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शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा --- अच्छी खबर


"उफ्फ... यह पेपर वाले भी न कोई ढंग की खबर छाप ही नहीं सकते ।" नेता जी ने पेपर को टेबल पर फेंकते हुए गुस्से से कहा ।

"सारी अच्छी ही तो खबर हैं साहब.... आज के पेपर में कोई भी बुरी खबर नहीं है ।" आदतन करीमन बाई ने पोछा निचोड़ते हुए कहा.

"इसे बोलने को कौन कहता है... चुप... नेताजी गुस्से से आग बबूला होते हुए अपनी धर्मपत्नी से बोले. अपनी डाट सुनकर करीमन चुप हो गई और जल्दी जल्दी पोछा लगाने लगी. सोचती जा रही थी कि आज सुबह जब उसने पेपर पढ़ा घर के बाहर से उठाते हुए तब तो कोई भी बुरी खबर नहीं थी. न किसी का अपहरण न चोरी डकैती, न खून और न ही धोखा धड़ी.... और कोई बलात्कार भी नहीं... छी l"

"टी. वी. ऑन तो कीजिए नेता जी देखिए... ।" बनवारी लाल छुटभैये ने खुशी से घर में घुसते ही चिल्लाते हुए कहा l

खबर देखकर नेता जी के  चेहरे पर रौनक ही छा गई.

बनवारी गाड़ी निकालो आज ही हमें इस गांव जाकर बलात्कार पीड़ित परिवार वालों को  सहानुभूति देकर अपने प्रतिद्वंदी को सत्ता से उतार कर कुर्सी छीननी ही है l

खुश होते हुए दोनों बाहर चले गए.

करीमन को अच्छी खबर की जानकारी आज हुई.

✍️राशि सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी ----लालच

 


"नदी का पानी कहीं से तो आ रहा है? "इसका पता लगाते लगाते पारस उस धारा के साथ साथ चलने लगा. सुबह से शाम हो गई लेकिन किनारा नहीं मिला. थककर एक जगह बैठ गया और थोड़ी देर बैठा ही रहा.

घर वापस जाने पर फिर से वीवी की वही फटकार खानी थी... "कैसे निकम्मे आदमी से विवाह कर दिया मेरे बापू ने... न कुछ कमाता न धमाता बस फक्कड़ सा रास्तों की खाक छानता है l" यह डायलॉग वह पिछले कई सालों से सुनता आ रहा था.

फिर उसने अपनी कलम निकाली और पेन से कुछ लिखने लगा.

उसको लिखने का बड़ा शौक था लेकिन अभी तक कुछ प्रकाशित तो हुआ नहीं था और हो भी जाता तो कहाँ उसका राजमहल बनने वाला था?

उसने एक गहरी साँस ली और कुछ लिखने लगा.

लेकिन यह क्या?

बार बार उसके हाथ से शब्द बनने की बजाय  एक पक्षी का चित्र बन जाता जोकी कभी उसने देखा ही नहीं था लेकिन मन में यह विचारकरके कि प्रभु की महिमा अनंत है वह उस चित्र को पूरा करने लगा.

"छी... इतना भयानक पक्षी.... एक हँसता हुआ पक्षी जिसके बड़े बड़े दाँत थे उसने बनाया नहीं अपने आप बन गया वह चित्र.

वह बहुत कोशिश करता रहा लेकिन ऎसा लग रहा था मानो कोई अदृश्य शक्ति उससे यह काम करा रही हो.

तभी यह क्या? वह पक्षी पेज से फड़फ़डाता हुआ निकला और उड़कर टीले पर बैठ गया. उसका आकार अजीब सा था.

उसकी कंचे सी उलसी लाल लाल खून टपकाती आंखें और लाल सुर्ख मांस के लोथड़े सी नाक.... और तितर बितर पंख जोकि बहुत ही गंदे से थे.

"यह चील, बाज या गिद्ध तो नहीं है l" उसने मन ही मन कहा.

"मैं तुमको इस धारा की गोद में जहां से इसकी उत्पत्ति हुई है ले जा सकता हूं l" वह पक्षी मानवीय किंतु कर्कश स्वर में बोला, सुनकर एक बार तो पारस भी भयभीत हो गया लेकिन उसने खुद को संयमित किया और पसीने को पोंछते हुए बोला...

"मुझे कुछ नहीं देखना l"

"अगर तुम मेरे साथ नहीं जाओगे तो मैं तुमको खा जाऊंगा l" वह पक्षी क्रोधित होते हुए बोला और उसके ऊपर मंडराने लगा एक बार तो इतनी तेज पंजा उसके सिर में मारा कि उसको चक्कर सा आ गया l"

"अब तो जाने में ही भलाई है l" सोचता हुआ वह बोला.. 

"रुको.. मैं चलता हूँ l"

"चलो.... l" 

फिर उस पक्षी ने अपना आकर बढ़ाया और पारस से पीठ पर बैठने को कहा. 

वह डरते हुए उसकी पीठ पर बैठ गया और उसने उड़ने के लिए अपने पंख खोल दिए. 

कुछ देर तक उड़ने के बाद वह एक खण्डर नुमा स्थान पर उतर गया जहां कि अजीब अजीब सी आवाजें आ रहीं थीं ऎसा लग रहा था मानो बहुत से दर्द से पीड़ित लोग एक साथ कराह रहे हों. 

वह पक्षी वहां से उड़ने लगा तो पारस ने पूछा यहां तो कोई नदी नहीं है परंतु वह बिना कोई उत्तर दिए उड़ गया. 

तभी अंधेरी कोठरी से कई कंकाल चलते हुए उसके पास आए और बोले.... 

"हम बहुत प्यासे हैं.... भला हो उस दयालु पक्षी का जो तुमको हमारे पास ले आया अब हम तुम्हारा रक्त पीकर अपनी प्यास बुझाएंगे l" और जोर जोर से अट्टहास करने लगे पारस भय से थरथराने लगा. 

सारे कंकाल आकर उससे लिपट गये और अपने नुकीले दाँत उसके शरीर में गड़ाने लगे. 

वह दर्द से कराह उठा और जोर जोर से रोने लगा. उसकी दर्द भरी चीख सुनकर सब कंकाल जोर से अट्टहास करने लगे. 

वह पक्षी जो गायब हो गया था उसको वहां लाकर वह भी अब वहीं आ गया और एक लड़की में परिवर्तित हो गया.जो बेहद खूबसूरत थी. 

वह उन कंकालों पर दहाड़ी... 

"रहने दो... छोड़ो इसे... ये मानव हैं ही ऎसे... अब इनका खून आपस में चूसने को छोड़ दो.... लालची मनुष्य l" कहते हुए उसने पारस में एक लात मारी और वह लुढ़कता हुआ उसी स्थान पर आ पहुंचा जहां से वह उस पक्षी के साथ गया था. वहां नहीं थी जो चीज तो वह थी नदी की धारा जिसकी खोज में वह लालच से वशीभूत हो उस जादुई पक्षी के साथ गया था. 

✍️ राशि सिंह , मुरादाबाद , उत्तर प्रदेश 


गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी -----दुश्वारियां


दीप्ति ने उदास मन से खाना बनाया आलोक और सास ससुर क़ो खाना लगा दिया .....ईशा अपने कमरे में पढ़ रही थी इस बार हाई स्कूल है उसका , कई बार खाने क़ो बुलाने के बाद भी वह खाने के लिए नीचे नहीं आई .दीप्ती की बात तो न मानने की जैसे उसने कसम ही खा ली है .सुनती ही नही बड़ी चिढ्चिढी सी हो गई है .

​"ईशा खाना खा लो ....l"इस बार आलोक ने आवाज दी मगर कोई उत्तर नहीं आया .

​"तू क्यों चिल्ला रहा है ....आ जाएगी ?"ईशा के दादा जी ने धीरे से कहा और खुद ही ऊपर बुलाने चले गए .

​थोड़ी देर बाढ़ ईशा नीचे आई और बिना अपने मम्मी पापा से बोले खाना खाने बैठ गई l

​"रायता लोगी बेटा ?"दीप्ती ने प्यार से पूछा .

​"मैं जो खाऊंगी ले लुंगी ....आप तो रहने ही दीजिए l"ईशा ने रूखेपन से कहा तो दीप्ति सहम गई , आलोक सब देख रहे थे .

​"ईशा यह कौन सा तरीका है मम्मी से बात करने का ?"सुनकर ईशा आलोक की तरफ भी घूरने लगी यह देखकर दादी बोलीं ...."हाँ हाँ जो खाना होगा खा लेगी तुम दोनों क्यों परेशान हो रहे हो ?"

​"लेकिन मम्मी ....l"

​"जाओ तुम आराम करो l"दादू ने आलोक की बात क़ो बीच में ही काटते हुए कहा .

​दीप्ति की आँखों से नींद कोसों दूर थी , अभी पिछले साल तक जो बेटी उसके बिना पलक तक नहीं झपकाती थी अब बात बात पर काटने क़ो दौड़ती है .

​"क्या हुआ ?"आलोक ने उसके पास बैठते हुए कहा .

​"कुछ नहीं ....मुझे लगता है हम लोगों ने ठीक नहीं किया शादी करके l"दीप्ति ने बेचैनी से कहा .

