एक बार आँसू और मुस्कान में बहस छिड़ गयी।मुस्कान ने कहा,"ओहहहहह तुम कितने बदसूरत हो!!तुम्हें कोई भी पसंद नहीं करता...।
मैं अगर किसी नवयौवना के होठों पर खिल जाऊँ तो योगी अपना योग छोड़ दें,
किसी बच्चे के अधरों पर खिल जाऊँ तो देवदूत फूल बरसा दें।किसी राजा के होठों पर बिखर जाऊँ तो प्रजा सुखी हो जाए,ईश्वर यदि हँस दे तो सृष्टि में नवनिर्माण हो जाए।"
तब आँसू ने कहा,"निश्चय ही तुम रूपगर्विता हो,हर कोई तुम्हें पसंद करता है। तुम्हारी उपस्थिति से सुख का संचार होता है। परंतु मैं यदि किसी सुंदरी की आँखों में आ जाऊँ तो राजपाट हिला दूँ। किसी अबोध बालक की आँखों से बूँद बनके गिर पड़ूँ तो बांझ स्त्रियों के आँचल से दूध की धार बहा दूँ। देश के राजा की आँखों में आ जाऊँ तो प्रजा अपना सर्वस्व जीवन न्योछावर करने को तत्पर हो जाए और यदि ईश्वर की आँख से निकलूँ तो प्रलय आ जाये।"
यह बहस चल ही रही थी कि एक तपस्वी वहाँ से निकले।उन दोनो की बातें सुनकर उन्होंने कहा,"शांत हो जाओ...।तुम दोनो ही ईश्वर प्रदत्त, मनुष्य के हृदय में उत्पन्न होने वाली त्वरित भावनाएँ हों।दोनो में से यदि एक न हो तो मानव,मानवता को प्राप्त नहीं कर सकता। "
यह सुनकर मुस्कान ने इठलाते हुए कहा,"जो कुछ भी आपने कहा उचित है..परंतु...?परंतु ..सुंदर तो फिर भी मैं ही हूँ न...?हर कोई मेरा ही साथ पाना चाहता है।आँसू को कोई भी नहीं पाना चाहता।"
इस पर तपस्वी ने कहा",निःसंदेह तुम अति सुंदर हो...!! तुम्हारा कथन भी उचित ही जान पड़ता है।...परंतु जो मनुष्य के सुख -दुख में बराबर साथ निभाये,वस्तुतः वही श्रेष्ठ और सुंदर होता है।"
"अर्थात...?"मुस्कान ने तनिक आश्चर्यचकित होते हुए पूछा
तपस्वी ने अपनी बात को विस्तार देते हुए कहा,"आँसू सुख और दुख दोनो में साथ निभाने बिना बुलाये ही चले आते हैं।और तुम....?तुम तो ...केवल सुख की सहभागिनी हो ।मित्र की सुंदरता,धन और पद चाहे कितना भी श्रेष्ठ हो यदि वह मनुष्य के दुख में काम नहीं आ सकता तब वह व्यर्थ है।मित्र यदि निर्धन,कुरूप और पदहीन होकर भी अपने मित्र का दुख में साथ निभाये तो वही श्रेष्ठतम होगा।मित्र को सुंदर न सही पर दुख में साथ निभाने वाला अवश्य ही होना चाहिए।आँसू की तरह....!!!!"
यह सुनकर मुस्कान निरूत्तर हो गयी।
✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (22-11-2020) को "अन्नदाता हूँ मेहनत की रोटी खाता हूँ" (चर्चा अंक-3893) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत बहुत धन्यवाद, भाई साहब ।
हटाएंअति सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
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