चार कबूतर उड़-उड़कर
पहुंचे एक सरोवर पर
तिनके लाए चुन-चुनकर
और बनाया अपना घर
देख-देखकर ख़ुश होते
बना एक सुन्दर-सा घर
उसमें वे अंडे रखते
जिन्हें प्यार से वे सेते
अंडों से बच्चे निकले
प्यारे-प्यारे लगते थे
लड़ते थे न झगड़ते थे
गीत सुरीले गाते थे
मीठी तान सुनाते थे
खेल निराले करते थे
चूं-चूं करते रहते थे
और कबूतर भी दिनभर
दाने लाते चुन-चुनकर
बच्चों की चोंचों में भर
उन्हें खिलाते जी भरकर
और कबूतर ख़ुश होकर
गुटर-गुटर गूं करते थे
पंख निकलने पर बच्चे
फुर-फुरकर उड़ जाते थे
मात-पिता को वे बच्चे
चले छोड़कर जाते थे
कहीं दूर फिर वे जाकर
अपना नीड़ बनाते थे
नहीं समझ कुछ आता है
कैसा अजब तमाशा है।
✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी/241 बुद्धि विहार, मझोला,
मुरादाबाद 244103
उत्तर प्रदेश, भारत
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