जो सदियों से लोगों के हृदय को लुभाता रहा है। वर्तमान समय में कुंडलियाँ छंद में रचना कर्म बहुत कम हो रहा है। ऐसे समय में डॉ अर्चना गुप्ता की कुंडलियों के दो संग्रह आना साहित्यिक रूप से तो महत्वपूर्ण हैं ही, कथ्य एवं विषयों के संदर्भ में भी बहुत महत्वपूर्ण है।"
समारोह की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध नवगीतकार यश भारती माहेश्वर तिवारी ने कहा -
"कुंडलियाँ काव्य का वह रूप है जो सदियों से लोगों के हृदय को लुभाता रहा है। वर्तमान समय में कुंडलियाँ छंद में रचना कर्म बहुत कम हो रहा है। ऐसे समय में डॉ अर्चना गुप्ता की कुंडलियों के दो संग्रह आना साहित्यिक रूप से तो महत्वपूर्ण हैं ही, कथ्य एवं विषयों के संदर्भ में भी बहुत महत्वपूर्ण है।"
मुख्य अतिथि, दर्जा राज्यमंत्री साध्वी गीता प्रधान का कहना था-"अर्चना जी की कुंडलियाँ समाज में जागृति पैदा करने की क्षमता से ओतप्रोत हैं। उनकी कृतियाँ साहित्य जगत में ऊँचाइयों को प्राप्त करेंगी।"
विशिष्ट अतिथि डॉ० मक्खन 'मुरादाबादी' का कहना था - "सामाजिक विषमताओं पर सशक्त प्रहार करना दोनों ही कुंडलियाँ संग्रहों की विशेषता है। कृतियों में दी गई कुंडलियाँ, विषमताओं को सामने लाते हुए उनका हल भी प्रस्तुत करती हैं।
विशिष्ट अतिथि डॉ० मक्खन 'मुरादाबादी' का कहना था - "सामाजिक विषमताओं पर सशक्त प्रहार करना दोनों ही कुंडलियाँ संग्रहों की विशेषता है। कृतियों में दी गई कुंडलियाँ, विषमताओं को सामने लाते हुए उनका हल भी प्रस्तुत करती हैं।
विशिष्ट अतिथि श्री सुरेंद्र राजेश्वरी ने अपने संबोधन में कहा -"डॉ० अर्चना गुप्ता जी की कुंडलियाँ लोगों के अंतस को गहराई से स्पर्श करने में सक्षम हैं।"
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ० अजय 'अनुपम' ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा - "डॉ० अर्चना गुप्ता की कुंडलियाँ समाज को एक नई दिशा देंगी, ऐसी आशा की जा सकती है। कहीं-कहीं शब्दों की डगमगाहट के बावजूद उनकी कुंडलियों के भाव सजगता के साथ उभर कर आए हैं।"
वरिष्ठ रचनाकार अशोक विश्नोई का कहना था -
"डॉ० अर्चना गुप्ता जी की कुंडलियाँ समाज में प्रत्येक वर्ग को साथ लेकर चलते हुए सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार करती हैं।"
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ० अजय 'अनुपम' ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा - "डॉ० अर्चना गुप्ता की कुंडलियाँ समाज को एक नई दिशा देंगी, ऐसी आशा की जा सकती है। कहीं-कहीं शब्दों की डगमगाहट के बावजूद उनकी कुंडलियों के भाव सजगता के साथ उभर कर आए हैं।"
वरिष्ठ रचनाकार अशोक विश्नोई का कहना था -
"डॉ० अर्चना गुप्ता जी की कुंडलियाँ समाज में प्रत्येक वर्ग को साथ लेकर चलते हुए सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार करती हैं।"
वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि कुंडलियों के माध्यम से डॉ अर्चना ने सामाजिक विसंगतियों को उजागर करने के साथ साथ देश प्रेम की अलख भी जगाई है ।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार 'नाज़' ने कहा - "डॉ० अर्चना गुप्ता की कुंडलियों के दोनों संग्रह हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं। कहीं-कहीं शिथिलता के बावजूद वे आम जनमानस तक पहुँचने की सामर्थ्य रखती हैं।"
युवा रचनाकार राजीव 'प्रखर' ने अपने आलेख में कहा - "रचनाओं की सार्थकता बनाए रखते हुए एक भाव से दूसरे भाव में पहुँचना एवं उनकी सटीक शाब्दिक अभिव्यक्ति करना, किसी भी रचनाकार के लिये एक चुनौती होती है परन्तु डॉ० अर्चना गुप्ता जी की सुयोग्य एवं प्रवाहमयी लेखनी इस चुनौती को न केवल स्वीकार करती है अपितु, भावपूर्ण तथा सटीक कुंडलियों के माध्यम से सोये हुए समाज को जागृत करने के सफल प्रयास में भी रत दिखाई देती है।"
इस अवसर पर कवयित्री डॉ० अर्चना गुप्ता ने अपनी कुछ कुण्डलियों का पाठ करते हुए कहा -
"तिनसौ सत्तर को बदल, रचा नया इतिहास
मोदी जी ने कर दिया, काम बड़ा ये खास
काम बड़ा ये खास, शाह से हाथ मिलाकर
दिया हमें कश्मीर, तिरंगे को फहराकर
लगे 'अर्चना' आज, हुआ कुछ जादू मंतर
पुलकित है कश्मीर, हटी अब तिनसौ सत्तर।"
"राजमहल के द्वार पर, खड़े सुदामा दीन
उनकी हालत देखकर, श्याम हुए गमगीन
श्याम हुए गमगीन,प्यार से उन्हें बिठाया
धोरे उनके पाँव, नैन से नीर बहाया
लिए 'अर्चना' फाँक, चार दाने चावल के
दूर किए सब कष्ट, दिए सुख राजमहल के"
"मुखड़ा बिल्कुल चाँद सा, केश लगे ज्यों रैन
गोरी के प्यारे लगें, झुके-झुके से नैन
झुके-झुके से नैन, कनक सी उसकी काया
मगर पड़ गया आज, विरह का काला साया
रही 'अर्चना' सोच, सुनाए किसको दुखड़ा
दिखता बड़ा उदास, फूल सा उसका मुखड़ा"
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार 'नाज़' ने कहा - "डॉ० अर्चना गुप्ता की कुंडलियों के दोनों संग्रह हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं। कहीं-कहीं शिथिलता के बावजूद वे आम जनमानस तक पहुँचने की सामर्थ्य रखती हैं।"
युवा रचनाकार राजीव 'प्रखर' ने अपने आलेख में कहा - "रचनाओं की सार्थकता बनाए रखते हुए एक भाव से दूसरे भाव में पहुँचना एवं उनकी सटीक शाब्दिक अभिव्यक्ति करना, किसी भी रचनाकार के लिये एक चुनौती होती है परन्तु डॉ० अर्चना गुप्ता जी की सुयोग्य एवं प्रवाहमयी लेखनी इस चुनौती को न केवल स्वीकार करती है अपितु, भावपूर्ण तथा सटीक कुंडलियों के माध्यम से सोये हुए समाज को जागृत करने के सफल प्रयास में भी रत दिखाई देती है।"
इस अवसर पर कवयित्री डॉ० अर्चना गुप्ता ने अपनी कुछ कुण्डलियों का पाठ करते हुए कहा -
"तिनसौ सत्तर को बदल, रचा नया इतिहास
मोदी जी ने कर दिया, काम बड़ा ये खास
काम बड़ा ये खास, शाह से हाथ मिलाकर
दिया हमें कश्मीर, तिरंगे को फहराकर
लगे 'अर्चना' आज, हुआ कुछ जादू मंतर
पुलकित है कश्मीर, हटी अब तिनसौ सत्तर।"
"राजमहल के द्वार पर, खड़े सुदामा दीन
उनकी हालत देखकर, श्याम हुए गमगीन
श्याम हुए गमगीन,प्यार से उन्हें बिठाया
धोरे उनके पाँव, नैन से नीर बहाया
लिए 'अर्चना' फाँक, चार दाने चावल के
दूर किए सब कष्ट, दिए सुख राजमहल के"
"मुखड़ा बिल्कुल चाँद सा, केश लगे ज्यों रैन
गोरी के प्यारे लगें, झुके-झुके से नैन
झुके-झुके से नैन, कनक सी उसकी काया
मगर पड़ गया आज, विरह का काला साया
