शनिवार, 1 मई 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कहानी ---अनोखा विकास

     


किसी नगर में एक अनोखा वृक्ष था। उस वृक्ष पर बहुत सुंदर और सुनहरे फल लगते थे।जिन्हें विकास फल के नाम से जाना जाता था।समस्त जनता को वे फल उनके विभिन्न कार्यों के अनुसार, कम या ज्यादा तोड़कर दिये जाते थे।या यों कहिए कि उन विकास नामक फलों को खाकर ही उनको विभिन्न सुख- सुविधाएं प्राप्त होती थीं।परंतु जो भी राजा उस नगर में राज्य करता ,वह उन फलों के एवज़ में उनसे कुछ न कुछ अवश्य ही वसूलता था।

   एक बार वहाँ की प्रजा ने सोचा कि हम एक ऐसे राजा को चुनते हैं, जो हमसे बदले में कुछ भी न ले और यह फल भी खाने को मिल जायें।अतः नया राजा बनाया गया।जब विकास रूपी फल खाने का समय आया ,तब प्रजा राजा के दरबार पहुँची और उन फलों की माँग करने लगी।

 राजा ने उन सभी की बात सुनकर कहा,"ये फल आपको अवश्य मिलेंगे, परंतु इनके एवज़ में आपको अपनी जान देनी पड़ेगी!!"

"ये क्या कह रहे हो महाराज!!जान देकर हमें विकास का पता कैसे चलेगा?ये कैसा विकास है?"जनता ने विस्मित होते हुए पूछा।

तब राजा ने गंभीरतापूर्वक कहा,"आज से तुम्हारा ज़िंदा रहना ही सबसे बड़ा विकास होगा।क्योंकि तुमने मुफ्त में ही फलों के दर्शन किये हैं।उसके बदले हमने तुमसे  कभी कुछ नहीं लिया।"

"किन्तु...महाराज!!!"जनता ने कहना चाहा..

मगर  राजा ने उनकी एक न सुनी और उठकर अपने महल की ओर चल दिये। 

तबसे आज तक ,उस नगर में जनता दूर से ही उस वृक्ष पर लगे उन सुनहरे फलों को देख-देख कर ज़िंदा है और अन्य सुख-सुविधाएं भूलकर अपने जीवन को ही अपना विकास  समझने लगी है।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मुरादाबाद


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