बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अखिलेश वर्मा की लघुकथा

परीक्षा

"देख ! देख ! गहनों से लदी है वो लाश.... पेड़ पर लटकी है तो शायद किसी ने नहीं देखी . हमारे दिन बदल जाएंगे यार इसके इतने सारे गहने बेचकर हम और हमारे बच्चों का भविष्य सुधर जाएगा ... मंदिर के पास बाढ़ का पानी उतर चुका है .. लोगों की आवाजाही शुरू होने से पहले ही हम भाग चलेंगे ।" हरीश ने रोशन से चहकते अंदाज़ में कहा।
       "अरे ! वो देखो ! इसकी कमर से बच्चा बँधा है .. इसे बचाने के लिए पहले पेड़ पर चढ़ी होगी फिर कमर से बाँध लिया होगा ... जिंदा है बच्चा अभी ।" रोशन गौर से लाश के करीब जाकर बोला ।
 "अरे छोड़ सब यार .. बच्चे को मत देख ...गहने उतार जल्दी से और भाग चल ।" हरीश उतावला सा होकर बोला।
"नहीं भाई ... वो औरत अपनी जान देकर अपने बच्चे को बचाकर परीक्षा में पास हो गई ... अगर हम इसके गहने लेकर बच्चे को छोड़ गये तो इंसानियत की परीक्षा में फेल हो जाएंगे ... अब हमारी परीक्षा है कि हम इस बच्चे को सहायता कैम्प तक पहुँचा दे और महिला की जानकारी भी दें ।" रोशन ने गंभीर स्वर में कहा ।

- अखिलेश वर्मा
  मुरादाबाद

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