... "बुढ़िया कब तक जियेगी मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है... इसकी पेंशन और मकान का लालच न होता तो कब की निकाल कर बाहर कर देती" ! मधु की आवाज सुनकर सुहास के कानों में जैसे किसी ने पिघला शीशा उड़ेल दिया हो.......
वह सुबक उठी...!! . ऐसा अक्सर होता रहता था... ऐसा नहीं है कि मनोज को पता न हो
.......सुहास ने पूरा जीवन ही होम कर दिया था इन्हें बड़ा करने और पैरों पर खड़ा करने में... उसने कभी नहीं सोचा था कि जीवन में ऐसा दिन भी आएगा । माता-पिता की दुर्घटना में मृत्यु के बाद अपने सपनों को तिलांजलि देकर पांच भाई बहनों की जिम्मेदारी स्वय ही संभाल ली थी ।
तीन भाई और दो बहन ..सबसे छोटा मनोज तो दो ही साल का था उस समय ......
....सुहास दूसरे नंबर की थी किराए का मकान....
********************
शाम 7:00 बजे का समय दिया था उसने----- होटल मानसिंह में रुका था-बद्री
अब मिलने का कोई औचित्य नजर नहीं आता... फिर भी वह क्या कहना चाहता है
यह तो देखना ही था ।
सूहास का रिटायरमेंट हुए 10 साल हो गए थे 70 साल की वृद्धा को आज युवती होने का एहसास हो रहा था । इसलिए बन संवर के तैयार हो गई ।
एक समय था दोनों एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते थे .... शादी का प्रस्ताव बद्री ने ही रखा ! सुहास ने साफ कह दिया यह संभव नहीं.. मेरे ऊपर बहुत जिम्मेदारी है!!
फिर बद्री को कनाडा में जॉब मिल गई......
गाड़ी निकलवाई और 6:00 बजे ही होटल मानसिंह के कमरा नंबर 205 पर दस्तक दी..... सोचा था कोई स्त्री दरवाजा खोलेगी ! परंतु 75 साल के बद्री दत्त जोशी ने ही दरवाजा खोला उम्र कहां से कहां पहुंच गई थी परंतु चेहरे के हाव-भाव मुस्कुराहट वैसे के वैसे ही थे ....!!!
..."कनाडा से कब लौटे?"
"कल 12:00 बजे ही तो लौटा"
'कैसे हो?..." तुम्हारी पत्नी कहां है?... 'बच्चे कितने हैं?"सुहास ने एक ही सांस में कई प्रश्न पूछ लिये
बाप रे एक साथ इतने प्रश्न????
..."मेरी छोड़ो अपनी सुनाओ" पति कहां है?".... बच्चे कितने हैं?"बंद्री ने पूछा... " "कैसा परिवार और बच्चे ?" जब शादी ही नहीं की... सुहास के स्वर में गहरी उदासी थी..!!! मैं जैसे पहले थी वैसे ही अब हूं...
"अपनी सुनाओ"!
"मैंने भी नहीं की" शादी"!
.... क्यों?
"प्रस्ताव तो रखा था...!!
.... किस से करता ! तुम जो नहीं मिली !!
"तुमने क्यों नहीं की शादी??"
......."पहले तो बड़ी दीदी की शादी नहीं हुई"....!! फिर....!. दीदी की हो गई तो... तो....!!
.....सबकी जिम्मेदारियां पूरी करते-करते समय कब उड़ता चला गया... पता ही नहीं चला...!
फिर तुम जो नहीं थे !! कहते-कहते सुहास का स्वर भारी हो गया..!!
... अचानक वातावरण बोझिल हो गया दोनों एक दूसरे को गहराई से देखते ही रह गए.... न कोई गिला शिकवा ना कोई संवाद.. न कोई विवाद !
भावों और संवेदनाओं का ज्वार ऐसा उठा .... आंखों से .... आंसुओं का ...सैलाब ! दोनों डूब कर एक दूजे में समां गये ...!!!!
अशोक विद्रोही
82 188 25 541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें