मीनाक्षी ठाकुर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
मीनाक्षी ठाकुर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 15 अगस्त 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की रचना -------आने वाली हर पीढ़ी को जय हिंद सिखाया जायेगा



जब -जब भारत के जन-मन का इतिहास

 पढ़ाया जायेगा,

तब- तब भारत के वीरों का  हर गीत सुनाया जायेगा।


वो डरते नहीं, अरि चालों से,रण में शिव के अनुयायी हैं ,

उनके भागीरथ यत्नों से आतंक मिटाया जायेगा ।


हर सरहद पर पहरा उनका,वो देश की सेवा को जन्मे,

आने वाली हर पीढ़ी को जय हिंद सिखाया जायेगा।


लेकर वो तिरंगा हाथो में,जब कोई शपथ उठाते है,

तब निश्चय ही जानो तुम ये,प्रण पूर्ण निभाया जायेगा।


घाटी कब से ही पूछती थी,कब मुझको तुम अपनाओगे

सेना की इच्छा के बल पर,जन्नत को पाया जायेगा।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर,  दिल्ली रोड,मिलन विहार

मुरादाबाद ,उ.प्र.भारत

बुधवार, 28 जुलाई 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की ग़ज़ल --फैसला तकदीर का जो हो गया अब आखिरी मैं अकेली ही चली,सबको पराया देखकर ....


खो गयी हैं मंज़िलें भी, लड़खड़ाता देखकर,

छोड़कर वो चल दिये डूबा किनारा देखकर।।


वो पराया  हो गया ,जो था कभी मेरा सनम

हो गयी हैरान हूँ मैं ये नज़ारा देखकर।


ज़िंदगी नाराज़ है या ,है मुकद्दर की ख़ता

मौत भी खामोश है मुझको तड़पता  देखकर


फैसला तकदीर का जो हो गया अब आखिरी

मैं  अकेली ही चली,सबको पराया देखकर ।


आँधियों औकात में रहना ज़रा कुछ देर तक,

झुक सका क्या आसमाँ,टूटा सितारा देखकर ।


✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 27 जुलाई 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर का व्यंग्य ---बर्तन पुराणःएक व्यथा


घर में चार बरतन होंगें तो आपस में बजेंगे ही,यह कहावत तो बहुत पुरानी है।लेकिन जो इन बरतनों को बरसों से मांँजता -घिसता आया हो उसका क्या? कभी किसी ने सोचा है उसके बारे में। 

      खाना बनाने के बाद फैली हुई रसोई को समेटने के बाद बरतन माँजते ऐसा लगा कि  अचानक ही घर के सारे बरतन मेरी तरफ घूर घूर के देख रहे हों।मैने डरते डरते सबसे पहले कुकर जी को पानी भरकर एक ओर रखा ,तो लगा कि  ससुर जी पूछ  रहे हो,"बहू मेरी चाय कब बनेगी?"

मैने सहम कर साडी का पल्लू कमर में खोंसा और परात माता को उठाया और जूने से साफ करने लगीं,तभी माता जी की तली में चिपके आटे ने कहा,"बहू जरा संभलकर मांज ,देख तेरे गोरे -गोरे हाथ खुरखुरे न हो जायें।मैने परात माता को पानी भरकर ससुर  जी की बगल मे बैठाया तो दोनो खीसें निपोरते मुझे यों घूरने लगे जैसे मेरे पीहर से कोई कपड़ा लत्ता घटिया आ गया हो।खैर अब टीपैन फूफा जी की बारी थी.उफ्फ्फ बच्चों के फूफा जी ,!!!चाय की पत्ती से लाल होकर यूँ मुस्कुराये जैसे अभी अभी म्हारेरे नंदोई सा बनारसी पान चबाकर  पूछ रहे हों,"और जी !!साले साहब आये नहीं दफ्तर से अभी तक?,आजकल  कमाई ज़्यादा  हो रही है शायद?।मैने घबरा के जल्दी जल्दी टीपैन को  माँजकर एक ओर रखा।

तभी मुझे फूल से नाजुक मेरे छोटे छोटे बच्चों की तरह  कप गिलास  नज़र आये।हाय !!कलेजा ही काँप गया।कौन  इन बच्चों को यहाँ रख गया सिंक में,मैनै गुस्से मे आँखें लाल पीली कीं और  हृदय में पीर दबाये अपनी मासूम सी क्राकरी मांजकर एक ओर रख दी।तभी मेरी नज़र सिंक के पानी में तैरती मेरी सखियों समान कलछी,चमची,पौनी  पर पड़ी, जो न जाने कबसे मेरी ओर देख रही थीं मानो पूछ रही  हों कि घर गृहस्थी तो हमारी भी है,पर तुझे तो फुरसत ही नहीं हमसे बात करने की।मैने मुस्कुराते हुए उन्हें साफ करके स्टैंड में सजा दिया।तभी देखा देवर जैसा बे पैंदी का लोटा जो कभी सास की तरफ कभी मेरी तरफ  अवसर के अनुरूप होता  रहता है ,मुहँ फुलाये बैठा था।चलो भाई तुम भी निकलो सिंक से।और ये देखो जिठानी की तरह मुँह फुलाये चिकनी कढ़ाई... हाय राम...बड़ी मेहनत से चमकीं ये महारानी!!और दूध का बड़ा भगोना साफ करते -करते तो पसीने छूट गये।चम्मच से मलाई खुरचते ऐसा लगा मानो जेठ जी कह रहे हों," देख 'छोटे' तेरी घरवाली की आजकल बहुत जुबान चलने लगी है।काबू में रख इसे।"


"हुँहह...मुझे  क्या...?अब तो आदत पड़ गयी है सबकी सुनने की।कहते रहो..।"यही सोचकर  मैं फिर से बरतन घिसने लगीं।

हाय ये क्या !!लंच बाक्स के डिब्बे- डिब्बी,ननदो और उनके बच्चों की तरह संभाले नहीं सँभल रहे थे।बड़े यत्न से साफ किया उन्हें भी उल्टा रखकर स्लैब पर लगाया।

 लो जी अब बारी आयी  तवा  महाराज की जो पूरा दिन  पूरे घर का बोझ उठा उठाकर जला भुना बैठा है,घर का मालिक...मैने मुस्कुराकर 'उन्हें' भी साफ करके फिर से गोरा चिट्टा बनाया।

अब आखिर में चाय की छलनी ...देखो सबके दोष कैसे निथारकर एक ओर फेंकती है!!अब खुद को तो बहुत ही करीने से साफ करना था।लिहाज़ा वक्त लगा ...पर चमचमा गयीं मैं...थोड़ी ही मेहनत से..।

 अब.....!!अब क्या..? मैं हूँ  ,मेरी रसोई!और  मेरे बरतन ...अक्सर तनहाई में बाते करते हैं और कहते हैं कि  चार बरतन होंगे तो बजेगें ही न....!और जो बजता नहीं वो  टूट  जाता है।

खैर...!!चाय बन रही है।पीकर जाइएगा।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 20 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की रचना ---- मेरा आसमान पिता,मेरा अभिमान पिता जग वरदान पिता,संकटों को टालता


