सोमवार, 2 मार्च 2020

अखिल भारतीय साहित्य परिषद मुरादाबाद ने किया मुरादाबाद के साहित्यकारों श्री कृष्ण शुक्ल ,फक्कड़ मुरादाबादी , विवेक निर्मल और मोनिका मासूम को सम्मानित





























अखिल भारतीय साहित्य परिषद मुरादाबाद की ओर से रविवार  1 मार्च 2020 को महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय में आयोजित समारोह में मुरादाबाद के साहित्यकारों श्री फक्कड़ 'मुरादाबादी', श्री विवेक 'निर्मल', श्रीयुत श्रीकृष्ण शुक्ल एवं श्रीमती मोनिका 'मासूम' को 'साहित्य मनीषी सम्मान' से सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार  यशभारती माहेश्वर तिवारी ने की। मुख्य अतिथि व्यंग्य कवि डॉ मक्खन 'मुरादाबादी' एवं विशिष्ट अतिथि  अशोक विश्नोई थे। माँ शारदे की वंदना अशोक 'विद्रोही' ने प्रस्तुत की तथा कार्यक्रम का संचालन संयुक्त रूप से राजीव 'प्रखर' एवं आवरण अग्रवाल 'श्रेष्ठ' ने किया।

सम्मान-समारोह में उपरोक्त चारों सम्मानित साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर, अशोक विश्नोई, राजीव 'प्रखर',आवरण अग्रवाल 'श्रेष्ठ'  एवं प्रशांत मिश्रा द्वारा आलेखों का वाचन भी किया ।
इस अवसर पर मोनिका शर्मा 'मासूम' ने अपनी सुंदर ग़ज़ल की सुगंध कुछ इस प्रकार बिखेरी -

"खयाल बनके जो ग़ज़लों में ढल गया है कोई
मिरे वजूद की रंगत बदल गया है कोई
सिहर उठा है बदन, लब ये थरथराए हैं
कि मुझ में ही कहीं शायद मचल गया है कोई"

वरिष्ठ रचनाकार  विवेक 'निर्मल' ने अपने चिर-परिचित रंग में कहा -

"कुछ गर्मी कुछ सर्द समेटे बैठे हैं
सब अपने दुख दर्द समेटे बैठे हैं
एक बूढ़े ने जब से खटिया पकड़ी है
रिश्ते नाते फर्ज समेटे बैठे हैं।"

सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कवि श्री फक्कड़ 'मुरादाबादी' ने अपने हास्य-व्यंग्य से सभी को गुदगुदाते हुए कहा  -

"विवाह के पश्चात मित्रवर,
जब अपनी ससुराल पधारे।
वहाँ पूछने लगे किसी से,
मनोरंजन का साधन प्यारे।
श्रीकृष्ण शुक्ल ने  रचना-पाठ करते हुए कहा -

"राह अपनी खुद बनाना, जिंदगी आसान होगी।
हो भले दुष्कर सफर पर, हार कर मत बैठ जाना।
पथ की बाधाओं से डरकर, राह से मत लौट आना।।
विजयश्री जिस दिन मिलेगी, इक नयी पहचान होगी।
राह अपनी खुद बनाना, जिंदगी आसान होगी।।"

कार्यक्रम में डॉ मीना कौल, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', विजय शर्मा, डॉ प्रेमवती उपाध्याय, डॉ कृष्ण कुमार 'नाज़', अशोक 'विद्रोही', मयंक शर्मा, आवरण अग्रवाल, एमपी 'बादल', राशिद 'मुरादाबादी', मनोज 'मनु', आशुतोष मिश्र, प्रशांत मिश्र, रवि चतुर्वेदी आदि उपस्थित रहे।
::::::::प्रस्तुति:::::::
**राजीव प्रखर
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत


वाट्सएप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक रविवार को कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । इस अनूठे आयोजन में साहित्यकार अपनी हस्तलिपि में अपने चित्र सहित रचना साझा करते हैं । रविवार एक मार्च 2020 को हुए आयोजन में सर्वश्री रवि प्रकाश जी , संतोष कुमार शुक्ल जी, नृपेंद्र शर्मा सागर जी, प्रीति हुंकार जी, श्री कृष्ण शुक्ल जी, राजीव प्रखर जी, मनोज मनु जी और डॉ मनोज रस्तोगी ने अपनी हस्तलिपि में रचनाएं साझा कीं ..........













