शुक्रवार, 13 अक्टूबर 2023

मुरादाबाद मंडल के चंदौसी (जनपद संभल)निवासी साहित्यकार अतुल मिश्र का व्यंग्य....हमारे शहर के निराले कुत्ते...



धर्मराज युधिष्टिर ने जो सबसे गलत काम किया, वह यह था कि वे खुद तो स्वर्ग की सीड़ियां पार करके चले गए, मगर अपने उस कुत्ते को पीछे ही छोड़ गए, जिसके नाम को लेकर अभी भी एकमत होने के चक्कर में इतिहासकार एकमत नहीं हो पाए हैं. अखबारों में अपना नाम ना छापने की शर्त पर कुछ इतिहासकारों ने यह मानने का दावा किया है कि इंडिया में कुत्तों का आदि पूर्वज वही कुत्ता था और बाकी सब जो देश भर में घूम रहे हैं, वे उसके वंशज हैं. प्राचीन काल में कुत्तों को वह सम्मान प्राप्त था, जो वफादारी की कमी होने की वजह से आदमी का भी नहीं रहा होगा. बेवफाई की कसमें खाने पर लोग कहा करते थे कि "खा, अपने कुत्ते की कसम कि तूने बेवफाई नहीं की." बाद में यही बेवफाई शायरी में महबूबा के लिए इस्तेमाल की जाने लगी.

    हमारे शहर में नगर पालिका होने की वजह से कुत्तों की पैदावार भी खूब हो रही है. ऐसा क्यों है, यह रिसर्च का विषय होने के बावज़ूद अभी तक किसी शोधार्थी के गाइड के दिमाग में नहीं आ पाया है. रास्ता चलते कौन सा कुत्ता, कब काट ले, कुछ नहीं कहा जा सकता. जो लोग कुत्तों से डरते हुए साइड में निकलने की कोशिशें करते हैं, कुत्ते सबसे ज़्यादा उसी शख्स की तरफ मुखातिब हो लेते हैं और तब अपनी पैंट में मौजूद टांगों की रक्षा के लिए उसके अन्दर से भर्राई सी आवाज़ निकलती है कि "बचा लो, यार, यह किन सज्जन का कुत्ता है ?" वह आदमी इस बात को जानता है कि अगर "यह किस कमबख्त का कुत्ता है," जैसी कोई बात बोल दी, तो वह कभी भी अपने कुत्ते से कटवाए बिना बाज नहीं आएगा.

    हमारी कॉलोनी को ही ले लीजिये. ऐसी-ऐसी नस्लों के कुत्ते लोगों ने पाले हुए हैं कि वे लाख 'हट-हट' या 'शीट-शीट' जैसी ध्वनियां करने के बावज़ूद, जब तक अच्छे भले आदमी की रही सही जान नहीं ले लेंगे, उसे यूं ही घूरते रहेंगे. इन कुत्तों से डरकर भागने  की ज़रा सी बात अगर मन में भी सोच ली, तो समझें कि वे या तो शराफत से आपको आपके घर के अन्दर तक दौड़ाकर आयेंगे या बहुत मूड में हुए, तो ऐसी जगह पर काटेंगे कि आप यह बताने की पोज़ीशन में भी नहीं रहेंगे कि यहीं पर क्यों काटा, अन्य किसी उपयुक्त स्थान पर क्यों नहीं ?

    भौंकने की अवस्था में काटने के संकेत देने पर कुत्ते को चुपाने का एक ही तरीका है और जो बहुत कारगर माना जाता है. जितनी जोर से कुत्ता भौंक रहा है, उससे भी जोर से अगर भौंक दिया जाये, तो कुत्ते को थोड़ी सी तसल्ली मिल जाती है कि आदमी और कुत्ते का कॉम्बिनेशन है, इसलिए इसे ना काटा जाये तो ही सही है. ना काटे जाने वाला आदमी अपनी इस गुप्त विद्या को अपने बच्चों को भी सिखा जाता है, ताकि इंजेक्शनों का खर्चा बचाने के काम आये. अब कोई कुत्ता पागल है या नहीं है, यह जानने के चक्कर में कभी नहीं पड़ना चाहिए, वरना हर कुता अपने आप को पागल समझने की गुस्ताखी के एवज़ में इस कदर काट खाता है कि इंजेक्शन लगाने लायक जगह भी ढूंढनी मुश्किल हो जाये कि अब ये कहां लगाएं ?

✍️अतुल मिश्र 

श्री धन्वंतरि फार्मेसी 

मौ. बड़ा महादेव 

चन्दौसी, जनपद सम्भल 

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार ज़मीर दरवेश की ग़ज़ल ...तोड़ना है घमंड पर्वत का, चल इसे रास्ता किया जाए!

