गुरुवार, 6 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ राकेश चक्र का गीत -----घर चंदन कानन होगा


रामराज यदि आ जाए तो
जग चन्दन कानन होगा
अंतर्मन में प्रेम बसे तो
घर-घर वृन्दावन होगा

दैहिक-दैविक ताप मिटेंगे
भौतिक ताप न व्यापेंगे
मनुज-मनुज में प्यार परस्पर
नीति वेद की जापेंगे
असमय मृत्यु कभी ना होगी
दीन-हीनता दूर रहे
शुभ लक्षण घर-घर में होंगे
हर खाई को पाटेंगे

धर्म परायण,पुण्य शीलता
वंदित घर-आँगन होगा

नर-नारी होंगे उदार सब
नीति व्रती परहितकारी
विद्वानों की पूजा होगी
पति-पत्नी धर्माचारी।।
कर्म-वचन-मन से भर देंगे
जीवन को सुख-सौरभ से
फल-फूलों से तरु महकेंगे
गज-पंचानन सँग होंगे

खग-मृग में भी प्रेम बढ़ेगा
जीवन-धन पावन होगा।।

लता-विटप मधुरस छलकाएँ
धेनु,दुग्ध मन चाहा दें
फसलों से धरती लहराए
यज्ञाहुतियाँ-स्वाहा दें
हिम शिखरों से माणिक छिटकें
सरिताएँ निर्मल जल दें
कलयुग में सतयुग आ जाए
ऐसी शीतल छाया दें

तट पर सागर रत्न उछालें
जलद तृप्त सावन होगा

ढूँढ़ रहा मैं रामराज को
संकल्पों की राहों में
नहीं असम्भव कुछ भी मित्रो
नवजीवन की चाहों में
मैं कबीर का पथ अनुगामी
लड़ता नित्य अंधेरों से
सूरज,चंदा - सा बन जाता
हर बिछुड़े की बाँहों में

विश्वासों के दीप जलेंगे
हृदय स्वस्तिवाचन होगा

डॉ राकेश चक्र
 90 बी शिवपुरी
 मुरादाबाद -244-001
 मोबा.9456201857

बुधवार, 5 अगस्त 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी ( जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ----ज़मीर की आवाज़


राहत मियां इबादत के लिये जाने को हुए तो उनके अंदर से आवाज आई कि -"नही, यह सही नही है। दफ्तर का टाइम हो गया है" ।
तभी दूसरी आवाज़ ने कहा-"अरे!तुम कोई गलत काम थोड़े ही कर रहे हो, इबादत ही के लिये तो जा रहे हो, थोड़ी ही देर की तो बात है इतनी देर में क्या हो जायेगा"।
राहत मियां  पसोपेश(असमंजस ) में पड़ गये तभी पहले वाली आवाज ने फिर कहा-"इबादत बुराइयों से रोकती है। अगर तुम देर से दफ्तर  जाओगे तो यह गलत बात होगी  अल्लाह इससे खुश नही होगा  तुम  बाद में भी  इबादत कर सकते हो"।
और ज़मीर की इस आवाज़ पर राहत मियां के क़दम बिना इबादत किये  दफ्तर की ओर उठ गये।दफ्तर से आकर राहत मियां इबादत के लिये गये और वापस आये तो आज की इबादत में मिले सुकून और इत्मीनान की झलक उनके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी।

कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी  (सम्भल)
9456031926

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा --------गंदगी


पिछले दिनों एक मंदिर में जाना हुआ। वहां सिल्क का खूबसूरत कुर्ता पैजामा पहने एक महोदय मासूम और भोले भाले से दिखने वाले एक युवक को बुरी तरह से डॉट रहे थे -- क्या गंदे संदे कपड़े पहन
कर आए हो।तुम्हे पता नहीं - मंदिर में किसी भी तरह की गंदगी वर्जित है।
        थोड़ी देर में मैंने देखा।वो महोदय अपनी कामुक निगाहों से,महिला भक्तो को बराबर घूरे जा रहे थे।

डॉ पुनीत कुमार
T-2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा -----पहला प्यार

 
प्यार तो हो ही जाता है जैसे उसे भी हो गया था ....तभी तो जया को देखने के लिए वह कालेज के दरवाज़े पर खड़ा रहता ।जया कालेज के दरवाज़े से सहेलियों के साथ हँसती हुई निकल जाती ....और वह उसे देखता रहता। जया थी भी बहुत सुंदर....सफ़ेद बर्फ़ सी रंगत ,गहरी आँखे,लम्बे बाल .......चेहरे की मासूमियत सुंदरता में चार चाँद लगा देती।सूरत और सीरत दोनो में ही जया सबसे अलग थी।जया ने उसे कभी नही देखा पर उसका दिल तो जैसे ......जया के लिए ही धड़कता था।
जया का कालेज जब पूरा हुआ .....उसका रिश्ता एक अमीर घर में तय किया गया .....दुल्हन बनी जया ऐसी लग रही थी जैसे किसी देश की राजकुमारी हो।जो अपने राजकुमार के इंतज़ार में पलकें बिछाये है......
अरे .....बारात वापस लौट गयी ,पर क्यों........जया के पिता जी ने तो पगड़ी भी रख दीं थी  कि जल्द ही दहेज की रक़म पूरी कर देंगे पर...........
इसके बाद जया तो जैसे टूट ही गयी थी .....सुंदर चेहरा मलीन होता जा रहा था..........
इस ज़माने में बुरे लोग है तो अच्छे भी है -दादी कहती जा रही थी ...जया एक बहुत अच्छे लड़के का रिश्ता आया है तेरे लिए ।लड़का इसी शहर का है ,सुना है पढ़ा हुआ भी उसी कालेज का है जिसमें तू पढ़ती थी......
उसे अंततः अपना पहला प्यार मिल ही गया।

                             
प्रीति चौधरी
 गजरौला ,अमरोहा

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा -------पुरस्कार


बहुत बड़े एनजीओ की अध्यक्षा  अपनी वृद्धा सासू माँ से बोली... माताजी मैंने आपका सामान पैक कर लिया है.... मैं आपको वृद्ध आश्रम में छोड़ देती हूँ। .....मैं पूरे दिन समाज सेवा में लगी रहती हूँ...और आप यहां मेरे जाने के बाद अकेली रहती है ।... वृद्धा आश्रम मेंआपको आपके जैसी बहुत सारी औरतें मिल जाएंगी। जो आपसे बोलती भी रहेगी ।और आपका समय आराम से कट जाएगा और आपको अकेलापन भी नही लगेगा।....  ऐसा कह कर वह अपनी सासू माँ को गाड़ी में बैठा वृद्धाश्रम में  छोड़ कर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस  पर पुरूस्कार  प्राप्त करने के लिए दिल्ली के लिए रवाना हो गयी।

स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की लघुकथा ---------व्यवसायी कौन


