बस्ती में सेठ जी का एक छोटा सा प्लाट था। उसमें आस-पास के बच्चे क्रिकेट खेलते थे। प्लाट से सटी हुई सेठ जी की आलीशान कोठी थी। उन्होंने एक कुत्ता पाला हुआ था जिसे पूरा परिवार बहुत प्यार करता था। उसे परिवार के सदस्य की तरह ही मानता था। बच्चों के प्रति सेठ का हमेशा रूखा व्यवहार रहता। उनकी गेंद अगर कोठी में चली जाती तो मांगने पर कभी भी वापस नहीं देते थे। उन्होंने आखिर अपने प्रभाव का प्रयोग कर पुलिस से अपने प्लाट पर बच्चों का क्रिकेट खेलना बंद करा दिया। बच्चे अब 3 कि० मी० दूर एक मैदान में खेलने जाने लगे।
एक दिन सेठ जी का कुत्ता कोठी के बाहर निकल गया। कोई उसे पकड कर अपने घर ले गया। बहुत ढूंढने के बाद भी कुत्ता नहीं मिल पाया। पुलिस में रिपोर्ट करने के बाद भी जब कुत्ता नहीं मिला तो उन्होंने 5000 रु० का ईनाम भी घोषित कर दिया। कुत्ते के खो जाने से पूरे घर में मातम छाया हुआ था। एक दिन बच्चों ने देखा कि खेल के मैदान के पास एक आदमी कुत्ता घुमा रहा है। बच्चों ने उस कुत्ते को पहचान लिया। यह तो सेठ जी का कुत्ता है। सारे बच्चे उस आदमी का छिपते- छिपाते पीछा करने लगे । थोडी देर बाद वह कुत्ता लेकर अपने घर में घुस गया। बच्चों ने उस घर की अच्छी तरह पहचान कर ली । सब बच्चे एक साथ सेठ जी की कोठी में पहुंच गये। बच्चों ने जब कुत्ते के बारे में बताया तो उनकी तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने उसी समय सभी बच्चों को आग्रहपूर्वक नाश्ता व मिठाई खिलायी।अगले दिन वह पुलिस को साथ लेकर अपना कुत्ता ले आये। सेठ जी ने बच्चों से पूर्व में अपने द्बारा किये गये दुर्व्यवहार के लिए पश्चाताप किया। उन्होंने सभी बच्चों को अपने प्लाट में खेलने की अनुमति तो दी ही साथ में घोषित ईनाम रु० 5000 भी दिये। सेठ जी बोले यह ईनाम की धनराशि है। इसे आपस में बांट लेना। सेठ जी ने सभी बच्चों को अपना मित्र बना लिया। उस दिन से सेठ जी के व्यवहार में बच्चो के प्रति अभूतपूर्व परिवर्तन आ चुका था।
✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'
चन्द्र नगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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