चली हवा जब फागुनी, मोहक, मादक, मन्द।
गोरी भी लिखने लगी, प्यार भरे फिर छन्द।।
जब बासन्ती रंग से, धरा करे श्रृंगार।
भौंरें फिर करने लगे ,कलियों पर गुंजार ।।
मस्ती के त्यौहार पर, चढ़ जाये जब भंग।
लगें नाचने झूम के , तब होली के रंग।।
होली का त्यौहार ये, मन में भरे उमंग।
रोम रोम हर्षित करे, फागुन का ये संग।।
रंगों के इस पर्व पर, बाँटो जग में प्यार।
खुशियों से झोली भरे, होली का त्यौहार।।
✍️ डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद
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