धूप सा कड़क बन,छाँव की सड़क बन

उर की धड़क बन,पिता हमें पालता।


डाँट फटकार कर,कभी पुचकार कर,

सब कुछ वार कर,वही तो  सँभालता।


जीवन आधार बन,प्रगति का द्वार बन,

ईश का दुलार बन,साँचे में है ढालता।


मेरा आसमान पिता,मेरा अभिमान पिता

जग वरदान पिता,संकटों को टालता।


✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद

शनिवार, 19 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कहानी --वफादारी


अपने घर के दरवाज़े पर उस मरियल से कुत्ते को देखकर मीनू के शरीर में अजीब सी झुरझुरी हो गयी थी।किसी ने उस मासूम के पैरों पर साइकिल का पहिया उतार दिया था।पिछली दो टाँगे बिल्कुल टूट सी गयी थीं।वह किसी तरह घिसट घिसट कर अपने दिन पूरे कर रहा था।लोग उसे देखकर घृणापूर्वक अपना चेहरा घुमा लेते थे।शायद  इंसान की स्वार्थी फितरत के कारण उसे कई दिन से कुछ खाने को भी नहीं मिला था।

   एक पल को मीनू भी उसकी हालत देखकर सिहर गयी।पर शीघ्र ही स्वयं को संयत करते हुए अंदर गयी और ब्रैड के कुछ पीस दूध में भिगोकर उस कुत्ते के आगे डाल दिये।वह बहुत जल्दी जल्दी खाकर वहाँ से सरकता हुआ चला गया।अगले दिन मीनू ने अपने पति सुमित से कहकर उसके लिए कुछ ज़रूरी दवाइयाँ भी मँगवा ली थीं ।कालू भी अब रोज़ नियत समय पर आने लगा था ।काले रंग का होने के कारण मीनू ने उसे कालू  नाम दिया था ।मीनू  मास्क लगाकर,दस्ताने पहनकर रूई से उसके दवाई लगाती और दूध, ब्रैड  या रोटी खिलाती थी। रोज़ का यही क्रम बन चुका था। मीनू और कालू में माँ- बेटे का सा एक  अनकहा रिश्ता बन गया था।उस समय वह पाँच माह की गर्भवती थी।उसकी सेवा व स्नेह से कालू बहुत जल्द स्वस्थ होने लगा था।

उसकी सास व घर के अन्य सदस्य कालू के प्रति मीनू का यह लगाव देखकर नाक भौं सिकोड़ते थे।लेकिन मीनू बिना किसी की परवाह किये  चुपचाप कालू को खाना पानी देती रहती थी।

 धीरे- धीरे मीनू की डिलीवरी का समय नज़दीक आ गया था।डिलीवरी वाले दिन मीनू और उसके गर्भ के बच्चे की हालत नाज़ुक बताकर डाक्टर ने आपरेशन कर दिया। आपरेशन के बाद भी दोनो की हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था।लगभग चौथे दिन से मीनू और उसका बच्चा अप्रत्याशित रूप से स्वस्थ होने  शुरू हो गये।जल्द ही अस्पताल से घर आकर मीनू को कालू की चिंता भी सताने लगी।पता नहीं उसे किसी ने उसके पीछे कुछ  खाने को दिया भी होगा कि नहीं।रात को मीनू ने सुमित  से कालू के बारे में पूछा तो सुमित  ने जो बताया उसे सुनकर मीनू की आँखों से आँसू बहने लगे।

सुमित ने कहा,"सात -आठ दिन पहले कालू शिवमंदिर की सीढियों पर मरा हुआ पाया गया था।उसके मृत शरीर को सफाईकर्मियों ने उठाकर नाले में फेंक दिया।"

मीनू फूटफूटकर रोते हुए बोली,"ऐसे कैसे मर गया कालू...!!.वो तो बिल्कुल ठीक हो गया था !!"सुमित बोला,"हाँ वो ठीक तो था...!लेकिन मंदिर के पुजारी जी बता रहे थे कि कालू आठ दस दिन से मंदिर के बाहर ही बैठा रहता था और किसी के कुछ देने पर  भी कुछ  खा पी नहीं रहा था।"

   "शायद उसने भगवान से अपनी  ज़िंदगी के बदले तुम्हारी ज़िंदगी माँग ली थी।"यह कहते हुए सुमित ने मीनू को अपने सीने से चिपटा लिया। सुमित  की आँखें भी नम हो चुकी थीं।

   मीनू सुबकते हुए बोली,"सही कहते हो सुमित...!!वो मेरा संकट अपने साथ ले गया...!मरते हुए भी  वफ़ादारी दिखा गया एक बेजुबान..!"

✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मुरादाबाद

रविवार, 6 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर का गीत ----पूजन-सामग्री, कूड़ा-करकट, इनका कुशल प्रबंधन हो, बहता गंगाजल निर्मल हो, हरियाली का वंदन हो ।।


कितने जंगल खेत कटेंगें,

मानव तेरे विकास को ?

कितनी नदियां दूषित होंगी,

गंदे जल के निकास को ?


कठिन परिश्रम और करो

अब थोड़ा तो गौर करो,

हरी-भरी सुंदर धरती थी,

याद पुराना दौर करो।।


आओ अपनी धरती माँ का

वृक्षों से शृंगार करें,

धरती की धानी चूनर का

 आँचल फिर तैयार करें।।


पूजन-सामग्री, कूड़ा-करकट,

इनका कुशल प्रबंधन हो,

बहता गंगाजल निर्मल हो,

हरियाली का वंदन हो ।।


✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद

शुक्रवार, 4 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की लघुकथा----- बहू

 


"देखो भाभी,पापा की बातों का बुरा मत माना करो।अब उनकी उम्र हो गयी है,ऊपर से बीमार भी हैं।अगर कुछ उल्टा सीधा बोल भी रहे हैं,तो बुजुर्गों  की बात का बुरा नहीं मानते...और हाँ उनके खाने -पीने का भी खास ख़्याल रखा करो....इस घर की बहू होने के नाते आपका फर्ज़ है भाभी......बेटियाँ तो दूर रहकर कुछ भी नहीं कर पातीं....."सुमन अपनी भाभी,नेहा से फोन पर बात करते हुए बड़े समझाने वाले स्वर में कह रही थी। "

"बहू ..अरे बहू..! कहाँ चली गयीं, आज चाय देना ही भूल गयी क्या बेटा ?,"दूसरे कमरे से सुमन की बीमार सास ने कराहती  आवाज़ में  कहा ।सास की आवाज़ सुनकर सुमन ने कहा,"रुको भाभी ,अभी बाद में फोन करती हूँ..पापा जी का ख्याल रखना...।"कहकर सुमन ने फोन काट दिया। "इस बुढ़िया को पल भर भी चैन नहीं.... पता नहीं कब मरेगी..नाक में दम करके रखा है....पूरा दिन कभी चाय,कभी पानी.......कभी खाना....   बहू...! बहू....! करके इस बुढ़िया ने तो जीना मुश्किल कर दिया है....।"बड़बड़ाती सुमन चाय का पानी गैस पर रखने लगी।

,✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद

गुरुवार, 27 मई 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की लघुकथा------ चमचे

 


आज घर में समारोह था।मंगलगीत गाये जा रहे थे।स्वादिष्ट व्यंजनों से पात्र भरकर पंडाल में रखे जा रहे थे। पात्रों से भीनी -भीनी सुगंध आ रही थी।

  जैसे ही भोजन प्रारंभ हुआ,एक साथ बहुत से चमचे खीर के पात्र में डाले जाने लगे।खीर का पात्र यह देख बाकी व्यंजनों वाले पात्रों  की ओर देख कर गर्व से मुस्कुराया..और बोला,"देखा तुमने! कितने चमचे मेरे साथ हैं...!तुममें से बहुतों को तो एक भी चमचा नसीब नहीं हुआ...!!"

लेकिन कुछ ही देर में अचानक इतने सारे चमचे खीर के पात्र  में होने के कारण पात्र  की खीर जल्दी समाप्त होने लगी थी।खीर जैसे- जैसे खत्म हो रही थी चमचों की रगड़ से पात्र की दीवारें क्षतिग्रस्त होने लगीं और अंततः खीर के पात्र का संतुलन बिगड़ा और वह  धरती  पर औंधा लुढ़क गया। 

  खीर का पात्र गिरने से मालिक को अतिथियों के सामने बहुत अपमान महसूस हुआ ।उसने तुरंत नौकरों को बुलाया और झेंप मिटाने के लिए गुर्रा कर बोला,"यह खराब तली का पात्र यहाँ किसने रखा था...?जाओ!इस बेकार पात्र को कबाड़ में डाल दो!!....और दूसरा पात्र यहाँ रखो ।जल्दी करो..!!"

यह देख बाकी  व्यंजनों वाले पात्र,  अब खीर वाले पात्र की हँसी उड़ाने लगे...।और  चमचे..!!  वे अब अन्य व्यंजन वाले पात्रों की ओर तेजी से लपक रहे थे।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद

सोमवार, 24 मई 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कविता ----चुनाव


 आज फिर चुनाव था,

चुनाव होना था

राहत और आफ़त के बीच

 ज़िंदगी और मौत के बीच

हमेशा की तरह आज भी

बहुत तेज हवाएँ थीं

अड़ियलपन पर ख़ताएँ थीं

अचानक हवाओं ने तेजी पकड़ी

एक आँधी  आयी तगड़ी

और  सबकुछ समेटने लगी

मानवता तार- तार होने लगी

लाख लगाये मौत पर पहरे

मगर तबाही की  थी लहरें

लीलने लगी अचानक ही गाँव के गाँव

लो आखिर हो ही गया था चुनाव!!!


✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मुरादाबाद

शनिवार, 1 मई 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कहानी ---अनोखा विकास

     


किसी नगर में एक अनोखा वृक्ष था। उस वृक्ष पर बहुत सुंदर और सुनहरे फल लगते थे।जिन्हें विकास फल के नाम से जाना जाता था।समस्त जनता को वे फल उनके विभिन्न कार्यों के अनुसार, कम या ज्यादा तोड़कर दिये जाते थे।या यों कहिए कि उन विकास नामक फलों को खाकर ही उनको विभिन्न सुख- सुविधाएं प्राप्त होती थीं।परंतु जो भी राजा उस नगर में राज्य करता ,वह उन फलों के एवज़ में उनसे कुछ न कुछ अवश्य ही वसूलता था।

   एक बार वहाँ की प्रजा ने सोचा कि हम एक ऐसे राजा को चुनते हैं, जो हमसे बदले में कुछ भी न ले और यह फल भी खाने को मिल जायें।अतः नया राजा बनाया गया।जब विकास रूपी फल खाने का समय आया ,तब प्रजा राजा के दरबार पहुँची और उन फलों की माँग करने लगी।

 राजा ने उन सभी की बात सुनकर कहा,"ये फल आपको अवश्य मिलेंगे, परंतु इनके एवज़ में आपको अपनी जान देनी पड़ेगी!!"

"ये क्या कह रहे हो महाराज!!जान देकर हमें विकास का पता कैसे चलेगा?ये कैसा विकास है?"जनता ने विस्मित होते हुए पूछा।

तब राजा ने गंभीरतापूर्वक कहा,"आज से तुम्हारा ज़िंदा रहना ही सबसे बड़ा विकास होगा।क्योंकि तुमने मुफ्त में ही फलों के दर्शन किये हैं।उसके बदले हमने तुमसे  कभी कुछ नहीं लिया।"

"किन्तु...महाराज!!!"जनता ने कहना चाहा..

मगर  राजा ने उनकी एक न सुनी और उठकर अपने महल की ओर चल दिये। 

तबसे आज तक ,उस नगर में जनता दूर से ही उस वृक्ष पर लगे उन सुनहरे फलों को देख-देख कर ज़िंदा है और अन्य सुख-सुविधाएं भूलकर अपने जीवन को ही अपना विकास  समझने लगी है।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मुरादाबाद


मंगलवार, 27 अप्रैल 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कविता .......अच्छे दिन


एक बार फिर

दुनिया के सबसे बड़े

प्रजातांत्रिक देश में

चुनाव बड़े ही शांतिपूर्ण ढंग से

सम्पन्न हो रहे हैं।

बिल्कुल मरघट सी शांति .....!!

सड़कों पर पसरा सन्नाटा

मृत्यु का अट्टहास!

डरते लोगों को और डराया जायेगा

मरने पर ही तो मरहम लगाया जायेगा।

फक्क पड़े चेहरे...!!

बोझिल कदम

तपते बदन...

चुनाव पेटियों के साथ

जा रहे हैं अपने गंतव्य को..

शायद ये उनका अंतिम गंतव्य हो।

कोई और विकल्प बचा ही कहाँ है?

जान और माल दोनो के बीच

अपनी जान दाँव पर लगा दी है।

रोजी रही ,तभी तो  रोटी  भी मिलेगी।

क्योंकि राजनीति का गंतव्य भी 

तो यही है।

मौत के आगोश में सिमटकर

अच्छे दिन और भी खूबसूरत लगने लगेंगे।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर

मिलन विहार, मुरादाबाद 



शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की लघुकथा -----आस्तीन के साँप

 


मुखिया जी जुम्मन टेलर की दुकान पर पहुँचकर शर्ट का नाप देने खड़े ही हुए थे कि अचानक जेब में रखा मोबाइल फोन बज उठा।झल्लाते हुए मुखिया जी ने फोन रिसीव किया,"हैलो...!!क्या हुआ मनोज?अभी तो घर से आया हूँ...इतनी देर में क्या आफ़त आ गयी...।"

"पापा आफ़त तो बहुत बड़ी आ गयी है...हमारे कुछ समर्थक चुनाव से ऐन पहले दूसरे गुट में जा मिले हैं..।"मनोज लगभग हाँफते हुए बोला "पापा...आस्तीन के साँप निकले ये लोग तो..!!पता नहीं अभी और कौन कौन जायेगा उधर....??अब क्या होगा...!"

"कुछ नहीं होगा मनोज..!."मुखिया जी मुस्कुराते हुए बोले,"आस्तीन के साँप तो सब जगह होते हैं....हें हें हें...!!. उधर भी ज़रूर होंगे... उन्हें इधर बुला लेंगे ।"यह कहकर मुखिया जी ने रहस्यमयी मुस्कान के साथ फोन काट दिया।

"चलो भई जुम्मन मियाँ..!!नाप ले लो शर्ट का...".

"...और हाँ आस्तीनों में गुंजाइश ज़रा ज्यादा रखना।"मुखिया जी से गंभीर होते हुए  जुम्मन मियाँ से बोले।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद 244001

शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कहानी ----------आँसू और मुस्कान


एक बार आँसू और मुस्कान में बहस छिड़ गयी।मुस्कान ने कहा,"ओहहहहह तुम कितने बदसूरत हो!!तुम्हें कोई भी पसंद नहीं करता...।

मैं अगर किसी नवयौवना के होठों पर खिल जाऊँ तो योगी अपना योग छोड़ दें,

किसी बच्चे के अधरों पर खिल जाऊँ तो देवदूत फूल बरसा दें।किसी राजा के होठों पर बिखर जाऊँ तो प्रजा सुखी हो जाए,ईश्वर  यदि हँस दे तो सृष्टि में नवनिर्माण हो जाए।"

तब आँसू ने कहा,"निश्चय ही तुम रूपगर्विता हो,हर कोई तुम्हें पसंद करता है। तुम्हारी उपस्थिति से सुख का संचार होता है। परंतु मैं यदि किसी सुंदरी की आँखों में आ जाऊँ तो राजपाट हिला दूँ। किसी अबोध बालक की आँखों से बूँद बनके गिर पड़ूँ  तो बांझ स्त्रियों के आँचल से दूध की धार बहा दूँ। देश के राजा की आँखों में आ जाऊँ तो प्रजा अपना सर्वस्व  जीवन न्योछावर करने को तत्पर हो जाए और यदि  ईश्वर की आँख से निकलूँ तो प्रलय आ जाये।"

यह बहस चल ही रही थी कि एक तपस्वी वहाँ से निकले।उन दोनो की बातें सुनकर उन्होंने कहा,"शांत हो जाओ...।तुम दोनो ही ईश्वर प्रदत्त, मनुष्य के हृदय में उत्पन्न होने वाली त्वरित भावनाएँ हों।दोनो में से यदि एक न हो तो मानव,मानवता को प्राप्त नहीं कर सकता। "

यह सुनकर मुस्कान ने इठलाते हुए कहा,"जो कुछ भी आपने कहा उचित है..परंतु...?परंतु ..सुंदर तो फिर भी मैं ही हूँ न...?हर कोई मेरा ही साथ पाना चाहता है।आँसू को कोई भी नहीं पाना चाहता।"

इस पर तपस्वी ने कहा",निःसंदेह तुम अति सुंदर हो...!! तुम्हारा कथन भी उचित ही जान पड़ता है।...परंतु जो मनुष्य के सुख -दुख में बराबर साथ निभाये,वस्तुतः वही श्रेष्ठ और सुंदर होता है।"

"अर्थात...?"मुस्कान ने तनिक आश्चर्यचकित होते हुए पूछा

तपस्वी ने अपनी बात को विस्तार देते हुए कहा,"आँसू सुख और दुख दोनो में साथ निभाने बिना बुलाये ही चले आते हैं।और तुम....?तुम  तो ...केवल सुख की सहभागिनी हो ।मित्र की सुंदरता,धन और पद चाहे कितना भी श्रेष्ठ हो यदि वह मनुष्य के दुख में काम नहीं आ सकता तब वह व्यर्थ है।मित्र यदि निर्धन,कुरूप और पदहीन होकर भी अपने मित्र का दुख में साथ निभाये तो वही श्रेष्ठतम होगा।मित्र को सुंदर न सही पर दुख में साथ निभाने वाला अवश्य ही  होना चाहिए।आँसू की तरह....!!!!"

यह सुनकर मुस्कान निरूत्तर हो गयी।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद

रविवार, 25 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की रचना -----करने दुष्टों का सर्वनाश, हे राम पुनः अवतार धरो...

 


श्रीराम धरा पर आकर तुम,फिर से सृष्टि संचार करो,

करने दुष्टों का सर्वनाश, हे राम पुनः अवतार धरो।।


संकट में आयी मानवता,चहुँ ओर अँधेरा छाया है,

बोझिल धरती का अँधकार ,हरने प्रभु फिर उपकार करो


सारंग धनुष की टंकारें,गूँजे फिर दशो दिशाओं में,

भयमुक्त करो   मेरे भारत को,वीरो में तेज संचार करो।


हे मर्यादाओं के द्योतक! हे पुरुषोत्तम, हे अविनाशी,

नारी में लज्जा और नर में मर्यादा का विस्तार करो।।


श्रीराम दया के सागर हो,हे !करुणामय करुणा कर दो,

अब आर्यवर्त की धरती से बस दुष्टों का संहार करो।


लहराये तिरंगा अजर अमर ,भारत का मस्तक उठा रहे,

भाई भाई में प्रेम रहे ,ये विनती मेरी स्वीकार करो ।


हे शिव पिनाक भंजनहारी,हे कौशलनंदन,अखिलेश्वर

कलिकाल कलुष हर के रघुवर ,अविलम्ब धरा का भार हरो।।

✍️मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद 244001        उत्तर प्रदेश, भारत