 


جب کوئی فیصلہ کِیا جائے

دل سے بھی مشورہ کِیا جائے۔

जब कोई फ़ैसला किया जाए,

 दिल से भी मशविरा किया जाए।

خود کو ہی آئِنہ دکھانا ہے،

 آ  تجھے  آئِنہ  کِیا  جائے۔

ख़ुद को ही आइना दिखाना है,

 आ तुझे आइना किया जाए ।

کی ہے تا زندگی وفا پہ وفا ،

 اور اے عشق کیا کِیا جائے۔

की है ता ज़िन्दगी वफ़ा  पे वफ़ा,

 और ए इश्क़ क्या किया जाए।

 یہاں ظالم کے ہوش اڑائے ہیں،

یہاں  سجدہ ادا کِیا جائے۔

यहां ज़ालिम के होश उड़ाएं हैं,

 यहां सजदा अदा किया जाए।

توڑنا ہے گھمنڈ پربت کا ،

چل اسے راستہ کِیا جائے

तोड़ना है घमंड पर्वत का,

 चल इसे रास्ता किया जाए!

ہے جو بے بس کے آنسوؤں کی لڑی،

 اس  کو  موجِ  بلا   کِیا  جائے !

हैं जो बेबस के आंसूओं की लड़ी,

 उसको मौजे-बला किया जाए।

✍️ज़मीर दरवेश                ضمیر درویش

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में गुरुग्राम निवासी) के साहित्यकार डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल की बाल कविता ....गीत लिखें हम प्यार के



गुरुवार, 12 अक्टूबर 2023

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार राजीव कुमार भृगु का बाल गीत ....चलो मेला चलें

 


मेला एक लगा है भारी,

खेल खिलौने न्यारे।

मन को रोक न पाओगे तुम 

लगते हैं सब प्यारे।


चलो खरीदें ये लाला है,

इनका पेट बड़ा है।

ये किसान है काॅंधे पर हल,

बैलों बीच खड़ा है।


ये सैनिक, बंदूक हाथ में,

सीमा पार निहारे ।


चलो चलें आगे भी घूमें,

मेला रंग बिरंगा।

वहाॅं खड़े नेता जी देखो,

थामे हाथ तिरंगा।


उनके पीछे खड़ा भिखारी,

दोनों हाथ पसारे।


चलो वहाॅं पर चलें देख लें,

भीड़ लगी है भारी।

अपने तन को बेच रही है 

बेटी एक बिचारी।


चढ़ी बाॅंस पर नाच दिखाती

भूखे तन से हारे।


सब धर्मों के कैसे कैसे ,

प्यारे ग्रन्थ सजे हैं।

अलग अलग दूकानें इनकी,

न्यारे साज बजे हैं।


भला कौन इनको पढ़कर जो,

अपना भाग्य सॅंवारे।

✍️राजीव कुमार भृगु 

सम्भल 

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी) आमोद कुमार के 19 मुक्तक


हर कोलाहल का अंत एक,सूनापन ही होता,

हर बसंत पतझर का, अभिनंदन ही होता,


बिटिया के नेह का,जीवन कितना सीमित ये,


तनिक देर के बाद पिता,अपने आँगन ही रोता ।।1।।


लोकतंत्र का कत्ल हुआ है, आज़ादी भी खतम हुई,

मीसातंत्र चलाकर सत्ता पागल और बेशरम हुई।

अन्याय और शोषण का अब राज न चलने पायेगा,

ठैर सकी कब रैन अंधेरी तरुणाई जब गरम हुई।। 2।।


बहुत याद आती हैं तुम्हारी बातें वो सारी,

ज़िन्दगी ही बदल दी जिन्होंने हमारी।

जब मंज़िल जुदा हों तो मुड़ना ही बेहतर,

कुछ इस तरह से रहना,न याद आए हमारी।।3।।

         

उषा की पहली किरणों, खिलते शाखसारों में,

बादलों के संग आता सावनी फुहारों में,

मन्दिरों के घंटों की ध्वनियाँ यादें लाती,

कोई झिलमिलाता है रात को सितारों में ।4।।


नेह की बतियाँ रात रात भर, कहने वाला कोई नहीं,

एक दिन भी अपनो के घर, रहने वाला कोई नहीं,

सबकी अपनी अपनी मंज़िल, अपनी अपनी कश्ती हैं,

मेरी तरह यूँ पानी के संग, बहने वाला कोई नहीं ।।5।।


रोज़ चेहरे पे नया चेहरा लगाने वाले,

खुद गुमराह हैं मुझे राह दिखाने वाले,

ये होते हैं कुछ और दिखते हैं कुछ,

झूठे वादों से मेरा दिल बहलाने वाले ।।6।।


बिताया खेल कर बचपन जहाँ,वह आँगन नहीं था,

न वह पेड़ पर झूला कहीं,वह सावन  नहीं था,

पता पूछतीं है आज भी गलियाँ गाँव की,

जहाँ छोड़ा था वह बचपन वहाँ यौवन नहीं था ।।7।।


जान जाती है तो हम जाने देंगे

ऐ वतन तुझपे आँच न आने देंगे

यूँ तो सदा से अहिंसा के पुजारी हैं हम

वक्त पड़ा तो बम भी बरसाने देंगे।।8।।

     

कौन जाने किस घट की बूंदें किस प्यासे की प्यास बुझाएं, 

निराश मन के घोर तिमिर में आलोक का विश्वास दिलाएं, 

शासन, सत्ता,हमसफर सब, राह में तन्हा छोड़ गए जब, 

जाने किस कवि के गीत, मंज़िल की फिर आस जगाएं।।9।।


दिन गए तो चली गईं संग, प्यार की वो कहानियाँ, 

कौन, कब, कहाँ मिला था, शेष अब हैं निशानियाँ, 

गुरबत में भी कैसा हम में एक अज़ब सा आकर्षण था, 

सुन्दरता वो मासूम कितनी, लाज में थीं जवानियाॅं।।10।।

                        

कोई औरों की खुशियों के वास्ते ही जी रहा है, 

और कोई दूसरों के रक्त की मय पी रहा है, 

हम ही सुख हैं, हम ही दुख हैं, हम ही अपने दोस्त-दुश्मन, 

आदमी ही ज़ख्म देता, आदमी ही सी रहा है।।11।।


अस्त होता वो सूरज गोल, बोल रहा है अवसान के बोल, 

संध्या चुपके चुपके पूछे, दामन में हैं कितने झोल, 

कितने ज़ख्म मिले हैं तुझको, कितने ज़ख्म दिए हैं तूने, 

क्या पाया,क्या खोया जग में, तराजू में ये कभी तू तोल ।।12।।


लम्हा, लम्हा ज़िन्दगी को जी तो लिया, 

कांच पिघला हुआ जैसे पी तो लिया, 

सैंकड़ों सर्प दंश की पीड़ा हो ज्यों, 

ज़ख्म रिसते रहे, यूँ सी तो लिया ।।13।।


तुम्हारे विलुप्त प्यार की प्रतिध्वनि हूँ मैं, 

जादू से उस रूप की करतल ध्वनि हूँ मैं, 

बेझिझक हॅसी वो और बोलती आंखें तुम्हारी, 

सिमटी हुई यादों की अंर्तध्वनि हूँ मैं ।।14।।

    

रुग्ण मन, जर्जर तन

एक सत्य, परिवर्तन

बुझता दीपक शनै:शनै:

धुंआ पहन, ताप सहन।।15।।


कैसा धुंधला उदासी का घेरा, 

शाम लगता है आज सवेरा, 

एक रात हस्ती की बितानी, 

न होंगे जो कल होगा सवेरा।।16।।


वह तो तुम थे, तुम ही थे वह जिसको चाहा हर पल हमने, 

देख अकेला गम ने हमको, घेर लिया हमको कल गम ने, 

गर खंडहर ही जब होना था, क्यों सपनों के महल बनाए, 

मुस्कान अधर से दूर फिर भी, पी लिया सब अश्रु जल हमने।।17।।


वह जीवन था, जीवन था वह,अपना पराया भान नहीं था, 

अजनबी संग मन लगता था, किसी मे कोई मान नहीं था, 

भूख लगी तो किसी पड़ोसी या दोस्त के घर खा लेते, 

जिस दिन कालेज दोस्त न आता, पढ़ाई में भी ध्यान नहीं था।।18।।


दिल रोता है पहले फिर आंख रोती है, 

हर रिश्ते की यहाँ एक उम्र होती है, 

हम मरते नहीं,रिश्ते मरते यहाँ, 

बाद उसके तो ज़िन्दगी लाश ढोती है।।19।।


✍️ आमोद कुमार

दिल्ली, भारत


सोमवार, 2 अक्टूबर 2023

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा का गीत ....प्रौढ़ावस्था हुयी सयानी, बोनसाइ त्योहार हुए हैं



पर्व मनाते यंत्रवत् हम

थके हुए त्योहार हुए हैं

पृथक आत्मा तन के ज्यों 

रीतिबद्ध त्योहार हुए हैं । 


कलाइयों पर सजी राखियाँ 

मन ,बच्चे जैसे निर्मल थे

प्रौढ़ावस्था हुयी सयानी 

बोनसाइ त्योहार हुए हैं ।

  

पर्वों की अवतंस श्रंखला

सुखधाम धरा की निश्चलता

स्थिर और ठहरे जीवन में

सक्रियता के नाम हुए है । 


त्योहारी इस सभ्यता का

संयम से संपोषण करना

जीवन जीने के अर्थों में   

ये सकाम  ललाम हुए है । 


पर्व मनाते यंत्रवत् हम 

थके हुए त्योहार हुए हैं 

पृथक आत्मा तन की ज्यों  

रीतिबद्ध त्योहार हुए हैं ।। 


✍️ मनोरमा शर्मा

जट्बाजार

अमरोहा

उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 1 अक्टूबर 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से 1 अक्टूबर 2023 को आयोजित काव्य गोष्ठी .....

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की मासिक काव्य-गोष्ठी रविवार 1 अक्टूबर 2023 को मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में हुई। 

राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने गीत प्रस्तुत करके सभी के हृदय को जीता - 

बांट रहीं दिनकर की किरणें,

 उल्लासित उजियारे।

ऊषा रानी भर लायी है, 

आंचल में सुख सारे। 

 मुख्य अतिथि रामसिंह निशंक की अभिव्यक्ति थी -

अपनी जननी को माॅं कहना किसे नहीं अच्छा लगता। 

सुत का आज्ञाकारी दिखना, किसे नहीं अच्छा लगता। 

विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. महेश 'दिवाकर' की इन पंक्तियों ने सभी के हृदय को छुआ - 

देने को दो शब्द नहीं हैं, भैया पास तुम्हारे। 

कैसे तुमको जगत कहेगा, अपना प्रियतम प्यारे।

 विशिष्ट अतिथि नकुल त्यागी ने कहा - 

लाल बहादुर शास्त्री जी का नारा 

जय जवान जय किसान, 

भारत राष्ट्र बने महान। 

रामदत्त द्विवेदी का दर्द कुछ इस प्रकार झलका - 

समझो, वृद्धों के महत्व को, उनकी कर लो चरण वन्दना। 

दर्जा उनका देवतुल्य है, इसको याद उन्हें है रखना।। 

रामेश्वर प्रसाद 'वशिष्ठ' ने संदेश दिया - 

मानव बन तू दीप सामान,

दीपक सा तू जल जल करके

 कर कर्तव्य महान।

पद्म सिंह बेचैन ने कहा - 

प्यार के इस गीत को मैं गुनगुनाऊॅं किस तरह, 

अपने दिल के दर्द को तुमको बताऊॅं किस तरह। 

 योगेन्द्र वर्मा व्योम ने सामाजिक परिस्थितियों का चित्र खींचा - 

आये दिन यदि हो नहीं, आपस में तकरार। 

मन के आँगन में कभी, उठे न फिर दीवार ।। 

मिल-जुलकर हम-तुम चलो, ऐसा करें उपाय। 

अपनेपन की लघुकथा, उपन्यास बन जाय।। 

संचालन करते हुए राजीव प्रखर ने बालमन की अभिलाषा को व्यक्त किया - 

मनभावन यह प्रीत तुम्हारी, किन शब्दों में तोलूं। 

चिड़िया रानी मन है मेरा, साथ तुम्हारे डोलूं। 

 रचना-पाठ करते हुए जितेन्द्र जौली ने कहा - 

एक साफ मैदान में, पत्ते, फूल गिराय। 

झाडू हाथों में उठा, फोटो लिया खिंचाय।। 

कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने उपस्थित रहकर सभी का उत्साहवर्धन किया।‌ राजीव प्रखर ने आभार-अभिव्यक्त किया ।












मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर का गीत .....चिड़िया रानी मन है मेरा साथ तुम्हारे डोलूं ...

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शनिवार, 30 सितंबर 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार की ग़ज़ल ..... अब भी कुछ लोग तो हैं हमको लड़ाने वाले


किस तरह घर को बनाते हैं बनाने वाले।

क्या समझ पायेंगे ये आग लगाने वाले।।


वे समझते ही नहीं हैं किसी कमज़ोर का दुख,

हैं  ग़रीबों    को  कई  लोग   सताने  वाले।।


काम करने का तो करते हैं दिखावा केवल,

लोकसेवा  का  बड़ा  ढोल बजाने  वाले।।


जाति और धर्म की चालों में फंसाते हैं हमें,

अब भी कुछ लोग तो हैं हमको लड़ाने वाले।।


अपने दुर्गुण भी कभी ध्यान लगा कर देखें,

दूसरों  के  ही  सदा  दोष   गिनाने  वाले।।


देश के मान को अपने से तो ऊंचा जानें,

देश की धुंधली-सी तस्वीर दिखाने वाले।।


 दिल का जो दर्द समाया है मेरी ग़ज़लों में,

कब समझ पायेंगे अनजान ज़माने वाले।।


हौसला रोज़  वे  'ओंकार' बढ़ा देते हैं, 

मेरे भावों को  सदा  मान दिलाने वाले।।


✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'

1-बी/241 बुद्धि विहार, मझोला, 

मुरादाबाद 244103

 उत्तर प्रदेश, भारत

शुक्रवार, 29 सितंबर 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर का एकांकी ....अपराधी कौन



पात्र परिचय

धरती माता

वन देवी

जल देवी

पर्वत राज

गंगा देवी

मानव

प्रथम अंक

(प्रथम दृश्य) 

(खुले आसमान के नीचे,  एक बड़ी सी  पत्थर की शिला पर ,एक अति सुंदर स्त्री धरती माता, सर पर सुंदर मुकुट सजाए, सोच विचार की मुद्रा में बैठी है, उनके वस्त्र हरे  व नीले रंग के  हैं ।तभी   एक मानव दौड़ता हुआ उस ओर आता है,और उनके चरणों में  गिर पड़ता है।) 

मानव  ( रुंँआसा होकर) मुझे बचाओ!! मुझे बचाओ! हे धरती माता !मुझे बचा लो, मेरी रक्षा करो...!माँ रक्षा करो..! 

धरती माता : (चौंक कर सर ऊपर उठाती हैं, और खड़े होकर उस मानव को उठाती हैं) उठो पुत्र! उठो! तुम क्यों रो रहे हो? 

मानव : (हाथ जोड़कर बिलखते हुए) माँ . .!मेरा और मेरी समस्त प्रजाति का अस्तित्व बहुत  बड़े संकट में है ,मुझे आपकी सहायता चाहिए (अपना गला दोनों हाथों से पकड़ते हुए) मेरा दम घुटा जा रहा है माता, मुझे बचा लो !! 

धरती माता : ओह!! शांत हो जाओ पुत्र, सब ठीक होगा.

मानव: शीघ्रता करिये माता!! मैं मर रहा हूँ (खांसता है) न मेरे पास प्राणदायक आक्सीजन है और न ही शुद्ध जल बचा है.आपकी नदियाँ अपनी मर्यादा लांघकर  मेरे घर में घुसकर तबाही ला रही हैं माता...   और... और!! (खाँसता है)!!! 

धरती माता : और... और क्या वत्स?? (उसे एक पत्थर की शिला पर बैठाती हैं ) संभालो खुद को!! 

मानव : (तनिक संयत होते हुए, खड़ा हो जाता है, और हाथ जोड़कर कहता है ) और माता... आपके शक्तिशाली पुत्र महान पर्वतराज हमारे घरों को क्षति पहुँचा  रहे हैं, हमारे रास्ते रोक लिए हैं माता, और.....चारों ओर विनाश लीला कर रहे हैं ! 

धरती माता : (तनिक क्रोध में भरकर) अच्छा, मैं अभी सबको बारी बारी से बुलाकर पूछती हूँ (तीन बार ताली बजाकर)  वन देवी, जल देवी प्रकट हों!

(तभी हरे रंग के सुंदर वस्त्र व गले में फूलों का हार पहने, वन देवी और नीले रंग के वस्त्र  पहने, गले में मोतियों का हार पहने, जल देवी प्रकट हो जाती हैं, दोनों देवियां शीश झुकाकर धरती माता को समवेत स्वर में प्रणाम करती हैं।) 

जल देवी और वन देवी (समवेत स्वर में) : कहिए धरती माता , क्या आज्ञा है ? हमें आपने किसलिए याद किया है ? 

धरती माता : (क्रोधित होकर मानव की ओर तर्जनी से संकेत करते हुए) हे वन देवी ! यह मानव   प्राणशक्ति वायु न मिल पाने से अत्यधिक कष्ट में है. क्या तुमने इसे अपने वनों द्वारा प्रवाहित होने वाली शुद्ध वायु देना बंद कर दिया है?? यदि तुमने ऐसा किया है तो तुम्हे इसका दण्ड अवश्य मिलेगा!! 

वन देवी : क्षमा करें  धरती माता!  परंतु मैंने ऐसा कदापि नहीं किया है । अपितु  मेरे शरीर में जब तक एक भी हरा पत्ता जीवित है, मैं तब तक समस्त प्राणियों में शुद्ध वायु का संचार करती रहूँगी। 

धरती माता :  तब यह मानव कष्ट में क्यों है पुत्री? कारण स्पष्ट करो? इसका आरोप है कि तुमने इसे मरने के लिए छोड़ दिया है! 

वन देवी : (क्रोध में भरकर,, मानव की ओर लाल- लाल नेत्रों से देखते हुए)  इसका आरोप मिथ्या है  माता!..(क्रोध में काँपती है) इस दुष्ट ने स्वयं मेरे वनों को उजाड़ कर तथाकथित विकास नाम के पर्यावरण भक्षी जीव को जन्म दिया है!!  

धरती माता : (आश्चर्य से) अच्छा..! 

 वन देवी : इससे पूछिए माता... क्या इसने मेरी हरियाली को उजाड़ कर कंक्रीट का जंगल नहीं तैयार किया है ? क्या इसने वनों में रहने वाले लाखों जंगली जीवों को बेघर करके उन्हें मृत्यु के घाट नहीं उतारा है? क्या इसके द्वारा वनों के उजड़ने से वर्षा चक्र नहीं बिगड़ा!!! यह दुष्ट अपने दुष्कर्मों के कारण ही इस दुर्गति को प्राप्त हुआ है माता... ! 

धरती माता (क्रोध में भरकर मानव की ओर देखते हुए) ओहहह तो यह बात है..! 

( कुछ सोचते हुए जल देवी की ओर उन्मुख होती हैं, जो अब तक हाथ जोड़े शांत मुद्रा में सब वार्तालाप ध्यान पूर्वक सुन रही थीं ) 

धरती माता : और तुम जल देवी !! क्या तुमने अपने कर्तव्य से विमुख होकर धरती के जीवों को शुद्ध जल देना  बंद कर दिया है.. ..... ! और यह मैं क्या सुन रही हूँ !! तुम्हारी नदियाँ अपनी सीमा -रेखा लांँघकर मानवों के घरों में घुसकर विनाश लीला कर रही हैं... क्या यही व्यवस्था है तुम्हारी ? कदाचित तुम्हें हमारे दण्ड का भी भय नहीं..!(क्रोध से काँपती है)

जल देवी : नहीं ..नहीं माता ! ऐसा कदापि नहीं है मेरी नदियों ने कोई अतिक्रमण नहीं किया है.. !  अपितु इस स्वार्थी मनुष्य ने ही मेरी नदियों के आंँगन में अपने अवैध घर बना लिए हैं और अब यह दुष्ट उन नदियों पर ही बाढ़ का आरोप लगाकर  उन्हें कलंकित करने का प्रयास कर रहा  है. अब आप ही बताइये माता, मेरी असंख्य नदियाँ कहाँ जाएँ?? उनके रास्ते और आंँगन  इस मानव ने बंद कर दिए हैं.... 

धरती माता : ( बीच में ही रोककर ) अच्छा तो क्या तुम यह कहना चाहती हो जल देवी, कि मानव विकास न करे..... ! अपने घर न बनाये...!!! 

जल देवी :जी नहीं, धरती माता ! मेरा ऐसा तात्पर्य कदापि नहीं है, परंतु विकास का अर्थ यह तो नहीं कि मानव उस पर्यावरण को ही क्षति पहुचाएँ, जिसके कारण वह जीवित है...! 

धरती  माता :अर्थात...!! स्पष्ट कहो पुत्री... ! क्या कहना चाहती हो..! 

जल देवी  : माता इस मानव की दुष्टता  महान  पर्वत राज से अधिक और कौन जान सकता है? और जहाँ तक शुद्ध जल की बात है माता ...,तो पर्वतराज की बड़ी पुत्री और हम सबकी लाडली पतित- पावनी ,गंगा देवी  इस तथ्य पर और अधिक स्पष्टता से प्रकाश डाल सकती हैं . माता ! (दोनों हाथ जोड़कर, विनय पूर्वक)आप उन्हें बुलाकर स्वयं ही पूछ लीजिये! 

धरती माता : उचित है जल देवी..!हम अभी पर्वतराज और गंगा देवी को भी यहाँ बुला लेते हैं (तीन बार ताली बजाकर) पर्वत राज  और पावन गंगा देवी शीघ्र ही प्रकट हों ...! 

(तभी पर्दे के पीछे से कत्थई  व श्वेत रंग के चमकीले वस्त्र पहने पर्वतराज आते हैं, उनके गले में हरे पत्तों का हार है,  साथ ही अत्यंत गौरवर्ण और धवल वेशधारी गंगा देवी आकर धरती माता को शीश झुकाकर, दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं) 

पर्वतराज और गंगा माता : (समवेत स्वर में) कहिए धरती माता ..! क्या आज्ञा है ?  आपने हमें किस लिए याद किया है ?

 धरती माता : पुत्र पर्वत राज हिमालय! पुत्री गंगा !!  इस मानव का आरोप यह है...कि तुम सबके कारण उसका जीवन खतरे में पड़ गया है..!! 

पर्वतराज : (मानव की ओर क्रोध से देखकर गर्जना करते हुए) अरे यह दुष्ट अभी तक जीवित है!! मैं अभी इसे अपने मुष्ठि प्रहार से चकनाचूर कर दूंगा ..! (अपने बांये हाथ  की हथेली पर दांये हाथ से घूंसा मारते हुए, आगे बढ़ते हैं) 

(तभी धरती माता पर्वतराज के मार्ग में आ जाती हैं और दोनों हाथों को दोनों ओर फैला कर रोकती हैं। ) 

धरती माता :( लगभग चीखते हुए ) रुक जाओ पर्वतराज!! तुम इस प्रकार प्रकृति के विरुद्ध जाकर मनमानी नहीं कर सकते ..! 

पर्वत राज : क्षमा करें माता , मेरी तो प्रवृत्ति ही धीर- गंभीर है, परंतु यह दुष्ट मानव अपनी प्रजनन- दर कीट पतंगों की भाँति  बढ़ाते हुए, कुकरमुत्तों की भांति दुर्गम पर्वतों पर भी उग आया है और वहां जाकर अतिक्रमण कर दिया है। 

धरती माता : कैसा अतिक्रमण पुत्र ? स्पष्ट कहो! 

पर्वतराज : माता यह मानव हजारों - लाखों की संख्या में अब पर्वतों पर पर्यटन के बहाने समूहों में  आने लगा है। इस दुष्ट मानव ने अपने स्वार्थवश मेरे शरीर को जगह- जगह से तोड़- फोड़ कर मेरे पैरों को शक्तिहीन बना दिया है, जिस कारण मैं ठीक से अपने स्थान पर खड़ा भी नहीं हो पा रहा हूँ ..माता! 

धरती माता : (आश्चर्य से )तुम्हारे पैर कैसे शक्तिहीन हो सकते हैं पुत्र? वह तो हज़ारों मील तक फैले हुए हैं..! 

पर्वतराज:  पूछिए माता इस दुष्ट से! यह मुझतक पहुँचने के लिए , मार्गों को चौड़ा करने हेतु, प्रतिदिन बड़ी -बड़ी मशीनो की सहायता से मेरी शिलाओं को नीचे से काटता जा रहा है, जिस कारण मैं शक्तिहीन होकर गिर रहा हूँ.. माता! 

धरती माता (चिंतित स्वर में )ओहहहहह!! यह तो वास्तव में बड़ी चिंता का विषय है ..! 

धरती माता :(गंगा देवी की ओर उन्मुख होते हुए, स्नेहिल भाव से ) हे महान देवी !आप इस विषय पर मौन क्यों हैं? आप भी अपने विचार रखिए.. ! 

गंगा देवी : हे वसुंधरा देवी ! इस मानव प्रजाति की मूर्खता के कारण इसे पोषित करने वाला,मेरा पावन जल, मलीन होने लगा है, यह मुझमें और मेरी सहायक  नदियों के जल में प्रतिदिन लाखों टन कचरा और प्रदूषित पदार्थ डाल रहा है... मैं जीवनदायिनी गंगा, धीरे- धीरे मर रही हूँ ! यदि मैं ही नहीं रहीं,तब यह मानव भी समाप्त हो जायेगा ! (एक गहरी साँस भरती हैं ) 

धरती माता : बोलो मानव तुम अपने पक्ष में कुछ कहना चाहते हो ? क्या तुम प्रकृति के इन तत्वों के बिना जीवित रह सकते हो ? क्या तुम्हारे पास जीवित रहने का कोई अन्य विकल्प है? असली अपराधी कौन है? ये प्राकृतिक तत्व या तुम...??? 

(मानव बिलखता हुआ धरती माता के चरणों में गिर जाता है।) 

धरती माता :( उसे उठाती हैं )मुझे तुम्हारे आंसू नहीं उत्तर चाहिए, यदि तुम यही विनाश लीला करते रहे तो एक दिन मैं भी समाप्त हो जाऊंगी और तुम भी ..! 

मानव : क्षमा करें माता ..!क्षमा करें ..!मैं ही असली अपराधी हूँ..! मैं स्वयं अपने विनाश  का कारण हूँ, परंतु...मैं वचन देता हूँ माता..आज से मैं अपनी धरती माता को स्वर्ग से भी सुंदर बनाने के लिए हर संभव प्रयास करूँगा। अपनी प्रजाति की प्रजनन दर संसाधनो के अनुपात में रखूंगा, जल के अमूल्य खजाने को भी स्वच्छ व सुरक्षित रखूंगा तथा किसी भी प्रकार का अतिक्रमण नहीं करुंगा ... ! आपका आँचल पुनः हरा -भरा कर दूँगा माता..! 

धरती माता: ( प्रसन्नता पूर्वक) उचित है पुत्र..! प्रातः का भूला संध्या को अपने घर आये तो वह भूला नहीं कहलाता...! जाइए आप सब लोग अब अपने -अपने कर्तव्य पालन में फिर से लग जाइए..! (अपना सीधा हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उठाती हैं।) 

( मानव, वन देवी, जल देवी, पर्वतराज  व गंगा देवी सहित सभी धरती माता को प्रणाम कर समवेत स्वर में  :धरती माता की जय ....धरती माता की जय ...! कहते हुए प्रस्थान कर जाते हैं।) 

(परदा गिरता है) 

✍️ मीनाक्षी ठाकुर

मिलन विहार

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार पूजा राणा की रचना ....हमारी मुठ्ठी में

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मंगलवार, 26 सितंबर 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर का गीत ... गूंजी घर में जब बिटिया की मीठी सी किलकारी

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वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में सात साल पहले 25 सितंबर 2016 को आयोजित 12 वां हस्तलिपि कवि सम्मेलन और मुशायरा

वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में वर्ष 2016 से प्रत्येक रविवार को हस्त लिपि वाट्स एप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन निरंतर चल रहा है। इस आयोजन में रचनाकार कागज पर अपनी हस्तलिपि  में रचना लिखते हैं, अपने हस्ताक्षर करते हैं, नाम , पता और मोबाइल फोन नंबर  लिखकर एक कोने में अपना चित्र चिपकाकर उसका चित्र समूह में साझा करते हैं । रविवार 25 सितम्बर 2016 को हमने 12 वां आयोजन किया था ।  इस आयोजन में 19 साहित्यकारों   सर्वश्री राजीव प्रखर जी, योगेन्द्र वर्मा व्योम जी,  डॉ मीना नकवी जी, जिया जमीर जी, डॉ रीता सिंह जी , मनीषा चड्डा जी, मनोज मनु जी, अनवर कैफ़ी जी, मंगलेश लता यादव जी, डॉ एस पी सागर जी वीरेंद्र सिंह बृजवासी जी, डॉ ममता सिंह जी, प्रदीप शर्मा जी,  डॉ अर्चना गुप्ता जी,हेमा तिवारी भट्ट जी, संयम वत्स जी, डॉ वंदना पाण्डेय जी, मृडीक व्रतेश जी और मैंने डॉ मनोज रस्तोगी ने अपनी हस्तलिपि में रचनाएं साझा की थीं ।प्रस्तुत हैं साझा की गईं रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में ..... । 





















:::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822 


सोमवार, 25 सितंबर 2023

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में दिल्ली निवासी) की साहित्यकार विमला रस्तोगी " हिन्दी रत्न" सम्मान से सम्मानित

 





पंडित हरप्रसाद पाठक साहित्य पुरस्कार समिति के रजत जयंती समारोह तथा तुलसी साहित्य अकादमी मथुरा के संयुक्त तत्वावधान में हुए  एक भव्य साहित्यिक कार्यक्रम में लखनऊ से पधारी लेखिका एवं कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि माननीय स्नेह लता जी ने विमला रस्तोगी को " हिन्दी रत्न " सम्मान से सम्मानित किया ।

मूल रूप से संभल निवासी विमला रस्तोगी की बाल साहित्य की बारह पुस्तकें आई है। अनेकानेक बाल कहानियां और नाटक संग्रहों मे संग्रहित है। आकाशवाणी दिल्लीसे अनेकानेक कहानियां व नाटक प्रसारित हुए है। उ. प्र. हिन्दी संस्थान, लखनऊ, से सुभद्रा कुमारी बाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित विमला रस्तोगी अन्य अनेक सम्मानों से सम्मानित है। 

मथुरा के इस कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. अनिल वाजपेयी ( प्रधानाचार्य, अमरनाथ डिग्री कालेज, मथुरा ) मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रो. रवीन्द्र कुमार, मेरठ, विशिष्ट अतिथि  भगवती प्रसाद द्विवेदी, पटना, स्नेह लता जी, लखनऊ थे। 

 समिति के सचिव डॉ. दिनेश पाठक शशि "  तथा अकादमी के अध्यक्ष आचार्य नीरज शास्त्री ने आभार व्यक्त किया।