"अरे सुमन ये स्कूल नहीं विद्या की दुकानें हैं। वहाँ किताब से लेकर कपड़े तक सब स्कूल में ही बिकते हैं। और पढ़ाई...!! उसके लिए तो बच्चों को टूशन पढ़ना पड़ता है। इस बड़े व्यापार की दुकान से हम कुछ खरीद सकें ये हम गरीबों के बस की बात नहीं है सुमन ये तो अमीरों के चोचले हैं", राधेश्याम ने समझाते हुए कहा।
"फिर क्या हमारे बच्चे अनपढ़ ही रह जाएंगे जी?" सुमन ने उदास होकर सवाल किया।
"अनपढ़ क्यों रह जाएंगे? हमारे लिए सरकार ने खोले हैं ना कितने सारे स्कूल। और फिर शिक्षा प्रतिभा होने से हासिल की जाती है पैसे से खरीदा हुआ हुनर कभी वक़्त पर काम नहीं आता", राधेश्याम ने कहा और दोनों अपनी बेबसी पर जबरदस्ती मुस्कुरा दिए।
नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
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