माना आवश्यक हुआ , सड़कों का विस्तार,
किंतु न हो इसके लिए, पेड़ों पर नित वार।
बार-बार विनती करें,बरगद-शीशम-आम,
मानव हमको काट मत, हम आएँगे काम
देते हैं हम पेड़ तो , प्राणवायु का दान,
फिर क्यों लेता है मनुज, बता हमारी जान।
देते हैं ये पेड़ ही , घनी छाँव, फल-फूल,
इन्हें काटने की मनुज,मत कर प्रतिपल भूल।
पेड़ो की लेकर सतत , निर्ममता से जान,
मत कर अपनी मौत का, मानव तू सामान।
सबसे है मेरी यही , विनती बारंबार,
पेड़ लगाकर कीजिए , धरती का शृंगार।
✍️ ओंकार सिंह विवेक, रामपुर
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