"नदी का पानी कहीं से तो आ रहा है? "इसका पता लगाते लगाते पारस उस धारा के साथ साथ चलने लगा. सुबह से शाम हो गई लेकिन किनारा नहीं मिला. थककर एक जगह बैठ गया और थोड़ी देर बैठा ही रहा.
घर वापस जाने पर फिर से वीवी की वही फटकार खानी थी... "कैसे निकम्मे आदमी से विवाह कर दिया मेरे बापू ने... न कुछ कमाता न धमाता बस फक्कड़ सा रास्तों की खाक छानता है l" यह डायलॉग वह पिछले कई सालों से सुनता आ रहा था.
फिर उसने अपनी कलम निकाली और पेन से कुछ लिखने लगा.
उसको लिखने का बड़ा शौक था लेकिन अभी तक कुछ प्रकाशित तो हुआ नहीं था और हो भी जाता तो कहाँ उसका राजमहल बनने वाला था?
उसने एक गहरी साँस ली और कुछ लिखने लगा.
लेकिन यह क्या?
बार बार उसके हाथ से शब्द बनने की बजाय एक पक्षी का चित्र बन जाता जोकी कभी उसने देखा ही नहीं था लेकिन मन में यह विचारकरके कि प्रभु की महिमा अनंत है वह उस चित्र को पूरा करने लगा.
"छी... इतना भयानक पक्षी.... एक हँसता हुआ पक्षी जिसके बड़े बड़े दाँत थे उसने बनाया नहीं अपने आप बन गया वह चित्र.
वह बहुत कोशिश करता रहा लेकिन ऎसा लग रहा था मानो कोई अदृश्य शक्ति उससे यह काम करा रही हो.
तभी यह क्या? वह पक्षी पेज से फड़फ़डाता हुआ निकला और उड़कर टीले पर बैठ गया. उसका आकार अजीब सा था.
उसकी कंचे सी उलसी लाल लाल खून टपकाती आंखें और लाल सुर्ख मांस के लोथड़े सी नाक.... और तितर बितर पंख जोकि बहुत ही गंदे से थे.
"यह चील, बाज या गिद्ध तो नहीं है l" उसने मन ही मन कहा.
"मैं तुमको इस धारा की गोद में जहां से इसकी उत्पत्ति हुई है ले जा सकता हूं l" वह पक्षी मानवीय किंतु कर्कश स्वर में बोला, सुनकर एक बार तो पारस भी भयभीत हो गया लेकिन उसने खुद को संयमित किया और पसीने को पोंछते हुए बोला...
"मुझे कुछ नहीं देखना l"
"अगर तुम मेरे साथ नहीं जाओगे तो मैं तुमको खा जाऊंगा l" वह पक्षी क्रोधित होते हुए बोला और उसके ऊपर मंडराने लगा एक बार तो इतनी तेज पंजा उसके सिर में मारा कि उसको चक्कर सा आ गया l"
"अब तो जाने में ही भलाई है l" सोचता हुआ वह बोला..
"रुको.. मैं चलता हूँ l"
"चलो.... l"
फिर उस पक्षी ने अपना आकर बढ़ाया और पारस से पीठ पर बैठने को कहा.
वह डरते हुए उसकी पीठ पर बैठ गया और उसने उड़ने के लिए अपने पंख खोल दिए.
कुछ देर तक उड़ने के बाद वह एक खण्डर नुमा स्थान पर उतर गया जहां कि अजीब अजीब सी आवाजें आ रहीं थीं ऎसा लग रहा था मानो बहुत से दर्द से पीड़ित लोग एक साथ कराह रहे हों.
वह पक्षी वहां से उड़ने लगा तो पारस ने पूछा यहां तो कोई नदी नहीं है परंतु वह बिना कोई उत्तर दिए उड़ गया.
तभी अंधेरी कोठरी से कई कंकाल चलते हुए उसके पास आए और बोले....
"हम बहुत प्यासे हैं.... भला हो उस दयालु पक्षी का जो तुमको हमारे पास ले आया अब हम तुम्हारा रक्त पीकर अपनी प्यास बुझाएंगे l" और जोर जोर से अट्टहास करने लगे पारस भय से थरथराने लगा.
सारे कंकाल आकर उससे लिपट गये और अपने नुकीले दाँत उसके शरीर में गड़ाने लगे.
वह दर्द से कराह उठा और जोर जोर से रोने लगा. उसकी दर्द भरी चीख सुनकर सब कंकाल जोर से अट्टहास करने लगे.
वह पक्षी जो गायब हो गया था उसको वहां लाकर वह भी अब वहीं आ गया और एक लड़की में परिवर्तित हो गया.जो बेहद खूबसूरत थी.
वह उन कंकालों पर दहाड़ी...
"रहने दो... छोड़ो इसे... ये मानव हैं ही ऎसे... अब इनका खून आपस में चूसने को छोड़ दो.... लालची मनुष्य l" कहते हुए उसने पारस में एक लात मारी और वह लुढ़कता हुआ उसी स्थान पर आ पहुंचा जहां से वह उस पक्षी के साथ गया था. वहां नहीं थी जो चीज तो वह थी नदी की धारा जिसकी खोज में वह लालच से वशीभूत हो उस जादुई पक्षी के साथ गया था.
✍️ राशि सिंह , मुरादाबाद , उत्तर प्रदेश
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