खो गयी हैं मंज़िलें भी, लड़खड़ाता देखकर,
छोड़कर वो चल दिये डूबा किनारा देखकर।।
वो पराया हो गया ,जो था कभी मेरा सनम
हो गयी हैरान हूँ मैं ये नज़ारा देखकर।
ज़िंदगी नाराज़ है या ,है मुकद्दर की ख़ता
मौत भी खामोश है मुझको तड़पता देखकर
फैसला तकदीर का जो हो गया अब आखिरी
मैं अकेली ही चली,सबको पराया देखकर ।
आँधियों औकात में रहना ज़रा कुछ देर तक,
झुक सका क्या आसमाँ,टूटा सितारा देखकर ।
✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश, भारत
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