बुधवार, 5 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की लघुकथा ---------व्यवसायी कौन


दरवाजे की घंटी बजते ही योगेश बाबू ने दरवाजा खोला, देखा तीन चार लोगों के साथ श्रीनाथ बाबू खड़े थे।
अरे श्रीनाथ जी, कहिए कैसे आना हुआ।
योगेश बाबू, शहर में सत्संग होना है। बहुत बड़े.धर्मगुरु आ रहे हैं। एक सप्ताह का भागवत कार्यक्रम है। आप भी सामर्थ्यानुसार कुछ योगदान कीजिए, श्रीनाथ जी बोले।
हुम्म, कुछ सोचते हुए योगेश जी बोले ठीक है, पाँच सौ एक की रसीद काट दीजिए।
अरे योगेश बाबू एक सप्ताह का कार्यक्रम है, लाखों का खर्च है आप अपनी क्षमतानुसार कुछ सम्मानजनक योगदान कीजिए, श्रीनाथ जी बोले।
योगेश जी थोड़ी देर सोचते रहे, फिर मानों उन्हें कुछ रास्ता सूझ गया, उन्होंने श्रीनाथ जी को अलग से एक ओर बुलाया और बोले देखिए श्रीनाथ जी, ये धर्मगुरु भी अब.व्यवसायी हो गये हैं। ये भागवत आदि के कार्यक्रम तो इनका धंधा है। आप ऐसा करो एक स्टाल ब्रास के पूजा आइटम्स का मेरा लगवा दो। जो कमाई होगी उसका आधा महाराज जी को मिल जायेगा।
अगर महाराज जी अपने प्रवचन में इन पूजा आइटम्स को खरीद कर एक दूसरे को उपहार देकर पुण्य कमाने का जिक्र कर देंगे तो समझ लो चार पाँच लाख की बिक्री हो जायेगी और चालीस पचास हजार मुनाफा हो ही जायेगा।
सारी बात सुनकर श्रीनाथ जी हतप्रभ रह गये। कुछ सम्हलकर बोले: ठीक है योगेश बाबू, आयोजकों से पूछकर आपको बताऊँगा।
यह कहकर श्रीनाथ बाबू चल दिये।
जाते जाते वह यही सोचते जा रहे थे कि व्यवसायी कौन है, महाराज जी या योगेश बाबू।

श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG -69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद। उ.प्र.
 मोबाइल नं. 9456641400

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