दरवाजे की घंटी बजते ही योगेश बाबू ने दरवाजा खोला, देखा तीन चार लोगों के साथ श्रीनाथ बाबू खड़े थे।
अरे श्रीनाथ जी, कहिए कैसे आना हुआ।
योगेश बाबू, शहर में सत्संग होना है। बहुत बड़े.धर्मगुरु आ रहे हैं। एक सप्ताह का भागवत कार्यक्रम है। आप भी सामर्थ्यानुसार कुछ योगदान कीजिए, श्रीनाथ जी बोले।
हुम्म, कुछ सोचते हुए योगेश जी बोले ठीक है, पाँच सौ एक की रसीद काट दीजिए।
अरे योगेश बाबू एक सप्ताह का कार्यक्रम है, लाखों का खर्च है आप अपनी क्षमतानुसार कुछ सम्मानजनक योगदान कीजिए, श्रीनाथ जी बोले।
योगेश जी थोड़ी देर सोचते रहे, फिर मानों उन्हें कुछ रास्ता सूझ गया, उन्होंने श्रीनाथ जी को अलग से एक ओर बुलाया और बोले देखिए श्रीनाथ जी, ये धर्मगुरु भी अब.व्यवसायी हो गये हैं। ये भागवत आदि के कार्यक्रम तो इनका धंधा है। आप ऐसा करो एक स्टाल ब्रास के पूजा आइटम्स का मेरा लगवा दो। जो कमाई होगी उसका आधा महाराज जी को मिल जायेगा।
अगर महाराज जी अपने प्रवचन में इन पूजा आइटम्स को खरीद कर एक दूसरे को उपहार देकर पुण्य कमाने का जिक्र कर देंगे तो समझ लो चार पाँच लाख की बिक्री हो जायेगी और चालीस पचास हजार मुनाफा हो ही जायेगा।
सारी बात सुनकर श्रीनाथ जी हतप्रभ रह गये। कुछ सम्हलकर बोले: ठीक है योगेश बाबू, आयोजकों से पूछकर आपको बताऊँगा।
यह कहकर श्रीनाथ बाबू चल दिये।
जाते जाते वह यही सोचते जा रहे थे कि व्यवसायी कौन है, महाराज जी या योगेश बाबू।

श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG -69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद। उ.प्र.
 मोबाइल नं. 9456641400

मुरादाबाद की साहित्यकार सीमा वर्मा की कहानी ----------दूसरी

 
      बीस साल हो गए थे कविता को इस घर में आए हुए ।  क्या नहीं किया था उसने । सास ससुर की सेवा , पति को भरपूर प्रेम ,  तीनों बच्चों की  दिल से परवरिश और इन छह प्राणियों की गृहस्थी की कुशल गृहणी की तरह देखभाल । पर जब भी कानों में कुछ सुनने को पड़ता तो यही कि जब से यह दूसरी आई घर की चाल ही बदल गई ।
       कविता की शादी जब नरेश से हुई तब कविता तो कुँवारी थी परंतु नरेश अपनी पहली पत्नी खो चुके थे और पहली पत्नी से उनके तीन बच्चे थे जो बहुत छोटे और मासूम थे ।  माँ बाप बूढ़े थे और बच्चे बहुत नादान ।  ना चाहते हुए भी नरेश को आनन-फानन में दूसरे विवाह का सेहरा सजाना पड़ा था । कौन संभालता उसकी बिखरी हुई गृहस्थी को ।
            कविता नरेश के दूर के रिश्तेदार की भांजी थी ।  माँ बाप गरीब थे अतः जब नरेश का रिश्ता कविता के लिए आया तब कविता की भावनाओं का ध्यान रखें बिना उन्होंने झटपट हाँ कह दी क्योंकि नरेश की दहेज ना लेने की बात ने उन्हें कविता के ब्याह की और दहेज की चिंता से मुक्ति दिला दी थी ।
          कविता नरेश की दूसरी पत्नी बन कर आई थी ।  माँ बाबूजी की दूसरी बहू और बच्चों की दूसरी माँ । "दूसरी" शब्द कविता के नाम का पर्यायवाची बन गया  था । सोते जागते कोई ना कोई बात ऐसी बात हो ही जाती थी जिससे कविता को यह अहसास दिला दिया जाता था कि वह "दूसरी" है ।  कविता कौन सा फूलों की सेज पर जीवन गुजार कर आई थी उसे भी किसी ताने का या ठिठोली का असर ही नहीं होता था ।
           समय पंख लगा कर उड़ रहा था । बच्चे बड़े हो रहे थे । खुद माँ बनने की इच्छा का भी कविता ने यह सोच कर गला घोंट दिया कि दूसरी की औलाद का नामकरण ना जाने क्या हो ? और फिर गृहस्थी भी एक और नया बोझ उठाने में असमर्थ थी ।  वैसे उसने बच्चों को और बच्चों ने उसे दिल से अपनाया था और उनके निश्छल प्रेम में कविता बार-बार दिलाए जाने वाले "दूसरी" के अहसास को  नजरअंदाज कर देती थी ।
           आज बड़े बेटे का तिलक था । घर मेहमानों से अटा पड़ा था । लड़की वाले समय पर आ गए थे । ढोलक की थाप पर बन्ने गाए जा रहे थे कि अचानक तिलक की रस्म करते लड़की के भाई को रोकते हुए पंडित जी ने कहा कि पहली रस्म लड़के की माँ की है ।  सभी एकसाथ बोल पड़े  "हाँ भई पहली रस्म तो माँ की" कोई इधर से बोला कोई उधर से । 
           "पहली"   "पहली"   "पहली" कविता के कान गुंजायमान हो रहे थे । बेटे के सिर पर माँ ने आँचल बिछाया तो बलैया लेती वृद्ध दादी की आँखों में खुशी की नमी आ गई पर ज़ुबान का क्या करें ?
मुँह खोला ही था कि  "आज अगर पहल"  आधे वाक्य को बीच रास्ते में ही रोकते हुए बड़े पोते के हाथ उनके मुँह को बंद कर दिया था ।  "माँ ही अब सब कुछ हैं दादी"
दूल्हा मुस्कुरा कर दादी का हाथ दाब रहा था ।  और कविता आज "पहली" और "दूसरी" के बंधन से मुक्त हो गई थी ।

सीमा वर्मा
मुरादाबाद


मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की लघुकथा --------गरीब का स्कूल


"हम भी अपने बच्चों को मान्टेसरी स्कूल में पढ़ाएंगे", सुमन ने अपने पति राधेश्याम से गम्भीर होकर कहा।
"अरे सुमन ये स्कूल नहीं विद्या की दुकानें हैं। वहाँ किताब से लेकर कपड़े तक सब स्कूल में ही बिकते हैं। और पढ़ाई...!! उसके लिए तो बच्चों को टूशन पढ़ना पड़ता है। इस बड़े व्यापार की दुकान से हम कुछ खरीद सकें ये हम गरीबों के बस की बात नहीं है सुमन ये तो अमीरों के चोचले हैं", राधेश्याम ने समझाते हुए कहा।
"फिर क्या हमारे बच्चे अनपढ़ ही रह जाएंगे जी?" सुमन ने उदास होकर सवाल किया।
"अनपढ़ क्यों रह जाएंगे? हमारे लिए सरकार ने खोले हैं ना कितने सारे स्कूल। और फिर शिक्षा प्रतिभा होने से हासिल की जाती है पैसे से खरीदा हुआ हुनर कभी वक़्त पर काम नहीं आता", राधेश्याम ने कहा और दोनों अपनी बेबसी पर जबरदस्ती मुस्कुरा दिए।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी -------मुंडेर की धूप

     
    ... "बुढ़िया कब तक जियेगी मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है... इसकी पेंशन और मकान का लालच न होता तो कब की निकाल कर बाहर कर देती" ! मधु की आवाज सुनकर सुहास के कानों में जैसे किसी ने पिघला शीशा उड़ेल दिया हो.......
वह सुबक उठी...!! . ऐसा अक्सर होता रहता था... ऐसा नहीं है कि मनोज को पता न हो
.......सुहास ने पूरा जीवन ही होम कर दिया था इन्हें बड़ा करने और पैरों पर खड़ा करने में...  उसने कभी नहीं सोचा था कि जीवन में ऐसा दिन भी आएगा  । माता-पिता की दुर्घटना में मृत्यु के बाद अपने सपनों को तिलांजलि देकर पांच भाई बहनों की जिम्मेदारी स्वय ही संभाल ली थी ।
तीन भाई और दो बहन ..सबसे छोटा मनोज तो दो ही साल का था उस   समय ...... 
     ....सुहास  दूसरे नंबर की थी किराए का मकान....
          ********************
          शाम 7:00 बजे का समय दिया था उसने----- होटल मानसिंह में रुका था-बद्री
       अब मिलने का कोई औचित्य नजर नहीं आता... फिर भी वह क्या कहना चाहता है
 यह तो देखना ही था ।
         सूहास का रिटायरमेंट हुए 10 साल हो गए थे 70 साल की वृद्धा को आज युवती होने का एहसास हो रहा था । इसलिए बन  संवर के तैयार हो गई ।
     एक समय था दोनों एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते थे .... शादी का प्रस्ताव बद्री ने ही रखा ! सुहास ने साफ कह दिया यह संभव नहीं.. ‌‌ मेरे ऊपर बहुत जिम्मेदारी है!!
फिर बद्री को कनाडा में जॉब मिल गई......
    गाड़ी निकलवाई और 6:00 बजे ही होटल मानसिंह के कमरा नंबर 205 पर दस्तक दी..... सोचा था कोई स्त्री दरवाजा खोलेगी ! परंतु 75 साल के बद्री दत्त जोशी ने ही दरवाजा खोला उम्र कहां से कहां पहुंच गई थी परंतु चेहरे के हाव-भाव मुस्कुराहट वैसे के वैसे ही थे ....!!!
..."कनाडा से कब लौटे?"
"कल 12:00 बजे ही तो लौटा"
  'कैसे हो?..." तुम्हारी पत्नी कहां है?... 'बच्चे कितने हैं?"सुहास ने एक ही सांस में कई प्रश्न पूछ लिये
बाप रे एक साथ इतने प्रश्न????
..."मेरी छोड़ो अपनी सुनाओ" पति कहां है?".... बच्चे कितने हैं?"बंद्री ने पूछा... "         "कैसा परिवार और बच्चे ?" जब शादी ही नहीं की... सुहास के स्वर में गहरी उदासी थी..!!! मैं जैसे  पहले थी वैसे ही अब हूं...
    "अपनी सुनाओ"!
"मैंने भी नहीं की" शादी"!
.... क्यों?
"प्रस्ताव तो रखा था...!!
.... किस से करता ! तुम जो नहीं मिली !!
     "तुमने क्यों नहीं की शादी??"
......."पहले तो बड़ी दीदी की शादी नहीं हुई"....!! फिर....!. दीदी की  हो गई तो... तो....!!
.....सबकी जिम्मेदारियां पूरी करते-करते समय कब उड़ता चला गया... पता ही नहीं चला...!
फिर तुम जो नहीं थे !! कहते-कहते सुहास का स्वर भारी हो गया..!!
  ... अचानक वातावरण बोझिल हो गया दोनों एक दूसरे को गहराई से देखते ही रह गए.... न कोई गिला शिकवा ना कोई संवाद.. न कोई विवाद !
भावों और संवेदनाओं का ज्वार ऐसा उठा .... आंखों से .... आंसुओं का   ...सैलाब ! दोनों डूब कर एक दूजे में समां गये ...!!!!
                       
  अशोक विद्रोही
  82 188 25 541
  412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा---------समीक्षा


कवि तिवारी जी ने कवि त्यागी जी से कहा - भाई त्यागी जी इस नव रचनाकार 'बादल ' ने रचनाएं तो अच्छी लिखी हैं ,अपनी नई किताब  'ग्रहण' में।
पर किताब छपवाने से पहले उसने हम दोनों में से किसी से भूमिका नहीं लिखवाई है । मेरे सम्मान को ठेस पहुंचा है।
तिवारी जी ने शर्मा जी से  कहा - आप बताएं क्या चाहते हैं।
शर्मा जी  ने  कहा - तिवारी जी जो आप बड़े समीक्षक हैं ,किताब आने दे फिर लिखने वाला इंसान है ,छापने वाला इंसान है और साहित्य तो महासागर है... कहीं ना कहीं थोड़ी या ज्यादा गड़बड़ी मिल ही जाएगी। इकबाल ,ग़ालिब, कबीर ,कुमार दुष्यंत.........आदि तक ने हल्की-फुल्की  गलती कर दी है  पर ये इतने बड़े नाम हैं कि इन सब बातों को उनकी रचना के भाव की गहराई को देखते हुए हैं नजरअंदाज कर दिया गया और गलतियों को दफ़न कर दिया गया। पर यह तो नव रचनाकार हैं, किस खेत की मूली है.... बस हल्की फुल्की भी गलती रह गई तो धज्जियां उड़ा देंगे ,अपनी समीक्षा में इस महानुभाव की.....
प्रवीण राही
मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा-----दान


बडी उम्मीद के साथ शैफाली ने पति की मृत्यु के बाद परिवार वालो का विरोध सह कर एक बेटे की  अच्छी परवरिश की उँचे स्कूल मे पढाया।आज वही बेटाउसके  सेवानिवृत्त होने के बाद बार बार उससे उसकी सम्पति अपने नाम लिखने को कह रहाथा  ।काफी सोच विचार के बाद आज उसने निश्चय कर लिया कि वह वसीयत करेगी।।बेटा खुश था कि वसीयत हो गयी।उसकी मृत्यु के बाद जब वसीयत पढी गयी तो बेटे को गश आ गया।शैफाली अपने निवास को छोडकर सारी सम्पत्ति वृद्ध महिला आश्रम के नाम कर गयी जहाँ वह अक्सर सेवा करने जाती थी।

डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा ------- रंग


"अजी सुनते हो, हमारे गाँव से शन्नो दीदी आ रही हैं, आप उनसे कभी नहीं मिले हैं, बिल्कुल अकेली हैं। उनकी आँख का तारा उनका एक इकलौता छोटा भाई था, वह भी पिछले महीने चल बसा। सभी छोटों को अपना छोटा भाई ही समझती हैं......", सोनाली देवी खुशी से चहकती हुई अपने पति निरंजन बाबू से बोलीं।
"शन्नो दीदी..... छोटा भाई......", सुनते ही शन्नो दीदी से दो साल बड़े निरंजन बाबू खुशी से मन ही मन बुदबुदाते हुए, पूरी तरह सफ़ेद हो चुके अपने बालों को काला करने में जुट गए थे।

- राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद

मंगलवार, 4 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से रविवार 4 अगस्त 2002 को काव्य गोष्ठी का आयोजन


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ जगदीश शरण की पंद्रह कुंडलियां -----


               ( 1)

गुन के तांई सब नवैं,  जो   पै  अवगुन होय।
गाय दुधारू मरखनी, लात सहैं सब  कोय ।।
लात   सहैं सब कोय ,ध्यान न अवगुन जावै।
अवगुन होयं  हजार, गुन  दस  तिन्हैं दबावैं।।
कहै 'सरन'  कविराय , सुनो  हो  भैया बुनके।
गाय   दुधारू लात, सहैं  सब तांई  गुन  के ।।

                 ( 2 )

गाढ़े दिना बिताइये,  न सदा एक - सा कोय।
सूखा तरुवर भी फलै ,एक दिन   ऐसा होय।।
एक दिन  ऐसा होय, प्रभु  का सुमिरन कीजै।
 पर काजनि  के हेत, सीस आगै  धरि  दीजै।।
कह 'सरन' कविराय , विपत   में  रहिये ठाढ़े ।
बहा लै जाय बहुरि , सुख नदिया दिनहुं गाढ़े।।

           ( 3 )

अन्यायी   राजा   मरै,    मंत्री  गुनाहगार।
दगाबाज सेवक मरै, मरै मतलबी  यार ।।
मरै  मतलबी यार,  मरै  वह  पूत निगोड़ा।
मरै बैल गरियार, मरै वह अड़ियल घोड़ा।।
कहै 'सरन' कविराय ,मरै बदजात लुगाई ।
बेवफा खसम मरै,  राजा मरै  अन्यायी ।।

          ( 4 )

चदरी   थोड़े दाम की,  देय  बहुत आराम।
सदा राखिये  साथ मैं, आवै  बिगड़े काम।।
आवै   बिगड़े   काम,  तपै  जो   देही घामै।
तरुवर होय न पास, रहिए चदरी की छां मैं।।
कह 'सरन' कविराय, घिरै जो काली बदरी।
जंह लौं पार बसाय, बचावै तन  को चदरी।।

                         ( 5)

दीजै  सीस  उतारि कर, सकल उधारी चाम।
 जीवै   सोई  जगत  मैं, आवै  दूजे   काम ।।
आवै   दूजे काम, गरब  क्या    देही  करिए ।
तरुवर होय निपात, यहु दण्ड देह का भरिए।।
 कहै 'सरन' कविराय, भलाई सबकी कीजै।
परमारथ के हेत,  सीस   आगै  धरि  दीजै।।

              ( 6 )

गोरे मुख मत जाइये, लखिये  गुन जो होय।
जैसे बगुला कोकिला, रूप लखैं सब कोय।।
रूप लखैं सब कोय, कोकिला मन को मोहै।
बगुला तो बंचक भए, नित स्वारथ को जोहै।।
कहै  'सरन'  कविराय, धूप  के पीछे    बौरे।
तजिये अवगुन होयं,  रूप  के  मुखड़े गोरे।।

              ( 7 )

साईं ! दौलत  के  सगे, दौलत के हैं यार ।
बिनु दौलत  कब बोलते, बेटा ,बेटी, नार।।
बेटा,  बेटी, नार,  भए  स्वारथ  के   संगी।
छोड़ैं एक  दिन साथ, हाथ जब होवै तंगी।।
कहै 'सरन' कविराय, सुनो ! मतलब के ताईं।
बनत -बनत बहु मीत, धन -दौलत हेतु, साईं।।

               ( 8 )

थाना बसिए  निकट नहीं,  फोकट मिलै जमीन।
 जीवन सकल नरक बनै, मिलै नहीं तसकीन।।
 मिलै नहीं तसकीन,  चैन कब  दिन को आवै ।
 रक्षक ही भक्षक बनै, फिर चोर नजर न आवै।।
 कहै 'सरन' कविराय, तजुर्बा  यहु अजमाना ।
मरिए पर बसिए नहीं,  होयै   जहां भी थाना।।

           ( 9 )

पैसा  सों  सब  होति  है, बिनु पैसा सब जाय।
जब लगि पैसा हाथ मैं, तब लगि चिंता नाय।।
तब लगि  चिंता नाय, पैसा   सब   रंग  तोलै।
मुख तो भया  निबोल, पैसा  सब  ढंग बोलै।।
कहै 'सरन'  कविराय, करिश्मा   यामै  ऐसा ।
मन के मते न जाय, जब मति  चलावै पैसा।।

               ( 10 )

गोरी  मूरख  तै भली , चतुरी   कारी  नार।
चतुर संवारै कुटुम को, मूरख देय उजार ।।
 मूरख देय उजार , गुन तै  हु   कारी  भावै।
 निरगुन  गोरी नार, यार कब चित पै आवै।।
कहै 'सरन' कविराय, रूप की दुनियां बौरी।
तजि गुन कारी नार, गहै जो अवगुन  गोरी।।

         ( 11 )

बोली  करकश भी  भली, समया  बोलै कोय।
जैसे  कागा  भोर का, सबद  सुहावन   होय।।
 सबद सुहावन होय, समय पर काम सुहावत ।
बेसमया मधु राग,  कबै  कोकिल का भावत।।
कहै 'सरन' कविराय, समय की भली ठिठोली।
 जैसा    समया   होय, बोलिये   वैसी   बोली।।

                ( 12 )

सीधा   पैंडे  चालिये, भले  मिलै   बहु  फेर ।
चंगा   घर  मैं  पहुंचिये,  ऐसी   भली अबेर।।
 ऐसी  भली  अबेर , गहे    जो  भूले बटिया ।
उतै मिलैं  बटमार, छिनै  जर जोरू लुटिया।।
कहै 'सरन'  कविराय,  पकड़िये   पैंडा छीदा।
जीवन बहु अनमोल, तौलि कै चलिये सीधा।।

           ( 13 )

संगत तिसकी  बैठिये,  अवगुन  देवै काढ़।
जैसे सूप अनाज का, कर दे दूर  कबाड़ ।।
कर दे दूर कबाड़, तन कंचन ज्यों विकसै ।
जग मैं होवै  मान ,बोल ज्ञानी -सा निकसै।।
कहै 'सरन' कविराय,जगत की सिगरी रंगत।
जो चाहत तो गहिये, भले लोगनि की संगत।।

         ( 14 )
साईं, दौलत के  बिना, झूठे  सब  ब्यौहार ।
दौलत होय तु डोलि है, संग मतलबी यार।।
संग  मतलबी  यार, नार  सब  पीछै  डोलैं।
 दौलत  रहै न  पास, बेई मुख से न  बोलैं।।
 कहै 'सरन' कविराय, जन दौलत हु के तांई।
 असनाई सब जात, बिन दौलत हु के, सांई।।

           (  15 )
चेला धुर मूरख मरै, अरु मरिए गुरु लबार ।
प्रपंची   साधू    मरै,  गरजी     साहूकार ।।
गरजी   साहूकार,  मरै  वह  कुलटा  नारी।
मरै  छिछोरा  पूत, पुरुष  मरै व्यभिचारी ।।
कहै 'सरन' कविराय, मरै वह कंत  गहेला।
गुरु को दाग लगाय, मरै धुर मूरख चेला।।


पाद टिप्पणी :   बुनके = बुनकर, जुलाहा। गाढ़े = बुरे, दुख के।  गरियार= सुस्त  ।  निपात = पतझड़।  धूप = चमक। तसकीन = शांति।

   
 डॉ. जगदीश शरण
 डी- 217, प्रेमनगर, लाइनपार, माता मंदिर गली, मुरादाबाद-- 244001
उत्तर प्रदेश ,भारत
मोबाइल :  983730 8657  

वाट्स एप पर संचालित समूह ''साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 21 जुलाई 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों वीरेंद्र सिंह बृजवासी, डॉ पुनीत कुमार, नृपेंद्र शर्मा सागर, प्रीति चौधरी, कमाल जैदी वफा, दीपक गोस्वामी चिराग, सीमा वर्मा, कंचनलता पांडे, डॉ श्वेता पूठिया, मरगूब अमरोही, अशोक विद्रोही, डॉ प्रीति हुंकार, आयुषी अग्रवाल, मनोरमा शर्मा, राजीव प्रखर और कंचन खन्ना की रचनाएं-----

 

भालू   दादा  नेता  बनकर
जब    जंगल   को    धाए
जंगल  के  सारे  जीवों  ने
तोरण     द्वार      सजाए।
   
उतर  कार  से  भालू दादा
शीघ्र    मंच     पर    आए
कहकर जिंदाबाद सभी ने
नारे        खूब        लगाए
इतना स्वागत पाकर दादा
मन    ही    मन   मुस्काए।
भालू दादा---------------

सबकी तरफ  देख नेताजी
इतना       लगे        बताने
रखो   सब्र  थोड़ा  बदलूँगा
सारे        नियम       पुराने
साफ हवा भोजन पानी  के
सपने      खूब       दिखाए।
भालू दादा----------------

