शनिवार, 19 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कहानी --वफादारी


अपने घर के दरवाज़े पर उस मरियल से कुत्ते को देखकर मीनू के शरीर में अजीब सी झुरझुरी हो गयी थी।किसी ने उस मासूम के पैरों पर साइकिल का पहिया उतार दिया था।पिछली दो टाँगे बिल्कुल टूट सी गयी थीं।वह किसी तरह घिसट घिसट कर अपने दिन पूरे कर रहा था।लोग उसे देखकर घृणापूर्वक अपना चेहरा घुमा लेते थे।शायद  इंसान की स्वार्थी फितरत के कारण उसे कई दिन से कुछ खाने को भी नहीं मिला था।

   एक पल को मीनू भी उसकी हालत देखकर सिहर गयी।पर शीघ्र ही स्वयं को संयत करते हुए अंदर गयी और ब्रैड के कुछ पीस दूध में भिगोकर उस कुत्ते के आगे डाल दिये।वह बहुत जल्दी जल्दी खाकर वहाँ से सरकता हुआ चला गया।अगले दिन मीनू ने अपने पति सुमित से कहकर उसके लिए कुछ ज़रूरी दवाइयाँ भी मँगवा ली थीं ।कालू भी अब रोज़ नियत समय पर आने लगा था ।काले रंग का होने के कारण मीनू ने उसे कालू  नाम दिया था ।मीनू  मास्क लगाकर,दस्ताने पहनकर रूई से उसके दवाई लगाती और दूध, ब्रैड  या रोटी खिलाती थी। रोज़ का यही क्रम बन चुका था। मीनू और कालू में माँ- बेटे का सा एक  अनकहा रिश्ता बन गया था।उस समय वह पाँच माह की गर्भवती थी।उसकी सेवा व स्नेह से कालू बहुत जल्द स्वस्थ होने लगा था।

उसकी सास व घर के अन्य सदस्य कालू के प्रति मीनू का यह लगाव देखकर नाक भौं सिकोड़ते थे।लेकिन मीनू बिना किसी की परवाह किये  चुपचाप कालू को खाना पानी देती रहती थी।

 धीरे- धीरे मीनू की डिलीवरी का समय नज़दीक आ गया था।डिलीवरी वाले दिन मीनू और उसके गर्भ के बच्चे की हालत नाज़ुक बताकर डाक्टर ने आपरेशन कर दिया। आपरेशन के बाद भी दोनो की हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था।लगभग चौथे दिन से मीनू और उसका बच्चा अप्रत्याशित रूप से स्वस्थ होने  शुरू हो गये।जल्द ही अस्पताल से घर आकर मीनू को कालू की चिंता भी सताने लगी।पता नहीं उसे किसी ने उसके पीछे कुछ  खाने को दिया भी होगा कि नहीं।रात को मीनू ने सुमित  से कालू के बारे में पूछा तो सुमित  ने जो बताया उसे सुनकर मीनू की आँखों से आँसू बहने लगे।

सुमित ने कहा,"सात -आठ दिन पहले कालू शिवमंदिर की सीढियों पर मरा हुआ पाया गया था।उसके मृत शरीर को सफाईकर्मियों ने उठाकर नाले में फेंक दिया।"

मीनू फूटफूटकर रोते हुए बोली,"ऐसे कैसे मर गया कालू...!!.वो तो बिल्कुल ठीक हो गया था !!"सुमित बोला,"हाँ वो ठीक तो था...!लेकिन मंदिर के पुजारी जी बता रहे थे कि कालू आठ दस दिन से मंदिर के बाहर ही बैठा रहता था और किसी के कुछ देने पर  भी कुछ  खा पी नहीं रहा था।"

   "शायद उसने भगवान से अपनी  ज़िंदगी के बदले तुम्हारी ज़िंदगी माँग ली थी।"यह कहते हुए सुमित ने मीनू को अपने सीने से चिपटा लिया। सुमित  की आँखें भी नम हो चुकी थीं।

   मीनू सुबकते हुए बोली,"सही कहते हो सुमित...!!वो मेरा संकट अपने साथ ले गया...!मरते हुए भी  वफ़ादारी दिखा गया एक बेजुबान..!"

✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मुरादाबाद

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