कविता समाज का दर्पण होती है। कविता समाज को उन चीज़ों के बारे में भी सोचने को विवश करती है जो समाज में नहीं हो रही होती हैं परंतु उन्हें होना चाहिए। कवि की जो अभिव्यक्ति श्रोता/पाठक को आह या वाह करने के लिए बाध्य कर दे वही सच्ची कविता होती है। स्मृति शेष रामलाल अनजाना का काव्य सृजन इन सभी कसौटियों पर खरा उतरता है।
स्मृति शेष रामलाल अनजाना जी के वर्ष 2009 में प्रकाशित हुए काव्य संग्रह 'वक्त न रिश्तेदार किसी का' की कुछ रचनाओं को पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। यह काव्य संग्रह उन्होंने अपनी धर्मपत्नी उर्मिला जी को समर्पित किया है जो उनकी गहन संवेदनशीलता का परिचायक है। काव्य संग्रह की तमाम रचनाओं ने मर्म को छू लिया।सामाजिक विसंगतियों और विद्रूपताओं को लेकर कवि के ह्रदय में एक छटपटाहट और बैचेनी दिखाई देती है जो निरंतर उन्हें उनके कवि धर्म का एहसास कराती है।अपनी एक कविता में उन्होंने जगत कल्याण की कैसी सुंदर कामना की है ,देखिए :
मिट जाए आतंक धरा से,मानवता की अक्षय जय हो,
निर्भय जन जीवन मुस्काए,जो पल आए मंगलमय हो।
जिस चीज़ को सब आम नज़र से देखते हैं कवि उसे ख़ास नज़र से देखता है।यही दृष्टि उसे औरों से भिन्न बनाती है।आम आदमी के जीवन से जुड़ी तमाम चीज़ों को लेकर रामलाल अनजाना जी ने काव्य सृजन करते हुए हर आम और ख़ास आदमी के सुप्त चिंतन को जगाने का सार्थक प्रयास किया है।
रौशनी तो आज कहीं दूर को चली गई, ज़िंदगी से दूर हर दुर्गंध हो,प्यार पथ की रौशनी है, ज़हरीली कर दी पुरवाई और नज़रें नातेदार चुराते आदि शीर्षकों से सृजित की गईं उनकी तमाम रचनाएँ बार-बार पढ़ने का मन करता है। उनका अधिकांश सृजन सामाजिक सरोकारों की ज़बरदस्त पैरवी करता दिखाई देता है। कुछ और रचनाओं की चुनिंदा पंक्तियां देखिए जिनसे आपको उनके चिंतन की गहराई का अंदाज़ा होगा :
यह भी दिल काला है, वह भी दिल काला है,
दिल के हर कोने में मकड़ी का जाला है।
रौशनी तो आज कहीं दूर को चली गई,
अंधियारी रातों का रोज़ बोलबाला है।
***************
आदमी में आदमी की गंध हो,
दुश्मनी की हर कहानी बंद हो।
हर तरफ़ फूले - फले इंसानियत,
ज़िंदगी से दूर हर दुर्गंध हो।
*************
प्यार जीने की कला है,
प्यार में जीवन घुला है।
प्यार में डूबा उसी को,
जग मिला, जीवन मिला है।
***************
दुनिया और समाज की दिल से फ़िक्र करने वाला एक सच्चा साहित्यकार ही ऐसी बातें कर सकता है जो ऊपर अपनी कविताओं में अनजाना जी ने कही हैं। अनजाना जी का काव्य सृजन नए रचनाकारों के लिए अथाह सागर में रास्ता दिखाते हुए एक लाइट हाउस की तरह है।
✍️ ओंकार सिंह विवेक
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें