"बाबूजी हाथ छोड़िए और अंदर जाइए l" विजय ने बुरा सा मूँह बनाते हुए कहा और अपनी चमचमाती गाड़ी की तरफ मुड़ गया l
उधर बाबूजी खड़े खड़े अपनी अंगुलियों को देख रहे थे.
"जिन अंगुलियों को पकड़कर बेटे को चलना सिखाया, वही हाथ पकड़कर आज उनको वह वृद्ध आश्रम में छोड़ आया l
✍️राशि सिंह, मुरादाबाद
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