मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' के तत्वावधान में गौड़ ग्रीशियस सोसाइटी, काँठ रोड, मुरादाबाद स्थित 'हरसिंगार' भवन में गाजियाबाद के नवगीतकार जगदीश पंकज के मुरादाबाद आगमन पर 30 जुलाई, 2023 रविवार को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें श्री जगदीश पंकज जी को अंगवस्त्र, प्रतीक चिन्ह, मानपत्र तथा श्रीफल भेंटकर "हस्ताक्षर नवगीत साधक सम्मान"से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात नवगीतकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने की। मुख्य अतिथि विख्यात व्यंग्य कवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी तथा विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय अनुपम रहे। काव्य गोष्ठी का शुभारंभ चर्चित दोहाकार श्री राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। यश भारती से सम्मानित सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने गीत पढ़ा-
"नापती आकाश सारा पंख फैलाए,
किन्तु धरती से अलग उड़कर कहाँ जाए,
सोचकर यह घोंसले में लौट आती है।
एक चिड़िया, धड़कनों में चहचहाती है।"
विख्यात कवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी ने गीत प्रस्तुत किया-
"नए सृजन पर असमंजस में,
तुलसी सूर कबीरा।
गान आज का गाने में सुन,
दुखी हो उठी मीरा।
देख निराला भी कह उठते,
नव की नई शकल हो।
कोशिश है खरपतवारों की,
मटियामेट फ़सल हो।"
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय अनुपम ने सुनाया-
"भाव से मन को लुभाता है,
दुसह पीड़ाएं जगाता है।
विरह की देता व्यथा फिर भी,
प्यार सुख का जन्मदाता है।"
सम्मानित नवगीतकार के जगदीश पंकज ने सुनाया-
"हंँसो स्वयं पर हंँसो कि हम सब जिंदा है।
अपने-अपने सच को सभी संभाल रहे।"
कवयित्री विशाखा तिवारी ने रचना प्रस्तुत की-
"आज व्याकुल धरती ने
पुकारा बादलों को।
मेरी शिराओं की तरह
बहती नदियाँ जलहीन पड़ी हैं।"
कवि डॉ.मनोज रस्तोगी ने रचना प्रस्तुत की-
"बीत गए कितने ही वर्ष ,
हाथों में लिए डिग्रियां,
कितनी ही बार जलीं
आशाओं की अर्थियां,
आवेदन पत्र अब
लगते तेज कटारों से।"
कवि योगेन्द्र वर्मा व्योम ने दोहे प्रस्तुत किये-
"शहरों के हर स्वप्न पर, कैसे करें यक़ीन।
उम्मीदों के गाँव हैं, जब तक सुविधाहीन।
चलो मिटाने के लिए, अवसादों के सत्र।
फिर से मिलजुल कर पढ़ें, मुस्कानों के पत्र।"
शायर ज़िया ज़मीरने ग़ज़ल पेश की-
"घर के बाहर तो बस ताले लग जाते हैं,
घर में लेकिन कितने जाले लग जाते हैं।
उस चेहरे को छू लेता हूं रात में जब भी,
हाथों में दिन भर के उजाले लग जाते हैं।"
राजीव 'प्रखर' ने दोहे प्रस्तुत किए-
"नीम तुम्हारी छांव में, आकर बरसों बाद।
फिर से ताज़ा हो उठी, बाबूजी की याद।
जलते-जलते आस के, देकर रंग अनेक।
दीपक-माला कर गई, रजनी का अभिषेक।"
कवि राहुल शर्मा ने मुक्तक सुनाया-
"चंद लम्हों की मुलाकात बुरी होती है।
गर जियादा हो तो बरसात बुरी होती है।
हर किसी को ये समझ लेते है अपने जैसा।
अच्छे लोगों में यही बात बुरी होती है।"
युवा कवि प्रत्यक्ष देव त्यागी ने सुनाया-
"परवान चढ़ेगी मोहब्बत, चार दिन के लिए।
पूरी होगी ज़रूरत, चार दिन के लिए।
हाथ पकड़कर बैठना, आंखों में आंखे डाल कर।
फिर नाराज़ होगी किस्मत, चार दिन के लिए।"
प्राप्ति गुप्ता ने भी एक कविता सुनाई। डॉ जगदीप भटनागर, शिखा रस्तोगी, माधुरी सिंह एवं अक्षरा ने विचार प्रस्तुत किये। कार्यक्रम का संचालन योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया। समीर तिवारी द्वारा आभार अभिव्यक्त किया गया ।
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' के तत्वावधान में गौड़ ग्रीशियस काँठ रोड, मुरादाबाद स्थित 'हरसिंगार' भवन में साहित्यकार माहेश्वर तिवारी के जन्मदिन एवं उनकी रचनाधर्मिता के सात दशक पूर्ण होने के अवसर पर पावस-गोष्ठी, संगीत संध्या एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपमको अंगवस्त्र, प्रतीक चिन्ह, मानपत्र, श्रीफल तथा सम्मान राशि भेंटकर "माहेश्वर तिवारी साहित्य सृजन सम्मान" से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता देहरादून निवासी देश के सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने की। मुख्य अतिथि विख्यात व्यंग्यकवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी रहे। कार्यक्रम का संचालन योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा बालसुंदरी तिवारी एवं उनकी संगीत छात्राओं- लिपिका सक्सेना, संस्कृति, प्राप्ति गुप्ता, सिमरन, आदया एवं तबला वादक लकी वर्मा द्वारा प्रस्तुत संगीतबद्ध सरस्वती वंदना से हुआ। इसके पश्चात उनके द्वारा सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी के गीतों की संगीतमय प्रस्तुति हुई- "बादल मेरे साथ चले हैं परछाई जैसे/सारा का सारा घर लगता अंगनाई जैसे।" और- "याद तुम्हारी जैसे कोई कंचन कलश भरे/जैसे कोई किरन अकेली पर्वत पार करे।"
पावस गोष्ठी में यश भारती से सम्मानित सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने गीत पढ़ा-
"आज गीत गाने का मन है,
अपने को पाने का मन है।
अपनी चर्चा है फूलों में,
जीना चाह रहा शूलों में,
मौसम पर छाने का मन है।"
सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने गीत प्रस्तुत किया-
"प्यास हरे कोई घन बरसे,
तुम बरसो या सावन बरसे,
एक सहज विश्वास संजोकर,
चातक ने व्रत ठान लिया है,
अब चाहे नभ से स्वाती की,
बूँद गिरे या पाहन बरसे।"
विख्यात कवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी ने गीत प्रस्तुत किया-
"उन गीतों में मिला महकता,
इस माटी का चंदन,
जिनका अपना ध्येय रहा है,
सौंधी गंधों का वंदन।"
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय 'अनुपम' ने सुनाया-
"राह कांँटों भरी थी सहल हो गई,
चाह मेरी कुटी से महल हो गई,
मैं झिझकता रहा बात कैसे करूं,
आज उनकी तरफ़ से पहल हो गई।"
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाजने ग़ज़ल पेश की-
"ज़िंदगी तेरे अगर क़र्ज़ चुकाने पड़ जाएं,
अच्छे-अच्छों को यहां होश गंवाने पड़ जाएं,
साफ़गोई है किसी अच्छे तअल्लुक़ की शर्त,
वादे ऐसे भी न हों जो कि पुराने पड़ जाएं।"
कवयित्री विशाखा तिवारी ने रचना प्रस्तुत की-
"आज व्याकुल धरती ने
पुकारा बादलों को।
मेरी शिराओं की तरह
बहती नदियाँ जलहीन पड़ी हैं।"
वरिष्ठ ग़ज़लकार ओंकार सिंह 'ओंकार' ने सुनाया-
"बारिश में सड़कें हुई हैं गड्ढों से युक्त।
जाम लग रहे हर जगह वाहन सरकें सुस्त।
हरियाली फैला रही चहुंदिसि ही आनंद।
बूँदों से हर खेत में, महक उठे है छंद।
कवि वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी ने गीत सुनाया-
"मुँह पर गिरकर बूँदों ने बतलाया है,
देखो कैसे सावन घिरकर आया है।
बौछारों से तन-मन ठंडा करने को,
डाल-डाल झूलों का मौसम आया है।"
कवयित्री डॉ पूनम बंसल ने सुनाया-
"कभी गरजते कभी बरसते,
रंग जमाते हैं बादल।
सदियों से इस तृषित धरा का,
द्वार सजाते हैं बादल।"
कवि समीर तिवारी ने सुनाया-
"बदल गया है गगन सारा,सितारों ने कहा।
बदल गया है चमन हमसे बहारों ने कहा।
वैसे मुर्दे है वही सिर्फ अर्थियां बदली।
फ़क़ीर ने पास में आकर इशारों से कहा।"
कवि डॉ.मनोज रस्तोगी ने रचना प्रस्तुत की-
"नहीं गूंजते हैं घरों में अब,
सावन के गीत
खत्म हो गई है अब,
झूलों पर पेंग बढ़ाने की रीत
नहीं होता अब हास परिहास,
दिखता नहीं कहीं सावन का उल्लास।"
कवि योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने पावस दोहे प्रस्तुत किये-
"भौचक धरती को हुआ, बिल्कुल नहीं यक़ीन।
अधिवेशन बरसात का, बूँदें मंचासीन।
पल भर बारिश से मिली, शहरों को सौगात।
चोक नालियां कर रहीं, सड़कों पर उत्पात।"
" शायर ज़िया ज़मीर ने ग़ज़ल पेश की-
"हमारे शहर में बादल घिरे हैं, तुम्हारे शहर में क्या हो रहा है।
वो आंखें ऐसी भी प्यारी नहीं हैं,न जाने यह हमें क्या हो रहा है।"
दोहाकार राजीव 'प्रखर' ने दोहे प्रस्तुत किए-
"मीठी कजरी-भोजली, बल खाती बौछार।
तीनों मिलकर कर रहीं, सावन का शृंगार।
मानुष मन है अश्व सा, इच्छा एक लगाम।
जिसने पकड़ी ठीक से, जीत लिया संग्राम।"
कवि मनोज मनु ने गीत सुनाया-
"रिमझिम बरखा आई, झूम रे मन मतवाले,
काले काले बदरा घिर-घिर के आते हैं,
अंजुरी में भर-भर के बूंद-बूंद लाते हैं,
बूंद -बूंद भर देती खाली मन के प्याले, "
प्रो ममता सिंह ने सुनाया-
"मोरे जियरा में आग लगाय गयी रे, सावन की बदरिया।
मोहिं सजना की याद दिलाय गयी रे, सावन की बदरिया।
जब जब मौसम ले अंगडाई और चले बैरिनि पुरवाई।
मोरी धानी चुनरिया उड़ाय गयी रे सावन की बदरिया।"
हेमा तिवारी भट्ट ने सुनाया-
"बोया था रवि बीज मैंने,
रात्रि की कोमल मृदा में,
तम गहन ऊर्जा में ढलकर,
अंकुरा देखो दिवस बन।"
काशीपुर निवासी डॉ ऋचा पाठक ने सुनाया-
"एक बदरिया आँखों में ही सूख गयी ज्यों न दिया।
पकी फ़सल कैसे ढोये, अब सोचे हारा हरिया।
बामन ने ये साल तो पर कै भला बताये रे।"
मयंक शर्मा ने सुनाया-
"प्रिय ने कुंतल में बँधी खोली ऐसे डोर।
मानो सावन की घटा घिर आई चहुँओर।
बूँदों के तो घर गई एक रंग की धूप।
लेकर निकली द्वार से इंद्रधनुष का रूप।"
संतोष रानी गुप्ता, माधुरी सिंह, डी पी सिंह एवं इं० उमाकांत गुप्त ने पावस के संदर्भ में अपने विचार प्रस्तुत किये। कार्यक्रम संयोजक आशा तिवारी एवं समीर तिवारी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति प्रस्तुत की गई।
प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष दिग्गज मुरादाबादी की पुण्यतिथि पर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में 20,21 व 23 जुलाई 2023 को तीन दिवसीय ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया।
मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की 23 वीं कड़ी के तहत आयोजित कार्यक्रम के संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि 5 जनवरी 1930 को जन्में प्रकाश चंद्र सक्सेना ’दिग्गज मुरादाबादी’ की साहित्य यात्रा शायर अब्र अहसनी गुन्नौरी के संरक्षण में ग़ज़ल और नज़्म लेखन से शुरू हुई। उन्होंने अनेक गीत भी लिखे लेकिन उन्हें ख्याति बाल साहित्यकार के रूप में मिली। जीवन के अंतिम दशक में उनका रुझान अध्यात्म की ओर हो गया और वह भक्ति साहित्य लेखन की ओर अग्रसर हो गए। उनकी दो काव्य कृतियां ’सीता का अंतर्द्वंद’ और ’श्री करवाचौथ की व्रत कथा’ प्रकाशित हो चुकी हैं। उनका निधन 21 जुलाई 2009 को हुआ ।