रही 'अर्चना' सोच, सुनाए किसको दुखड़ा
दिखता बड़ा उदास, फूल सा उसका मुखड़ा"
कार्यक्रम में मधु सक्सेना, योगेंद्र वर्मा व्योम, डॉ महेश दिवाकर, डॉ मनोज रस्तोगी, डॉ० संगीता महेश, संजीव आकांक्षी, ओंकार सिंह ओंकार, डॉ० अतुल गुप्ता, एमके पूर्वी, सुशील शर्मा, मदन पाल सिंह, विवेक निर्मल, डॉ० सरिता लाल, डॉ० संगीता महेश, राशिद मुरादाबादी, कशिश वारसी, अहमद मुरादाबादी, उमाकांत गुप्ता, संतोष गुप्ता, डॉ आर०सी० शुक्ल, श्रीकृष्ण शुक्ल, मोनिका मासूम, हेमा तिवारी भट्ट, डॉ० ममता सिंह, मीनाक्षी ठाकुर, रघुराज सिंह निश्चल, फक्कड़ मुरादाबादी, मोनिका अग्रवाल, शायर मुरादाबादी, मनोज मनु, अखिलेश वर्मा, शुभम अग्रवाल, रवि चतुर्वेदी,धवल धीक्षित, अभिनीत मित्तल, सरफराज पीपलसानवी, शिशुपाल मधुकर, इला मित्तल, इशांत शर्मा, आवरण अग्रवाल सहित अनेक साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।
::::::::प्रस्तुति::::::::
राजीव प्रखर
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
::::::::प्रस्तुति::::::::
राजीव प्रखर
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
रविवार, 23 फ़रवरी 2020
शनिवार, 22 फ़रवरी 2020
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का गीत -सबसे अच्छा काम प्रदर्शन धरना जाम लगाना .....
गीत
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सबसे अच्छा काम प्रदर्शन, धरना ,जाम लगाना
(1)
बीच सड़क पर रखो कुर्सियाँ या दरियाँ बिछवाओ
उसके ऊपर ढेर शामियाने सुंदर लगवाओ
आ जाएगा मुफ्त कहीं से चाय ,नाश्ता ,खाना
सबसे अच्छा काम प्रदर्शन, धरना, जाम लगाना
(2)
सरकारों को कोसो ,सत्तादल को विलेन बताओ
लाउडस्पीकर पर भाषण देने की कला बढ़ाओ
नेतागिरी इसी मौके पर होती है चमकाना
सबसे अच्छा काम प्रदर्शन, धरना, जाम लगाना
(3)
माँगे रखो असंभव ऐसी झुकने कभी न पाओ
बड़े- बड़ों को सुलह कराने अपने दर पर लाओ
इंटरव्यू लेने आएँगे पत्रकार रोजाना
सबसे अच्छा काम प्रदर्शन, धरना, जाम लगाना
(4)
इतनी बड़ी बनो ताकत सब विधि-विधान झुक जाएँ
पुलिस और कानून तुम्हें सब हाथ जोड़ समझाएँ
सबको लगे खीर है टेढ़ी तुमको मनवा पाना
सबसे अच्छा काम प्रदर्शन ,धरना, जाम लगाना
--------------------------------
*रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर
उत्तर प्रदेश,भारत
मोबाइल फोन नंबर 999761 5451
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सबसे अच्छा काम प्रदर्शन, धरना ,जाम लगाना
(1)
बीच सड़क पर रखो कुर्सियाँ या दरियाँ बिछवाओ
उसके ऊपर ढेर शामियाने सुंदर लगवाओ
आ जाएगा मुफ्त कहीं से चाय ,नाश्ता ,खाना
सबसे अच्छा काम प्रदर्शन, धरना, जाम लगाना
(2)
सरकारों को कोसो ,सत्तादल को विलेन बताओ
लाउडस्पीकर पर भाषण देने की कला बढ़ाओ
नेतागिरी इसी मौके पर होती है चमकाना
सबसे अच्छा काम प्रदर्शन, धरना, जाम लगाना
(3)
माँगे रखो असंभव ऐसी झुकने कभी न पाओ
बड़े- बड़ों को सुलह कराने अपने दर पर लाओ
इंटरव्यू लेने आएँगे पत्रकार रोजाना
सबसे अच्छा काम प्रदर्शन, धरना, जाम लगाना
(4)
इतनी बड़ी बनो ताकत सब विधि-विधान झुक जाएँ
पुलिस और कानून तुम्हें सब हाथ जोड़ समझाएँ
