सोमवार, 3 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था "हिंदी साहित्य संगम" की ओर से माह के प्रथम रविवार को काव्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । रविवार 2 अगस्त 2020 को आयोजित ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ मीना नकवी, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, डॉ मीना कौल, योगेंद्र वर्मा व्योम, श्री कृष्ण शुक्ल, अशोक विद्रोही, सीमा रानी, राजीव प्रखर, डॉ ममता सिंह, मीनाक्षी ठाकुर, इंदु रानी, अरविंद कुमार शर्मा आनन्द, जितेंद्र कुमार जौली, डॉ प्रीति हुंकार, प्रशांत मिश्र, राशिद मुरादाबादी, नृपेंद्र शर्मा सागर और नकुल त्यागी की रचनाएं ----


सत्य घोलो आचमन में।
अन्यथा क्या है हवन में।।

युग ये दानवराज का है।
नीति है जिसकी दमन में।।

नृत्य बरखा कर रही है।
गीत हो जैसे पवन में।।

याद फि़र आया है कोई।
कुछ नमी सी है नयन में।।

क्यों अँधेरों से डरें हम।
चाँद तारे हैं गगन में।।

कोई मन में यूँ समाया।
जैसे खु़शबू हो चमन मे।।

तुम पलट आओगे इक दिन।
दृढ़  है यह विश्वास  मन में।।

हों सुकोमल भाव 'मीना'।
वरना क्या रखा है फ़न में।।
 डॉ.मीना नक़वी
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तन   वैरागी  , मन  वैरागी
जीवन का हर क्षण वैरागी
जीवन को जीवन पहनाने
सारा  घर  आंगन   वैरागी।
       
मेरे   रोम-रोम   में  बसतीं
सतत प्रेमकी  अभिलाषाएं
मन वीणा  की  झंकारों  से
झंकृत  होती  दसों  दिशाएँ
सच कहता हूँ मानवता को
हुआ सकल  जीवन वैरागी।
तन वैरागी----------------

देख -देख  भूखे  प्राणी  को
मुझको भारी  दुख  होता है
सुनकर आतंकित वाणी को
मेरा    अंतर्मन     रोता    है
हरदम सबका  साथ निभाने
व्याकुल  अपनापन  वैरागी।
तन वैरागी-----------------

धर्म  जाति   के   संघर्षों  में
सारी  दुनियाँ  ही उलझी  है
अहंकार  की  घोर   समस्या
किसके  सुलझाए सुलझी है
बनी  हुई  है आज  स्वयं  ही
मेरी  सघन   लगन    वैरागी।
तन वैरागी-----------------

नींद   नहीं  आती  रातों  को
हरपल    बेचैनी   रहती    है
सारे जग की  करुण कहानी
आकर  कानों  में  कहती  है
मेरे  साथ  हो  गया अब  तो
चंदन   वन   उपवन  वैरागी
तन वैरागी-----------------

केवल   वही  शक्तिशाली  है
हर  कोई  यह  दंभ भर  रहा
अपनी गलती को झुठलाकर
औरों पर  इल्ज़ाम   धर रहा
इन्हें   राह  दिखलाने   वालों
को    मेरा    वंदन    वैरागी।
तन वैरागी-----------------

वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद 244001
 9719275453
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  जिंदगी आजकल
  कोरोना के खौफ में गुजर रही है
  हर कदम पर बीमारी
  एक नयी साजिश रच रही है।
  वायरस के बोझ से
  हर व्यवस्था कुचल रही है
  निर्दोषों की चीख से
  मानवता भी दहल रही है।
  महामारी की आग में
  हर इच्छा ही जल रही है
  दूर देश से उठी आग
  कितनी साँसें निगल रही है।
  आपसी सद्भाव पर
  संदेह की काली छाया पड़ रही है
  धर्म स्थल पर भी
  शत्रु की काली दृष्टि पड़ रही है।
  कौन है जिसने
  यह अवांछित कर दिया
 अपने ही घर में
 हमें असुरक्षित कर दिया।
 आखिर कब तक
 जिंदगी कोरोना के साए में गुजरेगी
 आँखें कब तक
 अपने सपनों को तरसेंगी।
 कभी कभी लगता है
 इसकी कोई दुआ जरूर आएगी
 महामारी छोड़ पीछे
 मीना जिंदगी आगे बढ़ जाएगी।।
     
डाॅ मीना कौल
मुरादाबाद
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चिन्ताओं के ऊसर में फिर
उगीं प्रार्थनाएँ

अब क्या होगा कैसे होगा
प्रश्न बहुत सारे
बढ़ा रहे आशंकाओं के
पल-पल अँधियारे
उम्मीदों की एक किरन-सी
लगीं प्रार्थनाएँ

बिना कहे सूनी आँखों ने
सबकुछ बता दिया
विषम समय की पीड़ाओं का
जब अनुवाद किया
समझाने को मन के भीतर
जगीं प्रार्थनाएँ

धीरज रख हालात ज़ल्द ही
निश्चित बदलेंगे
इन्हीं उलझनों से सुलझन के
रस्ते निकलेंगे
कहें, हरेपन की ख़ुशबू में
पगीं प्रार्थनाएँ

 योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद
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पूरी हो मन की अभिलाषा जन जन का कल्याण हो।
जन्मभूमि पर रामलला के मंदिर का निर्माण हो ।

पूर्ण हो गई आज प्रतीक्षा, मंदिर के निर्माण की ।
युगों युगों के संघर्षों की, कोटि कोटि बलिदान की ।
अखिल विश्व में सत्य सनातन, के ध्वज की पहचान की
बने निशानी अब यह मंदिर, भारत के सम्मान की ।।
राम लला के मंदिर की अब अखिल विश्व में शान हो।
जन्मभूमि पर रामलला के मंदिर का निर्माण हो।

रामलला हम सब आयेंगे, मंदिर वहीं बनायेंगे ।
राम शिलाएं जोड़ जोड़कर भव्य भवन बनवायेंगे।
राम लला की प्राण प्रतिष्ठा मंदिर में करवायेंगे ।
घंटे और घड़ियाल बजाकर राम नाम धुन गायेंगे।
राम राम जय राम राम मय रमते मन और प्राण हो।
जन्मभूमि पर रामलला के मंदिर का निर्माण हो ।

श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG -69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद 244001
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नेता कहतेआजादी,
          चरखे से भारत में आई!
 नेहरू गांधी की खादी
        और सत्य अहिंसा से पाई!
 नेताओं ने इसकी खातिर,
                कितने डंडे खाए हैं
जीवन के अनमोल बरस
            जेलों की भेंट चढ़ाए हैं
किंतु सत्य ये नहीं है ,जो कि
               साफ दिखाई देता है
लाखों हैं बलिदान हुए,
            इतिहास गवाही देता है
जलिया वाले बाग की गाथा,
               क्यों हो गई पुरानी है
गूंज रहीं चींखें कहतीं,
         बच्चा-बच्चा बलिदानी है
बांध कमर में लिया शिशु
         बलगाऐं थामीं थीं मुख में
दोनों हाथों की तलवारें,
          चमकीं थीं जब अंबर में
महारानी लक्ष्मीबाई ने
                वीरगति रण में पाई
देख अमर बलिदान मनु का
                पीछे आजादी आई
निरख काल भी कांपा जिसको
            अंग्रेजों की  कौन बिसात
मृत्यु तकआजाद रहा
            गोरी सेना को देकर मात
खुद को गोली मारी उसने
           अपनों की जब देखी घात
देश हमेशा गर्व करेगा
         तुझ पर चंद्रशेखर आजाद
भरी जवानी प्राण गवाएं ,
                  वीरों ने ली अंगड़ाई
मंगल पांडे गरजा और
            विद्रोही ज्वाला भड़काई
 राजगुरु ,सुखदेव ,भगत सिंह
               को कैसे हम भूल गए
थे कुलदीपक अपने घर के
               थे फांसी पर झूल गए
खड़ी मौत देखी जब सम्मुख
                 गोरे थे थर थर कांपे
पूरा भारत जाग उठा था ,
                   गौरों ने तेवर भांपे
क्रांतिवीर थे काल बन गए
                 अरि ने देखी बर्बादी
जान बचाना मुश्किल हो गया,
             तब सौंपी थी आजादी
कोई वीर जननी जब जब
            ऐसे वीरों को जनती है
तरुणाई तब गौरव गाथा
            बलिदानों की बनती है
भूले नहीं किसी को भी
            पर मात्र यही सच्चाई है
अमर शहीदी लाशों पर
           चढ़कर आजादी आई है
     
अशोक विद्रोही
 82 188 25 541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
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मन की व्यथा
जब बढ जाती है
तो सोचना पड़ता है |
      ये खोखले रिश्ते
       ये दोगले नाते
       इन्हें बेमन से
        ढोना पड़ता है |
 मन की व्यथा
जब बढ जाती है
तो सोचना पड़ता है |
       आँखों की नमी छिपाकर
       चेहरे पर मुस्कान चढाकर
         दिल में दर्द  काे दबाकर
         जग से कदम मिलाकर
        हँसकर चलना पड़ता है |
  मन की व्यथा
  जब बढ जाती है
   तो साेचना पड़ता है |
          सच बता नही सकते
            झूठ छिपा नही सकते
            खुलकर राे नही सकते
             बस चुप रहना पड़ता है|
    मन की व्यथा
    जब बढ जाती है
     तो साेचना पड़ता है |
             सच बता दिया तो
               दुनिया गिरा देगी
              झूठ छिपा लिया
               तो चाेट हिला देगी
              चुप चलना पड़ता है |
      मन की व्यथा
      जब बढ जाती है
      तो सोचना पड़ता है ,
      मन की व्यथा
      जब बढ जाती है
      तो साेचना पड़ता है |

 ✍🏻सीमा रानी
बुद्धि विहार
मुरादाबाद
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कहें कलाई चूम कर, राखी के ये तार।
तुच्छ हमारे सामने, मज़हब की दीवार।।

दूर नहीं आतंक का, जड़ से काम तमाम।
मेरी सारी राखियाँ, भारत माँ के नाम।।

गुमसुम पड़े गुलाल से, कहने लगा अबीर।
चल गालों पर खींच दें, प्यार भरी तस्वीर।‌।

कैसे भागेगा भला, संकट का यह दौर।
जब जनहित से भी परे, कुर्सी हो सिरमौर।।

हे भगवन है आपसे, मेरी यह मनुहार।
हर भाई को दीजिये, एक सुखद संसार।।

बहिनों का आशीष है, कभी न हो नाकाम।
चमके सूरज-चाँद सा, भैया तेरा नाम।।

 राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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रेशम के धागे से यह,
बंधा हुआ त्यौहार।
खुशियां लेकर आया है,
देखो कितनी अपार।।

आ न सको यदि राखी पर,
तो मत होना उदास।
दिल से जब याद करोगी,
मिलेगा भाई पास।।

दुनिया के हर रिश्ते से,
अलग है इसकी बात।
सबको कब है मिल पाती,
प्रेम की ये सौगात।।

बड़ा अनोखा होता है,
भाई बहन का प्यार।
बहन लुटाती भाई पर,
अपना सारा दुलार।।

डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद
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अबकी राखी भेज रही हूँ,भैया कुरियर के द्वारा,
कोरोना ने रस्ता रोका,सहमी गलियाँ चौबारा,

नाजुक डोरी रेशम के सँग,रोली अक्षत  टीका भी
 मेरे प्यारे  भैया तुम पर,बहना ने सब कुछ वारा।

दूरी मेरी मजबूरी है,वरना दौड़ी मैं आती,
तेरा जीवन भैया मुझको,अपने जीवन से प्यारा।

तीजो बीती सूनी सूनी,झूला कब सखियाँ झूलीं,
अगले बरस ही आऊँगी अब,लेने अपना सिंधारा

मैका देखे अरसा बीता,हँसी -खुशी सब गायब है
हे ईश्वर कुछ ऐसा करदे,खुशियाँ आयें दोबारा ।।

मीनाक्षी ठाकुर
मुरादाबाद
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सालों से जिसको दिल मे पाला है।
जीते-जी   उसने   मार   डाला  है।

मेरा   ही   खून   मेरा   क़ातिल  है,
खेल  क़िस्मत  का  ये  निराला  है।

कोई  अपना  नहीं   सिवा   उसके,
अब  की औलाद कितनी आला है।

जिस घरौंदे को हम सजाते थे,
उस घरौंदे में कितना जाला है।

खेला बचपन जहाँ था आँगन में,
लग गया उस जगह पे ताला है।

इन्दु,अमरोहा
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जिंदगी रंग हर पल बदलती रही।
साथ गम के ख़ुशी रोज़ चलती रही।।

शम्अ जो राह में तुम जला के गये।
आस में आपकी बुझती जलती रही।।

रिफ़अतें जो जहाँ में अता थी मुझे।
रेत सी हाथ से वो फिसलती रही।

क्या कहूँ दोस्तों दास्ताँ बस मिरी।
शायरी बनके दिल से निकलती रही।।

जो खिली रौशनी हर सुबह जाने क्यों।
शाम की आस में वो मचलती रही।।

क्या बचा अब है 'आनंद' इस दौर में।
लुट गया सब कलम फिर भी चलती रही।।

अरविंद कुमार शर्मा "आनंद"
मुरादाबाद
8979216691
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पूरी नहीं होने देगे उनकी कभी कामना,
कितने भी हो शत्रु हम डटकर करेंगे सामना।
जात-पात की भावना रख दो उठाकर ताक में,
आओ सब मिलकर करे हम देश की आराधना॥

करना है क्या कैसे, बताते रहे हैं जो।
भटके तो हमे राह, दिखाते रहे हैं जो॥
ऐसे गुरु के ऋण को, चुकाऐ भला कैसे।
दिया बनाके खुद को, जलाते रहे हैं जो॥

-जितेन्द्र कुमार 'जौली'
मुरादाबाद
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मैके में जो रोज मने ,त्योहार निराले थे ।
बाबुल तेरे आँगन के ,वो प्यार निराले थे ।
अबकी विपदा आई ऐसी ,सूने हैं घर द्वार ।
भाई के  घर जा न पाई ,इस राखी त्योहार ।
भैया तुमतो लेने मुझको ,आने वाले थे ।
बाबुल तेरे..............

मजबूरी में अपनी राखी, नही भेज मैं पाई ।
एक कलावा बाँध ले बीरन , सुन्दर लगे कलाई ।
राखी धागे क्या मिले तुम्हें, जो मैने डाले थे ?
बाबुल तेरे ......

डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद
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गली गली अब घूम रहे,
कोरोना लिए यमराज हैं
किसका मौका कल है ..
जाने किसका आज है ।।1।।

कुछ कतार लंबी देख ..
मना रहे क्यों जश्न हैं,
खोद रहे हैं कब्र अपनी
या करने सभी भस्म हैं ।।2।।

देखो प्रशान्त! है सब्र कहाँ
गैरत किसके पास है,
किसका नम्बर कब है..
जाने किसके बाद है ।।3।।

प्रशान्त मिश्र
राम गंगा विहार
मुरादाबाद 244001
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पहली मुहब्बत भुलाना मुश्किल है,
वफ़ा के दस्तूर निभाना मुश्किल है,

सूख जाये गर इश्क़ का चमन राशिद,
मुहब्बत के फूल खिलाना मुश्किल है,

दिलों की ख़्वाहिश जताना मुश्किल है,
जज़्बात ए रूह सुनाना मुश्किल है,

करो चाहे बेपनाह मुहब्बत किसी से,
उम्र भर उसका साथ निभाना मुश्किल है,

अपने गुनाहों को छुपाना मुश्किल है,
बदनामियों के दाग़ मिटाना मुश्किल है,

हो गये ज़माने के हालात कुछ ऐसे,
सच्चाई की राह पे चल पाना मुश्किल है,

टूटे दिलों को फिर मिलाना मुश्किल है,
आईने की दरार को मिटाना मुश्किल है,

बंटे रहोगे अगर बिरादरी और फ़िरक़ों में,
क़ौम को इक राह पे लाना मुश्किल है,

आयी है महामारी बच पाना मुश्किल है,
रूठा है ख़ुदा उसे मनाना मुश्किल है,

जाने कब ख़त्म होगा अज़ाबों का दौर,
सोचते रहो पर अंदाज़ा लगाना मुश्किल है,

ख़ुदा की नेमतों को झुठलाना मुश्किल है,
उसकी बन्दगी के फ़र्ज़ निभाना मुश्किल है

नहीं है ख़ुदा के सिवा कोई माबूद बेशक,
उसके सिवा कहीं सर झुकाना मुश्किल है,

राशिद मुरादाबादी
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जो समझ ले मौन को खुद,
मौन रहकर सब कहे।
सुखी सब संसार हो जब,
 मौन की धारा बहे।
मौन की हो गूँज पावन,
नाद ईश्वर मन्त्र सा।
मौन हो आधार वाचन,
मौन सारा जग रहे।
मौन पहुँचे हृदयतल तक,
मौन की शक्ति गहन।
जब बड़ी हो बात कहनी,
गूढ़ अर्थ मुखर रहे।
मौन भाषा प्रेम की है,
शब्द के बिन हो प्रसार।
हृदय सुन ले बात मन की,
 मौन सब भाषा रहे।।
मौन से कोई ना जीता,
 मौन अविजित है सदा।
मौन की भाषा प्रखर है,
 मौन सब बातें कहे।।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा,मुरादाबाद
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मिट्टी के बिकते ढांचे को क्यों कर कोई दोष लगेगा स्नेह तेल हो ज्ञान की बाती  ऐसा दीपक रोज जलेगा

मिलकर नहीं जलेंगे दीपक घिर घिर अंधकार आएगा
 तब प्रतिभा संपन्न से कल प्रश्न एक पूछा जाएगा

पथ प्रशस्त क्यों किया तिमिर का तुमको तो आलोक मिला था
मौन रहेंगे तब सोचेंगे जब जीवन ही व्यर्थ जिया था

जो शिक्षित है ज्ञानवान है पथ प्रदर्शक बन सकते हैं
जलते हुए दीप बनकर वे  तम की पीड़ा हर सकते हैं

अपनी प्रतिभा से आलोकित पगडंडी और  राह बनाएंं अंधकार को क्यों धिक्कार अच्छा है एक दीपक जलाएं
नकुल त्यागी
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