"मम्मी तुम बहुत ही प्यारी हो ....आज देखो मैने कॉलेज टॉप किया है ."उमा की बड़ी बेटी ने माँ से लिपटते हुए कहा .
"देख लो दीदी हम दोनों भी तुम्हारे पदचिन्हों पर ही चल रहे हैं l"दोनों छोटे भाई बहन भी एक स्वर में बोले .देखकर उमा की आँखों से खुशी के आँसू बह निकले .
"नहीं मम्मी रोना नहीं ....हमने तुमको बहुत रोते हुए देख लिया लेकिन अब नहीं ..l"बड़ी बेटी ने उमा के आँसू पौंछते हुए कहा .
सुनकर उमा आज कई साल बाद जी भरकर रोई ....बेटियों ने खाना बनाया और माँ के साथ मिलकर सबने खाया .जब तीनों बच्चे सो गए तो उमा ने प्रेम से उनके ऊपर हाथ फेरा , और डूब गई अपने अतीत में क्योंकि अतीत कभी पीछा नहीं छोड़ता उसकी खुशियाँ और दुख कभी भी आकर मन क़ो बेचैन कर जाते हैं .
पति की लाश के पास उमा चुपचाप बैठी थी , बिल्कुल बुत की तरह या यूँ कहिये कि जिंदा लाश की तरह ...तीन छोटे छोटे बच्चे घर में मचे कोहराम क़ो देखकर इधर उधर रोते बिलखते फिर रहे थे ...लड़का छोटा था दो लड़कियां थीं पाँच और तीन साढ़े तीन साल की और लड़का ढेड साल का वह चलकर आता और अपनी मम्मी से लिपटकर उसकी छाती से लिपटकर सिर मारता कभी मूँह टिकाता और रोता बिलखता फिर चला जाता ....बड़ी लड़की क़ो समझ आ चुका था कि उसके पापा भगवान के पास चले गए मगर छोटी ....वह तो छोटी ही थी ....क्या क्या होता रहा उमा क़ो कोई सुध नहीं थी , उसकी चूड़ी तोड़ दी गयीं और सिंदूर भी पौंछ दिया गया ....कोई पहली बार तो हुआ नहीं था यह इससे पहले भी .....यह सोचकर वह बहुत जोर से चिल्लाई और रोने लगी ..."मैं इतनी बुरी हूँ क्या ?"यह वेदना भरे शब्द सुनकर पत्थर दिल लोग भी रोए बिना न रह सके .."हर कोई चला जाता है मुझसे रूठकर दूर ...बहुत दूर ...क्यों ?"उसका रोना देखा नहीं जा रहा था .
थोड़ी देर बाद उसके पति की क्रिया कर्म के लिए ले जाया गया वह बहुत रोई मगर कोई फायदा नहीं इधर बच्चों का भी बुरा हाल था .
रात क़ो जब वह लेटी थी तो ताई सास और उसकी ननद आपस में बातें कर रही थीं .....
"इसके भाग्य में सुहाग है ही नहीं ....पहले विधवा हो गई थी और अब यहां भी ....अब क्या करेगी ?"
उमा सब कुछ सुन रही थी मगर वह कुछ नहीं बोली पास में जमीन पर सो रहे अपने तीनों मासूम बच्चों क़ो देखा जो शायद भूखे ही सो गए थे क्योंकि बच्चे उमा के साथ ही खाना खाते थे .
उसकी आँखों में बीती सारी घटनाएं घूमने लगीं .
कितनी बोझ बनी जा रही थी वह माँ और बाबूजी क़ो कि हाईस्कूल में आते ही उसकी पढ़ाई छुड़ाकर पास के ही गाँव के योगेश नाम के युवक के साथ उसका विवाह कर दिया गया था ....सब कुछ था योगेश के पास जो जीने के लिए चाहिए घर ...जमीन थोड़ी सी और बहुत सारा प्यार ...शादी के दो साल बाद उसने जुड़वा बच्चों क़ो जन्म दिया ...बहुत खूबसूरत और प्यारे बच्चे पाकर जैसे योगेश और उमा खुशी से फूले नहीं समा रहे थे ....मगर उनकी खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं रही कहा भी जाता हैं कि अति हर चीज की बुरी होती हैं फिर चाहे वह खुशी हो या गम बच्चे छः महीने के ही थे कि एक दिन शाम क़ो जब योगेश खेत से घर लौट रहे थे तब रास्ते में ही अचानक पेट में दर्द उठा और पेट पकड़े हुए घर आए ...डाक्टर के पास ले जाया गया मगर कोई फायदा नहीं हुआ ...शहर ले गए मगर बहुत सारे टेस्ट कराने के बाब्जोड भी कोई फायदा नहीं हुआ तबीयत दिन ब दिन बिगड़ती ही गई और एक दिन उमा पर जैसे वज्रपात हो गया योगेश उसक़ो और उसके बच्चों क़ो छोड़कर रोता बिलखता हमेशा के लिए चले गए .