​"देखो दीप्ति हमने किन हालातों में शादी की है यह तुम भी अच्छी तरह से जानती हो ....ईशा के अच्छे भविष्य और उसकी सुरक्षा के लिए न ....तुम चिंता मत करो धीरे धीरे वह सब समझ जाएगी ....मुझ पर विश्वास रखो l"सुनकर दीप्ति की आँखें भर आई .

​अचानक दरवाजा खटखटाने पर जब दीप्ति ने खोला तो सामने ईशा खड़ी थी ....देखकर दीप्ति उससे लिपट गई .

​"मुझे आपके पास सोना है l"उसने मासूमियत से कहा सुनकर आलोक क़ो हँसी आ गई और दीप्ति भी मुस्करा दी .

​"हाँ बेटा क्यों नहीं ....तुम जहाँ सोना चाहो सो सकती हो ...मुझ पर और इन पर पूरा हक है तुम्हारा l"दीप्ति ने प्यार से ईशा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा .

​"हाँ ....और तुम जैसे कहोगी वैसे ही होगा 

​ प्रॉमिस l"आलोक ने भी प्यार से कहा .

​"सच ...?"

​"हाँ l"

​"मुझे डर लगता है कहीं आप भी मुझसे दूर न हो जाओ जैसे भगवान ने पापा क़ो मुझसे दूर कर दिया l"ईशा ने सुबकते हुए कहा .

​"नहीं बेटा .....हमारी और इस घर की तुम दुनियाँ हो ...सच्ची l"आलोक ने फिर प्यार से कहा .

​ईशा क़ो कमरे में अंदर करके आलोक जाने लगे तो ईशा ने उनका हाथ पकड़कर रोक लिया .

​"आप मेरी मम्मी क़ो कभी परेशान तो नहीं करोगे ?"

​"ईशा ......यह क्या ?"

​"बोलने दो इसको ....l"आलोक ने दीप्ति की बात क़ो बीच में ही काटते हुए कहा .

​ईशा बहुत देर तक बात करती रही और जब वह संतुष्ट हो गई तो उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई .

​"अब खुश ?"

​"जी l"

​"चलो जाओ सो जाओ दोनों माँ बेटी ....मुझे सुबह जाना भी है ....तैयारी कर लूँ l"आलोक ने मुस्कराते हुए कहा .

​"हम तीनों करते हैं न आपकी तैयारी l"ईशा ने खुशी से कहा और तीनों जोर से हँस पड़े .

​दरसल आलोक ईशा के चाचु थे जोकि उसके पापा से कई वर्ष छोटे भी थे और आर्मी में कर्नल थे .ईशा के पापा का देहांत तीन साल पहले एक कार एक्सीडेंट में हो गया था .पोती और बहु की सुरक्षा के लिए उसके दादी दादू ने ही एक साल पहले दोनों क़ो बड़ी मुश्किल से विवाह के लिए राजी किया था ....दोनों का बेहद सादे समारोह में विवाह कर दिया गया जिससे मासूम ईशा के मन क़ो बड़ा धक्का लगा उसको लगा कि उसकी माँ भी उससे दूर हो जाएगी .

​"आज बहुत दिनों बाद घर में यह तीनों हँसे है l"दादी ने आँसू पौंछते हुए कहा .

​"चिंता न करो दया सब ठीक हो जाएगा l"दादू ने आराम की गहरी साँस लेते हुए कहा .

​✍️राशि सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश 


बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ----- बदलते भाव

वह गर्दन झुकाए चुपचाप बैठा था कई उसी जैसे किसान आए और अपने अनाज का मोलभाव आडतिए से करके चले गए उनके चेहरों पर बेबसी और आडतिए के चेहरे पर ऎसे भाव थे जैसे कि उनका अनाज सस्ते में खरीद कर एहसान कर रहा हो. 

"अरे बड़े गंदे गेहूं हैं.... इनका तो दो रुपया कम ही लगेगा l" उस आडतिए ने मुट्ठी में गेहूं भरा और मूँह बनाते हुए तंबाकू की पीक मार दी एक तरफ l

"लेकिन बाबूजी देखो न कैसे मोती से गेहूं..... l" उसने अपने गेहूं की तरफ प्रेमभाव से देखते हुए कहा जैसे माता पिता अपनी संतान की तरफ देखती हैं l

"नहीं बेचना क्या? जाओ यहां से समय बर्बाद करने आ गया l" आडतिया डपटते हुए बोलाl

"नहीं बाबूजी बेचना है बेचना है उसकी आँखों में बेटी का विवाह बेटे की स्कूल फीस घर की टूटी छत और उसकी पूरी दुनियाँ घूम गई. 

" और हाँ एक कुंतल पर एक किलो छीज कटेगी... वो तोलने में कम हो जाता है न l"उसने फिर बेशर्मी से कहा l

"लेकिन बाबूजी रहेगा तो आपके पास ही जो कम होगा...!" 

"तू जा यहां से अब.... l" आडतिए ने फिर से झिड़का l

"ठीक है l" कहते हुए उसने अपनी बैलगाड़ी मोड़ दी और उसके पीछे औरों ने भी अब भाव दोनों बदलने वाले थे चेहरों के भी और अनाज के भी l


राशि सिंह , मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश 

(

बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की दो लघुकथाएं ---"दा रियल हीरो" व "मानसिकता"



(1) लघुकथा ---- 'दा रियल हीरो  '

"अजी सुनती  हो ...यह देखो डाक  बाबू संदेशा  लाये  हैं l " ग्राम  प्रधान  मोरसिंह  ने अपनी धर्मपत्नी  विमला  देवी को हाथ में लगे लिफ़ाफ़े  को दिखाकर  मूढे पर बैठते हुए कहा l 

"अजी अब पढ़कर तो सुनाओ  l " विमला देवी ने   मट्ठे की मटकिया  को हिलाकर  उसमें आई नैनी  को पौरुओं  से निकालकर कूंढ़ी  में रखते हुए कहा l 

"अरे...यह का ...हमारे गाँव को राष्ट्रपति  सम्मान के लिए चुना  गया है l " प्रधान जी ने खुशी से उछलते हुए कहा l आठवीं   कक्षा   तक पढ़े   मोरसिंह को लिखने पढ़ने का बहुत ही शौक है l 

"अच्छा...हे भगवान  यह तो हम सबके लिए बहुत खुशी की बात है l " विमला देवी  ने एक लोटा  ताजी   मट्ठा   प्रधानजी  को थमाते   हुए कहा l 

"हाँ...बहुतई खुशी की बात है ...आज उनकी तपस्या  सफल  हो गयी l "

"किसकी  ?"

"जिन्हौने गाँव को इस काविल   बनाया l "

"किसने   ?"

"लखना  और हरिया  ....असली हकदार  वही हैं ...सवेरे  ही आकर पूरे गाँव की सफाई करते हैं ...औरगाँव वाले भी सहयोग   करते हैं l मोरसिंह ने मूंछों को ताव देते हुए 

कहा l 

"हाँ  यह तो ठीक है ..मगर ..l "

"मगर क्या ?"

"ज्यादा प्रसंशा करने से  बौरा जाएंगे बे ..l "

"अरी विमला ...प्रसंशा से बौराते  नहीं ,वरन यह तो मार्गदर्शक  का काम करती है ....देखना हम उन दोनों को भी ले जाएंगे राष्ट्रपति भवन  l " मोरसिंह की आँखों में प्रेम और अपनेपन  की चमक थी l विमला देवी का गला भी रूंध  गया l 

"हाँ जी ठीक कहते हो ,सभी हकदार हैं इसके क्योंकि "अकेला  चना भाड़  नहीं झौंक  सकता ।"

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(2) लघुकथा ----'मानसिकता '

पूरे चार साल बाद वह अपने भाई और चचेरे भाई के साथ गई थी मेला. मेले में सर्कस लगा हुआ था जिसे वह बड़े चाव से देखती थी . तीनों सीढ़ियानुमा बल्लियों पर बैठे सर्कस का आनंद ले रहे थे. कभी भालू के कारनामे तो कभी बंदर के कभी शेर की दहाड़ तो कभी गैंडे का प्रदर्शन. वह बहुत रोमांचित हो रही थी और खुशी से चिल्ला रही थी.जोकर का हजामत वाला दृश्य तो हंसा कर पेट दर्द कर गया. 

"इसकी देखो कितना हंस रही है?" चचेरे भाई ने मूँह बनाते हुए कहा. 

"हाँ... पागल है पहले जैसी ही. दिमाग वही बचपन वाला है वैसे इंजीनियरिंग कर रही है l" भाई ने भी हँसते हुए कहा. 

"अरे अब आई देख न!" चचेरा भाई चिल्लाया. "छोरियां " 

दोनों के चेहरे पर धूर्त मुस्कान आ गई. 

वह लड़कियां छोटे छोटे कपड़े पहनकर रस्सी पर करतब दिखा रहीं थीं कभी छल्ले को अपनी कमर में डालकर घुमा रहीं थीं. 

पेट क्या नहीं कराता? 

"मजा नहीं आया.... सारी उम्रदार हैं?" चचेरे भाई ने मूँह बनाते हुए कहा. 

उसकी हँसी काफूर हो चुकी थी. 

सिर शर्म से झुक गयाऔर वह अपने कपड़े संभालने लगी जैसे उसे निर्वस्त्र कर दिया हो. 

✍️राशि सिंह, मुरादाबाद 244001


गुरुवार, 1 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की दो लघुकथाएं ----- 'भ्रांत धारणा ' और 'यथावत'


(1)   'भ्रांत धारणा '
आज अदिति बुरी तरह से दर्द से कराह रही थी , गर्भाशय की रसौली का ऑपरेशन जो हुआ था , डॉक्टर तो ऑपरेशन के बाद बस सुबह शाम हाल चाल पूछने आते थे बाकि पूरे दिन दवाई देने से लेकर ....साफ सफाई तक का काम सफेद कोट पहने छोटी उम्र से लेकर बड़ी उम्र तक की लड़कियां और महिलाएं नर्स ही कर रही थी .
​उनकी जिंदगी के झंझावत भी कम नहीं होते फिर भी कितनी खुशी खुशी काम करती हैं यदि इनको भगवान का दूसरा रूप कहिए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी .
​"आप उधर करवट लीजिए आपका पैड चेंज करना है l"मधुर आवाज उसके कानों में गूंजी तो अदिति उसकी ओर देखने लगी  .
​"बेटा खाना खा लेना ....दाल बनाई है ....अब पढ़ाई कर लो मन नहीं लग रहा तो क्या हुआ ?"उसने फोन पर मीठी सी दाँट लगाते हुए कहा .
​"आपका बच्चा था क्या ?"अदिति ने जिज्ञासावश पूछ लिया .
​"जी...बच्ची थी  l"उसने हंसते हुए कहा .
​"घर  पर किसके पास रहती है ?"
​"कोई नहीं है ....l"
​"आपके पति ....?"
​"वह भाग गया l"
​"कहाँ ?"
​"दूसरी औरत के पास l"उसने फटाफट सफाई करते हुए कहा अदिति मन ही मन सकुचा रही थी .
​"कितना मीठा बोलती हैं सारी सिस्टर्स यहां l"
​"हाँ मैडम जिंदगी ने सबको इतने कड़वे अनुभव दे रखे हैं कि और किसी से क्या कड़वा बोलें l"उसने फिर से मुस्कराते हुए कहा .
​"जब जरूरत हो तो फोन करवा दीजिए ...मैं आ जाऊंगी l"कहती हुई वह रूम से बाहर निकल गई और अदिति का मन भर आया .
​नर्सों क़ो लेकर अदिति के मन में हमेशा के लिए एक धारणा बन गई थी जब उसकी दीदी के बेटा हुआ और वह अस्पताल में गई थी कितनी खुशी खुशी ये नर्सें अपने काम कर रही थीं जिनको करने में एक आम इंसान क़ो बड़ी शर्म आए ......वक्षस्थल से लेकर योनि तक की सफाई छी   .."कोई भी नौकरी कर लो मगर यह नहीं करनी चाहिए l"अदिति ने मन ही मन सोचा .
​लेकिन कभी मन में आया ही नहीं था कि इस काम के लिए कितना बड़ा जिगरा चाहिए .
​"क्या हुआ ?"पति ने अदिति के कांधे पर हाथ रखा तो अदिति की तंद्रा भंग हुई और वह मन में ग्लानि लिए फिर से लेट गई .
(2)    यथावत

पार्क  के चारों और बड़े बड़े छाँवदार  वृक्ष  लगे हुए थे ,जिनपर  बैठे पक्षिओं  का कलरव  मन को पुलकित  कर सकता था ,मगर कोई सुने  तब न !,वहीं छोटी छोटी  फूलो की क्यारियां  और हवा  के झौंके  के साथ हिलते  मुस्कराते फूल वातावरण की ताजगी  में चार चाँद लगा रहे थे l 

घनी आबादी  के बीच बना यह पार्क  जैसे ऑक्सीजन  का इकलौता  साधन  था मोहल्ले  वालों को l 

झूलों  पर बच्चे झूल  रहे थे l कई जोड़े  तेज कदमों  से चलकर  शरीर पर जमी चर्बी  को सुखाने  का काम कर रहे थे और चर्बी मुस्करा रही थी कि काम धाम  किसी को है नहीं ,खाने को घर की दाल रोटी काटने को दौड़ती  है सड़क पर लगे ठेलों  पर मख्खिओं  की भांति शाम होते ही भिनभिनाने  लगते हैं ,और मुझ  बेचारी(हवा) को देखकर रोते हैं कि कहीं से भी निकल लेती हूँ. 

जहां -तहाँ  पडी बैंचों  पर कई महिलायें  आधुनिक  वस्त्रों  में लिपटी  ,लिपी  -पुती  गर्दन मटका  -,मटका कर चेहरे पर बनावटी  मुस्कान लिए बतिया   रहीं थीं l 

मशगूल थीं सब चुगलखोरी  करने में कोई सास की तो कोई बहु की ,कोई पति की  ,कोई पड़ोसी  की कोई कामवाली   की l 

बेचारी हवा को सब कुछ सुनना पड़ रहा था l सब कुछ बदल गया है मगर नारी  का स्वभाव   यथावत  है हर क्षेत्र में बेहतरी  मगर अपनी विरासत  (चुगलखोरी )को भला कैसे छोड़ दें  तन्हा ?

✍️राशि सिंह 

मुरादाबाद उत्तर प्रदेश 


गुरुवार, 24 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी -----पत्थर की औरत


"अरे मारो इसे... कुलटा है यह... डायन है.... सबको बर्बाद कर देगी l" एक महिला जिसके वस्त्र फटे हुए थे बाल खुले हुए उस पर पत्थर बरसाती भीड़ चिल्ला रही थी.

वह पीड़ा से तड़पती अपनी जान की दुहाई मांग रही थी मगर लोगों पर तो जैसे खून सवार था.

उस महिला ने एक अपराध जो कर लिया था किसी का हाथ थामने का.

"इस उम्र में विवाह रचाएगी यह... गाँव की दूसरी महिलाओं पर कितना बुरा असर पड़ेगा l" एक व्यक्ति ने दाँत पीसते हुए कहा यह व्यक्ति वही था जिसकी आँखों मे वासना की चिंगारी को भड़कते हुए न जाने कितनी बार उसने पढ़ा था जो रात के अंधेरे में मूँह छिपाकर उसके बजूद को तहस नहस करना चाहता था मगर ऎसे लोगों को दिखावा करना ढोंग करना कितने अच्छे से आता है यह आज पहली बार देखा था उसने.

भीड़ में उसे कोई भी अपना दिखाई नहीं दे रहा था अपने क्या वो सब इंसान ही कहाँ थे सभी इंसान की खाल    में छिपे भेड़िये थे जो उसके जिस्म को नोचकर खाना चाहते थे.

वह पीड़ा से पड़ी कराह रही थी और ऎसा लग रहा था कि शायद यह उसकी पीड़ा का अंत हो.

अब से पंद्रह साल पहले वह विवाह होकर इस गांव में आई थी. पति के पास कुछ बीघे जमीन थी विवाह के तीन साल गुजरने पर भी उसके बच्चा नहीं हुआ जिसका दोष भी उसी के माथे मढ़ दिया गया था कि वह बांझ है, लेकिन चूंकि उसकी जुवान तो थी नहीं वह तो पत्थर का बुत थी शायद जिसके ना भावना थीं दुनियां की नजर में और न ही इच्छाएं कैसे कहती चिल्लाकर की उसका पति नपुंसक है यह स्त्री धर्म के खिलाफ जो था.

खैर कई साल गुजर गए और उस पर तानों की बौछार भी अब उसको सबकी आदत पड़ चुकी थी क्योंकि पत्थर कुछ बोलते नहीं.

और तीन साल पहले ही पति जो कि दमा का मरीज था, चल बसा उसके जाने से मुसीबत और बढ़ गईं अब उसको नया नाम पति को खाने वाली डायन जो मिल गया था पति था उसके साथ मारपीट करता मनमानी करता मगर था तो वह उसका मरद इसलिए कोई उसकी तरफ देखता नहीं था परंतु जबसे वह गुजरा वही लोग जिनकी रिश्ते की चाची भाभी बहुत थी वह उसी को गिद्ध की नजर से देखने लगे भूखे भेड़िये से उसकी आबरू को लूटने को आमादा.

तभी कहते हैं न अहिल्या को छूकर राम जी ने उसे नारी में परिवर्तित कर दिया ऎसा ही गाँव के दीना ने भी उसका हाथ दिन के उजाले में जाकर मांगा और जिन्दगी भर साथ देने का वायदा भी किया अब उसकी भी भावना हिलोरें लेने लगी थी शायद वर्षों से दबी दबाई भावनाएं ज्वार भाटे सी तरंगें भरने लगीं थीं.

और दीना की समझदारी और उसके सुरक्षा के वचन ने औरत को जिंदा करने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई मगर यह क्या यह बात इन नर पिशाचों को पसंद नहीं आई और पहले दीना को 'बुरा आदमी ' कहकर पीट पीटकर मार डाला और उसे डायन घोषित कर मारने पर आमादा हो गए.

एक स्त्री ने उनके पौरुष जो कि गंदगी से ओत प्रोत था को जो नकारा था.

वह फिर से गहरी नींद में सोकर पत्थर की जो बन गई थी.

✍️राशि सिंह, मुरादाबाद उत्तर प्रदेश


बुधवार, 23 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा --- भिन्नता


"बाबूजी हाथ छोड़िए और अंदर जाइए l" विजय ने बुरा सा मूँह बनाते हुए कहा और अपनी चमचमाती गाड़ी की तरफ मुड़ गया l

उधर बाबूजी खड़े खड़े अपनी अंगुलियों को देख रहे थे.

"जिन अंगुलियों को पकड़कर बेटे को चलना सिखाया, वही हाथ पकड़कर आज उनको वह वृद्ध आश्रम में छोड़ आया l

✍️राशि सिंह, मुरादाबाद

शनिवार, 19 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी ----- पुश्तैनी मकान


''माँ तुम समझती काहे न ....इस मकान का कोई फ़ायदा नहीं ...हमारे साथ शहर चलो और वहीं रहो ।" अभिषेक ने अपनी माँ का हाथ अपने हाथों में लेकर समझाते हुए कहा ।

''नहीं बेटा मैं यह घर नहीं छोड सकती ,यह तुम्हारे बाबू जी की आखिरी निशानी है --मैं ठीक हूँ यहाँ --तुम आराम से शहर में रहो ।"

''लेकिन माँ ?"

''बस बेटा --मैं इस मुद्दे पर और बात करना नहीं चाहती " अभिषेक की माँ ने दो टूक जवाब दे दिया !

दिन गुजरते गये  धीरे -धीरे अभिषेक की माँ प्यारी का स्वास्थ्य भी गिरने लगा। साल मैं एक -दो बार अभिषेक माँ से मिलने आ जाता था ।

एक बार प्यारी की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गयी । मोहल्ले वालों ने अभिषेक को फ़ोन पर सूचित किया।अभिषेक आया और माँ को शहर ले जाने लगा ,माँ भी इस बार राजी हो गयी। कार में बैठते हुए उन्होंने अभिषेक का हाथ पकड़ा और धीरे से बोलीं 'बेटा वादा करो मेरे जीते -जी इस घर को नहीं बेचोगे ।

''हाँ माँ आप चिंता न करो --ऐसा ही होगा । अभिषेक ने हकलाते हुए कहा ,और माँ को यकीन हो गया। वह इत्मीनान से आँखैं बंद करके लेट गयीं ! और अभिषेक उनके अंगूठे पर लगी स्याही क़ो धोने में लग गया ।

 ✍️ राशि सिंह , मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश 






गुरुवार, 17 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा -------..'छलिया'



रात्रि का तीसरा पहर शुरू हो चुका था. उपवन में रातरानी और हर श्रंगार के पुष्प अपनी खुश्बू बिखेरकर हवा को और और ज्यादा मदहोश कर रहे थे. चंद्रमा की शीतल चांदनी जमीन की सूरज द्वारा बिखेरी तपन को शीतलता में बदलकर उसकी प्यास को कुछ हद तक कम करने का प्रयास कर रही थी.
नीले स्वच्छ आसमान में दूर तक टिमटिमाते तारे दुपट्टे में झिलमिलाते सितारों से प्रतीत हो रहे थे.
कई तारों का समूह कई कहानियां सुना रहे थे. उत्तर दिशा में चट्टानी सा खड़ा ध्रुव तारा उसको सबसे अधिक प्रिय था.
क्योंकि वह अपने वक्तव्य पर डटा रहने वाला और बहुत ही पाक साफ था.
उसकी कहानी कई बार उसने अपनी दादी के मूँह और किताब में भी पढ़ी थी जो उसको बहुत अच्छी लगती थी.
पास ही बहता झरना और नदी के किनारे बैठी वह मोहिनी अपने अक्स को पानी में निहार रही थी. वह मंद मंद खिलती कली सी मुस्करा रही थी.
शीतल हवा और पेड़ों की हिलती डालियाँ पानी में साफ दिखाई दे रहीं थीं.
उसने नजाकत से अपना पल्लू कंधे से उतार कर जमीन पर रखा और फिर दोनों हथेलियों को अपने घुटने पर रखा और उस पर अपना चेहरा रखकर पानी में पैर डालकर हिलाने लगी शांत वातावरण में पानी की आवाज संगीतमय लग रही थी उस पर पायल के घुँघरूओं की छम छम संगीत को सम्पूर्ण बना रही थी.
तभी उसको पानी में एक और अक्स दिखाई दिया शायद किसी पुरुष का था. उसके प्रियतम उसके पास खड़े मुस्करा रहे थे.
उसने पैर का हिलाना रोक दिया अब वह अक्स साफ दिखाई देने लगा.
मोहिनी ने खनकती आवाज में कहा....
"कौन हो तुम?"
"प्रेम l"उसने धीरे से मुस्कराते हुए कहा.
मोहिनी के मुख पर हया की लालिमा छा गई.
"तो फिर इतने दूर क्यों हो?" मोहिनी ने अदा से आँखें मटकाते हुए पूछा l
"मैं तो तुम्हारे पास ही हूँ l" प्रेम ने फिर मुस्कराते हुए कहा l
"लेकिन......?"
"लेकिन क्या?"
मोहिनी ने उत्सुकता से पूछा l
"तुम में जब तक अहम रहेगा तुम्हारा और मेरा प्रेम असंभव है l"
"फिर तुम में और मेरे अहम में कोई अंतर तो नहीं रह जाता.... जहां बदले की भावना हो वह कैसा प्रेम?" मोहिनी ने प्रश्न किया.
"तुम समझ नहीं रहीं?" प्रेम ने फिर दोहराया.
"अगर तुम मुझे मैं जैसी हूँ स्वीकार नहीं कर सकते तो फिर मैं क्यों....?"
"यही तो अहं है तुम्हारा l"प्रेम ने बात को बीच में ही काटते हुए कहा.
"यह स्वाभिमान भी तो हो सकता है?" मोहिनी ने थोड़े सख्त लहजे मे कहा l
"सिर्फ स्त्री से ही समर्पण की उपेक्षा क्यों?" कहते हुए मोहिनी ने अपने पैर को जोर से पानी में हिलाया अब वह अक्स कहीं नहीं था.
"छलिया l"
कहते हुए मोहिनी उठकर अपने महल की ओर चल दी.

✍️राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश

शनिवार, 12 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कविता --- कड़वी यादें

कुछ कड़वी यादें
कुछ कड़वी यादें
जो हिला देतीं हैं वर्तमान को
और भिगो देतीं हैं
आँखों के कोरों को
आंसुओं से बरसात की तरह
दिखाई देता है
फिर सब कुछ धुंधला सा
अंधेरे में भटकती
फिरती रूह तरसती हैं
एक किरण रोशनी के लिए
मग़र ए - दिल
न हो निराश यूं
जिसने बनाकर स्याही लिख दिए
पन्ने जिन्दगी के
कुछ खुशी की यादें
और बेइन्तहाँ पन्ने ग़मों के
उसने दी है शौगात एक और भी
अपने इरादे रूपी
'रबड़ 'से मिटाकर
उन दुख भरी कहानियों को
एक पन्ना फिर से
खुशियों और उमंग से भरा लिख
जो हो तेरे बिल्कुल तेरे मन का.


✍️राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश

बुधवार, 9 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ------ 'टूटते ख्वाब '


मीतु सिर पर रखे पल्लू को संभालती हुई रसोई में इधर से उधर जल्दी जल्दी चलते हुए खाना बनाती जा रही थी. शादी के बाद आज उसकी पहली रसोई थी उसे बहुत डर लग रहा था कि वह सही से खाना बना भी पाएगी या नहीं?
उसे याद है कि वह अपने मायके में खाना बनाने के उद्देश्य से बहुत ही कम गई थी बस मम्मी जब खाना बनाती थी तब उनको यह बना दो वो बना दो यही कहने जाती थी और मम्मी भी हँसते हुए अपनी गुड़िया के पसंद के पकवान बनाकर बहुत ही खुशी महसूस करती थीं.
"बहू जल्दी करो सब लोग आ चुके हैं खाने के लिये l"
सासू माँ ने कड़क आवाज मे कहा.
"जी मम्मी जी अभी बस थोड़ी देर मे तैयार करने वाली हूँ खाना l" उसने सहमते हुए कहा.
"हमारी बहु तो बहुत ही अच्छा खाना बनाती है.... उसने तो कुकिंग का कोर्स किया है न!" मिसेज गुप्ता ने खुश होते हुए कहा. सुनकर सभी मुस्कराने लगे.
मीतु ने टेबल पर खाना रख दिया और सभी चटकारे ले लेकर खाने लगे.
खाना लजीज बना हुआ था कोई कुछ नहीं बोला हाँ सासू माँ ने इतना जरूर कहा.
" खाना बनाना कोई बड़ी बात थोड़े ही नहीं है सभी बना लेते हैं l"
सुनकर सभी ने हाँ मे हां मिला दी और खाकर मीतु को गिफ्ट आदि देकर चली गईं.
मीतु को अच्छा लगा... खुशी महसूस हुई कि उसने सबके लिए अच्छा खाना बनाया.
वह जो भी अच्छा काम करती उसके लिए तो ससुराल मे कोई कुछ नहीं कहता उत्साहजनक शब्द सुनाने को उसके कान तरस गए थे और गलतियों को ऎसे उछाला जाता जैसे उसने पता नहीं कितना बड़ा अपराध कर दिया.
धीरे धीरे उसको भी सुनने की आदत सी हो गई किसी से कोई उम्मीद ही नहीं रही कि कोई उसके अच्छे काम के लिए दो उत्साहवर्धक शब्द भी बोलेगा.
धीरे  धीरे उसको लगने लगा कि कमी उसमें ही है वह डिप्रेशन में आ गई और कॉन्फिडेंस तो जैसे छूमंतर ही हो गया.
शादी से पहले वह कितनी खुश थी लगता था माँनो वह कहीं की महारानी बनने जा रही हैं सभी उसको प्यार करेंगे उसके अच्छे आचरण और व्यवहार के लिए मगर यहां तो सब कुछ उल्टा ही था.
ख्वाबों को टूटते हुए देखकर उसकी आँखें भर आतीं .
 ✍️ राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश

मंगलवार, 25 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कविता


सुनो
सुनो!
कच्चे धागे सा है
हमारा रिश्ता
बहुत नाजुक मगर
रूह सा मुलायम
जिसमें सुगंध भरी है
प्रेम और
विश्वास की
जो लचकता है
झूलता है
मगर सौम्यता से
फलता फूलता है
उम्र भर संभाल कर
चलना होगा
क्योंकि
मैं नहीं चाहती गाँठ पड़े उसमें
कोई
अविश्वास और स्वार्थ की
सुनो!

✍️  राशि सिंह
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

बुधवार, 29 जुलाई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी -----'मजाक '


​       वह बहुत देर से अपनी स्टडी चेयर पर बैठा टेबल लैम्प पर बार बार आते औरफिर लौट जाते पतंगे को देख रहा था उसको नहीं पता की इसको पतंगा कहते हैं क्योंकिउसनेकभी इस शब्द का अर्थ जानने की चेष्टा ही नहीं की क्योंकि आजकल के बच्चों को वैसे भी एक ही बर्ड याद रहता है 'इन्सेक्ट 'उनके पास समय ही नहीं अपने इर्द गिर्द घूमती दुनियां और प्राणियों का निरीक्षण करने की जानने और समझने .
​बचपन से ही पेरेंट्स द्वारा या फिर स्कूल टीचर द्वारा उनकी कैटेगिरी निश्चित कर दी जाती है .
​टेलेंटेड ,मल्टीटेलेंटेड या फिर एवरेज वो उनके हुनरपर ध्यान न देकर सिर्फ स्कूल से प्राप्त प्राप्तांकों से निर्धारित किया जाता है .
​निशानी कई दिनों से महसूस कर रही थी की उसका बेटा रक्षक कई दिनों से उदास सा है .
​बिलकुल खामोश सा हो गया है .यह बड़ी बात है की उसको ऐसा एहसास हुआ की उसके बेटे के साथ कोई समस्या है ...वह उससे खुद से या फिर परिवार से कुछ छिपा रहा है नहीं तो आजकल सब अपनी अपनी वव्यस्ताओं में इतने व्यस्त हैं की अपने बच्चों के लिए भी समय नहीं है .
​हमेशा मुस्कराता ररक्षक एकदम शांत सा हो गया गुमशुदा सा .
​जब भी निशानी कुछ पूछने की कोशिश करती वह चिढ जाता .
​"मम्मी प्लीज मुझे अकेला छोड़ दीजिये I"
​निशानी को लगता बोर्ड है इस बार इसलिए पढ़ाई का दबाब ज्यादा है इसलिए वह चुप हो जाती .
​"बेटा स्टडी में कोई प्रॉब्लम हो तो ट्यूशन वगैरह ले लो ...एग्जाम पास हैं और तुम कुछ पढ़ते ही नहीं हमेशा परेशान से रहते
​हो I"
​निशानी ने बेटे का हाथ अपने हाथ में लेकर प्यार से कहा .लेकिन उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और चिढ सा गया यह देखकर निशानी फिर से परेशान हो गई .
​रक्षक का इतना रूखा व्यवहार निशानी को भीतर ही भीतर खाये जा रहा था .Iइतना खुशदिल लड़का कैसा मुरझा सा गया है .
​कितने सपने देखे हैं उसने और रक्षक के पापा ने बेटे को लेकर सब धुंधलाते से प्रतीत होते हैं .
​माँ अपने बच्चे की परेशानी को एकदम भांप जाती है ऐसे में निशानी कोई अपवाद नहीं थी .
​कुछ महीनों से उसने नोट जरूर किया था की जब भी रक्षक का फोन आता वह उठकर बाहर चला जाता बात करने .नहीं तो पहले ऐसा नहीं था अक्सर उसके फ़िरेन्ड्स का फोन आता तो वह अपने मम्मी पापा के सामने ही बात करता रहता .
​धीरे धीरे उसके फोन आने बंद से हो गए थे .चूंकि वह क्लास का सबसे होशियार लड़का था ऐसे में उसके फ़िरेन्ड्स उससे कई टॉपिक्स सोल्व करने के लिए कॉल करते रहते थे .
​निशानी बैठी कोई बुक पढ़ रही थथी और रक्षक के पापा न्यूज पेपर रक्षक उनके पास आया और कहने लगा .
​"मम्मी मुझे इस बार एग्जाम नहीं देना "
​"लेकिन क्यों ?"मम्मी पापा एक साथ आश्चर्य से बोले .
​"बस मेरा मन नहीं I"
​"लेकिन कोई तो वजह होगी ?"इस बार पापा बोले .
​"मैं कुछ नहीं कर सकता ..."मैं बेकार हूँ ..."
​कहते हुए रक्षक फफक कर रो पड़ा निशानी की भी आँखें भर आईं .
​"बेटा बताओ बेटा बात क्या है तभी तो हम सबको पता चलेगा तुम्हारी हैल्प करेंगे I"Iइस बार पापा बोलै .
​"पापा वो स्नेहा है न "
​"तुम्हारी दोस्त ?"
​"जी पापा जी ...उसने मुझे धोखा ....I"कहते हुए रक्षक रो पड़ा .एक पल के लिए मम्मी पापा सन्न रह गए की उनका बीटा कितने बड़े दर्द से गुजर रहा था और उनको पता भी नहीं .
​यह उम्र का पड़ाव ही ऐसा होता है किशोरावस्था जहां बच्चे विपरीत लिंग की तरफ आकर्षित होते हैं और उस आकर्षण को प्रेम समझ बैठते हैं .यह बहुत ही नाजुक दौर होता है उम्र का .
​"पूरी बात बताओ  I"निशानी ने स्नेह से उसकी कमर पर हाथ फेरते हुए कहा तो रक्षक थोड़ा शांत हुआ .
​"मम्मी वो मुझसे कहती थी की वह मुझे बहुत चाहती है क्योंकि उसके पेरेंट्स का आपसी रिश्ता अच्छा नहीं .घर में क्लेश रहता है अगर मैंने उसका साथ नहीं दिया तो वह सूइसाइड कर लेगी Iऔर इस तरह से मैं स्टडी से अपना ध्यान हटाकर हमेशा उसी के बारे में सोचता रहता ...लेकिन !"
​"लेकिन क्या ?"
​"लेकिन अब कुछ दिनों से उसने मुझसे बात करनी बंद कर दी और फिर एक दिन उसने ममुझसे कहा की उसने अपने एक दोस्त से मुझे टॉप न कआने देने की क्लास में शर्त लगाईं थी I"रक्षक ने भर्राये गगले से कहा .सुनकर निशानी और उसके पापा सन्न रह गए .
​"वो लड़की तुम्हारी दोस्ती के काबी ही नहीं थी बेटा .तुम उसको लेकर परेशान क्यों हो जिसने तुम्हारे इमोशंस के साथ खिलबाड़ किया तुम्हारा मजाक बनाया ?"निशानी ने बेटे को समझाते हुए कहा .अब रक्षक थोड़ा और शांत हुआ .
​उसके पैरेंट्स ने उस पर और अधिक ध्यान देना और दोस्ताना व्यवहार करना बढ़ा दिया कुछ हीदिनों में रक्षक शांत हो गया .
​वह एग्जाम में बैठा और अच्छे से पढ़ाई की .
​रिजल्ट बाले दिन टॉप पर उस लड़की का फोटो देखकर वह मुस्करा दिया क्योंकि उसकी दोस्ती सफल जो हो गई थी और उस झूठी लड़की का हश्र वह खुद था .
​सच्ची दोस्ती बस दोस्त का भला चाहती है और कुछ नहीं हाँ आज भी शायद उसके मम्मी पापा के मन में उस लड़की के लिए कड़बाहट हो और शायद पूरी जिंदगी रहे .


​राशि सिंह
​मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश








बुधवार, 22 जुलाई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा -----मृगतृष्णा


​वो कभी खिलखिलाना तो छोड़िये , कभी मंद-मंद मुस्कराया भी तो नहीं . जब छोटा था तब बड़ा आदमी बनाने के लिए दिन रात पढ़ाई में जुटा रहता था। उसने अपने पिताजी को परिवार चलाने के लिए हाड तोड़ ममेहनत करते हुए जो देखा था लेकिन उस सकूं को कभी वह समझ ही नहीं पाया और न ही महसूस। उसके माता पिता थोड़े में गुजारा अवश्य करते थे मगर जिंदगी को कभी छोटी छोटी खुशियों से और सुखद क्षणों का आनंद लेने से कभी खुद को दूर नहीं किया .
​    उसके कमरे में किताबों का ढेर और उन पर स्याही से लिखे अक्षर जिनमें दुनियां भर की जानकारी थी सिवाय प्रेम और सकूं के ,उनके साथ रहने का आदी हो गया था वह. हंसना और खिलखिलाना तो वह जैसे भूल ही गया .सबसे दूरी और धीरे धीरे खुद से भी दूर हो गया . खुद को भूलकर ही मुकाम हासिल किया जाता है ,उसने ऐसा सुना था और इसके लिए उसने कभी आत्मसाक्षात्कार  ही नहीं किया . उसने कभी फूलों से बात नहीं की और न ही आकाश में मस्त परिंदों की परवाज को निहारा . न कभी लहरों की अठखेलियों पर नजर दौड़ाई और न ही कभी रात में शीतलता लुटाते चाँद की चाँदनी को देखा . वह किताबों के ढेर में खुद एक मशीन का ढ़ेरनुमा बन गया .
​उसको तरक्की मिली, दौलत शोहरत सब कुछ मिली जिसकी उसको तमन्ना थी .पहले किताबों के पेज पलटता रहता और अब नोटों को गिनने में मशगूल हो गया .धीरे धीरे अपने परिवार की मात्र जरूरत बनकर रह गया ।
​आज बहुत दिनों बाद यानी जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर उसके मन को कुछ अजीब सी सूझी ,बैठ गया बीते कल का हिसाब किताब करने . नोटों और खुद के सिवाय कुछ भी नहीं था जी जन्दगी का वास्तविक पलड़ा नितांत अकेला और सूखा सा था पेड़ से टूटी शाख की तरह .

​राशि सिंह
​मुरादाबाद उत्तर प्रदेश



शनिवार, 18 जुलाई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा -------काश कि तुम माँ बन पातीं !


​"मम्मी जी आज सिर में बहुत दर्द हो रहा है ,रात निमित ने सोने नहीं दिया ,उसको बहुत सर्दी हो रही है न !"अदिति ने कमरे से निकलते ही सास का फूला हुआ मुँह देखते ही सफाई दी l
​"अब जल्दी जल्दी काम निपटा लो ....इनको ऑफिस और संजू को कॉलिज भी जाना है l"सास ने फरमान सुनाया l
​"और मुझे स्कूल जाना है और निमित को स्कूल छोड़कर आना है ...सारा काम निपटाने के बाद ...यह तो बस मै ही जानती हूँ l"अदिति ने मन ही मन कहा और लग गयी फ़टाफ़ट काम करने में l एक सवाल मन में आया कि अगर मेरी मायके वाली मम्मी होतीं तो क्या ऐसे ही कहतीं ?
​इतने में निमित जाग गया l
​"सुनिए ....ज़रा इसको दूध बना देना मैं नहाने जा रही हूँ l"अदिति ने पति अभिषेक को जगाते हुए कहा और कहकर जैसे ही बाहर आई सास ने रोक लिया l
​"बहु अभिषेक को सोने दिया करो देर तक, थक जाता है ऑफिस में l"
​अदिति ने कुछ नहीं कहा बस नहाने चली गई l
​सुनकर  दिल भर आया l
​"अभी तक नाश्ता नहीं बना मम्मी ...मैं कॉलिज के लिए लेट हो रहा हूँ ,?"देवर संजू ने गुस्से से कहा , ससुर जी भी आकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गए l
​इधर निमित चिड़चिड़ा रहा था तबीयत ठीक  नहीं थी l
​अदिति ने जल्दी जल्दी नाश्ता कराया सबको और खुद भी तैयार होने लगी l
​"सुनिए आप तो लेट जाएंगे ,ज़रा निमित को डॉक्टर को दिखा देना l इसकी तबीयत ठीक नहीं है l"अदिति ने पति से कहा l
​"निमित की तवीयत ठीक नहीं है तो मत जाओ स्कूल ,तुम ही दिखा लाना l"अभिषेक ने हाथ पौंछते हुए कहा l
​"लेकिन क्या बहु ....एक दिन नहीं जाओगी तो स्कूल बंद थोड़े ही हो जाएगा ...इसको तो ऑफिस में बहुत सुननी पड़ती है एक दिन की भी छुट्टी होने पर l"सास ने सफाई दी l
​"मेरी स्कूल में आरती उतारी जाती है क्या ?"अदिति ने खुद से प्रश्न किया l

​​राशि सिंह
​मुरादाबाद उत्तर प्रदेश 

शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी -----' टूटा सितारा'


​      ऑटो से उतर कर​  नीता तेज कदमों से ऑफिस की ओर बढ़ी जा रही थी, आज फिर 10 मिनट लेट हो गई थी   पूरे रास्ते उसके मन में  द्वंद चलता रहा था.
​ जब भी  नीता किसी छोटे बच्चे को रोते हंसते हुए देखती उसके भीतर की ममता तड़प उठती थी.
​ समय की   ठोकर और विपरीत परिस्थितियों ने उसे बहुत ही मजबूत बना दिया था परंतु    वह एक स्त्री थी और उसके भीतर  भी एक कोमल हदय था .
​  थोड़ी लेट तो हो गई थी सभी उसकी तरफ देख रहे थे  वह नजरें चुराते हुए जाकर अपनी सीट पर बैठ गई.
​ फिर भी उसको ऐसा लग रहा था मानो सभी उसकी  तरफ ही देख रहे हो.
​" मैम बॉस ने आपको केबिन में बुलाया है!"
​" जी!" कहते हुए  वह उठकर बॉस के  केबिन की ओर चली गई.
​  बॉस पता नहीं क्या-क्या समझा रहे थे उसके समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था, या यह कहा जाए कि उसका मन था ही नहीं वहां पर तो अतिश्योक्ति नहीं होगा.
​ उसका मन अभी भी बाहर नुक्कड़ पर रो रहे बच्चे के पास ही था, जो बैठा अकेला रो रहा था. नीता का हृदय चीत्कार कर उठा था.
​ इसी उम्र का तो है उसका बेटा रोहन बिल्कुल उसी की तरह मासूम निश्चल जिसे परिस्थितियों ने उसको उससे दूर कर दिया.
​ "क्या हुआ नीता कोई प्रॉब्लम है क्या?" बॉस ने फिर कहा.
​ "नहीं सर ऐसी कोई बात नहीं है!"
​" अब तुम जा सकती हो!"
​" जी!" कहती हुई नीता केबिन से बाहर आकर अपनी सीट पर बैठ गई.
​ नीता का काम में बिल्कुल मन नहीं लग रहा था आज... उसने अपना मोबाइल निकाला और नंबर मिलाने लगी. मगर अगले ही पल उसकी उंगलियां फिर से रुक  गई.
​ उसने गहरी सांस लेते हुए मोबाइल एक तरफ रख दिया और फिर से काम करने लगी.
​ तभी बराबर वाली सीट पर बैठी अलका अपने बेटे से बात करने लगी थी फोन पर.
​" हां बेटा मैंने तुम्हारे लिए कटलेट्स  बनाए है तुम खा लेना... और दोपहर को दाल चावल दादी को बिल्कुल परेशान मत करना!"  सुनकर नीता का मन भर आया उसकी आंखों में आंसू आ गए.
​ रोहन कैसा होगा पता नहीं... कोई उसका ध्यान रखता भी हो गया नहीं?
​  अतीत को कितना भी भुलाना चाहो मगर वह कभी पीछे नहीं छोड़ता और अगर मैं अपनी औलाद से जुड़ा हुआ हो तो तो बिल्कुल नहीं.
​ नीता टेबल पर सिर रख कर लेट गई और उस मनहूस घड़ी को कोसने  लगी जब उसने   निशांत से प्रेम विवाह करने का निश्चय किया था.
​ घर वालों में कितना समझाया था कि लड़का तुम्हारे लिए अच्छा नहीं है लेकिन उसके ऊपर तो प्रेम का भूत सवार था उसने किसी की एक न सुनी और अपनी मर्जी से निशांत से कोर्ट मैरिज कर ली.
​ थोड़े दिन बाद ही निशांत ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया.  नौकरी छोड़कर घर में ही पड़ा रहने लगा और बहुत अधिक ड्रिंक करने लगा था उसके साथ मारपीट हुई करने लगा था. और इस समय उसकी मम्मी उसका साथ देती थी.
​ जब है पेट से हुई तो उसे खुशी हुई कि शायद अब रोहन बदल जाए लेकिन उसकी हरकतें तो दिन  ब दिन और ज्यादा बद से बदतर  गई.
​​
​ बेटे रोहन के जन्म के बाद भी उसके व्यवहार में जरा भी परिवर्तन नहीं हुआ बल्कि और ज्यादा मारपीट करने लगा था. इससे तंग आकर  नीता ने उसको छोड़ने का फैसला कर लिया.
​ इस पर निशांत ने उस पर चरित्रहीन होने का आरोप लगाया और बेटे को उसको देने से साफ इनकार कर दिया   वह जानता था कि  नीता अपने बेटे के बिना नहीं रह पाएगी और 1 दिन लौट कर जरूर वापस  आएगी.​
​​ नीता ने अपना सिर उठाया और फिर से काम में लग गई लेकिन वह अपने मन में  अब यह निश्चय कर  चुकी थी कि अपने बेटे  रोहन से दूर नहीं  रहेगी.
​ उसने फिर से फोन उठाया और नंबर डायल कर लिया फोन उसके सासू मां ने उठाया था.
​  जब उसने बात करने को कहा अपने  बेटे से  तो उसकी  सास ने उसको गालियां देनी शुरू  कर  दी.
​  नीता का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा मैं उठकर बॉस की केबिन में गई और उनसे कहा कि सर आज उसे जरूरी काम से बाहर जाना इसलिए आज हाफ डे के बाद  चली जाएगी.
​ बॉस ने कहा कि आज तो छुट्टी नहीं मिल पाएगी कल  पूरे  दिन की लीव ले  लेना .
​ नीता ने हां में गर्दन हिलाई और वापस आकर अपनी सीट पर बैठ गई.
​ शाम को वह घर गई और झटपट अपना बैग लगाया 1 घंटे का रास्ता था उसके ससुराल का और उसके कमरे का.
​ उसने अपने ससुराल के डोर बेल बजाई तो दरवाजा उसके साथ में खोला.
​ " अब क्यों आई हो जाओ यहां से.. !"सास ने मुंह बनाते हुए का.
​"  यहां रहने कौन आया है?" नीता ने तपाक से कहा.
​ इतने में रोहन भी वहां आकर खड़ा हो गया और मम्मी मम्मी  कहता हुआ  नीता से चिपट गया.
​ नेता ने उसको अपने सीने से लगा लिया और बार-बार उसके मुंह  और हाथों को दुलारने  लगी.
​" अब  यह मेरे साथ रहेगा!" नीता ने  रोहन को गोदी में उठाते हुए.
​ और कुछ भी बिना बोले बाहर निकल  गई.
​ उसकी सास  चिल्लाती हुई उसके पीछे  भागी  लेकिन  नीता ने मुड़कर नहीं देखा.
​  अब हर प्रकार की कानूनी लड़ाई लड़ने  के लिए तैयार थी.

​राशि सिंह
​मुरादाबाद उत्तर प्रदेश

बुधवार, 1 जुलाई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी -----जिसकी लाठी उसकी भैंस


"मैंने कहा था न कि अभी मेरे साथ शहर मत चलो, जब घर का बंदोबस्त हो जाए तभी चलना मगर तुमको तो बस मेरे साथ यहां आने की जिद सी थी... अब रहो इस घौंसले में और...... l"
​"अजी आप तो ऐसे गुस्सा हो रहे हैं जैसे दुनियाँ की हम पहली महिला हों जिसने अपने पति के साथ नौकरी पर संग जाने की जिद की हो l"स्वर्णा को भी गुस्सा आ गया और वह अपने पति सुकुमार पर विफर पडी l
​"अब तुम फिर गुस्सा हो गईं भाग्यवान.... अब देखो न चार दिन हुए हैं हमें इस घर में आये हुए, मकान मालिक ने टोका टाकी शुरू कर दी... यह मत करो... वहाँ वो मत रखो.... l"सुकुमार पत्नी को समझाते हुए बोले l
​"अरे तभी तो कह रहे हैं कि आप इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं, फिर आप वहां पर कोई क्वार्टर क्यों नहीं ले लेते? "स्वर्णा ने दोनों हाथ चलाते हुए कपडे बाहर छोटी सी बालकॉनी में सुखाते हुए कहा l
​"क्वार्टर क्या गाँव के घर जैसे हैं? "वह तिलमिला कर बोला.
​"महल जैसे नहीं मगर मकान मालिक की दुत्कार से तो बचा ही जा सकता है l"वह फिर गुस्से से बोली l
​"पांच साल हो गए शादी को.... अभी तक गोद सूनी है हमारी.... उधर सासु माँ को पोती पोता चाहिए... और उनका लड़का साथ रखना नहीं चाहता.... काहे विवाह किया तुमने हमसे? "वह गुस्से से साग को घोटते हुए बोली l
​"स्वर्णा... ऐसी बात नहीं है..... यूनिवर्सिटी में कोई क्वार्टर खाली है ही नहीं... l"
​"कभी होंगे भी नहीं l"वह गुस्से से आटे को गूंधते हुए बुदबुदाई l
​"आज का पेपर पड़ा? कैसे विद्यार्थी धरना प्रदर्शन कर रहे हैं... देखो न कुछ तो कई कई सालों से रह रहे हैं... पढ़ाई पूरी हो गई फिर भी..... और और कइयों ने तो अपने रिश्तेदारों को भी रख लिया है... जिनके अच्छे सोर्स हैं l"
​"अच्छा..... वहाँ घर मिलने के लिए सोर्स का होना भी जरूरी है का?
​? और नहीं तो क्या......'जिसकी लाठी उसकी भैंस' l"वह बुदबुदाया l
​"नंबर लगा दो.... मिल ही जाएगा l"उसने खाना परोसते हुए लापरवाही से कहा l
​"कबसे नंबर लगा पड़ा है मगर अभी तक आया ही नहीं l"सुकुमार ने बुझी आवाज में कहा l
​"कोई भी प्रोफेसर नहीं रहता क्या वहाँ? "
​"रहते हैं न l"
​"तो शायद आपसे ही कोई जाति दुश्मनी है उन लोगों की? "स्वर्णा ने व्यंगात्मक लहजे मे कहा और पट पट पट करके हथेलियों से रोटी पीटने लगी l इधर सुकुमार परेशान था, कैसे समझाए वीवी को कि सरकारी क्वाटर्स का कितना बुरा दुरूपयोग हो रहा है और उनको पाना सज्जन व्यक्ति के लिए कितने मुश्किल है?

​✍️राशि सिंंह
​मुरादाबाद उत्तर प्रदेश


बुधवार, 24 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी------अभागन

          "मम्मी तुम बहुत ही प्यारी हो ....आज देखो मैने  कॉलेज टॉप किया है ."उमा की बड़ी बेटी ने माँ से लिपटते हुए कहा .
​"देख लो  दीदी हम दोनों भी तुम्हारे पदचिन्हों पर ही चल रहे हैं l"दोनों छोटे भाई बहन भी एक स्वर में बोले .देखकर उमा की आँखों से खुशी के आँसू बह निकले .
​"नहीं मम्मी रोना नहीं ....हमने तुमको बहुत  रोते हुए देख लिया लेकिन अब नहीं ..l"बड़ी बेटी ने उमा के आँसू पौंछते हुए कहा .
​सुनकर उमा आज कई साल बाद जी भरकर रोई ....बेटियों ने खाना बनाया और माँ के साथ मिलकर सबने खाया .जब तीनों बच्चे सो गए तो उमा ने प्रेम से उनके ऊपर हाथ फेरा , और डूब गई अपने अतीत में क्योंकि अतीत कभी पीछा नहीं छोड़ता उसकी खुशियाँ और दुख कभी भी आकर मन क़ो बेचैन कर जाते हैं .
​पति की लाश के पास उमा चुपचाप बैठी थी , बिल्कुल बुत की तरह या यूँ कहिये कि जिंदा लाश की तरह ...तीन छोटे छोटे बच्चे घर में मचे कोहराम क़ो देखकर इधर उधर रोते बिलखते फिर रहे थे ...लड़का छोटा था दो लड़कियां थीं पाँच और तीन साढ़े तीन साल की और लड़का ढेड साल का वह चलकर आता और अपनी मम्मी से लिपटकर उसकी छाती से लिपटकर सिर मारता कभी मूँह टिकाता और रोता बिलखता फिर चला जाता ....बड़ी लड़की क़ो समझ आ चुका था कि उसके पापा भगवान के पास चले गए मगर छोटी ....वह तो छोटी ही थी ....क्या क्या होता रहा उमा क़ो  कोई सुध नहीं थी , उसकी चूड़ी तोड़ दी गयीं और सिंदूर भी पौंछ दिया गया ....कोई पहली बार तो हुआ नहीं था यह इससे पहले भी .....यह सोचकर वह बहुत जोर से चिल्लाई और रोने लगी ..."मैं इतनी बुरी हूँ क्या ?"यह वेदना भरे शब्द सुनकर पत्थर दिल लोग भी रोए बिना न रह सके .."हर कोई चला जाता है मुझसे रूठकर दूर ...बहुत दूर ...क्यों ?"उसका रोना देखा नहीं जा रहा था .
​थोड़ी देर बाद उसके पति की क्रिया कर्म के लिए ले जाया गया वह बहुत रोई मगर कोई फायदा नहीं इधर बच्चों का भी बुरा हाल था .
​रात क़ो जब वह लेटी  थी तो ताई सास और उसकी ननद आपस में बातें कर रही थीं .....
​"इसके भाग्य में सुहाग है ही नहीं ....पहले विधवा हो गई थी और अब यहां भी ....अब क्या करेगी ?"
​उमा सब कुछ सुन रही थी मगर वह कुछ नहीं बोली पास में जमीन पर सो रहे अपने तीनों मासूम बच्चों क़ो देखा जो शायद भूखे ही सो गए थे क्योंकि बच्चे उमा के साथ ही खाना खाते थे .
​उसकी आँखों में बीती सारी घटनाएं घूमने लगीं .
​कितनी बोझ बनी जा रही थी वह माँ और बाबूजी क़ो कि हाईस्कूल में आते ही उसकी पढ़ाई छुड़ाकर पास के ही गाँव के योगेश नाम के युवक के साथ उसका विवाह कर दिया गया था ....सब कुछ था योगेश के पास जो जीने के लिए चाहिए घर ...जमीन थोड़ी सी और बहुत सारा प्यार ...शादी के दो साल बाद उसने जुड़वा बच्चों क़ो जन्म दिया ...बहुत खूबसूरत और प्यारे बच्चे पाकर जैसे योगेश और उमा खुशी से फूले नहीं समा रहे थे ....मगर उनकी खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं रही कहा भी जाता हैं कि अति हर चीज की बुरी होती हैं फिर चाहे वह खुशी हो या गम बच्चे छः महीने के ही थे कि एक दिन शाम क़ो जब योगेश खेत से घर लौट रहे थे तब रास्ते में ही अचानक पेट में दर्द उठा और पेट पकड़े हुए घर आए ...डाक्टर के पास ले जाया गया मगर कोई फायदा नहीं हुआ ...शहर ले गए मगर बहुत सारे टेस्ट कराने के बाब्जोड भी कोई फायदा नहीं हुआ तबीयत दिन ब दिन बिगड़ती ही गई और एक दिन उमा पर जैसे वज्रपात हो गया योगेश उसक़ो और उसके बच्चों क़ो छोड़कर रोता बिलखता हमेशा के लिए चले गए .
​घर में फिर ताने दिए जाने लगे कि उसने और उसके बच्चों ने योगेश क़ो खा लिया ...एक दिन बच्चों क़ो बहुत तेज बुखार आया और बे भी ....फिर तो उसका घर में रहना ही दूभर हो गया ससुराल वालों ने उसको इतना परेशान किया कि उसका घर में रहना दूभर कर दिया , पति की अकाल मौत और ऊपर से बच्चों का साया उठना जैसे वह मर ही गई थी अभी उम्र ही क्या थी केवल वाइस साल .
​घर परिवार वालों और रिश्तेदारों ने फिर से जीना मुश्किल कर दिया और एक बार उमा के माँ बाप ने उसको फिर से समाज की दुहाई डे बमुश्किल विवाह के लिए राजी किया .
​इस बार उसका विवाह निमेष के साथ तय हुआ जोकि एक सरकारी स्कूल में चपरासी था ....विधुर था ...यह हमारे समाज की विडम्बना ही तो हैं कि विधवा महिला क़ो तो हँसी खुशी विधुर के साथ विवाह दिया जाता हैं मगर कोई क्वांरा लड़का आज भी विधवा का हाथ थामने से कतराता है.
​निमेश उम्र में उमा से पूरे आठ साल बड़ा था मगर अंधा क्या मांगे दो आँखें ....उसकी नौकरी थी इसलिए घरवालों ने उसको विवाह दिया .
​एक बार फिर से जीने की आस जागी मगर विवाह के आठ साल बाद ही सर्पदंश से निमेश की भी मौत हो गई .
​उमा फिर रह गई बिल्कुल अकेली ....उससे ज्यादा चिंता फिर से उसकी समाज क़ो होगी मगर सिर्फ उसको किसी मर्द का सहारा देने के लिए .
​लेकिन इस बार उसने निश्चय कर लिया कि वह समाज के आदेश पर नहीं अपितु अपने जमीर की सुनेगी .
​उसने उठकर तीनों बच्चों क़ो दुलारा .और जब सारे क्रिया कर्म हो गए तो सभी सहानुभूति जताकर अपने अपने घर चले गए .
​इधर छोटे देवर अजीत की सहानुभूति उसके प्रति बढ़ती ही जा रही थी हालांकि वह शादीशुदा था उसकी पत्नी जोकि पहले उमा क़ो एक आँख नहीं देखती थी कुछ ज्यादा ही हमदर्दी जताने लगीं .
​"हेल्लो भाभी l"बड़ी ननद का फोन आया .
​"नमस्ते जीजी l"
​"नमस्ते ....अब ऐसा करो निमेश की नौकरी के जो कागजात बनेंगे उन पर दस्तखत कर देना l"
​"कैसे दस्तखत ?"
​"अजीत बता देगा l"कहकर ननद ने फोन काट दिया .
​"भाभी जीजी से बात हो गई ?"
​"हाँ l"
​"लो यहां अँगूठा लगा दो l"
​"क्या हैं यह ?"
​"अरे पढ़कर क्या करोगी ...लो स्याही l"अजीत ने हंसते हुए कहा l
​उमा पूरा पेपर पढ़ गई उसमे साफ साफ लिखा था कि नौकरी करने में वह असमर्थ हैं इसलिए राजी से अपनी नौकरी निमेश के भाई अजीत क़ो देना चाहती हैंl
​"भैया ...तुम कहाँ तक पढ़े हो ?"
​"मैं ...मैं हाईस्कूल फेल हूँ l"
​"और मैं पास ....मेरे भी तो बच्चे हैं ...बताओ भैया मैं कैसे पालुंगी इनको ?"सुनकर अजीत पागल हो गया आया हुआ मौका जाता देखकर उसने उमा क़ो परेशान करना शुरू कर दिया .
​पूरे गाँव में अफवाह फैला दी कि उसकी भाभी उमा बहुत ही अभागन और डायन है...एक पति क़ो तो पहले खा आई और निमेश क़ो भी खा गई .
​सबने उसका विरोध किया मगर इस बार वह पीछे नहीं हटी . उसने नौकरी करनी शुरू की और साथ ही उसी स्कूल में अपने बच्चों का एडमीशन भी करा लिया .

✍️राशि सिंह
​मुरादाबाद उत्तर प्रदेश

बुधवार, 17 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी-----लौटने के ​बाद


​ मंगू  आँगन में पड़ी टूटी चारपाई पर बैठा मोबाइल चला रहा था .टिकटॉक के वीडिओज़ देखकर हंस रहा था मन ही मन .शहर ​जाकर ​उसने पिछली ​दफा ​सबसे ​पहले यह  ​मोबाइल  ​ही तो  ​खरीदा था .कमाई से थोड़ा थोड़ा बचाकर .
​चारो बच्चे भाग भागकर आँगन में  ऊधम
मचा रहे थे .
​"उसकी पत्नी कुंता चूल्हे में आग जलाने के लिए कभी कागज़ रखती तो कभी सूखी घास मगर आग जलने का नाम नहीं ले रही थी .
आँखों से धुएं के कारण तो कुछ मन के कारण आंसू निकल रहे थे .
​उसकी आँखों के आगे दो माह पहले की जिंदगी तैरने लगी .
​"शहर में कम से काम  ई आग धुंआ से तौ  खेलनो नाय पड़तौ I"
​वह हौले से बड़बड़ाई .
​"क्यों बड़बड़ा रही है ...?"
​"कित्ती देर है गई जो आग नाय पजर रही
​है I"वह गुस्से में फूकनी एक तरफ पटककर आँखें मलते हुए बोली .
​"अम्मा तोसे कित्ती फेरे कई सिलेंडर ले लिए पर तूने लायो ही नाय ...अब देख कुंता कित्ती परेशान है रही है ?"
​"हाँ लल्ला सिलेंडर तो आयो मगर मैंने सौ रुपया ज्यादा ले के गगन को बेच दियो ...मैं तो घास फूस जलाय के अपने लायक रोटी बनाय ही लेती अब हमें का पतों हो तुम्हारी मेहरुआ शहर की है गई हैं ?"
​"आज चलो जइयो प्रधान के पास ...मनरेगा में काम मिल रहो है I"अम्मा ने खांसते हुए कहा .
​"अरे अम्मा हम पे नाय होयगी खुदाई ...शहर में हम चादरें बुनते बो भी मशीन से ...I"
​"तो खाओगे का .?अब यहां तो चददरें नाय बन रही हैं ...फाब्डो और खुरपा पकड़ लियो I"अम्मा ने मुँह बनाते हुए कहा .
​"अब तो साल भर तक तो कम से कम गाँव में रहने ही पड़ेI"
​"कुंता देख नयो वीडिओ आयो है टिक टॉक पे I"
​"कहाँ है जी ..."कुंता चूल्हा छोड़कर
​दौड़ी I"
​"जा डिबिया से पेट नाय भरेगो काम काज देख बाहर जायके I"अम्मा ने फिर से मुँह बनाते हुए कहा I
​"अम्मा पहले तो तुम ऐसे नाय करती जब कभो कभार हम गाँव आते ?"उसने चिढ़ते हुए कहा I
​"पहले हरे हरे लोट जो लाबते I"कुंता ने हथेली से रोटी पीटते हुए कहा ऐसा लग रहा था की गुस्से में रोटी के भी ज्यादा चोट लग रही थी .
​"लल्ला जो बीमारी का पतों कब तक रहेगी ..तब तक सब भूखे तो नाय रह
​ सकत I"
​अम्मा ने अपनत्व और प्रेम से बेटे का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा .
​​​"का बहुरिया ...का बोलत हो हम लोटन के भूखे हैं ..री नाय ...कछु काम धंधो करे तब ही तो रोटी मिलेगी ...दो बीघे जमीन से पेट भरेगो का ?"
​"अम्मा सच ही तो कह रही है I"उसने धीरे से कहा और खेलते हुए बच्चों की तरफ एक नजर डालकर वह गमछा लेकर निकल गया काम की तलाश में

​✍️​ राशि सिंह
मुरादाबाद