गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अखिलेश वर्मा की लघुकथा .....

#ज़हर

"क्या करें ...
हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ गया है ...यही हाल रहा
तो पूरा सर्प समाज कीड़ों के नाम से जाना जाएगा ।". सर्पो की सभा में कोबरा साँप उठकर बोला ..
"सत्य है सत्य है ।"..सभी बूढ़े और जहरीले सांपों ने एक साथ समर्थन किया ..
"हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा ! पर क्यूँ ?".. नन्हा साँप आश्चर्यचकित होकर बोला.
"अरे बेटा ! क्या बताएँ तुम्हें !! आज आदमी हम साँपों से कहीं ज्यादा ज़हरीला हो गया है . उसकी ज़बान में ही नहीं .. शरीर में ही नहीं .. ख़ून में ही नहीं ... उसकी नीयत में भी ज़हर भरा हुआ है .. पैसे कमाने के लिए षडयंत्र और झूठ उसके हथियार बने हुए हैं ... धन के लालच में हर वस्तु में मिलावट ! ज़हर ही खाता है .. ज़हर ही उगलता है. ऐसे में हमारा ज़हर बेकार है हम कीड़े बनकर रह जाएँगे ।" ... मोटे अजगर ने नन्हें साँप को समझाते हुए कहा ।

- अखिलेश वर्मा
   मुरादाबाद

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