गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

पढ़िए रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश की लघुकथा लेनदेन

लघुकथा ः लेन-देन
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     "कितने का लिफाफा दिया जाए ? "- रमेश बाबू ने अपनी पत्नी से पूछा.।
       "100 से कम का तो लिफाफा चलता ही नहीं है , वैसे ढाई सौ का या 500 का दिया जाना चाहिए  "  पत्नी मिथिलेश का उत्तर था ।
    "कैसे दे दिया जाए"? - पत्नी मिथलेश की बात का जवाब देते हुए रमेश बाबू ने कहा-" 100 से ज्यादा का लिफाफा हम कैसे दे सकते हैं "
     " तो 100 का ही दे दिया जाए" - मिथिलेश ने कहा। रमेश बाबू का चेहरा मुरझा गया। बोले"दे तो देंगे ,लेकिन बाद में बेइज्जती कहीं न उठानी पड़े ।अभी थोड़े दिन पहले घनश्याम जी के यहां प्रीतिभोज हुआ था उसमें भी एक सज्जन ने सौ रुपए का लिफाफा दिया था तो पूरे शहर भर में वह उसकी बेइज्जती करते फिरे थे। दरअसल अभी थोड़ी देर पहले शहर के प्रमुख उद्योगपति रमेश बाबू को अपनी विवाह की पच्चीसवीं वर्षगांठ का निमंत्रण देकर गए थे । क्या दिया जाए ..तभी से दोनों पति-पत्नी इस बारे में विचार मंथन कर रहे थे। जब काफी देर हो गई तो रमेश बाबू ने झुंझलाकर कहा "ज्यादा तो हम दे नहीं सकते और कम देने में बेइज्जती है। लिहाजा अच्छा यही होगा कि हम कोई बहाना बना दें और एनिवर्सरी में न जाएं। यह  सुनकर ठंडी और गहरी सांस लेकर मिथिलेश ने अपने पति की बात का समर्थन किया ।बोली  " हां ! यही ठीक रहेगा"।
रवि प्रकाश, रामपुर

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