( 1)
गुन के तांई सब नवैं, जो पै अवगुन होय।
गाय दुधारू मरखनी, लात सहैं सब कोय ।।
लात सहैं सब कोय ,ध्यान न अवगुन जावै।
अवगुन होयं हजार, गुन दस तिन्हैं दबावैं।।
कहै 'सरन' कविराय , सुनो हो भैया बुनके।
गाय दुधारू लात, सहैं सब तांई गुन के ।।
( 2 )
गाढ़े दिना बिताइये, न सदा एक - सा कोय।
सूखा तरुवर भी फलै ,एक दिन ऐसा होय।।
एक दिन ऐसा होय, प्रभु का सुमिरन कीजै।
पर काजनि के हेत, सीस आगै धरि दीजै।।
कह 'सरन' कविराय , विपत में रहिये ठाढ़े ।
बहा लै जाय बहुरि , सुख नदिया दिनहुं गाढ़े।।
( 3 )
अन्यायी राजा मरै, मंत्री गुनाहगार।
दगाबाज सेवक मरै, मरै मतलबी यार ।।
मरै मतलबी यार, मरै वह पूत निगोड़ा।
मरै बैल गरियार, मरै वह अड़ियल घोड़ा।।
कहै 'सरन' कविराय ,मरै बदजात लुगाई ।
बेवफा खसम मरै, राजा मरै अन्यायी ।।
( 4 )
चदरी थोड़े दाम की, देय बहुत आराम।
सदा राखिये साथ मैं, आवै बिगड़े काम।।
आवै बिगड़े काम, तपै जो देही घामै।
तरुवर होय न पास, रहिए चदरी की छां मैं।।
कह 'सरन' कविराय, घिरै जो काली बदरी।
जंह लौं पार बसाय, बचावै तन को चदरी।।
( 5)
दीजै सीस उतारि कर, सकल उधारी चाम।
जीवै सोई जगत मैं, आवै दूजे काम ।।
आवै दूजे काम, गरब क्या देही करिए ।
तरुवर होय निपात, यहु दण्ड देह का भरिए।।
कहै 'सरन' कविराय, भलाई सबकी कीजै।
परमारथ के हेत, सीस आगै धरि दीजै।।
( 6 )
गोरे मुख मत जाइये, लखिये गुन जो होय।
जैसे बगुला कोकिला, रूप लखैं सब कोय।।
रूप लखैं सब कोय, कोकिला मन को मोहै।
बगुला तो बंचक भए, नित स्वारथ को जोहै।।
कहै 'सरन' कविराय, धूप के पीछे बौरे।
तजिये अवगुन होयं, रूप के मुखड़े गोरे।।
( 7 )
साईं ! दौलत के सगे, दौलत के हैं यार ।
बिनु दौलत कब बोलते, बेटा ,बेटी, नार।।
बेटा, बेटी, नार, भए स्वारथ के संगी।
छोड़ैं एक दिन साथ, हाथ जब होवै तंगी।।
कहै 'सरन' कविराय, सुनो ! मतलब के ताईं।
बनत -बनत बहु मीत, धन -दौलत हेतु, साईं।।
( 8 )
थाना बसिए निकट नहीं, फोकट मिलै जमीन।
जीवन सकल नरक बनै, मिलै नहीं तसकीन।।
मिलै नहीं तसकीन, चैन कब दिन को आवै ।
रक्षक ही भक्षक बनै, फिर चोर नजर न आवै।।
कहै 'सरन' कविराय, तजुर्बा यहु अजमाना ।
मरिए पर बसिए नहीं, होयै जहां भी थाना।।
( 9 )
पैसा सों सब होति है, बिनु पैसा सब जाय।
जब लगि पैसा हाथ मैं, तब लगि चिंता नाय।।
तब लगि चिंता नाय, पैसा सब रंग तोलै।
मुख तो भया निबोल, पैसा सब ढंग बोलै।।
कहै 'सरन' कविराय, करिश्मा यामै ऐसा ।
मन के मते न जाय, जब मति चलावै पैसा।।
( 10 )
गोरी मूरख तै भली , चतुरी कारी नार।
चतुर संवारै कुटुम को, मूरख देय उजार ।।
मूरख देय उजार , गुन तै हु कारी भावै।
निरगुन गोरी नार, यार कब चित पै आवै।।
कहै 'सरन' कविराय, रूप की दुनियां बौरी।
तजि गुन कारी नार, गहै जो अवगुन गोरी।।
( 11 )
बोली करकश भी भली, समया बोलै कोय।
जैसे कागा भोर का, सबद सुहावन होय।।
सबद सुहावन होय, समय पर काम सुहावत ।
बेसमया मधु राग, कबै कोकिल का भावत।।
कहै 'सरन' कविराय, समय की भली ठिठोली।
जैसा समया होय, बोलिये वैसी बोली।।
( 12 )
सीधा पैंडे चालिये, भले मिलै बहु फेर ।
चंगा घर मैं पहुंचिये, ऐसी भली अबेर।।
ऐसी भली अबेर , गहे जो भूले बटिया ।
उतै मिलैं बटमार, छिनै जर जोरू लुटिया।।
कहै 'सरन' कविराय, पकड़िये पैंडा छीदा।
जीवन बहु अनमोल, तौलि कै चलिये सीधा।।
( 13 )
संगत तिसकी बैठिये, अवगुन देवै काढ़।
जैसे सूप अनाज का, कर दे दूर कबाड़ ।।
कर दे दूर कबाड़, तन कंचन ज्यों विकसै ।
जग मैं होवै मान ,बोल ज्ञानी -सा निकसै।।
कहै 'सरन' कविराय,जगत की सिगरी रंगत।
जो चाहत तो गहिये, भले लोगनि की संगत।।
( 14 )
साईं, दौलत के बिना, झूठे सब ब्यौहार ।
दौलत होय तु डोलि है, संग मतलबी यार।।
संग मतलबी यार, नार सब पीछै डोलैं।
दौलत रहै न पास, बेई मुख से न बोलैं।।
कहै 'सरन' कविराय, जन दौलत हु के तांई।
असनाई सब जात, बिन दौलत हु के, सांई।।
( 15 )
चेला धुर मूरख मरै, अरु मरिए गुरु लबार ।
प्रपंची साधू मरै, गरजी साहूकार ।।
गरजी साहूकार, मरै वह कुलटा नारी।
मरै छिछोरा पूत, पुरुष मरै व्यभिचारी ।।
कहै 'सरन' कविराय, मरै वह कंत गहेला।
गुरु को दाग लगाय, मरै धुर मूरख चेला।।
पाद टिप्पणी : बुनके = बुनकर, जुलाहा। गाढ़े = बुरे, दुख के। गरियार= सुस्त । निपात = पतझड़। धूप = चमक। तसकीन = शांति।
डॉ. जगदीश शरण
डी- 217, प्रेमनगर, लाइनपार, माता मंदिर गली, मुरादाबाद-- 244001
उत्तर प्रदेश ,भारत
मोबाइल : 983730 8657
Beautifully written
जवाब देंहटाएंBeautifully written
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर..
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