प्रख्यात बाल साहित्यकार राजीव सक्सेना ने कहा दिग्गज मुरादाबादी को न केवल बाल मनोविज्ञान की गहरी समझ थी बल्कि उनके मनोजगत या कल्पना जगत में भी गहरी पैठ थी। उनकी बाल कविताएं बाल मनोभावों और संवेदना की अभिव्यक्ति के साथ-साथ चित्रात्मकता की दृष्टि से भी अद्भुत हैं ।
रामपुर के साहित्यकार जितेंद्र कमल आनंद ने कहा वह रामपुर की आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्य धारा के संस्थापकों में एक थे,जो वर्तमान में भी संचालित हो रही है ।
अशोक विश्नोई ने कहा कि दिग्गज जी की रचना धर्मिता का फ़लक बहुत बड़ा था वह बाल रचनाकारों में सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते थे। उनकी बाल कविताएं इतनी सरल भाषा में होती थीं कि उनको आसानी से याद किया जा सकता है।दिग्गज जी ने बाल रचनाओं के साथ साथ गीत,ग़ज़ल, दोहे, और माँ दुर्गा के भजन भी लिखे हैं।
रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा दिग्गज जी एक ऐसे रचनाकार थे जिन्होंने एक और बाल गीत लिखे, सामाजिक जागृति को आधार मानकर गीत लिखे वहीं दूसरी ओर अपनी संस्कृति की पहचान को हृदय में स्थान देते हुए करवा चौथ की व्रत कथा को हिंदी खड़ी बोली में आम जनता के लिए प्रस्तुत भी किया।
आगरा के साहित्यकार एटी जाकिर ने कहा दिग्गज जी उच्च कोटि के नज्मकार थे उनकी एक नज्म ’एक थी झांसी वाली पर यह झांसे वाली रानी है’ बहुत प्रसिद्ध हुई थी।
डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा वह एक निर्भीक निडर और स्वाभिमानी कलमकार थे।
मुंबई के साहित्यकार प्रदीप गुप्ता ने कहा उनकी रचनाएं बालमन को छू लेने में सक्षम थी।
डॉ मोहम्मद आसिफ ने उनकी उर्दू रचनाओं को देवनागरी लिपि में प्रस्तुत किया।
डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा वह अपनी कविताओं और पढ़ने के लहजे से वास्तव में दिग्गज थे।
स्वदेश भटनागर ने कहा वे शब्द शिल्पी ही नहीं एक भाव शिल्पी की तरह जीवन की संवेदनाओं के मर्म स्थल तक पहुंचकर अपने वाक्य विन्यास गढ़ते थे।
श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा बाल साहित्य के अतिरिक्त उनकी रचनाएं जहां भक्ति रस से ओतप्रोत हैं वहीं श्रंगार, अंतर्द्वंद, पीड़ा और सामाजिक विषमताओं पर भी उनकी लेखनी चली है।
उदय प्रकाश सक्सेना उदय ने कहा उनकी रचनाओं में सीधी सरल भाषा में हास्य व्यंग्य का समावेश होता था जो अन्यत्र देखने को नहीं मिलता।
अशोक विद्रोही ने उनके अप्रकाशित साहित्य को पाठकों के समक्ष लाने की आवश्यकता पर बल दिया।
मीनाक्षी ठाकुर ने कहा दिग्गज जी ने अपनी बाल रचनाओं में बालकों के मन में उतर कर उनके भीतर छिपे भावों को कागज पर बहुत सादगी से उकेरा है।
दुष्यंत बाबा ने कहा उनकी साहित्य साधना में लेखन के कई पड़ाव दिखाई पड़ते हैं उन्होंने बाल कविताएं लिखी, गीत गजल नज्में लिखी और अध्यात्म दर्शन से ओतप्रोत रचनाएं भी लिखीं।
राजीव प्रखर ने कहा कीर्तिशेष दिग्गज जी की बाल कविताएं बचपन को खंगालने की अद्भुत क्षमता से ओतप्रोत हैं।
मीनाक्षी वर्मा ने कहा उनकी आध्यात्मिक रचनाएं मन और आत्मा को तृप्त कर देने वाली हैं।
राशिद हुसैन ने कहा उन्होंने बड़ी सरल सहज भाषा में बच्चों को जानकारी देने वाली रचनाएं लिखी है।
कार्यक्रम में दयानंद आर्य महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्ता, राम किशोर वर्मा, धन सिंह धनेंद्र, मुजाहिद चौधरी, डॉ प्रीति हुंकार, डॉ कृष्ण कुमार नाज, मनोरमा शर्मा, नकुल त्यागी, सुभाष रावत राहत बरेलवी, शिव कुमार चंदन, डॉ इंदिरा रानी और सरिता लाल आदि ने हिस्सा लिया । आभार निधि सक्सेना,विधि सक्सेना और सोनिया सक्सेना ने व्यक्त किया।