बुधवार, 14 अक्टूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ----- बदलते भाव

वह गर्दन झुकाए चुपचाप बैठा था कई उसी जैसे किसान आए और अपने अनाज का मोलभाव आडतिए से करके चले गए उनके चेहरों पर बेबसी और आडतिए के चेहरे पर ऎसे भाव थे जैसे कि उनका अनाज सस्ते में खरीद कर एहसान कर रहा हो. 

"अरे बड़े गंदे गेहूं हैं.... इनका तो दो रुपया कम ही लगेगा l" उस आडतिए ने मुट्ठी में गेहूं भरा और मूँह बनाते हुए तंबाकू की पीक मार दी एक तरफ l

"लेकिन बाबूजी देखो न कैसे मोती से गेहूं..... l" उसने अपने गेहूं की तरफ प्रेमभाव से देखते हुए कहा जैसे माता पिता अपनी संतान की तरफ देखती हैं l

"नहीं बेचना क्या? जाओ यहां से समय बर्बाद करने आ गया l" आडतिया डपटते हुए बोलाl

"नहीं बाबूजी बेचना है बेचना है उसकी आँखों में बेटी का विवाह बेटे की स्कूल फीस घर की टूटी छत और उसकी पूरी दुनियाँ घूम गई. 

" और हाँ एक कुंतल पर एक किलो छीज कटेगी... वो तोलने में कम हो जाता है न l"उसने फिर बेशर्मी से कहा l

"लेकिन बाबूजी रहेगा तो आपके पास ही जो कम होगा...!" 

"तू जा यहां से अब.... l" आडतिए ने फिर से झिड़का l

"ठीक है l" कहते हुए उसने अपनी बैलगाड़ी मोड़ दी और उसके पीछे औरों ने भी अब भाव दोनों बदलने वाले थे चेहरों के भी और अनाज के भी l


राशि सिंह , मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश 

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