गुरुवार, 24 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी -----पत्थर की औरत


"अरे मारो इसे... कुलटा है यह... डायन है.... सबको बर्बाद कर देगी l" एक महिला जिसके वस्त्र फटे हुए थे बाल खुले हुए उस पर पत्थर बरसाती भीड़ चिल्ला रही थी.

वह पीड़ा से तड़पती अपनी जान की दुहाई मांग रही थी मगर लोगों पर तो जैसे खून सवार था.

उस महिला ने एक अपराध जो कर लिया था किसी का हाथ थामने का.

"इस उम्र में विवाह रचाएगी यह... गाँव की दूसरी महिलाओं पर कितना बुरा असर पड़ेगा l" एक व्यक्ति ने दाँत पीसते हुए कहा यह व्यक्ति वही था जिसकी आँखों मे वासना की चिंगारी को भड़कते हुए न जाने कितनी बार उसने पढ़ा था जो रात के अंधेरे में मूँह छिपाकर उसके बजूद को तहस नहस करना चाहता था मगर ऎसे लोगों को दिखावा करना ढोंग करना कितने अच्छे से आता है यह आज पहली बार देखा था उसने.

भीड़ में उसे कोई भी अपना दिखाई नहीं दे रहा था अपने क्या वो सब इंसान ही कहाँ थे सभी इंसान की खाल    में छिपे भेड़िये थे जो उसके जिस्म को नोचकर खाना चाहते थे.

वह पीड़ा से पड़ी कराह रही थी और ऎसा लग रहा था कि शायद यह उसकी पीड़ा का अंत हो.

अब से पंद्रह साल पहले वह विवाह होकर इस गांव में आई थी. पति के पास कुछ बीघे जमीन थी विवाह के तीन साल गुजरने पर भी उसके बच्चा नहीं हुआ जिसका दोष भी उसी के माथे मढ़ दिया गया था कि वह बांझ है, लेकिन चूंकि उसकी जुवान तो थी नहीं वह तो पत्थर का बुत थी शायद जिसके ना भावना थीं दुनियां की नजर में और न ही इच्छाएं कैसे कहती चिल्लाकर की उसका पति नपुंसक है यह स्त्री धर्म के खिलाफ जो था.

खैर कई साल गुजर गए और उस पर तानों की बौछार भी अब उसको सबकी आदत पड़ चुकी थी क्योंकि पत्थर कुछ बोलते नहीं.

और तीन साल पहले ही पति जो कि दमा का मरीज था, चल बसा उसके जाने से मुसीबत और बढ़ गईं अब उसको नया नाम पति को खाने वाली डायन जो मिल गया था पति था उसके साथ मारपीट करता मनमानी करता मगर था तो वह उसका मरद इसलिए कोई उसकी तरफ देखता नहीं था परंतु जबसे वह गुजरा वही लोग जिनकी रिश्ते की चाची भाभी बहुत थी वह उसी को गिद्ध की नजर से देखने लगे भूखे भेड़िये से उसकी आबरू को लूटने को आमादा.

तभी कहते हैं न अहिल्या को छूकर राम जी ने उसे नारी में परिवर्तित कर दिया ऎसा ही गाँव के दीना ने भी उसका हाथ दिन के उजाले में जाकर मांगा और जिन्दगी भर साथ देने का वायदा भी किया अब उसकी भी भावना हिलोरें लेने लगी थी शायद वर्षों से दबी दबाई भावनाएं ज्वार भाटे सी तरंगें भरने लगीं थीं.

और दीना की समझदारी और उसके सुरक्षा के वचन ने औरत को जिंदा करने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई मगर यह क्या यह बात इन नर पिशाचों को पसंद नहीं आई और पहले दीना को 'बुरा आदमी ' कहकर पीट पीटकर मार डाला और उसे डायन घोषित कर मारने पर आमादा हो गए.

एक स्त्री ने उनके पौरुष जो कि गंदगी से ओत प्रोत था को जो नकारा था.

वह फिर से गहरी नींद में सोकर पत्थर की जो बन गई थी.

✍️राशि सिंह, मुरादाबाद उत्तर प्रदेश


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