रामराज यदि आ जाए तो
जग चन्दन कानन होगा
अंतर्मन में प्रेम बसे तो
घर-घर वृन्दावन होगा
दैहिक-दैविक ताप मिटेंगे
भौतिक ताप न व्यापेंगे
मनुज-मनुज में प्यार परस्पर
नीति वेद की जापेंगे
असमय मृत्यु कभी ना होगी
दीन-हीनता दूर रहे
शुभ लक्षण घर-घर में होंगे
हर खाई को पाटेंगे
धर्म परायण,पुण्य शीलता
वंदित घर-आँगन होगा
नर-नारी होंगे उदार सब
नीति व्रती परहितकारी
विद्वानों की पूजा होगी
पति-पत्नी धर्माचारी।।
कर्म-वचन-मन से भर देंगे
जीवन को सुख-सौरभ से
फल-फूलों से तरु महकेंगे
गज-पंचानन सँग होंगे
खग-मृग में भी प्रेम बढ़ेगा
जीवन-धन पावन होगा।।
लता-विटप मधुरस छलकाएँ
धेनु,दुग्ध मन चाहा दें
फसलों से धरती लहराए
यज्ञाहुतियाँ-स्वाहा दें
हिम शिखरों से माणिक छिटकें
सरिताएँ निर्मल जल दें
कलयुग में सतयुग आ जाए
ऐसी शीतल छाया दें
तट पर सागर रत्न उछालें
जलद तृप्त सावन होगा
ढूँढ़ रहा मैं रामराज को
संकल्पों की राहों में
नहीं असम्भव कुछ भी मित्रो
नवजीवन की चाहों में
मैं कबीर का पथ अनुगामी
लड़ता नित्य अंधेरों से
सूरज,चंदा - सा बन जाता
हर बिछुड़े की बाँहों में
विश्वासों के दीप जलेंगे
हृदय स्वस्तिवाचन होगा
डॉ राकेश चक्र
90 बी शिवपुरी
मुरादाबाद -244-001
मोबा.9456201857
शानदार
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका ।
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