जमकर  खाई   दूध मलाई
खाई        मीठी       रबड़ी
फल खाने को चुहिया रानी
आकर   सब  पर   अकड़ी
चुहिया  रानी  को समझाने
सभी      जानवर      आए।
भालू दादा-----------------

निर्भय होकर सब जंगल में
इधर    -   उधर        घूमेंगे
एक   दूसरे   के  हाथों  को
बढ़-चढ़       कर      चूमेंगे
साफ - सफाई रखने के भी
अद्भुत       मंत्र      सुझाए।
भालू दादा----------------

जंगल के  राजा को पर यह
बात    समझ    ना     आई
मेरे    जीतेजी    भालू   को
किसने      जीत      दिलाई
खैर  चाहता   है   तो  भालू
तुरत         सामने      आए।
भालू दादा-----------------

देख  रंग  में  भंग   सभी  ने
सरपट      दौड़        लगाई
सर्वश्रेष्ठ   ही    बचा   रहेगा
बात    समझ     में     आई
भालू  दादा   भारी  मन   से
इस्तीफा        दे         आए
भालू दादा-----------------
   
  वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
  मुरादाबाद/उ,प्र,
  9719275453
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पांव जमीं पर पटक पटक
छुटकू चलता मटक मटक

दूध देखकर नाक चिढ़ाता
शरबत पीता गटक गटक

ब्रेड फेंक देता टुकड़े कर
मक्खन खाता सटक सटक

बाबा संग शैतानी करता
गोद में उल्टा लटक लटक

मम्मी को कहता मम्मा
नाम बताता अटक अटक

डॉ पुनीत कुमार
T-2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600
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कहाँ  गया वह पेड़ नीम का कहाँ गयी यारों की टोली।
साथ खेलता था मैं जिनके कंचे टँगड़ी आँख मिचौली।
नहीं खिलौनों की ख्वाहिश थी नहीं जरूरत ताम झाम की।
बने खिलौने सदा हमारे टायर और बैरिंग की गोली।

बचपन में हम बादशाह थे अपने भी घोड़े होते थे,
गिर जाने पर पीठ से लेकिन कभी नहीं बच्चे रोते थे।
कितना लड़ते ओर झगड़ते फिर भी जुदा नहीं होते थे।
अब तो यारों की बोली भी लग जाती है जैसे गोली।

लौटा दो कोई हमें वो बचपन कुछ लकड़ी कुछ यार वो भोले।
हम फिर से बच्चे बन जाएं औऱ खेल टँगड़ी का खेलें।
ले लो ये सब चमक दमक और आभासी दुनिया की दौलत।
बस फिर वे दिन वापस ला दो जहाँ की दुनिया बहुत थी भोली।

ले लो सारे खेल खिलोने लौटा दो यारों की टोली।।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद
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कक्षा में व्यवधान है आता
पढ़ाना भी हो नही पाता
टीचर फ़ोन पर जो बताता
बच्चा उसे सुन नही पाता

कुछ भी समझ जब नही आता
तब छत पर भी जाया जाता
हर सम्भव प्रयास वह करता
नेट फिर भी ला नही पाता

जब तब डाटा उड़ उड़ जाता
टीचर फ़ोन में उलझ जाता
ऑनलाइन कक्षा का चलना
बस वही पर है रुक जाता

 प्रीति चौधरी
 गजरौला,अमरोहा
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अम्मा वो दिन कब आएंगे?
जब  स्कूल को हम जाएंगे।
घर पर पढ़ना और बात है,
याद किया भी भूल जाएंगे।                               
         अम्मा वो दिन कब -----                               ऑनलाइन में वो बात कहां,
कक्षा सी सौगात कहां।
शिक्षक से जज़्बात कहां।
उछलकूद कैसे मचाएंगे?
       अम्मा वो दिन कब--------
जब भी स्कूल खुल जाएंगे,
चाट पकौड़ी हम खाएंगे।
मित्रो संग बातें  बनाएंगे।
पानी मे भी नाव चलाएंगे।
         अम्मा वो दिन कब-------
अब तो खुल गये बाज़ार,
शाला भी खोलो सरकार।
गांव शहर होंगे गुलज़ार।
जब बच्चे शोर मचाएंगे।
सब वायरस भाग जाएंगे।
       अम्मा वो दिन कब------
कमाल ज़ैदी ' वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926
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हूँ मैं झंडा, देख! तिरंगा ।
तीन रंग की मुझ में गंगा।
श्वेत रंग शांति का दाता।
केसरिया रंग प्यार सिखाता।
हरा रंग लाए हरियाली।
हरियाली में है खुशहाली।
नीला-चक्र बीच में सजता।
नित चलने को जो है कहता।
राष्ट्रीय-झंडा कहलाता हूँ।
सबसे ही आदर पाता हूँ।

दीपक गोस्वामी 'चिराग'
बहजोई उ. प्र.
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एक बिल्ली ने चूहा पकड़ा
                  कसकर हाथों में था जकड़ा
    चूहा भय से भरा हुआ था
                  ऐसा जानो मरा हुआ था
   बिल्ली ने सोचा घर ले जाऊँ
                   बैठ मजे से इसको खाऊँ
  पर घर पे थीं उसकी बहनें
                  आईं थीं कुछ दिन जो रहने
 बिल्ली अब थोड़ा घबराई
                  कैसे बाँटे अपनी कमाई 
  घर आकर बोली सुनो बहना
       आज हम सबको व्रत है रहना
 ये देखो पंडित है आया
            कहकर उसने चूहा दिखाया
  अब चूहे की शामत आई
            पर उसने एक जुगत लगाई
  बोला अब सब हाथ को जोड़ो
     ध्यान करो मोह - माया सब छोड़ो
  जैसे ही बिल्लियाँ भक्ति में आईं
                चूहे जी ने दौड़ लगाई ।।।
सीमा वर्मा
मुरादाबाद
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आ ही गया सावन महीना
चलो दीदी गुड़िया बना लो
पंचमी भी अब आने वाली
भैया तुम भी डंडे सज़ा लो
चलो दीदी ................
ताल पोखरे गंदे पड़े हैं
पापा कुछ आप ही करा दो
चलो दीदी ................
और नहीं इतना ही कर दो
सफ़ाई की अर्ज़ी लगा दो
चलो दीदी ................
मम्मी प्रसाद ज़्यादा रखना
चने चाहे और मँगवा लो
चलो दीदी .................
झूला पीपल डाल पड़ेगा
रस्सा और पीढ़ा निकालो
चलो दीदी .................
हमें भी शिवालय ले जाना
कहना तुम भी दूध चढ़ा लो
चलो दीदी .................
कपड़े सबको हरे पहनने
चाहे तो धानी सिलवा लो
चलो दीदी .................
गुड़िया पिटने सभी चलेंगे
सारा इंतज़ाम तो करा लो
चलो दीदी ................

कंचन लता पाण्डेय “कंचन”
    9412806816
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फोन फोन तुम बंद हो जाओ,
कल तक तुमको चाहते थे,
अब तुम से घबराते है,
मैडम भी अब इसपर है,
यहाँ भी डाँट लगाती है।
आँखे भी तो दुखती है।
सर मे दर्द आ बैठा है।
भईया भी अब कहताहै,
पहले करले तू अब काम
फोन फोन तुम बन्द हो जाओ
अब बच्चों पर होगा अहसास।

डा,श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
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रिमझिम  बारिश जब है आती।
तो मायशा रानी खिल है जाती।

फिर हर बारिश में वे है चाहती।
नहा नहा के  खूब शोर मचाती।

वे हर बारिश में कपड़े भिगोती।
उसकी मम्मी तो चिल्ला जाती।

ना भीगो तुम, बारिश में कहती।
बस मम्मी उसकी ये ही चाहती।

नहीं वो कहना उनका मानती।
तो मम्मी उसकी चांटे लगाती।

देख के मायशा का ये बचपन।
मेरी भी यादें  ताज़ा हो जाती।

मरग़ूब अमरोही
दानिशमन्दान, अमरोहा
मोब..9412587622
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आओ बच्चों आओ तुम्हें खेल खिलाएं
अच्छी-अच्छी बातें तुम्हें आओ बताए
क्रोध और नफरत से दूर सदा रहना
चाहे जो हो किन्तु मुंह से झूठ नहीं कहना
अपने बचपन को निर्मल बनाऐं
आओ बच्चों आओ तुम्हें खेल खिलाएं
सुबह सवेरे जल्दी उठ कर रोज कसरत करना आंधियों से तूफानों से बिल्कुल भी ना डरना
कोई वाधा तुम्हें रोक ना पाए
आओ बच्चों आओ तुम्हें खेल खिलाएं
कांटो में खिलने वाले फूलों को देखो
अंधियारे  में जलने वाले दीपों को देखो
अपने जीवन को इन सा बनाऐं
आओ बच्चों आओ तुम्हें खेल खिलाएं
अच्छे और बुरे पथ में भेद सदा करना
देश की रक्षा की खातिर सीखना है मरना
देशभक्ति के गीत सदा गाऐं
आओ बच्चों आओ तुम्हें खेल खिलाएं
जात पात और भेदभाव से खुद को बचाओ
दीन दुखी  निर्बल बच्चों को गले से लगाओ
सारे त्यौहार मिल के मनाएं
आओ बच्चों आओ तुम्हें खेल खिलाएं
अच्छी अच्छी बातें तुम्हें आओ बताएं
आए जो मुसीबत कभी न घबराएं
               
अशोक विद्रोही
  8218825541
  412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
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टॉमी मेरा बड़ा महान
पूरे घर का रखता ध्यान
जब हम घर से बाहर जाते
टॉमी जी को छोड़ के जाते
भौंक भौंक कर दौड़ लगाते
पक जाते हैं सबके कान
टॉमी**********
दूध मलाई इनको भाय
देख मिठाई जी ललचाय
खीर को टॉमी जी भर खाय
दूध को पीकर है बलवान
टॉमी*****
स्वामिभक्त है टॉमी प्यारा
प्यार है इसका सबसे न्यारा
हाल पूँछता हमसे सारा
सच में यह है मेरी शान
टॉमी******
डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद।
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काली घटा जब उमड़के आए
पंख खोलकर नाच दिखाए।

सिर पर अपने ताज सजाता
रंग-बिरंगे पंख नचाता।

पैर देख वो हुआ उदास
बोला कौआ आया पास।

मेरा भी तन काला है
इससे क्या होने वाला है।

मन को सुन्दर रखना प्यारे
खुशी के राज़ इसी में सारे।

आयुषी अग्रवाल (स०अ०)
कम्पोजिट विद्यालय शेखूपुर खास
कुन्दरकी (मुरादाबाद)
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देखो पापा बहुत हो गया ,लाॅकडाउन लाॅकडाउन
बाहर जाकर ही मुझको अब,आईसक्रीम है खाना
तुनक -तुनक कर मम्मी बोली , ऐसा कैसे है होना
फैला है कोरोना इतना ,तुमको बाहर है जाना
बाहर की कोई चीज नही ,घर का ही है बस खाना
घर पर ही मैं जमा रही हूँ अब केसर मैंगो फ्लेवर
जितना चाहे उतना खाना ,सेफ रहो मौज उडाना
साफ -सफाई का रखें ख्याल ,रोग मुक्त रहे परिवार
ठीक है मम्मी मैं गुड ब्याय ,बातआपकी मानूंगा
आनलाइन पढ़ना मुझको अब मेरा फोन दिलाना

मनोरमा शर्मा
अमरोहा
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सोमवार, 3 अगस्त 2020

यह चित्र 21अगस्त 1983 का है जब बाबा नागार्जुन मुरादाबाद में प्रख्यात साहित्यकार माहेश्वर तिवारी जी के घर प्रकाश भवन गोकुलदास रोड में आए थे । इस चित्र में हैं बाएं से माहेश्वर तिवारी, बाबा नागार्जुन, किशन सरोज ( बैठे हुए) , डॉ मनोज रस्तोगी, रणवीर दिनेश, गुप्ता जी, डॉ मक्खन मुरादाबादी और समीर तिवारी (खड़े हुए )।

छाया : एम एस विकल, भारती स्टूडियो 

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था "हिंदी साहित्य संगम" की ओर से माह के प्रथम रविवार को काव्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । रविवार 2 अगस्त 2020 को आयोजित ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ मीना नकवी, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, डॉ मीना कौल, योगेंद्र वर्मा व्योम, श्री कृष्ण शुक्ल, अशोक विद्रोही, सीमा रानी, राजीव प्रखर, डॉ ममता सिंह, मीनाक्षी ठाकुर, इंदु रानी, अरविंद कुमार शर्मा आनन्द, जितेंद्र कुमार जौली, डॉ प्रीति हुंकार, प्रशांत मिश्र, राशिद मुरादाबादी, नृपेंद्र शर्मा सागर और नकुल त्यागी की रचनाएं ----


सत्य घोलो आचमन में।
अन्यथा क्या है हवन में।।

युग ये दानवराज का है।
नीति है जिसकी दमन में।।

नृत्य बरखा कर रही है।
गीत हो जैसे पवन में।।

याद फि़र आया है कोई।
कुछ नमी सी है नयन में।।

क्यों अँधेरों से डरें हम।
चाँद तारे हैं गगन में।।

कोई मन में यूँ समाया।
जैसे खु़शबू हो चमन मे।।

तुम पलट आओगे इक दिन।
दृढ़  है यह विश्वास  मन में।।

हों सुकोमल भाव 'मीना'।
वरना क्या रखा है फ़न में।।
 डॉ.मीना नक़वी
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तन   वैरागी  , मन  वैरागी
जीवन का हर क्षण वैरागी
जीवन को जीवन पहनाने
सारा  घर  आंगन   वैरागी।
       
मेरे   रोम-रोम   में  बसतीं
सतत प्रेमकी  अभिलाषाएं
मन वीणा  की  झंकारों  से
झंकृत  होती  दसों  दिशाएँ
सच कहता हूँ मानवता को
हुआ सकल  जीवन वैरागी।
तन वैरागी----------------

देख -देख  भूखे  प्राणी  को
मुझको भारी  दुख  होता है
सुनकर आतंकित वाणी को
मेरा    अंतर्मन     रोता    है
हरदम सबका  साथ निभाने
व्याकुल  अपनापन  वैरागी।
तन वैरागी-----------------

धर्म  जाति   के   संघर्षों  में
सारी  दुनियाँ  ही उलझी  है
अहंकार  की  घोर   समस्या
किसके  सुलझाए सुलझी है
बनी  हुई  है आज  स्वयं  ही
मेरी  सघन   लगन    वैरागी।
तन वैरागी-----------------

नींद   नहीं  आती  रातों  को
हरपल    बेचैनी   रहती    है
सारे जग की  करुण कहानी
आकर  कानों  में  कहती  है
मेरे  साथ  हो  गया अब  तो
चंदन   वन   उपवन  वैरागी
तन वैरागी-----------------

केवल   वही  शक्तिशाली  है
हर  कोई  यह  दंभ भर  रहा
अपनी गलती को झुठलाकर
औरों पर  इल्ज़ाम   धर रहा
इन्हें   राह  दिखलाने   वालों
को    मेरा    वंदन    वैरागी।
तन वैरागी-----------------

वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद 244001
 9719275453
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  जिंदगी आजकल
  कोरोना के खौफ में गुजर रही है
  हर कदम पर बीमारी
  एक नयी साजिश रच रही है।
  वायरस के बोझ से
  हर व्यवस्था कुचल रही है
  निर्दोषों की चीख से
  मानवता भी दहल रही है।
  महामारी की आग में
  हर इच्छा ही जल रही है
  दूर देश से उठी आग
  कितनी साँसें निगल रही है।
  आपसी सद्भाव पर
  संदेह की काली छाया पड़ रही है
  धर्म स्थल पर भी
  शत्रु की काली दृष्टि पड़ रही है।
  कौन है जिसने
  यह अवांछित कर दिया
 अपने ही घर में
 हमें असुरक्षित कर दिया।
 आखिर कब तक
 जिंदगी कोरोना के साए में गुजरेगी
 आँखें कब तक
 अपने सपनों को तरसेंगी।
 कभी कभी लगता है
 इसकी कोई दुआ जरूर आएगी
 महामारी छोड़ पीछे
 मीना जिंदगी आगे बढ़ जाएगी।।
     
डाॅ मीना कौल
मुरादाबाद
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चिन्ताओं के ऊसर में फिर
उगीं प्रार्थनाएँ

अब क्या होगा कैसे होगा
प्रश्न बहुत सारे
बढ़ा रहे आशंकाओं के
पल-पल अँधियारे
उम्मीदों की एक किरन-सी
लगीं प्रार्थनाएँ

बिना कहे सूनी आँखों ने
सबकुछ बता दिया
विषम समय की पीड़ाओं का
जब अनुवाद किया
समझाने को मन के भीतर
जगीं प्रार्थनाएँ

धीरज रख हालात ज़ल्द ही
निश्चित बदलेंगे
इन्हीं उलझनों से सुलझन के
रस्ते निकलेंगे
कहें, हरेपन की ख़ुशबू में
पगीं प्रार्थनाएँ

 योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद
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पूरी हो मन की अभिलाषा जन जन का कल्याण हो।
जन्मभूमि पर रामलला के मंदिर का निर्माण हो ।

पूर्ण हो गई आज प्रतीक्षा, मंदिर के निर्माण की ।
युगों युगों के संघर्षों की, कोटि कोटि बलिदान की ।
अखिल विश्व में सत्य सनातन, के ध्वज की पहचान की
बने निशानी अब यह मंदिर, भारत के सम्मान की ।।
राम लला के मंदिर की अब अखिल विश्व में शान हो।
जन्मभूमि पर रामलला के मंदिर का निर्माण हो।

रामलला हम सब आयेंगे, मंदिर वहीं बनायेंगे ।
राम शिलाएं जोड़ जोड़कर भव्य भवन बनवायेंगे।
राम लला की प्राण प्रतिष्ठा मंदिर में करवायेंगे ।
घंटे और घड़ियाल बजाकर राम नाम धुन गायेंगे।
राम राम जय राम राम मय रमते मन और प्राण हो।
जन्मभूमि पर रामलला के मंदिर का निर्माण हो ।

श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG -69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद 244001
---------------------------–

नेता कहतेआजादी,
          चरखे से भारत में आई!
 नेहरू गांधी की खादी
        और सत्य अहिंसा से पाई!
 नेताओं ने इसकी खातिर,
                कितने डंडे खाए हैं
जीवन के अनमोल बरस
            जेलों की भेंट चढ़ाए हैं
किंतु सत्य ये नहीं है ,जो कि
               साफ दिखाई देता है
लाखों हैं बलिदान हुए,
            इतिहास गवाही देता है
जलिया वाले बाग की गाथा,
               क्यों हो गई पुरानी है
गूंज रहीं चींखें कहतीं,
         बच्चा-बच्चा बलिदानी है
बांध कमर में लिया शिशु
         बलगाऐं थामीं थीं मुख में
दोनों हाथों की तलवारें,
          चमकीं थीं जब अंबर में
महारानी लक्ष्मीबाई ने
                वीरगति रण में पाई
देख अमर बलिदान मनु का
                पीछे आजादी आई
निरख काल भी कांपा जिसको
            अंग्रेजों की  कौन बिसात
मृत्यु तकआजाद रहा
            गोरी सेना को देकर मात
खुद को गोली मारी उसने
           अपनों की जब देखी घात
देश हमेशा गर्व करेगा
         तुझ पर चंद्रशेखर आजाद
भरी जवानी प्राण गवाएं ,
                  वीरों ने ली अंगड़ाई
मंगल पांडे गरजा और
            विद्रोही ज्वाला भड़काई
 राजगुरु ,सुखदेव ,भगत सिंह
               को कैसे हम भूल गए
थे कुलदीपक अपने घर के
               थे फांसी पर झूल गए
खड़ी मौत देखी जब सम्मुख
                 गोरे थे थर थर कांपे
पूरा भारत जाग उठा था ,
                   गौरों ने तेवर भांपे
क्रांतिवीर थे काल बन गए
                 अरि ने देखी बर्बादी
जान बचाना मुश्किल हो गया,
             तब सौंपी थी आजादी
कोई वीर जननी जब जब
            ऐसे वीरों को जनती है
तरुणाई तब गौरव गाथा
            बलिदानों की बनती है
भूले नहीं किसी को भी
            पर मात्र यही सच्चाई है
अमर शहीदी लाशों पर
           चढ़कर आजादी आई है
     
अशोक विद्रोही
 82 188 25 541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
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मन की व्यथा
जब बढ जाती है
तो सोचना पड़ता है |
      ये खोखले रिश्ते
       ये दोगले नाते
       इन्हें बेमन से
        ढोना पड़ता है |
 मन की व्यथा
जब बढ जाती है
तो सोचना पड़ता है |
       आँखों की नमी छिपाकर
       चेहरे पर मुस्कान चढाकर
         दिल में दर्द  काे दबाकर
         जग से कदम मिलाकर
        हँसकर चलना पड़ता है |
  मन की व्यथा
  जब बढ जाती है
   तो साेचना पड़ता है |
          सच बता नही सकते
            झूठ छिपा नही सकते
            खुलकर राे नही सकते
             बस चुप रहना पड़ता है|
    मन की व्यथा
    जब बढ जाती है
     तो साेचना पड़ता है |
             सच बता दिया तो
               दुनिया गिरा देगी
              झूठ छिपा लिया
               तो चाेट हिला देगी
              चुप चलना पड़ता है |
      मन की व्यथा
      जब बढ जाती है
      तो सोचना पड़ता है ,
      मन की व्यथा
      जब बढ जाती है
      तो साेचना पड़ता है |

 ✍🏻सीमा रानी
बुद्धि विहार
मुरादाबाद
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कहें कलाई चूम कर, राखी के ये तार।
तुच्छ हमारे सामने, मज़हब की दीवार।।

दूर नहीं आतंक का, जड़ से काम तमाम।
मेरी सारी राखियाँ, भारत माँ के नाम।।

गुमसुम पड़े गुलाल से, कहने लगा अबीर।
चल गालों पर खींच दें, प्यार भरी तस्वीर।‌।

कैसे भागेगा भला, संकट का यह दौर।
जब जनहित से भी परे, कुर्सी हो सिरमौर।।

हे भगवन है आपसे, मेरी यह मनुहार।
हर भाई को दीजिये, एक सुखद संसार।।

बहिनों का आशीष है, कभी न हो नाकाम।
चमके सूरज-चाँद सा, भैया तेरा नाम।।

 राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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रेशम के धागे से यह,
बंधा हुआ त्यौहार।
खुशियां लेकर आया है,
देखो कितनी अपार।।

आ न सको यदि राखी पर,
तो मत होना उदास।
दिल से जब याद करोगी,
मिलेगा भाई पास।।

दुनिया के हर रिश्ते से,
अलग है इसकी बात।
सबको कब है मिल पाती,
प्रेम की ये सौगात।।

बड़ा अनोखा होता है,
भाई बहन का प्यार।
बहन लुटाती भाई पर,
अपना सारा दुलार।।

डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद
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अबकी राखी भेज रही हूँ,भैया कुरियर के द्वारा,
कोरोना ने रस्ता रोका,सहमी गलियाँ चौबारा,

नाजुक डोरी रेशम के सँग,रोली अक्षत  टीका भी
 मेरे प्यारे  भैया तुम पर,बहना ने सब कुछ वारा।

दूरी मेरी मजबूरी है,वरना दौड़ी मैं आती,
तेरा जीवन भैया मुझको,अपने जीवन से प्यारा।

तीजो बीती सूनी सूनी,झूला कब सखियाँ झूलीं,
अगले बरस ही आऊँगी अब,लेने अपना सिंधारा

मैका देखे अरसा बीता,हँसी -खुशी सब गायब है
हे ईश्वर कुछ ऐसा करदे,खुशियाँ आयें दोबारा ।।

मीनाक्षी ठाकुर
मुरादाबाद
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सालों से जिसको दिल मे पाला है।
जीते-जी   उसने   मार   डाला  है।

मेरा   ही   खून   मेरा   क़ातिल  है,
खेल  क़िस्मत  का  ये  निराला  है।

कोई  अपना  नहीं   सिवा   उसके,
अब  की औलाद कितनी आला है।

जिस घरौंदे को हम सजाते थे,
उस घरौंदे में कितना जाला है।

खेला बचपन जहाँ था आँगन में,
लग गया उस जगह पे ताला है।

इन्दु,अमरोहा
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जिंदगी रंग हर पल बदलती रही।
साथ गम के ख़ुशी रोज़ चलती रही।।

शम्अ जो राह में तुम जला के गये।
आस में आपकी बुझती जलती रही।।

रिफ़अतें जो जहाँ में अता थी मुझे।
रेत सी हाथ से वो फिसलती रही।

क्या कहूँ दोस्तों दास्ताँ बस मिरी।
शायरी बनके दिल से निकलती रही।।

जो खिली रौशनी हर सुबह जाने क्यों।
शाम की आस में वो मचलती रही।।

क्या बचा अब है 'आनंद' इस दौर में।
लुट गया सब कलम फिर भी चलती रही।।

अरविंद कुमार शर्मा "आनंद"
मुरादाबाद
8979216691
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पूरी नहीं होने देगे उनकी कभी कामना,
कितने भी हो शत्रु हम डटकर करेंगे सामना।
जात-पात की भावना रख दो उठाकर ताक में,
आओ सब मिलकर करे हम देश की आराधना॥

करना है क्या कैसे, बताते रहे हैं जो।
भटके तो हमे राह, दिखाते रहे हैं जो॥
ऐसे गुरु के ऋण को, चुकाऐ भला कैसे।
दिया बनाके खुद को, जलाते रहे हैं जो॥

-जितेन्द्र कुमार 'जौली'
मुरादाबाद
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मैके में जो रोज मने ,त्योहार निराले थे ।
बाबुल तेरे आँगन के ,वो प्यार निराले थे ।
अबकी विपदा आई ऐसी ,सूने हैं घर द्वार ।
भाई के  घर जा न पाई ,इस राखी त्योहार ।
भैया तुमतो लेने मुझको ,आने वाले थे ।
बाबुल तेरे..............

मजबूरी में अपनी राखी, नही भेज मैं पाई ।
एक कलावा बाँध ले बीरन , सुन्दर लगे कलाई ।
राखी धागे क्या मिले तुम्हें, जो मैने डाले थे ?
बाबुल तेरे ......

डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद
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गली गली अब घूम रहे,
कोरोना लिए यमराज हैं
किसका मौका कल है ..
जाने किसका आज है ।।1।।

कुछ कतार लंबी देख ..
मना रहे क्यों जश्न हैं,
खोद रहे हैं कब्र अपनी
या करने सभी भस्म हैं ।।2।।

देखो प्रशान्त! है सब्र कहाँ
गैरत किसके पास है,
किसका नम्बर कब है..
जाने किसके बाद है ।।3।।

प्रशान्त मिश्र
राम गंगा विहार
मुरादाबाद 244001
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पहली मुहब्बत भुलाना मुश्किल है,
वफ़ा के दस्तूर निभाना मुश्किल है,

सूख जाये गर इश्क़ का चमन राशिद,
मुहब्बत के फूल खिलाना मुश्किल है,

दिलों की ख़्वाहिश जताना मुश्किल है,
जज़्बात ए रूह सुनाना मुश्किल है,

करो चाहे बेपनाह मुहब्बत किसी से,
उम्र भर उसका साथ निभाना मुश्किल है,

अपने गुनाहों को छुपाना मुश्किल है,
बदनामियों के दाग़ मिटाना मुश्किल है,

हो गये ज़माने के हालात कुछ ऐसे,
सच्चाई की राह पे चल पाना मुश्किल है,

टूटे दिलों को फिर मिलाना मुश्किल है,
आईने की दरार को मिटाना मुश्किल है,

बंटे रहोगे अगर बिरादरी और फ़िरक़ों में,
क़ौम को इक राह पे लाना मुश्किल है,

आयी है महामारी बच पाना मुश्किल है,
रूठा है ख़ुदा उसे मनाना मुश्किल है,

जाने कब ख़त्म होगा अज़ाबों का दौर,
सोचते रहो पर अंदाज़ा लगाना मुश्किल है,

ख़ुदा की नेमतों को झुठलाना मुश्किल है,
उसकी बन्दगी के फ़र्ज़ निभाना मुश्किल है

नहीं है ख़ुदा के सिवा कोई माबूद बेशक,
उसके सिवा कहीं सर झुकाना मुश्किल है,

राशिद मुरादाबादी
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जो समझ ले मौन को खुद,
मौन रहकर सब कहे।
सुखी सब संसार हो जब,
 मौन की धारा बहे।
मौन की हो गूँज पावन,
नाद ईश्वर मन्त्र सा।
मौन हो आधार वाचन,
मौन सारा जग रहे।
मौन पहुँचे हृदयतल तक,
मौन की शक्ति गहन।
जब बड़ी हो बात कहनी,
गूढ़ अर्थ मुखर रहे।
मौन भाषा प्रेम की है,
शब्द के बिन हो प्रसार।
हृदय सुन ले बात मन की,
 मौन सब भाषा रहे।।
मौन से कोई ना जीता,
 मौन अविजित है सदा।
मौन की भाषा प्रखर है,
 मौन सब बातें कहे।।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा,मुरादाबाद
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मिट्टी के बिकते ढांचे को क्यों कर कोई दोष लगेगा स्नेह तेल हो ज्ञान की बाती  ऐसा दीपक रोज जलेगा

मिलकर नहीं जलेंगे दीपक घिर घिर अंधकार आएगा
 तब प्रतिभा संपन्न से कल प्रश्न एक पूछा जाएगा

पथ प्रशस्त क्यों किया तिमिर का तुमको तो आलोक मिला था
मौन रहेंगे तब सोचेंगे जब जीवन ही व्यर्थ जिया था

जो शिक्षित है ज्ञानवान है पथ प्रदर्शक बन सकते हैं
जलते हुए दीप बनकर वे  तम की पीड़ा हर सकते हैं

अपनी प्रतिभा से आलोकित पगडंडी और  राह बनाएंं अंधकार को क्यों धिक्कार अच्छा है एक दीपक जलाएं
नकुल त्यागी
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