घर में फिर ताने दिए जाने लगे कि उसने और उसके बच्चों ने योगेश क़ो खा लिया ...एक दिन बच्चों क़ो बहुत तेज बुखार आया और बे भी ....फिर तो उसका घर में रहना ही दूभर हो गया ससुराल वालों ने उसको इतना परेशान किया कि उसका घर में रहना दूभर कर दिया , पति की अकाल मौत और ऊपर से बच्चों का साया उठना जैसे वह मर ही गई थी अभी उम्र ही क्या थी केवल वाइस साल .
घर परिवार वालों और रिश्तेदारों ने फिर से जीना मुश्किल कर दिया और एक बार उमा के माँ बाप ने उसको फिर से समाज की दुहाई डे बमुश्किल विवाह के लिए राजी किया .
इस बार उसका विवाह निमेष के साथ तय हुआ जोकि एक सरकारी स्कूल में चपरासी था ....विधुर था ...यह हमारे समाज की विडम्बना ही तो हैं कि विधवा महिला क़ो तो हँसी खुशी विधुर के साथ विवाह दिया जाता हैं मगर कोई क्वांरा लड़का आज भी विधवा का हाथ थामने से कतराता है.
निमेश उम्र में उमा से पूरे आठ साल बड़ा था मगर अंधा क्या मांगे दो आँखें ....उसकी नौकरी थी इसलिए घरवालों ने उसको विवाह दिया .
एक बार फिर से जीने की आस जागी मगर विवाह के आठ साल बाद ही सर्पदंश से निमेश की भी मौत हो गई .
उमा फिर रह गई बिल्कुल अकेली ....उससे ज्यादा चिंता फिर से उसकी समाज क़ो होगी मगर सिर्फ उसको किसी मर्द का सहारा देने के लिए .
लेकिन इस बार उसने निश्चय कर लिया कि वह समाज के आदेश पर नहीं अपितु अपने जमीर की सुनेगी .
उसने उठकर तीनों बच्चों क़ो दुलारा .और जब सारे क्रिया कर्म हो गए तो सभी सहानुभूति जताकर अपने अपने घर चले गए .
इधर छोटे देवर अजीत की सहानुभूति उसके प्रति बढ़ती ही जा रही थी हालांकि वह शादीशुदा था उसकी पत्नी जोकि पहले उमा क़ो एक आँख नहीं देखती थी कुछ ज्यादा ही हमदर्दी जताने लगीं .
"हेल्लो भाभी l"बड़ी ननद का फोन आया .
"नमस्ते जीजी l"
"नमस्ते ....अब ऐसा करो निमेश की नौकरी के जो कागजात बनेंगे उन पर दस्तखत कर देना l"
"कैसे दस्तखत ?"
"अजीत बता देगा l"कहकर ननद ने फोन काट दिया .
"भाभी जीजी से बात हो गई ?"
"हाँ l"
"लो यहां अँगूठा लगा दो l"
"क्या हैं यह ?"
"अरे पढ़कर क्या करोगी ...लो स्याही l"अजीत ने हंसते हुए कहा l
उमा पूरा पेपर पढ़ गई उसमे साफ साफ लिखा था कि नौकरी करने में वह असमर्थ हैं इसलिए राजी से अपनी नौकरी निमेश के भाई अजीत क़ो देना चाहती हैंl
"भैया ...तुम कहाँ तक पढ़े हो ?"
"मैं ...मैं हाईस्कूल फेल हूँ l"
"और मैं पास ....मेरे भी तो बच्चे हैं ...बताओ भैया मैं कैसे पालुंगी इनको ?"सुनकर अजीत पागल हो गया आया हुआ मौका जाता देखकर उसने उमा क़ो परेशान करना शुरू कर दिया .
पूरे गाँव में अफवाह फैला दी कि उसकी भाभी उमा बहुत ही अभागन और डायन है...एक पति क़ो तो पहले खा आई और निमेश क़ो भी खा गई .
सबने उसका विरोध किया मगर इस बार वह पीछे नहीं हटी . उसने नौकरी करनी शुरू की और साथ ही उसी स्कूल में अपने बच्चों का एडमीशन भी करा लिया .
✍️राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
"देख लो दीदी हम दोनों भी तुम्हारे पदचिन्हों पर ही चल रहे हैं l"दोनों छोटे भाई बहन भी एक स्वर में बोले .देखकर उमा की आँखों से खुशी के आँसू बह निकले .
"नहीं मम्मी रोना नहीं ....हमने तुमको बहुत रोते हुए देख लिया लेकिन अब नहीं ..l"बड़ी बेटी ने उमा के आँसू पौंछते हुए कहा .
सुनकर उमा आज कई साल बाद जी भरकर रोई ....बेटियों ने खाना बनाया और माँ के साथ मिलकर सबने खाया .जब तीनों बच्चे सो गए तो उमा ने प्रेम से उनके ऊपर हाथ फेरा , और डूब गई अपने अतीत में क्योंकि अतीत कभी पीछा नहीं छोड़ता उसकी खुशियाँ और दुख कभी भी आकर मन क़ो बेचैन कर जाते हैं .
पति की लाश के पास उमा चुपचाप बैठी थी , बिल्कुल बुत की तरह या यूँ कहिये कि जिंदा लाश की तरह ...तीन छोटे छोटे बच्चे घर में मचे कोहराम क़ो देखकर इधर उधर रोते बिलखते फिर रहे थे ...लड़का छोटा था दो लड़कियां थीं पाँच और तीन साढ़े तीन साल की और लड़का ढेड साल का वह चलकर आता और अपनी मम्मी से लिपटकर उसकी छाती से लिपटकर सिर मारता कभी मूँह टिकाता और रोता बिलखता फिर चला जाता ....बड़ी लड़की क़ो समझ आ चुका था कि उसके पापा भगवान के पास चले गए मगर छोटी ....वह तो छोटी ही थी ....क्या क्या होता रहा उमा क़ो कोई सुध नहीं थी , उसकी चूड़ी तोड़ दी गयीं और सिंदूर भी पौंछ दिया गया ....कोई पहली बार तो हुआ नहीं था यह इससे पहले भी .....यह सोचकर वह बहुत जोर से चिल्लाई और रोने लगी ..."मैं इतनी बुरी हूँ क्या ?"यह वेदना भरे शब्द सुनकर पत्थर दिल लोग भी रोए बिना न रह सके .."हर कोई चला जाता है मुझसे रूठकर दूर ...बहुत दूर ...क्यों ?"उसका रोना देखा नहीं जा रहा था .
थोड़ी देर बाद उसके पति की क्रिया कर्म के लिए ले जाया गया वह बहुत रोई मगर कोई फायदा नहीं इधर बच्चों का भी बुरा हाल था .
रात क़ो जब वह लेटी थी तो ताई सास और उसकी ननद आपस में बातें कर रही थीं .....
"इसके भाग्य में सुहाग है ही नहीं ....पहले विधवा हो गई थी और अब यहां भी ....अब क्या करेगी ?"
उमा सब कुछ सुन रही थी मगर वह कुछ नहीं बोली पास में जमीन पर सो रहे अपने तीनों मासूम बच्चों क़ो देखा जो शायद भूखे ही सो गए थे क्योंकि बच्चे उमा के साथ ही खाना खाते थे .
उसकी आँखों में बीती सारी घटनाएं घूमने लगीं .
कितनी बोझ बनी जा रही थी वह माँ और बाबूजी क़ो कि हाईस्कूल में आते ही उसकी पढ़ाई छुड़ाकर पास के ही गाँव के योगेश नाम के युवक के साथ उसका विवाह कर दिया गया था ....सब कुछ था योगेश के पास जो जीने के लिए चाहिए घर ...जमीन थोड़ी सी और बहुत सारा प्यार ...शादी के दो साल बाद उसने जुड़वा बच्चों क़ो जन्म दिया ...बहुत खूबसूरत और प्यारे बच्चे पाकर जैसे योगेश और उमा खुशी से फूले नहीं समा रहे थे ....मगर उनकी खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं रही कहा भी जाता हैं कि अति हर चीज की बुरी होती हैं फिर चाहे वह खुशी हो या गम बच्चे छः महीने के ही थे कि एक दिन शाम क़ो जब योगेश खेत से घर लौट रहे थे तब रास्ते में ही अचानक पेट में दर्द उठा और पेट पकड़े हुए घर आए ...डाक्टर के पास ले जाया गया मगर कोई फायदा नहीं हुआ ...शहर ले गए मगर बहुत सारे टेस्ट कराने के बाब्जोड भी कोई फायदा नहीं हुआ तबीयत दिन ब दिन बिगड़ती ही गई और एक दिन उमा पर जैसे वज्रपात हो गया योगेश उसक़ो और उसके बच्चों क़ो छोड़कर रोता बिलखता हमेशा के लिए चले गए .
