बुधवार, 21 सितंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार की बाल कविता ...कबूतर.


चार कबूतर उड़-उड़कर

पहुंचे एक सरोवर पर

तिनके लाए चुन-चुनकर 

और बनाया अपना घर


देख-देखकर ख़ुश होते 

बना एक सुन्दर-सा घर

उसमें वे अंडे रखते 

जिन्हें प्यार से वे सेते


अंडों से बच्चे निकले

प्यारे-प्यारे लगते थे

लड़ते थे न झगड़ते थे

गीत सुरीले गाते थे 


मीठी तान सुनाते थे

खेल निराले करते थे

चूं-चूं करते रहते थे

और कबूतर भी दिनभर

दाने लाते चुन-चुनकर 


बच्चों की चोंचों में भर

उन्हें खिलाते जी भरकर

और कबूतर ख़ुश होकर

गुटर-गुटर गूं करते थे


पंख निकलने पर बच्चे

फुर-फुरकर उड़ जाते थे

मात-पिता को वे बच्चे

चले छोड़कर जाते थे


कहीं दूर फिर वे जाकर

अपना नीड़ बनाते थे

नहीं समझ कुछ आता है

कैसा अजब तमाशा है।


✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'

1-बी/241 बुद्धि विहार, मझोला,

मुरादाबाद  244103

उत्तर प्रदेश, भारत

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