सबको लगे खीर है टेढ़ी तुमको मनवा पाना
सबसे अच्छा काम प्रदर्शन ,धरना, जाम लगाना
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*रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर
उत्तर प्रदेश,भारत
मोबाइल फोन नंबर 999761 5451
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से 21फरवरी 2020 को हुआ दोहा-गोष्ठी का आयोजन
अंकित कुमार गुप्ता अंक द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना से आरंभ गोष्ठी में वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने अपने आलेख में कहा -भारतेंदु युग में मुरादाबाद के लाला शालिग्राम वैश्य, पंडित झब्बीलाल मिश्र, पंडित जुगल किशोर मिश्र बुलबुल, पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र, पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र, पंडित कन्हैयालाल मिश्र समेत अनेक साहित्यकारों का दोहा लेखन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है । उन्होंने अपने आलेख में अनेक दिवंगत साहित्यकारों द्वारा रचित दोहों का उल्लेख भी किया।
दोहा-लेखन की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालते हुए हेमा तिवारी भट्ट ने अपने आलेख में कहा, "महानगर की गौरवशाली दोहा-लेखन परंपरा वर्तमान में काफी सुदृढ़ स्थिति में है। डॉ महेश दिवाकर, डॉ प्रेमवती उपाध्याय, डॉ पूनम बंसल, डॉ कृष्ण कुमार नाज़, योगेन्द्र वर्मा व्योम आदि वरिष्ठ रचनाकारों के अतिरिक्त अंकित गुप्ता 'अंक', राजीव 'प्रखर', मोनिका शर्मा 'मासूम', हेमा तिवारी (स्वयं), डॉ अर्चना गुप्ता, डॉ ममता सिंह समेत अनेक दोहाकार महानगर में उत्कृष्ट दोहा-लेखन के उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
इस अवसर पर मोनिका शर्मा 'मासूम' ने वर्तमान राजनीति पर प्रहार करते हुए कहा-
फाल्गुन पर ऐसा चढ़ा, रंग सियासी यार।
सत्ता को लेकर हुई, फूलों में तकरार।
फाल्गुन पर ऐसा चढ़ा, रंग सियासी यार।
सत्ता को लेकर हुई, फूलों में तकरार।
हेमा तिवारी भट्ट का कहना था -
निराला औ' दिनकर सी, ढूँढ कलम मत आज।
अँगूठे से लिख रहा, ज्ञानी हुआ समाज।
निराला औ' दिनकर सी, ढूँढ कलम मत आज।
अँगूठे से लिख रहा, ज्ञानी हुआ समाज।
अंकित गुप्ता 'अंक' ने कहा-
झोंपड़ियों से पूछतीं, इमारतें दिन-रैन।
तुम में हम-सा कुछ नहीं, फिर भी इतना चैन।
झोंपड़ियों से पूछतीं, इमारतें दिन-रैन।
तुम में हम-सा कुछ नहीं, फिर भी इतना चैन।
अशोक विद्रोही का कहना था-
जो सैनिक कल बाढ़ में, बचा रहे थे जान।
उनको थप्पड़ मारते, वाह रे हिन्दुस्तान।
जो सैनिक कल बाढ़ में, बचा रहे थे जान।
उनको थप्पड़ मारते, वाह रे हिन्दुस्तान।
अभिषेक रुहेला का स्वर था-
दुनिया में बस रहे कुछ, अजब-गज़ब से लोग।
वहीं प्रेम के नाम पर, करते तन का भोग।।
दुनिया में बस रहे कुछ, अजब-गज़ब से लोग।
वहीं प्रेम के नाम पर, करते तन का भोग।।
राजीव 'प्रखर' ने कहा-
बढ़ते पंछी को हुआ, जब पंखों का भान।
सम्बंधों के देखिये, बदल गये प्रतिमान।।
बढ़ते पंछी को हुआ, जब पंखों का भान।
सम्बंधों के देखिये, बदल गये प्रतिमान।।
श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा-
संबंधों में आजकल, नहीं रही वो प्रीत।
लाभ हानि का आंकलन, पहले करते मीत।।
संबंधों में आजकल, नहीं रही वो प्रीत।
लाभ हानि का आंकलन, पहले करते मीत।।
रामपुर से आये ओंकार सिंह 'विवेक' ने आह्वान किया-
रखनी है मज़बूत यदि, रिश्तों की बुनियाद।
समय-समय पर कीजिए, आपस में संवाद।।
रखनी है मज़बूत यदि, रिश्तों की बुनियाद।
समय-समय पर कीजिए, आपस में संवाद।।
के पी सिंह 'सरल' का कहना था
बेटी जब होती विदा, बोझिल होते नैन।
आँसू की सौगात दे, ले जाती सुख-चैन।।
बेटी जब होती विदा, बोझिल होते नैन।
आँसू की सौगात दे, ले जाती सुख-चैन।।
ओंकार सिंह ओंकार ने कहा-
फुलवारी सा खिल उठे, महक उठे घर-द्वार।
बेटी से परिवार को, खुशियाँ मिलें अपार।।
फुलवारी सा खिल उठे, महक उठे घर-द्वार।
बेटी से परिवार को, खुशियाँ मिलें अपार।।
मनोज मनु ने कहा--
स्वर वरदा माँ शारदा, भरे सतत विश्वास।
दिव्य ज्ञान दें तम हरें, करें कंठ में वास।।
स्वर वरदा माँ शारदा, भरे सतत विश्वास।
दिव्य ज्ञान दें तम हरें, करें कंठ में वास।।
विशिष्ट अतिथि शिशुपाल मधुकर ने कहा-
दिन पर दिन महंगे हुए, शिक्षा और इलाज।
सत्ता के दावे मगर, सफल हमारा राज।।
दिन पर दिन महंगे हुए, शिक्षा और इलाज।
सत्ता के दावे मगर, सफल हमारा राज।।
मुख्य अतिथि अशोक विश्नोई ने अपनी बात कुछ तरह व्यक्त की--
भला नहीं होगा कभी, बात समझ लो तात।
अच्छा करना है नहीं, सम्बंधों से घात।।
भला नहीं होगा कभी, बात समझ लो तात।
अच्छा करना है नहीं, सम्बंधों से घात।।
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए माहेश्वर तिवारी ने इस तरह के आयोजनों की निरन्तरता पर बल दिया । उन्होंने अनेक दोहों का भी पाठ किया । उनका कहना था --
कुछ मौसम प्रतिकूल था, कुछ था तेज़ बहाव।
मछुआरों ने खींच ली, तट पर अपनी नाव।।
मछुआरों ने खींच ली, तट पर अपनी नाव।।
विशिष्ट अतिथि के रूप में रामदत्त द्विवेदी ने कहा--
आले अब दीवार से, गायब हुए जनाब।
अपने मन की मूर्ति को, मैं रक्खूँ किस ठाँव।।
आले अब दीवार से, गायब हुए जनाब।
अपने मन की मूर्ति को, मैं रक्खूँ किस ठाँव।।
गोष्ठी का संचालन करते हुए संयोजक योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' का कहना था --
कैसे संभलें भूख के, बिगड़े सुर-लय-ताल।
नई सदी के सामने, सबसे बड़ा सवाल।।
कैसे संभलें भूख के, बिगड़े सुर-लय-ताल।
नई सदी के सामने, सबसे बड़ा सवाल।।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम ने कहा --
सीमित कर उपभोग को, संयम शिष्टाचार।
जो अपनाते वे हरें, पर्यावरण विकार।।
संस्था के सह-संयोजक राजीव 'प्रखर' द्वारा आभार अभिव्यक्त किया गया ।
:::::::प्रस्तुति ::::::
राजीव प्रखर
डिप्टी गंज
मुरादाबाद -244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर -8941912642
सीमित कर उपभोग को, संयम शिष्टाचार।
जो अपनाते वे हरें, पर्यावरण विकार।।
संस्था के सह-संयोजक राजीव 'प्रखर' द्वारा आभार अभिव्यक्त किया गया ।
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राजीव प्रखर
डिप्टी गंज
मुरादाबाद -244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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