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शनिवार, 17 दिसंबर 2022

बुधवार, 14 दिसंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष शिव अवतार रस्तोगी 'सरस' की दो बाल कविताएं : जाड़ा


 
(एक)

सूरज दादा सिहर सिहर कर

 अकड़े ऐंठे बैठें हैं।

लगता सिकुड़ रहे सर्दी से, 

इससे   सचमुच  ऐंठे हैं ।।


जगते समय ,देर से उठते

जल्दी ही ,सो जाते हैं ।

खुद भी ठिठुर रहे  सर्दी से

हमको भी ठिठुराते हैं ।।


इस सर्दी के  कारण ही तो

रात बड़ी, दिन छोटा है।

इससे बहुत देर बिस्तर पर

सोना अपना होता है ।।

     

अगर देर तक दिन रहता तो

शीत सताती  हमें इधर ।

उछल कूद करने के कारण

हम सर्दी खाते   दिन भर ।।


कभी सिकुड़ कर, कभी फैलकर

कुदरत करती अपना काम।

यों मौसम परिवर्तन होता

गर्मी सर्दी पाते  नाम ।।

   

 अत: सिकुड़ना और फैलना

 हुआ ताप का असली काम।

 इसे ताप सिद्धांत समझ लो

मिलते विंटर समर नाम ।।


(दो)

जाड़ा जाड़ा जाड़ा जाड़ा

इस जाडे़ ने किया कबाड़ा ।

कट कट कट कट दॉत कटकते

मानो हम पढ़ रहे पहाड़ा ।।

   

दिन छोटा, पर रात बड़ी है

सर्दी हण्टर  लिये खड़ी है ।

सूरज भी सहमा- सहमा सा

लगता इस पर पडा कुहाड़ा ।।


दिन में धूप सुहानी लगती

छाया ,दैत्य- सरीखी खलती ।

लम्बी रातें ,लगें भयानक

छाता अँधकार है गाढ़ा ।।

  

 पशु -पक्षी भी महा- दुखी हैं

 जो समर्थ हैं ,वही सुखी हैं ।

 कॉप रहे  हैं  सब सर्दी से 

बछिया -बछड़े,पड़िया -पाड़ा ।।


क्षण क्षण में घिर आते बादल

छाता अँधियारा, ज्यों काजल

झम झम झम झम वर्षा होती

धन गरजें, ज्यों सिंह दहाड़ा ।।

    

 सबको भाती गरम  रजाई

 हलवा- पूड़ी, दूध -मलाई ।

 सुड़ड़ सुड़ड़ सुड़ नाक बोलती

 पीना पड़ता कड़वा काढ़ा ।।


आलू ,शकरकंद सब खाते 

धूप भरे दिन, सदा सुहाते ।

गजक रेबड़ी ,अच्छी लगतीं

गुड़ से खाते  गर्म सिंघाड़ा ।।


✍️ शिव अवतार रस्तोगी 'सरस'


मुरादाबाद की साहित्यकार कंचन खन्ना का बाल गीत ....सर्दी आई


 

मंगलवार, 8 नवंबर 2022

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद संभल) के साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की बाल कविता ....चंद्रग्रहण


शिक्षक जी बच्चों से पूछे,

फिर से एक सवाल। 

चंद्रग्रहण कैसे-क्यों पड़ता, 

बतलाओ तत्काल। 


गप्पू जी ने हिम्मत करके, 

सर जी को बतलाया ।

चाँद चमकता है,सूरज से,

तुमने हमें बताया ।


सर जी बोले सही पकड़े हो,

पर आगे बतलाओ ।

चंद्रग्रहण की सारी घटना,

जल्दी से समझाओ।

 

सूर्य-चंद्रमा में भी तो सर!,

झगड़ा होता होगा। 

सूरज न देता प्रकाश, तब,

चंदा रोता होगा। 


उस दिन सर जी हमें रात में,

चाँद न जब दिख पाता।

समझो सर जी उसी रात में,

चंद्रग्रहण पड़ जाता। 


सारी कक्षा ही-ही करके,

गप्पू पर थी हँसती। 

शिक्षक जी ने डाँटा सबको,

करो न इतनी मस्ती। 


कुछ तो कोशिश करता गप्पू ,

कुछ तो हमें बताता।

सूर्यप्रकाश से चाँद चमकता,

गप्पू सही फरमाता। 


सुनो ध्यान से पूरी कक्षा, 

देखो मैं समझाऊं। 

चंद्रग्रहण की पूरी घटना, 

मे तुमको बतलाऊं।


जब पृथ्वी सूरज-चंदा के,

ठीक मध्य में आती। 

तब सारी किरणें सूरज की, 

भू तक पहुंच न पाती।


अरु पृथ्वी की छाया बच्चो!

चंदा पर पड़ जाती। 

यह खगोलिय घटना गप्पू !,

चन्द्रग्रहण कहलाती।

 

पूर्णिमा है वो तिथि बच्चो!,

जब ऐसा होता है। 

न सूरज लड़ता चंदा से, 

न चंदा रोता है।


✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग' 

शिवबाबा सदन, कृष्णाकुंज,

बहजोई-244410 (संभल) 

उत्तर प्रदेश, भारत

मो. 9548812618 

ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com

शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव सक्सेना की बाल कहानी..... असफलता । उनकी यह कहानी बालपत्रिका -देवपुत्र के नवंबर-2022 के अंक में प्रकाशित हुई है।

     


"बच्चों ! तुम्हें पता है... भारत अंतरिक्ष में अपने यात्री भेजने वाला है....।" सुधीर आचार्य जी ने कक्षा में विज्ञान पढ़ाते हुए अपने छात्रों को जानकारी देते हुए कहा।

" आचार्य जी ! हमने यह भी सुना है कि हमारे वैज्ञानिक शीघ्र ही चन्द्रमा पर अपना अभियान करने वाले हैं।" रचित ने बीच में बोलते हुए कहा।

"हाँ बिल्कुल ठीक यही नहीं इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) मंगल पर भी दूसरा यान भेजने में जुटा है। सही बात तो यह है कि दुनिया के सभी विकसित देशों के बीच अपने यान अंतरिक्ष में भेजने की प्रतिस्पर्धा लगी है। हमारा भारत भी पीछे नहीं है। लेकिन बच्चों समय रहते तुम्हें भी विज्ञान में रुचि लेनी होगी जिससे हमें योग्य वैज्ञानिक और इंजीनियर मिल सकें। नहीं तो हमारा देश पिछड़ ने जायेगा।" सुधीर आचार्य जी ने कुछ गंभीर होकर कहा।

"आचार्य जी! मुझे तो विज्ञान पढ़ना बहुत पसंद है। मुझे यह बड़ा रोचक लगता है।" सार्थक ने कहा। "मुझे तो वैज्ञानिकों और उनके आविष्कारों की कहानियाँ पढ़ना पसन्द है।" इस बार संकेत बोला।

"अंतरिक्ष यात्रा बड़ी मजेदार होती है। मैं तो बड़ा होकर अंतरिक्ष यात्री बनूँगा। एलियनों अर्थात अंतरिक्ष वासियों से भेंट करूँगा।" तुषार बोला। "मैं तो वैज्ञानिक बनूँगा, बड़ा होकर आविष्कार करूँगा।" सजल ने कहा। 

सुधीर आचार्यजी की कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे विज्ञान के बारे में अपनी-अपनी राय दे रहे थे। सुधीर आचार्य जी बड़े ध्यान से उन्हें सुन रहे थे। सारी कक्षा

में एक भी छात्र ऐसा नहीं था जिसकी 

विज्ञान में रुचि न हो । दरअसल, सुधीर आचार्य जी का विज्ञान पढ़ाने का अंदाज ही निराला था । विज्ञान

जैसे नीरस और कुछ कठिन लगने वाले विषय को भी वे इतने रोचक ढंग से पढ़ाते थे कि सभी की रुचि इसमें बनी रहती थी और कोई भी छात्र उनकी कक्षा में अनुपस्थित नहीं रहना चाहता था।

"बच्चों ! अंतरिक्ष के बारे में जानने की जिज्ञासा तुम्हारे अंदर बनी रहे और तकनीक से तुम्हें जोड़ने के लिए अगले महीने 'रॉकेट बनाओ' प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है, जिसमें शहर के सभी विद्यालयों को आमंत्रित किया गया है। आप अपने बनाये रॉकेट का प्रदर्शन उसे उड़ाकर प्रतियोगिता में कर सकते हैं बढिया रॉकेट बनाने वाले बच्चों को पुरस्कार दिया जायेगा.. हाँ, एक बात और रॉकेट बनाने के लिए आप इन्टरनेट या बड़ों की सहायता भी ले सकते हैं। इस प्रतियोगिता का जीवंत प्रसारण भी किया जायेगा।" आचार्य जी ने कहा।

"वाह! मैं भी एक नन्हा रॉकेट बनाऊँगा।" चंचल ने चहकते हुए कहा।

अनुभव को छोटे रॉकेट या उनके नन्हें मॉडल बनाने का बड़ा शौक था। शहर के ही एक पटाखे बनाने वाले से उसने रॉकेट बनाने के गुर सीखे थे। इसके अलावा वह नेट पर भी रॉकेट बनाने के तरीके सीखता रहता था। राकेट बनाना अनुभव की धुन थी। मित्र और सहपाठी भी अनुभव की इस धुन को अच्छी तरह जानते थे। तभी वे उसे 'रॉकेट मैन' कहकर पुकारते थे। संभव तो अक्सर कहता था- "अनुभव! मुझे लगता है बड़ा होकर तू अवश्य ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जैसा राकेट वैज्ञानिक बनेगा। " उस दिन जब सुधीर आचार्यजी ने विद्यालय में आयोजित होने वाली 'रॉकेट बनाओ' प्रतियोगता के बारे में बताया तो मित्रों ने अनुभव से कहा "अनुभव! तुम्हारे लिये तो यह स्वर्णिम अवसर है। तुम अवश्य यह प्रतियोगिता जीतोगे।" अनुभव भी मन ही मन प्रतियोगिता के लिए रॉकेट बनाने को तैयार हो गया।

किन्तु अब समस्या यह थी कि कैसा रॉकेट बनाया जाए। यह तो तय था कि दूसरे बच्चे भी नेट से सहायता लेकर रॉकेटों के एक से एक उत्तम प्रादर्श बनाकर उनका प्रदर्शन करेंगे।

"मुझे सबसे हटकर कुछ अनोखे प्रकार का मॉडल रॉकेट बनाना होगा जैसा किसी ने न बनाया हो।" अनुभव विचार करने लगा। लेकिन यह आसान काम नहीं था। समय खिसकता जा रहा था। खिसक क्या रहा था बल्कि तेजी से पंख लगाकर उड़ रहा था।

अनुभव के भीतर रॉकेट प्रतियोगिता को लेकर गहरी उधेड़बुन चल रही थी। अनुभव को विज्ञान और तकनीक से जुड़ी खबरें देखने-पढ़ने का भी शौक था।

एक दिन ज्यों ही अनुभव ने अपना टी.वी. खोला स्क्रीन पर एलन मस्क का चेहरा दिखायी दिया। टी. वी. पर एलन मस्क का साक्षात्कार दिखाया जा रहा था मस्क ने साक्षात्कार लेने वाले पत्रकार से कहा "हमारा कॉरपोरेशन ऐसे रॉकेट के प्रोटोटाइप पर काम कर रहा है जिसे अंतरिक्ष में उड़ान भरने के लिए ईंधन की आवश्यकता ही न हो यानि बिना ईंधन का रॉकेट।'

'बिना ईंधन का रॉकेट ? यह सचमुच एक नयी बात थी। अभी तक दुनिया में बिना ईंधन का रॉकेट बनाने में किसी को सफलता नहीं मिली थी। "मैं प्रतियोगिता के लिए ऐसा ही रॉकेट बनाऊँगा। बिना ईंधन का रॉकेट।" टी. वी. पर एलन मस्क का साक्षात्कार देखते ही जैसे अनुभव को राह मिल गयी। वह एक नये उत्साह से भर गया। जो काम बड़े-बड़े वैज्ञानिक नहीं कर पाये थे वह एक किशोर या बच्चे के लिए आसान कैसे हो सकता था? मुझे अरुण चाचा की सहायता लेनी होगी अनुभव ने मन ही मन विचार किया।

अरुण के चाचा इंजीनियर थे जब अनुभव ने उनसे बिना ईंधन वाला रॉकेट बनाने का उल्लेख किया तो वे बोले "रॉकेट को उड़ान भरने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होगी। यह ऊर्जा कोई भी हो सकती है- विद्युत ऊर्जा, ध्वनि ऊर्जा या फिर प्रकाश ऊर्जा।"

"यदि मैं प्रकाश से चलने वाला रॉकेट बनाऊँ तो कैसा रहेगा। बस, इसके लिए मुझे कुछ फोटो सेल की ही तो आवश्यकता होगी।"

अचानक एक जोरदार सूझ भरा विचार बिजली की तरह अनुभव के मन में कौंध गया। बस, फिर क्या था।

अनुभव एकदम हवा-हवाई हो गया। वह फोटो सेल से उड़ने वाला यानी फोटान रॉकेट बनाने में जुट गया। अरुण चाचा ने भी रॉकेट के लिए फोटो सेल बनाने में उसकी खूब सहायता की।

आखिर प्रतियोगिता के लिए अनुभव का रॉकेट बनकर तैयार हो गया। कुछ-कुछ हवाई जहाज जैसा दिखने वाला अनुभव का यह रॉकेट बिल्कुल अलग या अनोखे किस्म का था।

    प्रतियोगिता वाले दिन दूसरे बच्चे अनुभव का यह अजीबो-गरीब आकृति वाला रॉकेट देखकर हैरान थे।

प्रतियोगिता प्रारंभ हुई। "नौ... आठ... सात... चार... दो... एक...शून्य।"

आचार्यजी ने 'काउन्ट डाउन' यानी उल्टी गिनती शुरू की तो शून्य पर पहुँचते ही दर्जनों रॉकेट दनदनाते हुए हवा में ऊँची उड़ान भरते हुए चले गये। अनुभव का रॉकेट बस बीस-तीस मीटर ऊँचा ही उड़ पाया और फिर एकाएक औंधे मुँह मैदान में नीचे गिरकर मिट्टी में धँस गया।

हो...हो...हो...हो...। अनुभव के रॉकेट की यह दशा देखकर आस पास खड़े दर्शकों, अध्यापकों और सहपाठियों के मुँह से हँसी का एक फव्वारा ही छूट पड़ा।

वे व्यंग्य भरी दृष्टि से उसे देख रहे थे। "कहो रॉकेट मैन! तुम्हारा रॉकेट तो फुस्स हो गया।" संभव ने व्यंग्यपूर्वक कहा। पता नहीं एकाएक क्या हुआ!

अनुभव की आँखों में आँसू उमड़ आये। उसका महीने भर का परिश्रम धूल में मिल गया। वह जोर-जोर से सुबकने लगा और साथ आये अपने पिता जी से लिपटकर रोने लगा।

"रोओ मत अनुभव! तुम हारे नहीं हो। अगली बार फिर प्रयत्न करना।" पिता जी ने दिलासा देते हुए कहा।

मॉडल रॉकेट बनाने के लिए पुरस्कार मिलना तो दूर किसी ने अनुभव को शाबाशी तक नहीं दी। अनुभव ने मैदान में गिरा अपना रॉकेट उठाया और पिता जी के साथ चुपचाप घर चला आया।

किन्तु यह कहानी का अंत नहीं था। एक दिन अनुभव के पिता जी को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी 'इसरो' की ओर से एक ई-मेल प्राप्त हुआ। संगठन के चेयरमैन ने अनुभव के बनाये रॉकेट को अपनी प्रयोगशाला में जाँच के लिए मँगाया था। इसरो के वैज्ञानिकों ने अनुभव के प्रोटोटाइप में रुचि दिखायी थी।

अनुभव और उसके पिताजी तो क्या स्वयं सुधीर आचार्य जी के आश्चर्य की कोई सीमा न रही। दरअसल इसरो के वैज्ञानिकों ने 'रॉकेट बनाओ'

प्रतियोगिता का प्रसारण देखा था। अनुभव ने अपना अधजला रॉकेट बेंगलुरू के अंतरिक्ष मुख्यालय भेज दिया।

कुछ ही दिनों बाद अनुभव को इसरो के चेयरमैन की ओर से फिर संदेश प्राप्त हुआ। इस बार उन्होंने अनुभव को उसके पिता जी के साथ अंतरिक्ष मुख्यालय में भेंट के लिए बुलाया था।

इसरो के चेयरमैन स्वयं देश के बड़े रॉकेट वैज्ञानिक थे। जब अनुभव पिताजी के साथ मुख्यालय पहुँचा तो उन्होंने स्वागत करते हुए कहा- "अनुभव! तुमने गजब का रॉकेट बनाया है, वैज्ञानिक जिसका लम्बे समय से सपना देख रहे हैं- फोटान रॉकेट इसके लिए तुम्हें एक विशेष पुरस्कार दिया जा रहा है... बिल्कुल अभी।" क्षणभर के लिए तो अनुभव और उसके पिता जी को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ।

अनुभव कुछ अचकचाकर बोला- "लेकिन, मेरा रॉकेट तो असफल हो गया था। मैं प्रतियोगिता जीतने में असफल रहा।"

"कौन कहता है तुम असफल रहे ? तुम्हारा रॉकेट भी असफल नहीं हुआ था। तीस मीटर ही सही लेकिन तुम्हारा यह रॉकेट जिसे मैं 'फोटान रॉकेट' कहूँगा लगभग तीस मीटर उड़ने में सफल रहा। हमने इसकी गहराई से जाँच की है। डाटा का विश्लेषण करने से पता चला है कि रॉकेट की प्रणाली शार्ट सर्किट हो जाने के कारण इसके फोटो सेल जल गये और अपेक्षित थ्रस्ट न बन पाने के कारण रॉकेट अधिक ऊँची उड़ान नहीं भर पाया लेकिन तुम्हारे इस रॉकेट ने हमारी राह आसान कर दी है। इसरो ने तुम्हारे मॉडल के आधार पर विशालकाय फोटान रॉकेट बनाने की दिशा में काम शुरू कर दिया है। वह दिन दूर नहीं जब बिना ईंधन वाले भारतीय रॉकेट गहन अंतरिक्ष में उड़ान भरेंगे।" "ल... ल... लेकिन... ।

    "लेकिन वेकिन कुछ नहीं अनुभव तुम्हारा रॉकेट असफल हुआ था, तुम नहीं। अब जरा देखो महान वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडीसन ने हजार बार से अधिक बल्ब का फिलामेंट बनाया था तब कहीं वह बल्ब बन पाया जो आज हमें रोशनी देता है। माइकल फैराडे ने सैकड़ों बार प्रयत्न किया तब कहीं वे बिजली का पहला डायनमो बना पाये थे ऐसे और भी उदाहरण हैं विज्ञान की दुनिया में ध्यान रहे, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। हर असफलता के पीछे एक सफलता छिपी होती है। हमें असफलता से डरना नहीं चाहिए बल्कि उससे सबक लेना चाहिए।"

"आओ! मेरे साथ एक सेल्फी हो जाए।" चेयरमैन ने अनुभव को पुरस्कार देते हुए कहा तो उसके पिताजी का छाती गर्व से चौड़ी हो गई और स्वयं अनुभव के चेहरे पर एक मुस्कान खेलने लगी।

✍️ राजीव सक्सेना

डिप्टी गंज

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत













बुधवार, 12 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की बाल कहानी ---- बत्तख का बच्चा

 


सोना बत्तख अपने दोनों बच्चों सोनू और मोनू के साथ एक बड़ी सी झील में रहती थी.उस झील का पानी बहुत  ही साफ और नीले रंग का था . उस झील में बहुत सुंदर- सुंदर  लाल और सफेद रंग के कमल के बड़े- बड़े फ़ूल खिले  हुए थे. सोना बत्तख बच्चों को लेकर झील के किनारे- किनारे ही तैरती रहती थी, झील के बीच में या अधिक दूर तक नहीं जाती थी, क्योंकि झील के बीच में एक बहुत ही  बड़ी और खतरनाक  मछली रहती थी, जो बत्तखों के छोटे बच्चों को पकड़ कर खा जाया करती थी.लेकिन वह झील के किनारे वाले पानी में नहीं आती थी, क्योंकि यहाँ पर बत्तखों के बहुत सारे परिवार आपस में मिलजुल कर रहते थे.अत: किसी भी बड़ी मछली के इस ओर आने पर सब बतखें एक साथ मिलकर, उस पर अपनी चोंच से हमला बोलकर उसे भगा देतीं थीं.

    सोना बत्तख के दोनो बच्चे बहुत सुंदर और मोती जैसे सफेद रंग वाले थे.सोनू जहाँ समझदार था, वहीं मोनू बहुत ज़िद्दी, लापरवाह  और नटखट था .वह किसी बड़े का कहना भी नहीं मानता था.सोना ने  दोनो बच्चों को झील के बीच में न जाने की सख्त़ हिदायत दे रखी थी.एक दिन सोना दोनो बच्चों को झील के किनारे बैठाकर शाम के भोजन का इंतजाम करने अपनी सहेलियों के साथ थोड़ी देर के लिए कहीं चली गयी. जाते- जाते ,सोनू और मोनू से झील के अंदर जाने को मना कर गयी. लेकिन सोना के जाते ही मोनू चुपके से झील के पानी में उतर गया और अकेला तैरने लगा. उसे तैरने में बहुत मज़ा आ रहा था.रंग -बिरंगे कमल के फूलों को देखता हुआ, वह कब झील में बीचो -बीच पहुँच गया, उसे पता ही नहीं चला.जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो वहाँ से किनारा बहुत दूर था.उसे मोनू और सोना कहीं नज़र नहीं आ रहे थे.

 अब तो वह घबरा कर ज़ोर ज़ोर से रोने लगा. तभी उसने एक बड़ी सी मछली को अपनी ओर आते देखा. यह वही खतरनाक मछली थी, उसे देख वह भय से थर- थर काँपने लगा. तभी, उसे अपने पीछे से  एक  बड़ी मीठी सी आवाज सुनाई दी, "घबराओ मत प्यारे बच्चे..!आओ मेरे ऊपर बैठ जाओ..! जल्दी करो..!"उसने पीछे मुड़कर देखा तो एक सफेद रंग का बड़ा सा कमल का फ़ूल , उसे बुला रहा था.अतः मोनू तुरंत कूद कर उस कमल के फूल पर अपने शरीर को सिकोड़ कर बैठ गया.

वह बड़ी मछली जब  उधर आयी तो सफेद रंग के कमल के फूल पर छिपे हुए सफेद बत्तख के बच्चे को नहीं देख पायी.इस प्रकार दोनो,  एक रंग के होने के कारण उस मछली को चकमा देने में सफल हो गये.

  थोड़ी देर में कमल का फ़ूल मोनू को लेकर तैरता हुआ, किनारे पर ले आया, जहाँ सोना और सोनू, मोनू के लिए बहुत परेशान हो रहे थे. मोनू को घर वापस आया देखकर वे दोनों बहुत खुश हुए, और सफेद कमल को उसकी दयालुता के लिए धन्यवाद दिया. मोनू ने भी अपनी माँ सोना से  माफी माँगी और  वादा किया कि वह अब कभी  भी बिना बताये, घर से अकेला कहीं नहीं जायेगा और बड़ों का कहना मानेगा.अब तीनों मिलकर पहले की तरह खुशी -खुशी रहने लगे.


✍️ मीनाक्षी ठाकुर

मिलन विहार

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद ' में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 11 अक्तूबर 2022 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों की कविताएं


बादल आए , पानी बरसा

अक्टूबर में ढमढम,

गर्मी रानी बोली रोकर 

अब समझो हम बेदम


एसी बंद करो

पंखे को दिन में सिर्फ चलाना,

आएगा अब नहीं पसीना

मूँगफली बस खाना


रोज रात को हुई जरूरी

गरमा-गरम रजाई,

कुल्फी के दिन गए

चाय की चुस्की मन को भाई 

✍️रवि प्रकाश

बाजार सर्राफा

रामपुर 

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451

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उमड़-घुमड़ कर बादल आए,

काली रात घनेरी लाए।

आजा रामू,आजा श्यामू,

खुशी निराली मन को भाए।।


टप-टप बूंदें गिरतीं हैं,

आसमान से झरतीं हैं।

देख नज़ारा इतना प्यारा,

मन में मस्ती भरतीं हैं।।


ठंडी-ठंडी हवा चली,

लगती कितनी भली-भली।

मन मस्ती से झूम उठा,

मच उठी अब खलबली।।


✍️अतुल कुमार शर्मा

 सम्भल 

उत्तर प्रदेश, भारत 

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सुंदर झरना जल बरसाता ।

कलकल करके बहता जाता।


सूरज के रंगों से मिलकर

 बन जाता रंगों का संगम, 

कभी न रुकता बाधाओं से

राहें हों कितनी भी दुर्गम, 

हर पत्थर को भेद-भेदकर 

आगे चलता , वेग बढ़ाता ।


कोमल जल है फिर भी देखो 

दूर हटाता पत्थर को भी, 

मृदुता का आदर करने का 

पाठ पढ़ाता भूधर को भी,

जल की मृदुतामय दृढ़ता को 

भूधर भी तो शीश झुकाता ।


हे नन्हे-प्यारे मानव तुम 

दृढ़ विश्वास बनाए रखना ,

कष्ट पड़ें चाहे कितने भी 

मानवता से कभी न हटना ,

पक्का- नेक इरादा ही तो 

हर मुश्किल को सरल बनाता ।

 ✍️ओंकार सिंह 'ओंकार'

1-बी-241 बुद्धि विहार ,मझोला,

मुरादाबाद(उत्तर प्रदेश) 244103 

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कापी ,पेंसिल ,चाक , सिलेट कभी हथियार थे हमारे ,

हम भी कभी "राजा" थे  दीपू, मुन्ना की सेना के सहारे 

सेना के "राजा" रोज बदल दिए जाते थे ,

कभी "राजा" तो कभी "सैनिक" हम बन जाते थे ,

लडाई  मे बाल खींचकर  पेंसिल की नोक हम चुभाते थे,

अगले दिन फिर रूठे मिञो को हम मनाते थे ,

चिंता मुक्त खेलना कूदना तो रोज का काम था ,

घर पहुँचकर न पूछो बस आराम ही आराम था ,

याद कर इन मीठी यादों को "बचपन" में खो जाता हूँ ,

बदल चुके परिवेश में खुद को बहुत अकेला पाता हूँ ,

लौट नहीं सकता वो "बचपन" , बीत गया सो बीत गया ,

जंग लड़ो अब जीवन की तुम , लड़ा वही जंग जीत गया ।

✍️विवेक आहूजा 

बिलारी 

जिला मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9410416986

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आजा प्यारी गौरैया हम तुझको नहीं सतायेंगे।

दाने डाल टोकरी में अब तुझको नहीं फँसायेंगे।

छत पर दाना पानी रखकर हम पीछे हो जाएंगे।

छोटे छोटे घर भी तेरे फिर से नए बनाएंगे।

आजा प्यारी गौरेया अब तुझको नहीं सतायेंगे।।


हुई ख़ता क्या नन्हीं चिड़िया जो तू हमसे रूठ गयी।

या तू जाकर दूर देश में अपना रस्ता भूल गयी।

एक बार तू लौट तो आ हम सच्ची प्रीत निभाएंगे।

दूर से तुझको देख देखकर अब हम खुश हो जाएंगे।

आजा प्यारी गौरेया हम तुझको नहीं सतायेंगे।।


चीं चीं करती छोटी चिड़िया याद बहुत तू आती है।

जब कोई तस्वीर किताबों में तेरी दिख जाती है।

एक बार तू बापस आ हम फिर से रंग जमाएंगे।

सुंदर सी तस्वीर तेरी हम फिरसे नई बनाएंगे।

आजा प्यारी गौरेया हम तुझको नहीं सतायेंगे।।

✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर"

ठाकुरद्वारा 

मुरादाबाद 

उत्तर प्रदेश, भारत 

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चूहे खाये बिल्ली रानी। 

आखिर कब तक यही कहानी।। 


बहुत सह चुके अब न सहेंगे ,

बिल्ली तेरी ये मन मानी।।


हम चूहों को खा-खा कर तुम ,

खुद को समझी ज्ञानी ध्यानी।। 


शक्ति एकता में है कितनी ,

बात न अब तक तुमने जानी।।


ख़ूब भगा कर मारेंगे हम, 

याद करा देंगे फिर नानी।।


छोड़ो खाना चूहे अब तुम ,

ढूंढो दूजा दाना पानी।।


✍️प्रो. ममता सिंह

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

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किया पराजित घने घनों को ,

छायी धूप सुहानी ।

तरसाने की बारिश ने थी,

मानों मन में ठानी ।।


पर सूरज जी के सामने,

चली नहीं मन मानी ।

गये घने घन घर हैं अपने , 

पहने चूनर धानी ।।


ॠतु शरद की बारी आयी , 

चमन फूल लायेगी ।

रंग बिरंगी क्यारी में ,

ठंड गुलाबी भायेगी ।।


✍️डाॅ. रीता सिंह 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

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ले आता मैं चाँद जमीं पर

लेकिन  अभी मैं छोटा हूं।

वैसे मैं  जिद्द का हूं पक्का,

पर कर लेता समझौता हूं।।


मूझे कोई कम न समझना

सब कहें 'सिक्का खोटा'हूं।

पल में इधर , पल में उधर,

बस मैं 'बेपेंदी का लोटा' हूं।।


सबसे मैं  लड़-भिड़ जाता ,

डर नहीं लगे-कि छोटा  हूं।

बच्चे  मुझसे भय खा भागें ,

क्योंकि कुछ तगडा़ मोटा हूं।।


छोड़ मुझे सब दावत खाते

मैं घर पहन खडा़ लंगोटा हूं ।

गोदी  उठा न  कोई  मनावे

अपने आंगन लोटा-पोटा हूं।।


कान्हा बाल-गोविंद बताओ,

क्या लगता  इतना मोटा  हूं ।

दस-दस रोटी सुबह शाम खा

दो लोटे दूध ही पीके सोता हूं।।

✍️धनसिंह 'धनेन्द्र'

चन्द्र नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

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 बोली से पहचानो बच्चों

कौन  आपके  पास  खड़ा

कौन  देह  में  छोटा तुमसे

बोलो   तुमसे   कौन  बड़ा  ।


बड़े ध्यान से सुनो बताओ

बच्चों स्वर यह किसका है

इंदु  बोली   दीदी   यह  तो

गौरैया   के  स्वर    सा   है।


कांवकांव की बोली कर्कश

कौन   सुनाता   है   तुमको

बोला  चीनू    मुंडेरों     पर

दिखते   हैं    कौए   हमको।


कानों  को  चौकन्ना  करके

म्याऊँ    कौन   बोलता   है

गुड़िया बोली नन्हा बिल्ला

अपनी   पोल   खोलता है।


कोई  बतलाए  कुकड़ू   कूँ

करके   कौन   जगाता   है

मुर्गे का  स्वर ही  तो  दीदी

निंदिया   दूर    भगाता  है।


ऐसे  ही  अनेक  जीवों  के

स्वर    बच्चों   ने  पहचाने

घूम-घूमकर चिड़ियाघर में

लगे  सभी को  सिखलाने।


हैं  सबकी आँखों  के  तारे

सारे    ये     बच्चे      प्यारे 

यही  देश  के   कर्णधार  हैं

सही   स्वरों   के    रखवारे।

✍️वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9719275453

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देखो बच्चों कितनी न्यारी ?

दुनिया कितनी प्यारी प्यारी?


नभ में ऊंचे पंछी उड़ते ,

किन्तु झुंड में वे ही जुड़ते ।

जो हैं एक से पंखों वाले,

करतब उनके बड़े निराले।

अजब प्रभु की माया सारी,

दुनिया कितनी प्यारी प्यारी?


उसका कितना अद्भुत खेला

जंगल में पशुओं का मेला।

नाना जाति विविध प्रकार,

भालू ,चीते, हिरन, सियार।

लौमड़ी, बन्दर हाथी भारी

दुनिया कितनी प्यारी प्यारी?


नदियां ,झरने, झील, तालाब,

बर्षा में जल राशि बहाव।

जल जीवों से भरे समंदर,

शार्क,ह्वेल,मछली जल अंदर,

कितने करें शिकार शिकारी।

दुनिया कितनी प्यारी प्यारी?


धरती पर फैली हरियाली,

पत्ती-पत्ती डाली डाली।

वियावान जंगल का शोर,

जिसका कोई ओर न छोर।

आक्सीजन दें हरें बिमारी,

दुनिया कितनी प्यारी प्यारी?


सदा रखो सुन्दर व्यवहार,

कभी नहीं तू हिम्मत हार।

धरती का बस यही आवरण।

कहलाता है पर्यावरण।

कर्म करो जो हो सुखकारी।

दुनिया कितनी प्यारी प्यारी?


✍️अशोक विद्रोही

412 प्रकाश नगर

मुरादाबाद 244001

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रंग बिरंगे पंखों वाली,तितली बोली बड़ी निराली

आओ बच्चों मेरे साथ, बहुत रंग हैं मेरे पास ॥


बच्चे बोले तितली रानी ,पंख हमें भी लाओ ना

रंग बिरंगे बाग बगीचे,हमको भी दिखलाओ ना ॥


सपने में भी अब तो हमको ,दिखती तितली रानी

परियों जैसी करते मस्ती और करते मनमानी ।


मन करता है कभी-कभी, कि मैं पक्षी बन जाऊँ 

अपने पंख पसारुँ मैं और नभ में उड़ जाऊँ ॥


रंग बिरगे पंखों वाली,तितली सा लहराऊँ

इतनी सुंदर मेरी सहेली, मन ही मन इठलाऊँ ॥


✍️विनीता चौरासिया

शाहजहाँपुर 

उत्तर प्रदेश, भारत 

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मंगलवार, 11 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार पूजा राणा की पांच बाल कविताएं


 (1) बारिश

 धूप खिल रहीं थीं चारों ओर

 तड़के की हो रहीं थीं भोर

 तभी अचानक घिर आये बादल

बारिश हुई और नाचे मोर

झम झम बारिश की बरसे फ़ुहार

 ऐसे लगे जैसे आ गयी बहार

पेड़ों के पंछी लगे चहचहाने

मानो जैसे कोई हो त्यौहार

सावन में मनभावन बारिश

जुड़ रहें हैं यूँ मन के तार

फ़िर माँ ने पीछे से आवाज लगाई

अंदर आओ यूँ डांट लगाई

मन में चंचलता बारिश को देखूँ

धीरे धीरे से हाथों में यूँ पानी ले लूँ

तभी माँ ने बंद किया दरवाजा

बोली पूजा अब तो आजा

मैं बोली थोड़ा रुको ज़रा

बारिश को देखूं सुनो ज़रा

छम छम में नाचूँ गाऊं

जोर जोर से शोर मचाऊं

देखो बारिश आज, खुशियाँ ले आयी हैं

गर्मी को दूर भगाएगी, आज ठंड हो जाएगी

ओ बारिश अब रोज ही आना

नित्य बरस के मन हर्षाना


(2) मेरी कल्पना

मन करता हैं उड़ जाऊं मैं भी

आसमान में पंछी बनकर

दुनिया देखूँ इन आँखों से 

शोर मचाऊं मै भी तनकर

फिर नन्हे नन्हें कदमों से मैं

चलकर भागूँ और गिर जाऊं

प्यार से माँ उठाये मुझको

और गुस्से से मुँह फुलाऊं

माँ का वो ममता सा आँचल

मुझ पर प्यार लुटायेगा

माँ के आँचल में छुप जाना।

मुझे बहुत याद आएगा


(3)  मैं नटखट कान्हा जैसा

ठुमक ठुमक चलु ऐसी चाल

कान्हा के जैसे हो गाल

सिर पर मेरे मोर मुकुट हो

ऊपर से ये घुंघराले बाल

छम छम करता नृत्य करूं

माँ के आँचल में छुपा रहूँ

ढूढ़ें गोपियां मुझको नित दिन

मैं मुँह से गोपी गोपी गोपी कहूँ

लीलाओं से अपनी मैं

कर दूं सबको तंग, बेहाल

सिर पे मेरे मोर मुकुट हो

ऊपर से घुंघराले बाल

 

(4)    प्यारी सखी

आओ सखियों सब खेल रचायें

झूमे नाचे यूँ गीत सुनायें

मन में रखे भाव ख़ुशी का

औऱ एक दूजे की सखियां बन जायें

हरी भरी पेड़ों की डाली

काली कोयल की कूक निराली

हरे भरे पेड़ों को पानी देता

गुनगुनाता बाग का माली

सब देखें और ख़ुश हो जायें

झूमें नाचें और गीत सुनायें


(5) सुनो मेरा सपना

मीठी तान सुनाती कोयल

बौराई थी डालों पर 

नज़र पड़ी थी मुझ पर हया की

मेरे घुंघराले बालों पर

ठुमक ठुमक चलती थी चिड़िया

दाना चुगकर लाती थीं

धीरे धीरे से अपने बच्चों को

चुपके से खिलाती थीं

भूल गयी थी दुनिया को मैं

अलबेली सी घटा छायी थी

यह मनोरम दृश्य देखकर 

याद मुझे माँ आयी थी

फिर आँखे खुली थी,

उड़ गए थे सपनें

देखें भी थे, क्या

सच में सपनें

आँखे बंद थी तो कितना अच्छा था

लगता मुझको हर सपना सच्चा था

✍️ पूजा राणा

राम गंगा विहार 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

सोमवार, 10 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की पांच बाल कविताएं

 



1- उठो लाल अब हुआ सवेरा

उठो लाल अब हुआ सवेरा

चिड़ियों ने डाला है डेरा,

किरणें भी द्वारे तक आयींं

लगा रहीं धरती पर फेरा । 


चमक रही सूरज की लाली 

कोयल कूक रही है डाली,

सरर सरर पातों की धुन पर 

झूम रही हवा बनी आली । 


कलियाँ मुस्कायीं उपवन में

उछल रहे शावक वन - वन में ,

देख भोर का समय सुहाना

घूमे खग दल दूर गगन में । 


2 - बादल आये बादल आये....

बादल आये , बादल आये

कितना सारा पानी लाये,

छत ,सड़क और सब खेतों में

रिमझिम-रिमझिम कर मुस्काये । 


मस्त पवन तरुवर लहराये

मानों मधुरिम गीत सुनाये,

मोती सी गिरती बूँदों ने

जिया सभी के बड़े लुभाये । 


पर फैली कीचड़ गलियों में

फंस गया कचरा नलियों में

कूड़ा फेंके जो सड़कों पर

अपनी करनी पर पछताये । 


3-बोले कागा काँव - काँव ...

बोले कागा काँव - काँव

चली भोर है पाँव - पाँव 

नदी ,शिखर और खेत से

पहुँच गयी है गाँव - गाँव । 


घर की छत आकर बैठे 

करे कबूतर गूटर - गूँ

देख - देख मुन्नी चहकी

बोली माँ से दाना दूँ । 


कहता मुरगा कुकड़ूँ - कूँ

अब तक मुन्ना सोया क्यूँ 

उठ मुंडेरी पर तेरी

गाती चिड़िया चूँ चूँ चूँ । 


जपता मिट्ठू राम - राम

भजता वही प्रभु का नाम

कोयल गीत सुरीले गा 

चली गयी है अपने ठाम । 


4-आओ चलें वनों की ओर....

आओ चलें वनों की ओर 

जहाँ सुरीली होती भोर ,

खग समूह मिल सुर लगाते

खोल पंख उमंग दिखाते,

नाचे मस्ती में है मोर ।।


भानु किरण पहुँची हर कोर

नरम धूप की पकड़े डोर,

पात चमक उठे ज्यों झालर

उछल रहे तरुवर वानर,

एक छोर से दूजे छोर ।

आओ चलें वनों की ओर ।।। 


दिन दहाड़े गज चिंघाड़े

भालू बजा रहे नगाड़े,

मृग नाचते ता - ता थैया

मनहु सब हैं भैया - भैया,

चारों ओर खुशी का शोर ।।


घूम रहे सिंह गरजते 

जान जीव दल सब बचाते,

कहीं शिकार, कहीं शिकारी

सोच एक से एक भारी,

लगी जीतने की है होर ।

आओ चलें वनों की ओर ।। 


5 -कोरोना ने पैर पसारे...

कोरोना ने पैर पसारे

घर में रहना मुन्ना प्यारे ,

दादी - दादा संग खेलना

खेल नये - पुराने सारे ।


योग ध्यान से जीवन जीना

हल्दी डाल दूध है पीना,

तुलसी ,अदरक और मुनक्का

काढ़ा इनका लेना मीना ।

स्याह ,मिर्च और दाल चीनी

रोग डरेंगे इनसे न्यारे ।।


सब जीवों की सुध है लेना

चिड़िया को है दाना देना,

देना गैया को भी चारा

जब तक उसका पेट भरे ना ।

कौआ कूकर माँगें रोटी

घूम रहे भूखे बेचारे ।।


पढ़ना पुस्तक सभी पुरानी

पूर्वजों की सत्य कहानी,

चलना आदर्शों पर उनके

जीवन जिनका अमिट निशानी ।

सूरज सम जो राह दिखाते

तम से कभी नहीं वे हारे ।

कोरोना ने पैर पसारे...... 

✍️ डॉ रीता सिंह

  आशियाना 1, कांठ रोड 

मुरादाबाद 244001

मोबाइल नंबर - 8279774842 



बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की पांच बाल कविताएं .....


 1- आलसी सोनू

कुर्सी बोली चटर पटर,

"जल्दी जल्दी काम को कर।"

सोनू ऊंघ रहे थे भाई,

कैसे देता उसे सुनाई?

तभी मेज ने टॉप हिलाया।

"अब तक पाठ न क्यों दोहराया?

कछुए की जो चाल चलोगे

कैसे आगे,कहो रहोगे।"

कॉपी और रबर चिल्लाये,

"ये सोनू क्यों बाज न आये।"

कुर्सी,मेज,रबर,कॉपी संग,

बोले पेन्सिल सोनू है दंग।

तब सोनू ने ले जम्हाई,

आँखे पुस्तक पर जमाई। 

पड़ न जाये फिर से डाँट।

जल्दी याद किया सब पाठ।

2-नये जमाने की लोरी

लल्ला लल्ला लोरी

दूध की बोतल भरी

दूध न पीना मुन्ने को

गाना चाहे सुनने को

माँ गाना न जानती

मोबाइल में छानती

मोबाइल अब ऑन है

"राजा बेटा कौन है"

लल्ला लल्ला लोरी

दूध की बोतल भरी

दूध में है बोर्नवीटा।

पीने वाले हैरी,रीटा।

अव्वल हरदम आते हैं।

टीवी में दिखाते हैं।

देखो टीवी ऑन है,

"बोलो अव्वल कौन है"

3-नयी दुनिया

चंदा मामा दिन में होंगे,

रात को सूरज आयेंगे।

चिड़िया तैरेगी पानी में,

मगर पेड़ पर गायेंगे।

भैंसें पतली,मोटी बकरी,

गाय हरी,नीली होगी।

रेंगेगा घोड़ा जमीन पर,

कछुए दौड़ लगायेंगे।

आम खेत में बिछे उगेंगे,

शर्बत की बारिश होगी।

पेड़ों पर लटकी जलेबियाँ,

बच्चे तोड़ के खायेंगे।

गुड़िया गुड्डे बंटी के हैं,

बैट-बॉल मुनिया लेगी।

अदल बदल हम देंगे सब कुछ 

दुनिया नई बनायेंगे।

4-बिल्ली मौसी बिल्ली मौसी

बिल्ली मौसी बिल्ली मौसी

मेरे घर तुम आ जाना।

धमा चौकड़ी करते चूहे,

उनको सबक सिखा जाना।

कपड़े,खाना,कॉपी,पुस्तक

इन दुष्टों के साये हैं।

नहीं सलामत रहा यहाँ कुछ,

सब पर दाँत चलाये हैं।

चूहेदानी रखी हुई है,

शैतानी पर जारी है।

कुतर गये हैं टाई मेरी,

अब जूतों की बारी है।

रात भर बिस्तर में भी ये

उछल-कूद करने आते।

गहन नींद में सोते मुझको,

डरा,उठाकर छिप जाते। 

प्यारी मौसी अच्छी मौसी

अब जल्दी से आओ तुम।

पिद्दी चूहे शेर हो रहे,

इनको हद में लाओ तुम।

5-रेनी डे

"स्कूल आज न जाऊँ मम्मी,सूरज भी नहीं आया है।

काला बादल गश्त लगाता,डर से दिल थर्राया है।

छतरी की तीली निकली थी,ठीक नहीं करवायी हो।

रेनकोट भी फटा हुआ है,नया नहीं तुम लायी हो।

भीग गया जो मैं पानी में,आफत तुम पर आयेगी।

बैठे बिठाए फिर बीमारी,बिल पर बिल बढ़ाएगी।

देख कभी वह काले बादल,खतरा मोल न लेती है।

सूरज की माँ कितनी अच्छी,रेनी डे कर देती है।


✍️ हेमा तिवारी भट्ट 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


मंगलवार, 4 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की बाल कहानी ...चतुर चीनू


कक्षा तीन मे पढ़ने वाला, नौ साल का चीनू बहुत ही नटखट  था.दिन भर उछलकूद करना और अपने से दो साल छोटी बहन को छेड़ना, उसकी आदत थी. परंतु वह पढ़ाई में बहुत तेज होने के साथ साथ,इतनी सी उम्र में ही कठिन से कठिन समस्या को भी एक पल में हल कर देता था. उसकी चतुराई का लोहा, उसकी कक्षा के सहपाठी, तथा कक्षा के समस्त अध्यापक भी मानते थे. दादा-दादी की तो आँखों का तो वह तारा था.

एक बार  चीनू के घर  पता नहीं कहाँ से बहुत सारे चूहें आ गये.उन चूहों ने सबकी नाक में दम कर दिया.रोज ही तरह- तरह के नुकसान करने लगे. यह देख  कर चीनू की दादी जी ने चीनू की माँ को चूहेदानी लगाने की सलाह दी, परंतु  चूहेदानी में एक चूहे के फंँसने के बाद, बाकि चूहे सचेत हो गये और चूहेदानी के पास तक नहीं फटके.

 थक हार कर चीनू के दादा जी बाज़ार से चूहे मार दवाई ले आये और चीनू की मांँ को घर के कोनो, बैड व अलमारियों के नीचे तथा जहाँ -जहाँ वे चूहे छुप जाते थे, वहाँ- वहाँ  वह दवाई रखने को दे दी. दवाई खाकर चूहे मरने  तो लगे, परंतु मरकर उनमें से बदबू आने लगी थी और फिर  इतने बड़े घर में उनके मृत  और बदबूदार शरीर को ढूँढकर, फेंकना भी बड़ा मुश्किल हो गया था.

 तब एक दिन चीनू के पापा जी ने चीनू से हँसते हुए कहा, " चीनू! वैसे तो तुम बहुत बुद्धिमान बनते हो, पर मुझे लगता है कि ये चूहें तुमसे भी ज्यादा बुद्धिमान हैं, इन्हें घर से भगाकर दिखाओ तो जानें....! " चीनू  अपनी प्रशंसा से उत्साहित होकर, हंँसता हुआ बोला, "अभी लीजिए, पापा जी !..आपने पहले क्यों नहीं बताया कि आपसे  चूहें सँभल नहीं रहे...! मैं अभी दो मिनट में सारे चूहें भगा देता हूँ" इसपर चीनू की मम्मी बोलीं, "ओहो.. चीनू.. कुछ ज्यादा ही बोल गये हो, इतने दिन से हम लोग  तो चूहों को भगा नहीं पाए और तुम दो मिनट में भगा दोगे! भई वाहह हह..!!. कोई जादू है क्या? "चीनू ने मुस्कुरा कर कहा, " हाँ मम्मी जी...जादू ही समझ लीजिए...!, बस आप देखती  रहिए.! !क्या होता है? "

इतना कहकर चीनू अपनी खिलौने वाली अलमारी में से रिमोट कंट्रोल वाली मिनी कार ले आया, जिसे चलाने पर रंग -बिरंगी बत्तियों के साथ- साथ हूटर भी बजता था अब .उसने अपनी उस खिलौना कार को नीचे फर्श पर रख दिया और रिमोट से बटन दबाकर पूरे घर के बैड, अलमारियों और फर्नीचर के नीचे दौड़ाने लगा. जैसे ही कार हूहूहूहू की आवाज़ निकालती हुई, अलमारियों और बैड के नीचे  लाल- हरी बत्ती जलाती, दौड़ना शुरू हुई तो अलमारियों के नीचे, और फर्नीचर के पीछे दुबके  सारे चूहे  घबरा गये, उन चूहों ने  शायद पहली बार   ऐसा  अजीबोगरीब प्राणी  देखा था, जो रोशनी के साथ- साथ भयानक आवाज़ भी  निकाल रहा था.अत: सारे चूहों में भगदड़ मच गयी और वे निकल- निकल कर घर से बाहर भागने लगे.यह देख कर चीनू ज़ोर- ज़ोर से हँसने लगा और छुटकी   भी तालियाँ बजा -बजाकर  नाचने लगी.चीनू की यह चतुराई देखकर  चीनू के पापा जी ने चीनू को गोद में उठा लिया और चीनू के .दादा- दादी और मम्मी भी  खुश होकर चीनू की बलैया  लेने लगे.

✍️ मीनाक्षी ठाकुर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


बुधवार, 21 सितंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार की बाल कविता ...कबूतर.


चार कबूतर उड़-उड़कर

पहुंचे एक सरोवर पर

तिनके लाए चुन-चुनकर 

और बनाया अपना घर


देख-देखकर ख़ुश होते 

बना एक सुन्दर-सा घर

उसमें वे अंडे रखते 

जिन्हें प्यार से वे सेते


अंडों से बच्चे निकले

प्यारे-प्यारे लगते थे

लड़ते थे न झगड़ते थे

गीत सुरीले गाते थे 


मीठी तान सुनाते थे

खेल निराले करते थे

चूं-चूं करते रहते थे

और कबूतर भी दिनभर

दाने लाते चुन-चुनकर 


बच्चों की चोंचों में भर

उन्हें खिलाते जी भरकर

और कबूतर ख़ुश होकर

गुटर-गुटर गूं करते थे


पंख निकलने पर बच्चे

फुर-फुरकर उड़ जाते थे

मात-पिता को वे बच्चे

चले छोड़कर जाते थे


कहीं दूर फिर वे जाकर

अपना नीड़ बनाते थे

नहीं समझ कुछ आता है

कैसा अजब तमाशा है।


✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'

1-बी/241 बुद्धि विहार, मझोला,

मुरादाबाद  244103

उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 6 सितंबर 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की पांच बाल कविताएं .....


1 गीतिका
 

 सब मिल हम सखियाँ बचपन की

 चल करते बतियाँ बचपन की

    

 बागों में चलकर फिर खाते

 वो खट्टी अमियाँ बचपन की

 

 छत पर उन तारों को  गिनकर

 बीते फिर रतियाँ बचपन की


  शादी हम जिसकी करवाते

  चल ढूँढे  गुड़िया बचपन की

 

  कच्चे उस आगंन में अब भी

  फुदके हैं चिड़ियाँ बचपन की


   नव जीवन के सपने देखें 

   चमके हैं अँखियाँ बचपन की


 2 दोहा गीतिका

 बच्चे हम माँ शारदे , करते तेरा ध्यान ।

जीवन- पथ पर तुम हमें  ,देती रहना ज्ञान ।।


 माँगें हम यह भारती, हो भारत का नाम ।

 फहरे झण्डा विश्व में, भारत की बन शान ।।


सभी रंग के फूल से , महके हर उद्यान ।

यही हमारी कामना , सब हो एक समान   ।।          

       

 रुके नहीं चलते चलें  , करें नहीं आराम ।

 धात्री के सम्मान का , रखना हमको मान ।।

      

   स्वप्न यही है ' प्रीति 'का, बेटी बनें महान ।

   उनसे ही तो है बढ़े , इस भारत की शान ।।


 3 गीतिका                                             

सैर इस आसमाँ की कराओ परी 

चाँद के पास जाकर सुलाओ परी ।।1।।


 है वहीं माँ , बतायें मुझे सब यही

 अब चलो आज माँ से मिलाओ परी ।।2।।


  तुम सुनाकर कहानी मुझे गोद में 

  नींद भी नैन में अब बुलाओ परी  ।।3।।

   

  झिलमिलाते सितारे कहें  हैं  मुझे

  ज़िंदगी में नया गीत गाओ परी ।।4।।


 सीख अब मैं गयी बात यह काम की

 फूल से तुम सदा मुस्कुराओ परी ।। 5।।


4 गुल्लक  

    बचपन की वह प्यारी गुल्लक 

    मिट्टी की थी न्यारी गुल्लक 


   चवन्नी अठन्नी जोड़ी जिसमें 

    मिलती नहीं हमारी गुल्लक


  चकाचौंध  की भेंट  चढ़  गईं,

   मेरी  और  तुम्हारी   गुल्लक।


  नहीं दिखतीं घर में किसी के

  कहाँ गईं  वह  सारी  गुल्लक।

    

5 मेरी माँ

कभी कड़वी कभी मीठी गोली सी मेरी माँ

प्यार अंदर भरा हुआ पर दिखती सख़्त है मेरी माँ

ममता की छांव में उसकी बड़े हुए हम

हम भाई बहनो का अभिमान है मेरी माँ

कभी.........

कड़ी धूप में चलना सिखाया

कठिनाइयों से लड़ना सिखाया

बात ग़लत पर चपत लगाती 

राह सच्ची पर चलना सिखाती है मेरी माँ

कभी........

उच्च शिक्षा प्राप्त किए वो 

पर अहंकार से बहुत दूर वो

हर पल चुनौतियों का सामना कर

आत्मविश्वास से भरी दिखती है मेरी माँ

कभी..........

न कभी सजते सँवरते देखा

न व्यर्थ बातों में समय व्यतीत करते देखा 

सादगी से भरी ममता की मूरत 

पूरे दिन हमारी फ़िक्र में

दिन रात मेहनत करती दिखती है मेरी माँ

कभी.....

कभी डाँट कर हमें वो अच्छा बुरा समझाती है

ये जीवन अमूल्य है

हर रोज़ यह बताती है

पथ पर क़दम न डगमगाए कभी

हर राह पर मेरे साथ खड़ी दिखती है मेरी माँ

कभी......

कभी गुरु बन वह मुझे मेरा रास्ता सुझाती है

कभी सखी बन मेरी हर बात बिन कहे समझ जाती है

कभी ईश्वर का रूप धर हर दुविधा में रास्ता बन जाती है

साहस अंदर भरा हुआ

हर विपदा से दूर मुझे कर देती है मेरी माँ

कभी.......

✍️ प्रीति चौधरी 

गजरौला, अमरोहा 

उत्तर प्रदेश, भारत 


मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद संभल) के साहित्यकार दीपक गोस्वामी विराग की पांच बाल कविताएं .....


 (1) माँ! मैं भी बन जाऊँ कन्हैया

माँ! मैं भी बन जाऊँ कन्हैया,

 मुरली मुझे दिला दे।

और मोर का पंख एक तू,

मेरे शीष सजा दे।


ग्वाल-बाल के साथ ओ! मैया,

मैं भी मधुबन जाऊँ।

प्यारी मम्मी! मुझको छोटी,

 गैया एक दिला दे।


यमुना तट पर मित्रों के सँग,

गेंद-तड़ी फिर खेलूँ।

मारूँ तक कर गेंद,ओ माता!

मुझे पड़े तो झेलूँ।


और कदंब के पेड़ों पर मैं,

पल भर में चढ़ जाऊँ।

कूद डाल से यमुना में फिर,

गोते खूब लगाऊँ।


ऊँची डाली पर बैठूँ मैं,

मुरली मधुर बजाऊँ।

मुरली मधुर बजा कर मैया,

गैया पास बुलाऊँ।


मैं फोड़ूँ माखन-मटकी भी,

माखन खूब चुराऊँ।

मेरे पीछे भागें गोपी,

उनको खूब भगाऊँ।

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(2) कोयल कहती मीठा बोलो

कोयल कहती मीठा बोलो, 

फूल कहें मुस्काओ। 

चिड़िया चूँ-चूँ करके बोले, 

शीघ्र सुबह उठ जाओ।

 

चींटी यह कहती है हमसे, 

श्रम की रोटी खाओ। 

कुत्ता भौं-भौं कर बतलाता,

 वफादार बन जाओ। 


नदी सिखाती चलते रहना,

 थक कर मत रुक जाना। 

पर्वत कहता तूफानों को,

 कभी न शीष झुकाना।


वृक्ष हमें फल देकर कहते,

 सदा भलाई करना। 

मधुमक्खी सिखलाती बच्चो!

 सदा संगठित रहना।

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(3) चांद और पृथ्वी में संबंध

अध्यापक जी ने कक्षा में, 

पूछा एक सवाल ।

चांद और पृथ्वी में संबंध,

बतलाओ तत्काल ।


सारे बच्चे थे भौचक्के, 

क्या है यह जंजाल। 

सर जी ने पूछा है हमसे, 

कैसा आज सवाल? 


सर जी मैं बतलाऊँ उत्तर,

 उठकर गप्पू बोला। 

कक्षा में तो आता नहीं तू,

 खबरदार मुँह खोला। 


सब बच्चों के कहने पर फिर,

 सर ने दे दिया मौका। 

देखो प्यारे गप्पू ने फिर, 

मारा  कैसे चौका।


चाँद और पृथ्वी का संबंध,

हमको दिया दिखाई। 

पृथ्वी तो है प्यारी बहना, 

और चांद है भाई। 


अध्यापक गुस्से में बोले- 

पूरी बात बताओ। 

भाई और बहन का रिश्ता,

 कैसे है समझाओ।


 गप्पू बोला मैं  बतलाता, 

ओ गुरुदेव! हमारे।

 समझाता हूँ सुनो ध्यान से,

 तुम भी बच्चों सारे। 


जब चंदा है अपना मामा,

धरती अपनी मैया।

फिर क्यों नहीं होगा धरती का,

 चंदा प्यारा भैया। 


फिर क्या था पूरी कक्षा ने 

खूब बजाई ताली। 

बड़ी शान से गप्पू जी ने, 

छाती खूब फुला ली।

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(4) बच्चों के मन भाता संडे

बच्चों के मन भाता संडे।

सबको बहुत लुभाता संडे।


 होमवर्क से मिलती छुट्टी,

 कितना रेस्ट कराता संडे। 


सिर्फ एक दिन मुख दिखलाता,

 फिर छ: दिन छुप जाता संडे।


 बच्चों को पिकनिक ले जाकर, 

खुद 'फन-डे' बन जाता संडे।


 घर में बनते कितने व्यंजन,

 नए-नए स्वाद चखाता संडे।


लेकिन प्यारी मम्मी जी का,

 काम बहुत बढ़वाता संडे।


 मुन्नी यों मम्मी से पूछे,

 रोज नहीं क्यों आता संडे।

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(5) नील गगन के प्यारे तारे!,

नील गगन के प्यारे तारे!,

 कितने सुंदर कितने न्यारे।

 आसमान में ऊँचे ऐसे।

 चमके हो हीरे के जैसे।


 चाँद तुम्हारे पापा शायद,

 साथ तुम्हारे आते हैं। 

शैतानी न करो कोई तुम, 

हर पल यह समझाते हैं।


 कितने भाई तुम्हारे हैं ये।

 एक ही जैसे दिखते हो।

 सोच-सोच हैरानी होती, 

नभ में कैसे टिकते हो। 


क्या तुम भी विद्यालय जाते?,

 किस कक्षा में पढ़ते हो? 

हम बच्चों के जैसे तुम भी,

 क्या आपस में लड़ते हो? 


ओ तारे! चमकीलापन यह

 तुमने कैसे पाया है? 

सच-सच बतलाना तुम भैया,

 किसने तुम्हें बनाया है?


✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग'

शिव बाबा सदन, कृष्णाकुंज

बहजोई (सम्भल) 244410

 उत्तर प्रदेश, भारत

मो. नं.- 9548812618

ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com

गुरुवार, 25 अगस्त 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की बाल कहानी......पश्चाताप


 बस्ती में सेठ जी का एक छोटा सा प्लाट था। उसमें आस-पास के  बच्चे क्रिकेट खेलते थे। प्लाट से सटी हुई सेठ जी की आलीशान कोठी थी। उन्होंने एक कुत्ता पाला हुआ था जिसे पूरा परिवार बहुत प्यार करता था। उसे परिवार के सदस्य की तरह ही मानता था। बच्चों के प्रति सेठ का हमेशा रूखा व्यवहार रहता। उनकी गेंद अगर कोठी में चली जाती तो मांगने पर कभी भी वापस नहीं देते थे। उन्होंने आखिर अपने प्रभाव का प्रयोग कर पुलिस से  अपने प्लाट पर बच्चों का क्रिकेट खेलना बंद करा दिया। बच्चे अब 3 कि० मी० दूर एक मैदान में खेलने जाने लगे। 

      एक दिन सेठ जी का कुत्ता कोठी के बाहर निकल गया। कोई उसे पकड कर अपने घर ले गया। बहुत ढूंढने के बाद भी कुत्ता नहीं मिल पाया। पुलिस में रिपोर्ट करने के बाद भी जब कुत्ता नहीं मिला तो उन्होंने 5000 रु० का ईनाम भी घोषित कर दिया। कुत्ते के खो जाने से पूरे घर में मातम छाया हुआ था। एक दिन बच्चों ने देखा कि खेल के मैदान के पास एक आदमी कुत्ता घुमा रहा है। बच्चों ने उस कुत्ते को पहचान लिया। यह तो सेठ जी का कुत्ता है। सारे बच्चे उस आदमी का छिपते- छिपाते पीछा करने लगे । थोडी देर बाद वह कुत्ता लेकर अपने घर में घुस गया। बच्चों ने उस घर की अच्छी तरह पहचान कर ली । सब बच्चे एक साथ सेठ जी की कोठी में पहुंच गये। बच्चों ने जब कुत्ते के बारे में बताया तो उनकी तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने उसी समय सभी बच्चों को आग्रहपूर्वक नाश्ता व मिठाई खिलायी।अगले दिन वह पुलिस को साथ लेकर अपना कुत्ता ले आये। सेठ जी ने बच्चों से पूर्व में अपने द्बारा किये गये दुर्व्यवहार के लिए पश्चाताप किया। उन्होंने सभी बच्चों को अपने प्लाट में खेलने की अनुमति तो दी ही साथ में घोषित ईनाम रु० 5000 भी दिये। सेठ जी बोले यह ईनाम की धनराशि है। इसे आपस में बांट लेना। सेठ जी ने सभी बच्चों को अपना मित्र बना लिया। उस दिन से सेठ जी के व्यवहार में बच्चो के प्रति अभूतपूर्व परिवर्तन आ चुका था। 

✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'