अधिवक्ता साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच मुरादाबाद की ओर से 29 फरवरी 2020 को काव्य गोष्ठी का आयोजन

 अधिवक्ता साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच मुरादाबाद के तत्वावधान में  सभागार जिला बार एसोसिएशन में  युवा और राष्ट्र विषय पर काव्य/ विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक कुमार सक्सेना एडवोकेट ने की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिला बार के महासचिव हरप्रसाद एडवोकेट कार्यक्रम रहे । कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन करके किया गया।
  कार्यक्रम में वक्ताओं ने वर्तमान परिस्थितियों में युवाओं और विशेष कर युवा अधिवक्ताओं की भूमिका पर चर्चा परिचर्चा की। इस अवसर पर उपस्थित अधिवक्ता साहित्यकारों ने अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से समाज में फैली हुई  कुरीतियों और नफरतों को समाप्त करने का प्रयास किया । कार्यक
 मोहम्मद जावेद आलम ने कहा  -
बादल है बदली है परछाई है
आसमां में देखो धुंध सी छायी है
सड़कों पर देख लो, फैला खून है
कोने  में  चुपचाप खड़ा,देखो कानून है।।
तंज़ीम शास्त्री ने कहा -
भूलकर भी ना कोई तू ऐसी भाषा लिखना ।
 नई नई परंपराओं से लड़ा  रहे है जो समाज को।
 ऐसे तत्वों के विरुद्ध तू  इंकलाब लिखना ।।
 अज़हर अब्बास नकवी ने कहा -
सच बोलते ही सर मेरा हो जाएगा कलम।
 खंजर  मेरे गले के निहायत करीब है।
 अनिरुद्ध उपाध्याय "आज़ाद" ने कहा -
दिल हल्का करने के लिए कोई मिलता ही नहीं यहां ।
 हर किसी ने बसा लिया है अपना अलग जहां ।।
 अरविंद कुमार शर्मा आनंद ने कहा -
 बहाया था दरिया वफाओं का हमने ।
 कि तोड़ा गुमान भी घटाओं का हमने ।
मयस्सर हुआ जो भी उसमें रहा खुश।
न मांगा जखीरा दुआओं का हमने।
 कार्यक्रम का संचालन करते हुए आवरण अग्रवाल "श्रेष्ठ" ने कहा -
 मरा हिंदू , मरा मुसलमान बताएंगे।
 सियासत वाले दंगे में मरा कब इंसान बताएंगे ।।
 कार्यक्रम में जयवीर सिंह एडवोकेट, मोहम्मद मुख्तार वारसी एडवोकेट, विशाल राठौर एडवोकेट, प्रमोद प्रत्येकी एडवोकेट, डॉ राकेश जैसवाल एडवोकेट आदि मौजूद रहे ।
   




::::::प्रस्तुति:::::::
आवरण अग्रवाल "श्रेष्ठ"
महासचिव
अधिवक्ता साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 1 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की काव्य कृति "वीरों का वंदन" की मेजर अवध किशोर शर्मा द्वारा की गई समीक्षा


सर झुके बस उनकी शहादत में ,
जो शहीद हुए हमारी हिफाजत में ।

समीक्षा का अर्थ है गुणों को प्रोत्साहन और दोषों का निवारण । आश्वासनों के बीच घिसटते जीवन की जगमगाहट को कवयित्री डॉ. रीता सिंह ने श्रद्धांजलि स्वरूप रचित पुलवामा के शहीदों को समर्पित अपने काव्य संग्रह ' वीरों का वंदन ' में बूंद बूंद सहेजा है । निराशा का ताप भट्टी सा दाहक बन जाता यदि जीवन के आक्रोश को निकलने का रास्ता न मिलता । व्यवस्था के प्रति आक्रोश जनित विद्रोहों को कवयित्री ने रचनात्मक बनाने की पहल की । कवयित्री की मूल चेतना में समर्पित राष्ट्रीयता की अग्नि अपेक्षाकृत ज्यादा है । राजनैतिक स्थितियों के प्रदूषणों को भी कवयित्री ने भरपूर बचाया है । मरघट के अवसन्न भयावहता त्रासदी पथ दीपों की रोशनी में बदलने का प्रयास किया है । कविताओं में प्रसारित राष्ट्रीयता के ध्रुव बिंबों ने उनकी दृष्टि को प्रखरता दी है । राष्ट्रीयता बोध के साथ साथ शहीदों को नमन दीपक से उठती चुपचाप जलती हुई निष्कंप किरण है जिसके जीवन की सार्थकता दूसरों को अंधकार से ज्योति की ओर प्रवृत करने में हैं । कला कला के लिए या अपने पांडित्य प्रदर्शन जैसे भावों की तुष्टि की भावना कहीं दृष्टिगोचर नहीं होती । कविताएं लयात्मक हैं और गेयता का आकर्षण उत्पन्न करने के लिए अपनी रचना तुकांत छंदों में की है । अपनी समूची रचना यात्रा में आपने किसी का अनुकरण नहीं किया और न ही किसी की अनुगामी बनी । अलंकार स्वतः समाहित हो गए हैं । मानवीकरण का प्रयोग सौंदर्य की अभिवृद्धि करता है । कहीं कहीं वज़्न कम होने के कारण काफिया खटकता है । वर्तनी संबंधी दोष मुक्त रचनाएं उत्सर्जक व प्रेरक हैं । श्रेष्ठ , सामयिक एवं प्रासंगिक ' वीरों का वंदन ' श्लाघनीय हैं इसकी सराहना होनी ही चाहिए ।

कृति - वीरों का वंदन (काव्य संग्रह)
रचनाकार - डॉ. रीता सिंह
प्रकाशक - साहित्यपीडिया पब्लिशिंग
मूल्य - ₹ 150
प्रथम संस्करण - 2020
**समीक्षक - मेजर अवध किशोर शर्मा
चन्दौसी ,जिला सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत

यादगार आयोजन : मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ के तत्वावधान में 8 दिसम्बर 2013 को आयोजित समारोह में मुरादाबाद के वरिष्ठ शायर ज़मीर ‘दरवेश’ को किया गया सम्मानित

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ के तत्वावधान में हिमगिरी कॉलोनी, मुरादाबाद स्थित शिव मंदिर के सभागार में 8 दिसम्बर 2013 को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें मुरादाबाद के वरिष्ठ शायर  ज़मीर ‘दरवेश’ को हिन्दी व उर्दू के क्षेत्र में किए गए समग्र साहित्यिक अवदान के लिए अंगवस्त्र, मानपत्र, प्रतीक चिन्ह, श्रीफल भेंटकर ‘देवराज वर्मा उत्कृष्ट साहित्य सृजन सम्मान-2013’ से सम्मानित किया गया।

   अंकित गुप्ता ‘अंक’ द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना से आरंभ कार्यक्रम में संस्था के संयोजक योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ ने बताया कि कुछ अपरिहार्य कारणोंवश इस वर्ष ‘देवराज वर्मा उत्कृष्ट साहित्य सृजन सम्मान-2013’ हेतु प्रविष्टियां आमंत्रित नहीं की जा सकीं । अत: समग्र साहित्यिक अवदान को दृष्टिगत रखते हुए संस्था द्वारा सम्मान हेतु वरिष्ठ शायर ज़मीर ‘दरवेश’ के नाम का चयन किया गया। सम्मानित व्यक्तित्व श्री दरवेश के कृतित्व के संदर्भ में प्रकाश डालते हुए संस्था के संयोजक ने कहा-‘दरवेश जी का समूचा रचनाकर्म हिन्दी और उर्दू साहित्य जगत में एक अलग पहचान तो रखता ही है, महत्वपूर्ण स्थान भी रखता है। उनकी ग़ज़लों में मिठास का एक कारण उनकी कहन का निराला अंदाज़ भी है।  

   अध्यक्षता कर रहे विख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि ‘ज़मीर दरवेश की ग़ज़लें फ़िक्र और अहसास के नये क्षितिज से उदय होती हैं। उनकी ग़ज़लों के शेर हालात पर तंज भी करते हैं और मशविरे भी देते हैं।’ 

    मुख्य अतिथि प्रसिद्ध साहित्यकार  राजीव सक्सेना ने कहा कि ‘श्री दरवेश अपनी ग़ज़लों के माध्यम से चित्रकारी करते हैं, वह अपने शेरों में मुश्किल से मुश्किल विषय पर भी सहजता से अपनी बात कह जाते हैं। यही खासियत है कि उनकी ग़ज़लें श्रोताओं और पाठकों के दिल-दिमाग़ पर छा जाती हैं।’ 

