बदल गया है आज कलैंडर
पर पंचांग नहीं बदला ।
कैसे कहूं नव वर्ष इसे ,
अपना अंदाज नहीं बदला।।
ठंड जकड़ती पल-पल सबको
क्रियाशीलता शिथिल हुई ।
अंग्रेजी नवबर्ष आ गया,
आजादी गुम कहां हुई ।।
शीत लहर चल रही ठिठुरती
और सिकुड़ती नियती नटी।
निविण निशा की बढ़ी कालिमा
दिनकर की रश्मियां घटीं।।
कांप रही है धरा ठंड से
कोहरे की चादर ओढे,।
धूल जमी पत्ती पत्ती पर।
कैसे ऑक्सीजन छोड़ें।।
नहीं परिंदों का कलरव है ,
गुमसुम सारे वृक्ष खड़े ।
न इसमें कुछ भी नवीन है,
बस दावे हैं बड़े बड़े।।
नव बर्ष नयापन कुछ तो हो,
कुछ दिन थोड़ा बस धैर्य धरो।
अब नकल छोड़ औअक्ल लगा,
प्रतीक्षा बस उस दिन की करो।
जब प्रकृति के आंगन में
हर रंग उभर कर आएगा,
दिन बहुत सुहाने आएंगे,
कोहरा सब गुम हो जाएगा
धरती पर होगा नव बसंत,
हर भंवरा गीत सुनाएगा ।
जब चैत्र प्रतिपदा शुक्ल पक्ष
नव वर्ष हमारा आयेगा।
है आर्यवर्त का यह गौरव,
युक्ति संगत प्रमाण सिद्ध।
सबसे उत्तम गणना युगाब्ध,
नव वर्ष हमारा है प्रसिद्ध।।
फागुन के रंग बिखरने दो!
धरती को जरा संवरने दो!
हरियाली फैले चहूं ओर,
पुष्पों को जरा महकने दो!
खुश हाली घर घर आएगी,
सब गीत खुशी के गाएंगे ।
अनमोल विरासत है अपनी,
मिलजुल नव वर्ष मनाएंगें।
अब चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा,
हर दिल उल्लास जगाना है
और छोड़ अंग्रेजी नया साल
हिंदी नववर्ष मनाना है ।।
✍️ अशोक विद्रोही
412, प्रकाशनगर, मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
बहुत बढ़िया , शानदार
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार कविता लिखी है आपने आने बाले नव बर्ष का अनुभव करा दिया
जवाब देंहटाएं