कितने जंगल खेत कटेंगें,
मानव तेरे विकास को ?
कितनी नदियां दूषित होंगी,
गंदे जल के निकास को ?
कठिन परिश्रम और करो
अब थोड़ा तो गौर करो,
हरी-भरी सुंदर धरती थी,
याद पुराना दौर करो।।
आओ अपनी धरती माँ का
वृक्षों से शृंगार करें,
धरती की धानी चूनर का
आँचल फिर तैयार करें।।
पूजन-सामग्री, कूड़ा-करकट,
इनका कुशल प्रबंधन हो,
बहता गंगाजल निर्मल हो,
हरियाली का वंदन हो ।।
✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद
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