घर में फिर ताने दिए जाने लगे कि उसने और उसके बच्चों ने योगेश क़ो खा लिया ...एक दिन बच्चों क़ो बहुत तेज बुखार आया और बे भी ....फिर तो उसका घर में रहना ही दूभर हो गया ससुराल वालों ने उसको इतना परेशान किया कि उसका घर में रहना दूभर कर दिया , पति की अकाल मौत और ऊपर से बच्चों का साया उठना जैसे वह मर ही गई थी अभी उम्र ही क्या थी केवल वाइस साल .
घर परिवार वालों और रिश्तेदारों ने फिर से जीना मुश्किल कर दिया और एक बार उमा के माँ बाप ने उसको फिर से समाज की दुहाई डे बमुश्किल विवाह के लिए राजी किया .
इस बार उसका विवाह निमेष के साथ तय हुआ जोकि एक सरकारी स्कूल में चपरासी था ....विधुर था ...यह हमारे समाज की विडम्बना ही तो हैं कि विधवा महिला क़ो तो हँसी खुशी विधुर के साथ विवाह दिया जाता हैं मगर कोई क्वांरा लड़का आज भी विधवा का हाथ थामने से कतराता है.
निमेश उम्र में उमा से पूरे आठ साल बड़ा था मगर अंधा क्या मांगे दो आँखें ....उसकी नौकरी थी इसलिए घरवालों ने उसको विवाह दिया .
एक बार फिर से जीने की आस जागी मगर विवाह के आठ साल बाद ही सर्पदंश से निमेश की भी मौत हो गई .
उमा फिर रह गई बिल्कुल अकेली ....उससे ज्यादा चिंता फिर से उसकी समाज क़ो होगी मगर सिर्फ उसको किसी मर्द का सहारा देने के लिए .
लेकिन इस बार उसने निश्चय कर लिया कि वह समाज के आदेश पर नहीं अपितु अपने जमीर की सुनेगी .
उसने उठकर तीनों बच्चों क़ो दुलारा .और जब सारे क्रिया कर्म हो गए तो सभी सहानुभूति जताकर अपने अपने घर चले गए .
इधर छोटे देवर अजीत की सहानुभूति उसके प्रति बढ़ती ही जा रही थी हालांकि वह शादीशुदा था उसकी पत्नी जोकि पहले उमा क़ो एक आँख नहीं देखती थी कुछ ज्यादा ही हमदर्दी जताने लगीं .
"हेल्लो भाभी l"बड़ी ननद का फोन आया .
"नमस्ते जीजी l"
"नमस्ते ....अब ऐसा करो निमेश की नौकरी के जो कागजात बनेंगे उन पर दस्तखत कर देना l"
"कैसे दस्तखत ?"
"अजीत बता देगा l"कहकर ननद ने फोन काट दिया .
"भाभी जीजी से बात हो गई ?"
"हाँ l"
"लो यहां अँगूठा लगा दो l"
"क्या हैं यह ?"
"अरे पढ़कर क्या करोगी ...लो स्याही l"अजीत ने हंसते हुए कहा l
उमा पूरा पेपर पढ़ गई उसमे साफ साफ लिखा था कि नौकरी करने में वह असमर्थ हैं इसलिए राजी से अपनी नौकरी निमेश के भाई अजीत क़ो देना चाहती हैंl
"भैया ...तुम कहाँ तक पढ़े हो ?"
"मैं ...मैं हाईस्कूल फेल हूँ l"
"और मैं पास ....मेरे भी तो बच्चे हैं ...बताओ भैया मैं कैसे पालुंगी इनको ?"सुनकर अजीत पागल हो गया आया हुआ मौका जाता देखकर उसने उमा क़ो परेशान करना शुरू कर दिया .
पूरे गाँव में अफवाह फैला दी कि उसकी भाभी उमा बहुत ही अभागन और डायन है...एक पति क़ो तो पहले खा आई और निमेश क़ो भी खा गई .
सबने उसका विरोध किया मगर इस बार वह पीछे नहीं हटी . उसने नौकरी करनी शुरू की और साथ ही उसी स्कूल में अपने बच्चों का एडमीशन भी करा लिया .
✍️राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें