बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की दो लघुकथाएं ---"दा रियल हीरो" व "मानसिकता"



(1) लघुकथा ---- 'दा रियल हीरो  '

"अजी सुनती  हो ...यह देखो डाक  बाबू संदेशा  लाये  हैं l " ग्राम  प्रधान  मोरसिंह  ने अपनी धर्मपत्नी  विमला  देवी को हाथ में लगे लिफ़ाफ़े  को दिखाकर  मूढे पर बैठते हुए कहा l 

"अजी अब पढ़कर तो सुनाओ  l " विमला देवी ने   मट्ठे की मटकिया  को हिलाकर  उसमें आई नैनी  को पौरुओं  से निकालकर कूंढ़ी  में रखते हुए कहा l 

"अरे...यह का ...हमारे गाँव को राष्ट्रपति  सम्मान के लिए चुना  गया है l " प्रधान जी ने खुशी से उछलते हुए कहा l आठवीं   कक्षा   तक पढ़े   मोरसिंह को लिखने पढ़ने का बहुत ही शौक है l 

"अच्छा...हे भगवान  यह तो हम सबके लिए बहुत खुशी की बात है l " विमला देवी  ने एक लोटा  ताजी   मट्ठा   प्रधानजी  को थमाते   हुए कहा l 

"हाँ...बहुतई खुशी की बात है ...आज उनकी तपस्या  सफल  हो गयी l "

"किसकी  ?"

"जिन्हौने गाँव को इस काविल   बनाया l "

"किसने   ?"

"लखना  और हरिया  ....असली हकदार  वही हैं ...सवेरे  ही आकर पूरे गाँव की सफाई करते हैं ...औरगाँव वाले भी सहयोग   करते हैं l मोरसिंह ने मूंछों को ताव देते हुए 

कहा l 

"हाँ  यह तो ठीक है ..मगर ..l "

"मगर क्या ?"

"ज्यादा प्रसंशा करने से  बौरा जाएंगे बे ..l "

"अरी विमला ...प्रसंशा से बौराते  नहीं ,वरन यह तो मार्गदर्शक  का काम करती है ....देखना हम उन दोनों को भी ले जाएंगे राष्ट्रपति भवन  l " मोरसिंह की आँखों में प्रेम और अपनेपन  की चमक थी l विमला देवी का गला भी रूंध  गया l 

"हाँ जी ठीक कहते हो ,सभी हकदार हैं इसके क्योंकि "अकेला  चना भाड़  नहीं झौंक  सकता ।"

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(2) लघुकथा ----'मानसिकता '

पूरे चार साल बाद वह अपने भाई और चचेरे भाई के साथ गई थी मेला. मेले में सर्कस लगा हुआ था जिसे वह बड़े चाव से देखती थी . तीनों सीढ़ियानुमा बल्लियों पर बैठे सर्कस का आनंद ले रहे थे. कभी भालू के कारनामे तो कभी बंदर के कभी शेर की दहाड़ तो कभी गैंडे का प्रदर्शन. वह बहुत रोमांचित हो रही थी और खुशी से चिल्ला रही थी.जोकर का हजामत वाला दृश्य तो हंसा कर पेट दर्द कर गया. 

"इसकी देखो कितना हंस रही है?" चचेरे भाई ने मूँह बनाते हुए कहा. 

"हाँ... पागल है पहले जैसी ही. दिमाग वही बचपन वाला है वैसे इंजीनियरिंग कर रही है l" भाई ने भी हँसते हुए कहा. 

"अरे अब आई देख न!" चचेरा भाई चिल्लाया. "छोरियां " 

दोनों के चेहरे पर धूर्त मुस्कान आ गई. 

वह लड़कियां छोटे छोटे कपड़े पहनकर रस्सी पर करतब दिखा रहीं थीं कभी छल्ले को अपनी कमर में डालकर घुमा रहीं थीं. 

पेट क्या नहीं कराता? 

"मजा नहीं आया.... सारी उम्रदार हैं?" चचेरे भाई ने मूँह बनाते हुए कहा. 

उसकी हँसी काफूर हो चुकी थी. 

सिर शर्म से झुक गयाऔर वह अपने कपड़े संभालने लगी जैसे उसे निर्वस्त्र कर दिया हो. 

✍️राशि सिंह, मुरादाबाद 244001


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