चन्द्र नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 2 अगस्त 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर (वर्तमान में शाहजहांपुर निवासी ) की साहित्यकार विनीता चौरसिया की पांच बाल कविताएं



*1*

बंदर बोला बंदरिया से कहो आज क्या खाना है

मटर उड़ाऊँ किसी के घर से या फिर के लालाना है

बोली बंदरिया क्यूं फल और सवजी से बहलाते हो

रानी पहने जो लहँगा वो क्यों नहीं लेकर आते हो ।


            *2*

भैया तुम राखी बंधवाकर पैसे मुझको मत देना

मेरी गुड़िया रोती है तुम टॉफी उसको दे देना

मेरी गुड़िया की शादी में खूब नाचना जी भर के

पैसे उस पर खूब लुटाना तुम न्यौछावर करकर के |


             *3*

चुन्नू कहता मुझको भी चन्दा के घर जाना है

नील आर्मस्ट्रॉंग सा ड्रेस मुझे बनवाना है

बछेन्द्रीपाल सा बनना है पर्वत पर मुझको चढ़ना है

कोई न रोको कोई न टोको आगे मुझको बढ़ना है ।


          *4*

जी करता है पंख लगा के नीलगगन उड़ जाऊ,,ं मैं

चंदा सूरज तारों को समझूँ और समझाऊं मैं

कभी में सोचूँ क्रिकेट खेलूँ या फिर करूँ मैं मस्ती खूब

कभी मैं सोचूँ करूँ पढ़ाई या ले रजाई सो जाऊँ मैं ।


       *5*

फूल और तितली न दिखलाओ, कहानी से न बहलाओ

मुझको भूख लगी है मम्मी, थोड़ा खाना लेकर आओ

छोटू को भी नहीं मालूम, ये लॉकडाउन क्या होता है

जल्दी उसको दूध मंगा दो, भूख के मारे रोता है

टीचर कहती फोन पे .चीजें भेजी पढ़ने वाली हैं

वो क्या जाने फोन भी मेरे पेट के जैसा खाली है

मेरे दोस्त भी फोन से कभी नहीं पढ़ पाते हैं

क्योंकि उनका फोन तो पापा और भाई ले जाते हैं

कोई विद्यालय खुलवाओ, हमको सबसे फिर मिलवाओ

मिड डेमिल से फिर खाना पेटभर खायेंगे

सबके साथ खेलेंगे और पढ़कर दिखलायेंगे।


✍️ विनीता चौरसिया 

169 कटिया टोला, 

शाहजहाँपुर 

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल नम्बर   8419037273



मंगलवार, 26 जुलाई 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में नोएडा निवासी) सपना सक्सेना दत्ता सुहासिनी की पांच बाल कविताएं । इन्हीं कविताओं पर उन्हें साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से 16 जुलाई 2022 को आयोजित भव्य समारोह में बाल साहित्यकार सम्मान 2022 प्रदान किया गया था


(1) आम के आम गुठलियों के दाम

एक गांव में आया सेठ।

दिखने में लगता था ठेठ ।।

बीच गांव में रहने आया।

सुंदर सा एक सदन बनाया।।

नाम सेठ का था घनश्याम।

उसको अच्छे लगते आम ।।

काश आम के बाग लगाऊं।

मीठे मीठे आम उगाऊं।।

सेठानी को बात बताई।

सेठानी ने जुगत लगाई।

उत्तम आमों को मंगवाओ।

आप सहित सबको खिलवाओ।।

फिर सबसे बढ़िया आमों की।

गुठली ले लो कुछ दामों की।।

उन गुठली से पेड़ लगाओ।

सदन के चारों ओर सजाओ।।

युक्ति भली थी सेठ सुहाई।

सेठानी भी थी मुस्काई।।

दूर-दूर से आम मंगाए ।

मीठी खुशबू मन को भाए।।

जर्दालू वनराज मंगाया।

केशर किशन भोग भी आया।।

लंगड़ा चौसा फ़जली देखो ।

दशहरी भी असली देखो ।।

बैगनपल्ली नीलम लाए।

हिमसागर की खुशबू भाए।।

भांति भांति के आम मंगाए ।

गांव वासी सभी बुलाए ।।

सब खाएंगे बारी-बारी।

आमों की थी किस्में सारी ।।

जिसके जितने मीठे आम ।

उसे मिलेंगे उतने दाम ।।

सही आम की गुठली देना।

रजत मुहर मुंशी से लेना।।

जी भर के आमों को खाया।

गुठली का भी पैसा पाया।।

तब से चली कहावत आम।

आम के आम, गुठली के दाम।।

     

(2) सौ सुनार की एक लुहार की

बात बताती बहुत पुरानी ।
जिसे सुनाती मेरी नानी।।
दो दोस्त थे सोनू राजू ।
दोनों ही खाते थे काजू।।
धमा चौकड़ी करते मस्ती।
धूम धड़ाका पूरी बस्ती।
थे सुनार राजू के भैया।
घर में थी एक सुंदर गैया।।
टुक टुक टुक टुक वो करते थे।
सोने के गहने गढ़ते थे।।
थे लुहार सोनू के पापा।
लोहे सा रखते थे आपा।।
धाड़ धाड़ जब चले हथौड़ा।
लगता था ज्यों पड़ता कोड़ा।।
एक बार की बात बताऊं।
उनका किस्सा तुम्हें सुनाऊं।।
घर में खेल रहे ताले से।
असली वो चाबी वाले से।।
गौशाला के दरवाजे पर।
ताला ठोंका भिड़ा भिड़ा सर।।
तभी अचानक चाबी फिसली।
गौशाले के अंदर निकली।।
बिन ताली के कैसे ताला।
खोल सकेगा खोलने वाला।।
राजू भागा भाई को लाने।
सोनू पापा को गया लिवाने।।
भाई छोटी हथौड़ी लाए।
टुक टुक टुक टुक चोट लगाए।।
लेकिन कोइल* का वो ताला।
मजबूती में बड़ा निराला।।
आंच नहीं ताले पर आई।
तब तक थक गया था भाई।।
सोनू के पापा भी आए।
साथ हथौड़ा भारी लाए।।
एक वार में टूटा ताला।
मोटा मोटा कोइल* वाला।।
बच्चे लगे बजाने ताली।
जय काली कलकत्ते वाली।।
चली कहावत अंगीकार की।
सौ सुनार की एक लुहार की।

*कोइल अलीगढ़ का पुराना नाम 

          

(3) जागो गुड़िया रानी

देखो आई, भोर सुहानी।

 जागो मेरी, गुड़िया रानी।।


चीं चीं करती, चिड़िया आई।

मीठा गाना, दिया सुनाई।।


कहती है अब, उठो सयानी। 

जागो मेरी, गुड़िया रानी।


नभ में लाली, प्यारी छाई।

पवन ले रही, है अँगड़ाई।।


बहती कहती, सुन लो बानी।

जागो मेरी ,गुड़िया रानी।


मुख पर मीठी, सी स्मित छाई। 

देती मुझको, खूब दिखाई।


उठकर पी लो, कोसा* पानी। 

जागो मेरी, गुड़िया रानी।।


 सोती जल्दी, मेरी गुड़िया।

अच्छी प्यारी, मेरी गुड़िया। 


जल्दी उठकर, बनो सयानी।

 जागो मेरी, गुड़िया रानी।।

*कोसा= गुनगुना


(4) जाड़ा आया

ठंडा ठंडा मौसम आया।

कम्बल गर्म रजाई लाया।।

सुख भरता है जम कर सोना।

नर्म नर्म सा मिले बिछौना।।


गाजर खोया पापा लाये

मम्मी से हलुवा बनवाये।।

बबलू गुड्डू मिलने आये।

तिल, मेवों के लड्डू लाये।।


हमने लड्डू जम कर खाये।

बबलू गुड्डू हलवा पाए।।

मूंगफली दादा जी देते।

दादी से हम गज्जक लेते।।


स्वेटर मफलर टोपी मोजा।

नानी के घर जाऊँ रोजा।।

बाजरे के लड्डू खाऊँ।

पापड़ी बेसन की पाऊँ।।


सब बच्चों सँग धूम मचाऊँ।

छुट्टी में मस्ती कर गाऊँ।।

लूडो कैरम जी भर खेलूँ।

भैया की भी बाजी ले लूँ।।


 (5) किसकी कैसी बोली

म्याऊं म्याऊं बिल्ली की बोली,

कुत्ता बोले भौं भौं भौं।

कांव-कांव कहता है कौआ, 

चिड़िया चीं चीं चूं चूं चौं।


ऊँट  करे है बलबल बलबल, 

ढेंचू ढेंचू गधा करे।

टर्र टर्र मेढ़क की बोली,

बंदर बोले खौं खौं खौं।


मैं मैं मैं मैं करती बकरी,

क्वैंक क्वैंक बत्तख बोले।

कुहू कुहू कोयल की बोली,

भैंस बोलती जैसे औं।


टें टें टें टें तोता बोले,

लेकिन हम सब उआं उआं ।

पूछ रही गुड़िया दादी से

हम बचपन में रोते क्यों?

✍ सपना सक्सेना दत्ता 'सुहासिनी'

 सी ८०४ , अजनारा डैफोडिल सेक्टर १३७,

 नोएडा  २०१३०५

उत्तर प्रदेश,भारत