रात्रि का तीसरा पहर शुरू हो चुका था. उपवन में रातरानी और हर श्रंगार के पुष्प अपनी खुश्बू बिखेरकर हवा को और और ज्यादा मदहोश कर रहे थे. चंद्रमा की शीतल चांदनी जमीन की सूरज द्वारा बिखेरी तपन को शीतलता में बदलकर उसकी प्यास को कुछ हद तक कम करने का प्रयास कर रही थी.
नीले स्वच्छ आसमान में दूर तक टिमटिमाते तारे दुपट्टे में झिलमिलाते सितारों से प्रतीत हो रहे थे.
कई तारों का समूह कई कहानियां सुना रहे थे. उत्तर दिशा में चट्टानी सा खड़ा ध्रुव तारा उसको सबसे अधिक प्रिय था.
क्योंकि वह अपने वक्तव्य पर डटा रहने वाला और बहुत ही पाक साफ था.
उसकी कहानी कई बार उसने अपनी दादी के मूँह और किताब में भी पढ़ी थी जो उसको बहुत अच्छी लगती थी.
पास ही बहता झरना और नदी के किनारे बैठी वह मोहिनी अपने अक्स को पानी में निहार रही थी. वह मंद मंद खिलती कली सी मुस्करा रही थी.
शीतल हवा और पेड़ों की हिलती डालियाँ पानी में साफ दिखाई दे रहीं थीं.
उसने नजाकत से अपना पल्लू कंधे से उतार कर जमीन पर रखा और फिर दोनों हथेलियों को अपने घुटने पर रखा और उस पर अपना चेहरा रखकर पानी में पैर डालकर हिलाने लगी शांत वातावरण में पानी की आवाज संगीतमय लग रही थी उस पर पायल के घुँघरूओं की छम छम संगीत को सम्पूर्ण बना रही थी.
तभी उसको पानी में एक और अक्स दिखाई दिया शायद किसी पुरुष का था. उसके प्रियतम उसके पास खड़े मुस्करा रहे थे.
उसने पैर का हिलाना रोक दिया अब वह अक्स साफ दिखाई देने लगा.
मोहिनी ने खनकती आवाज में कहा....
"कौन हो तुम?"
"प्रेम l"उसने धीरे से मुस्कराते हुए कहा.
मोहिनी के मुख पर हया की लालिमा छा गई.
"तो फिर इतने दूर क्यों हो?" मोहिनी ने अदा से आँखें मटकाते हुए पूछा l
"मैं तो तुम्हारे पास ही हूँ l" प्रेम ने फिर मुस्कराते हुए कहा l
"लेकिन......?"
"लेकिन क्या?"
मोहिनी ने उत्सुकता से पूछा l
"तुम में जब तक अहम रहेगा तुम्हारा और मेरा प्रेम असंभव है l"
"फिर तुम में और मेरे अहम में कोई अंतर तो नहीं रह जाता.... जहां बदले की भावना हो वह कैसा प्रेम?" मोहिनी ने प्रश्न किया.
"तुम समझ नहीं रहीं?" प्रेम ने फिर दोहराया.
"अगर तुम मुझे मैं जैसी हूँ स्वीकार नहीं कर सकते तो फिर मैं क्यों....?"
"यही तो अहं है तुम्हारा l"प्रेम ने बात को बीच में ही काटते हुए कहा.
"यह स्वाभिमान भी तो हो सकता है?" मोहिनी ने थोड़े सख्त लहजे मे कहा l
"सिर्फ स्त्री से ही समर्पण की उपेक्षा क्यों?" कहते हुए मोहिनी ने अपने पैर को जोर से पानी में हिलाया अब वह अक्स कहीं नहीं था.
"छलिया l"
कहते हुए मोहिनी उठकर अपने महल की ओर चल दी.
✍️राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
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