      विशिष्ट अतिथि डॉ. ओम आचार्य ने कहा कि ‘बेहद खूबसूरत ग़ज़लें कहने वाले ज़मीर साहब शेर कहते समय भाषा की सहजता का विशेष ध्यान रखते हैं, उनके शेरों में बनावटीपन या दिखावा कहीं नहीं मिलता।’ 

     सुप्रसिद्ध शायर डॉ. कृष्णकुमार ‘नाज़’ ने कहा कि ‘बहुत कम लोगों को पता है कि ज़मीर साहब बेहतरीन शायर होने के साथ-साथ बहुत अच्छे बालकवि भी हैं। उन्होंने बच्चों के लिए अनेक कहानियाँ तो लिखी ही हैं बहुत सारी बाल कवितायें भी लिखी हैं जो विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर चर्चित भी हुई हैं।’ 

    कार्यक्रम में सम्मान के पश्चात ज़मीर ‘दरवेश’ के एकल काव्य-पाठ का भी आयोजन किया गया जिसमें उन्होंने अपनी कई ग़ज़लें प्रस्तुत करते हुए कहा-

 ‘हर शख़्स के चेहरे का भरम खोल रहा है

 कम्बख़्त ये आइना है सच बोल रहा है

 पैरों को ज़मीं जिसके नहीं छोड़ती वो भी

 पर अपने उड़ानों के लिए तोल रहा है’

 

‘घर के दरवाज़े हैं छोटे और तेरा क़द बड़ा

 इतना इतराकर न चल चौखट में सर लग जायेगा’


‘आदमी को इतना ख़ुदमुख़्तार होना चाहिए

 खुल के हँसना चाहिए, जीभर के रोना चाहिए’

 

‘मैं घर का कोई मसअला दफ़्तर नहीं लाता

 अन्दर की उदासी कभी बाहर नहीं लाता

 तन पर वही कपड़ों की कमी, धूप की किल्लत

 मेरे लिए कुछ और दिसम्बर नहीं लाता’

 

‘महकने लगती है आरी अगर चन्दन को छू जाये

 दुआ देते हैं हम उस तंज पर जो मन को छू जाये’

 कार्यक्रम में ब्रजभूषण सिंह गौतम ‘अनुराग’, अशोक विश्नोई, जिया ज़मीर, अतुल कुमार जौहरी, मनोज वर्मा ‘मनु’, शिवअवतार ‘सरस’, सतीश ‘सार्थक’, रामसिंह ‘निशंक’, विवेक कुमार ‘निर्मल’, अम्बरीश गर्ग, डा.मीना नक़वी, डा. प्रेमवती उपाध्याय, डा. पूनम बंसल, राजेश भारद्वाज, डॉ. अजय ‘अनुपम’, यू.पी.सक्सेना ‘अस्त’, रामदत्त द्विवेदी, रघुराज सिंह ‘निश्चल’, ओमकार सिंह ‘ओंकार’, समीर तिवारी, अंजना वर्मा, सुभाषिणी वर्मा, श्रेष्ठ वर्मा, प्रतिष्ठा वर्मा, दीक्षा वर्मा, रामेश्वरी देवी, पुष्पेन्द्र कुमार सिंह, देवेन्द्र सिंह एडवोकेट, प्रदीप कुमार, प्रेम कुमार, वेदप्रकाश वर्मा कादम्बिनी वर्मा आदि उपस्थित रहे । कार्यक्रम का संचालन आनंद कुमार ‘गौरव’ ने किया तथा आभार अभिव्यक्ति श्री मनोज वर्मा ‘मनु’ ने प्रस्तुत की ।


















मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी की काव्य कृति कड़वाहट मीठी सी की राजीव प्रखर द्वारा की गई समीक्षा ....

आम जीवन की साकार अभिव्यक्ति - 'कड़वाहट मीठी सी'
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आज के भाग-दौड़ भरे जीवन में जबकि, व्यक्ति के पास जीवन को समझने का ही क्या, स्वयं के भीतर झाँकने का भी समय नहीं है, सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ० कारेन्द्र देव त्यागी (मक्खन मुरादाबादी) जी की व्यंग्य-कृति 'कड़वाहट मीठी सी' उसे सहज ही ऐसा अवसर प्रदान करती है। सामान्यतः जीवन में जो कुछ भी व्यक्त होता है, उसमें से ही कविता को ढूंढने का प्रयास किया जाता है परन्तु, श्रद्धेय मक्खन जी की कृति 'कड़वाहट मीठी सी' जीवन के उस पक्ष से भी कविता को ढूंढ कर ले आती प्रतीत होती है जो अव्यक्त है एवं किन्हीं परिस्थितियों वश किसी बंधन में है। संभवतः यह भी एक कारण है कि प्रकाशित होने के पश्चात् अल्प समय में ही कृति लोकप्रियता की ऊंचाइयों की ओर अग्रसर है। अग्रसर हो भी क्यों न ? क्योंकि, मक्खन जी की लेखनी से निकलने के पश्चात्, रचना मात्र रचना ही नहीं रहती अपितु, आम व्यक्ति के जीवन की साकार एवं सार्थक अभिव्यक्ति भी बन जाती है।
व्यंग्य के तीखे तीर छोड़ती एवं सामाजिक विषमताओं पर सटीक प्रहार करती हुई कुल ५१ व्यंग्य-पुष्पों से सजी इस माला का प्रत्येक पुष्प, उस कड़वी परन्तु सच्ची तस्वीर को हमारे सम्मुख ले आता है जिसकी ओर से हमारे समाज का तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग प्राय: अपने नेत्र, कर्ण एवं मुख को बंद रखना ही श्रेष्ठ समझता है।
यद्यपि कृति में से सर्वश्रेष्ठ रचनाओं का चयन करना मुझ अकिंचन के लिए संभव नहीं,  फिर भी कुछ रचनाओं का उल्लेख करने से मैं स्वयं को रोक नहीं पा रहा हूँ।
इस व्यंग्य-माला का प्रारंभ वर्तमान काव्य मंचों पर कुचली  जा रही कविता की वेदना को अभिव्यक्ति देती रचना, 'चुटकुलों सावधान' से होता है। तथाकथित व्यवसायिक मंचों का चिट्ठा खोलती इस रचना की कुछ पंक्तियाँ देखें -

"चुटकुलों सावधान
हम तुम्हें
ऐसा करने नहीं देंगे,
तुम्हारे प्रकोप से
कविता को मरने नहीं देंगे।"

इसी क्रम में एक अन्य अति विलक्षण रचना 'तुम्हारा रंग छूट जाएगा' शीर्षक से दृष्टिगोचर होती है। अति विलक्षण इसलिए क्योंकि, इस रचना की आत्मा श्रृंगारिक है जिसने व्यंग्य का सुंदर आवरण ओढ़ रखा है। रचना की कुछ पंक्तियाँ देखें -

"अब तुम
मेरे सपनों में
आना-जाना बन्द कर दो
नहीं तो,
तुम्हारे प्रति
मेरा सारा
विश्वास टूट जाएगा,
जानती हो ना
मैं तुम्हें छुऊँगा, तो
तुम्हारा रंग छूट जाएगा।"

इसी क्रम में, 'ठहाके लगाइये', 'ब्लैक-आउट', पुलिस चाहिए', 'राम नाम सत्य है', 'बीमा एजेंट चिल्लाया' आदि रचनाएं सामने आती हैं जो स्वस्थ एवं सशक्त व्यंग्य के माध्यम से, किसी न किसी विद्रूपता पर न केवल प्रहार करती हैं अपितु, अप्रत्यक्ष रूप से उनके समाधान पर सोचने को भी विवश करती हैं। कृति की समस्त रचनाओं की एक अन्य विशेषता यह भी है कि वे गुदगुदाहट से आरंभ होकर गंभीरता पर विश्राम लेती हैं।
व्यंग्य के कुल ५१ सुगंधित पुष्पों से सजी इस व्यंग्य-माला का अन्तिम पुष्प 'वर्तमान सिद्ध करने में लगा है' शीर्षक रचना के रूप में हमारे सम्मुख है। इस संक्षिप्त परन्तु बहुत ही सशक्त रचना की पंक्तियाँ देखें -

"वह व्यक्ति
जिस डाल पर बैठा था
उसी को काट रहा था,
सृजक था
जाने कौन सा
सृजन छाँट रहा था।
यह सत्य हमारा
अनुपम इतिहास हो गया,
इतना बड़ा मूर्ख
संस्कृत में कालिदास हो गया।
इतिहास,
वर्तमान का
विश्वास हो जाता है,
लेकिन वर्तमान
सिद्ध करने में लगा है
मानो
हरेक मूर्ख
कालिदास हो जाता है।।"

निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि, छंद-विधान के बन्धन से परे 'कड़वाहट मीठी सी' के रूप में एक ऐसी कृति समाज के सम्मुख आयी है, जो आम जीवन को स्पर्श करने में पूर्णतया सफल है। हास्य-व्यंग्य का सार्थक एवं सटीक मिश्रण करते हुए, आकर्षक सजिल्द स्वरूप में तैयार यह कृति निश्चित ही व्यंग्य साहित्य की एक अनमोल धरोहर बनेगी, इसमें कोई संदेह नहीं। इस पावन एवं पुनीत कार्य के लिए रचनाकार एवं प्रकाशन संस्थान दोनों ही हार्दिक अभिनंदन एवं साधुवाद के पात्र हैं‌।

कृति : 'कड़वाहट मीठी सी'
रचनाकार : डॉ मक्खन मुरादाबादी
प्रकाशक : अनुभव प्रकाशन
(गाज़ियाबाद, दिल्ली, देहरादून, लखनऊ)
प्रथम संस्करण : 2019





मूल्य : 250 ₹
** समीक्षक : राजीव प्रखर
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार नाज के संपादन में प्रकाशित कृति नवगीत मंथन की योगेंद वर्मा व्योम द्वारा की गई समीक्षा


मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग की काव्य कृति सुख से तो परिचय न हुआ की श्री कृष्ण शुक्ल द्वारा की गई समीक्षा ....







भौतिक साधनों और राग अनुराग , सुख दुख की लौकिक अनुभूतियों से घिरे मानव के मन की अभिव्यक्ति को जीवन दर्शन के माध्यम से अध्यात्म की अनुभूति तक ले जाती दीर्घकायी एकल कविता कृति है सुख से तो परिचय न हुआ
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सुख से तो परिचय न हुआ, मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग की अंतिम कृति है। श्री अनुराग हिन्दी काव्य जगत के लब्ध प्रतिष्ठ साहित्यकार थे. आपके इससे पूर्व लगभग सत्रह काव्त्र संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें दर्पण मेरे गाँव का तथा चाँदनी नामक दो महाकाव्य भी हैं. आपके काव्य संग्रह सांसों की समाधि का अंग्रेज़ी में अनुवाद भी प्रकाशित हो चुका है।
सुख से तो परिचय न हुआ उनके जीवन काल में ही पूर्ण हो गई थी और प्रकाशन में थी किंतु दिनांक 17 अगस्त 2017 को कवि की ही जीवन यात्रा पूर्ण हो गई। मुझे इस पुस्तक को पढ़ने का सौभाग्य श्री रामवीर सिंह वीर के माध्यम से हुआ, जिन्होंने इस पुस्तक के प्रकाशन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
मूलतः, सुख से तो परिचय न हुआ एक दीर्घकायी एकल कविता है।  पूरी कविता प्रतीकात्मक शैली में लिखी गई है। कवि ने साधारण मनुष्य के जीवन के तमाम भौतिक और लौकिक आयामों को जीवन दर्शन से जोड़ते हुए अध्यात्म के दर्शन तक जोड़ने में सफलता पाई है।
इतनी दीर्घकायी रचना में तारतम्यता का अभाव नहीं है तथा कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि कविता अपने मूल कथ्य से भटक गई है.
सुख से तो परिचय न हुआ दुख से मेरा नाता है,
कविता के प्रत्येक छंद की परिणति इसी पंक्ति से होती है।

व्यक्ति जीवन भर सुख की लालसा में लगा रहता है किन्तु वास्तविक सुख का अनुभव नहीं कर पाता और निरंतर स्वयं को दुखी अनुभव करता है. कविता का प्रारम्भ ही कवि ने यह उद्घाटित करते हुए किया है कि सब कुछ परम सत्ता ही करती हैः

प्रकृति प्रबंधन जग संचालन, करे परम सत्ता है।
उसकी इच्छा बिना न हिलता कोई भी पत्ता है।
नियतिवाद तो भाग्यवाद हाँ कभी न कहलाता है।
सुख से तो परिचय न हुआ, दुख से मेरा नाता है:


कुछ आगे चलकर वह मानव मन के स्वभाव को वर्णित करते हुए कहते हैं कि हर व्यक्ति सुख की अभिलाषा, तथा प्रेम और आनन्दमय जीवन की लालसा में पुष्प पर मँडराते भँवरे की तरह लगा रहता है लेकिन दुखी ही रहता है:

स्वच्छ सुखी आनंदित रहना है इच्छा हर मन की
करना प्रेम प्रेममय खोना रही कामना उन की।
प्रेम पगा हो मधुप सुमन पर पलछिन मँडराता है।

इसके आगे बढ़कर वह जीवन की चुनौतियों से पार पाने और बड़े लक्ष्य रखकर योद्धा की भांति जीवन यापन का आह्वान करते हुए लिखते हैं।

जीवन लक्ष्य चुनौती देता पार हमें पाना है।
वारिधि अगम गरजता सम्मुख तैर तैर जाना है।
बड़ा लक्ष्य रखने वाला नर योद्धा कहलाता है।


साथ ही वह मानव को सचेत करते हैं कि जीवन लक्ष्य के प्रति हमारी उदासीनता से हमें मिलने वाले सुख भी दुख से ही हो जाते है:

फूल स्वयं खिलते हैं हम केवल पानी देते हैं।
हम मानव जीवन की चादर खुद ही बुन लेते हैं।
उदासीनता में तो सुख भी दुख ही बन जाता है।


उससे भी आगे वह कहते हैं कि सांसारिक राग, अनुराग, तथा जो भी विश्व में दृष्टिमान हैं वह सब भौतिक हैं और जब ब्रह्मचेतना जाग्रत होती है तो उसके प्रकाश में सभी भ्रम दूर हो जाते हैं।

राग और अनुराग सभी तो सचमुच ही भौतिक हैं।
दृष्यमान जो अखिल विश्व में सब कुछ ही लौकिक है।
ज्योति धार प्रज्ञा की फूटे सब भ्रम मिट जाता है।


अंततः इसी परम सत्ता के खेल को और उसकी माया के रहस्य को उजागर करते हुए कवि कहता है, जब व्यक्ति उस रहस्य को जान लेता है और उस निर्झर प्रेम के प्रवाह को अनुभव करता है, तब जीव स्वतः सुधर जाता है।
वस्तुतः वास्तविक सुख से उसका परिचय तभी होता है:

यह सब खेल परम सत्ता का उसकी ही माया है।
ज्ञात नहीं ये माया है या माया की छाया है।
जब खुलते स्यामल रहस्य, यह जीव सुधर जाता है।
सुख से तो परिचय न हुआ, दुख से मेरा नाता है।


इस प्रकार मनुष्य के भौतिक जीवन की सभी गतिविधियों को उस परम सत्ता द्वारा निष्पादित होने के सत्य को परिभाषित करने में, तथा मनुष्य के भौतिक सुख और लालसा की निरर्थकता को दर्शाने में श्री गौतम सफल रहे हैं तथा वास्तविक आनन्द उस परमसत्ता के साक्षात्कार (आत्म साक्षात्कार) में ही निहित है , यह संदेश देने में सफल रहे हैं।
इन्हीं शब्दों के साथ मैं श्री गौतम को श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ, और उनके सुपुत्र श्री मनोज गौतम, जिन्होंने मृत्योपरांत इस कृति को प्रकाशित कराया, को ह्रदय से साधुवाद देता हूँ।

कृति
: सुख से तो परिचय  न हुआ
रचनाकार : स्व.ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग
प्रकाशक: पार्थ प्रकाशन, दिल्ली रोड, मुरादाबाद 244001
प्रथम संस्करण ; 2018
समीक्षकः श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG - 69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद-244001
उत्तर प्रदेश, भारत


शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव सक्सेना की छात्र जीवन के दौरान लिखी कविता

साहित्यकार  राजीव सक्सेना जी जब हिन्दू कालेज  मुरादाबाद में एम ए  अंग्रेजी के छात्र थे तब लिखी थी उन्होंने यह कविता और प्रकाशित हुई थी कालेज की पत्रिका कल्पलता संयुक्तांक 1982-83 तथा 1983-84 में -----

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रदीप गुप्ता की कविता


भीतर का दानव भीड़ को दंगाइयों में बदल रहा है  .......
लोग कहते हैं आदमी में देवत्व है
इसके बारे में तो मैं विश्वास पूर्वक नहीं बता सकता हूँ
लेकिन इन दिनों एक बात मुझे स्पष्ट हो चुकी है
पिछले कुछ वर्षों से
आदमी की नसों में धीरे धीरे
विभिन्न डिजिटल प्लेटफार्म  के ज़रिए
नफ़रत का जो सुप्त ज़हर पहुँचाया जा रहा है
उसने जगा दिया है भीतर बैठे दानव को
यह दानव पहले ज़बान के ज़रिए बाहर निकलता है
चीखता है चिल्लाता है
सार्वजनिक विमर्श को घटिया बनाता है .
फिर धीरे धीरे भुजाओं पर भी सवार हो जाता है
और भोले भाले लोगों को भीड़ तंत्र में बदल देता है
एक ऐसी भीड़
जो पत्थर से लेकर पिस्टल और गन कुछ भी चला सकती है
शहर के शहर जला सकती है
बरसों के भाई-चारे को तार तार कर सकती है
किसी बेगुनाह आदमी की जान लेने को
जस्टिफ़ाई कर सकती है .
ज़रूरत है इस दानव से निपटने की ,
नहीं तो सभ्य  समाज
आदिम-युग में वापस चला जाएगा
अभी भी थोड़ा समय बचा है
रोकना ही होगा इस दानव को .
  **प्रदीप गुप्ता , मुंबई
मोबाइल फोन नंबर 9920205614
( श्री प्रदीप गुप्ता मूल रूप से मुरादाबाद के हैं वर्तमान में मुंबई में निवास कर रहे हैं )

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कविता -- रोटी ...


वह देखती है
मेरी तरफ,
उम्मीदों से।
क्योंकि मैं....
लिख सकती हूँ,
रोटी।
उसने सुनी थी,
भूख पर....
मेरी शानदार रचना।
उसे कुछ समझ नहीं आया,
सिवाय रोटी के।
तब से उसकी निगाह,
पीछा करती है,
हर वक़्त मेरा।
पता नहीं क्यों,
उसे लगने लगा है,
रोटी पर लिखने वाले,
रोटी ला भी सकते हैं।
पर उसे नहीं पता
मैं खुद भी ढूँढ रही हूँ
रोटी....
इस तरह
अपने भूखे मन के लिए।
पर उसे देखकर
मेरा मन भर आया है।
अब नहीं करता मन,
रोटी पर लिखने का।
मैं असहाय हो गयी हूँ,
शब्दों की पोटली से,
कविता तो निकल आयेगी,
पर रोटी.......
✍हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी का गीत -- तुम मंदिर का फर्श बिछाओ हम मस्जिद की नींव धरेंगे...

तुम मंदिर का फर्श बिछाओ
हम  मस्ज़िद  की नींव धरेंगे
ईश्वर अल्लाह  को  पाने का
पावनतम   संकल्प    करेंगे।
         **********
श्रद्धा  बहुत  बड़ी   होती  है
मानव   बड़ा  नहीं  होता  है
बिन श्रद्धा के इस धरती पर
कोई   खड़ा  नहीं   होता  है
भव्य  बनाने  हर    देवालय
मन   में   सुंदर  भाव  भरेंगे।
तुम मंदिर का,,,,,,,,,,,,,,,,,,

इसमें   रोज़    लड़ाई    कैसी
सारा  जग  उसका  ही  तो  है
हम   सबका  सारा   सरमाया
ले - देकर   उसका  ही   तो है
प्यार - प्रीत से  मंदिर-मस्जिद
मिल-जुल  कर  तामीर  करेंगे।
तुम मंदिर का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

एक  न  हो   पाए  सदियों  से
इसमें भी  ग़लती   किसकी है?
अलग-अलग धर्मों की चक्की
में   मानवता   ही   पिसती  है
सर्व - धर्म    समभाव   बढ़ाने
का  हर   पल अभ्यास  करेंगे।
तुम मंदिर का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

उन्मादी   हो   हमने   उसको
न्यायालय  में  भेज  दिया  है
देकर अजब   दलीलें   हमने
खुद पर भी  संदेह  किया  है
अज्ञानी   बनकर  अंधों   की
नगरी   में  क्यों   पाँव   धरेंगे?
तुम मंदिर का,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

हर  दिल  में  ईश्वर  बसता है
इसमें  ज़रा  झाँक  कर  देखें
नेक  राह पर  चलकर अपनी
कुटिल बुद्धि के रथ को  रोकें
अहम वहम की इस खाई  में
क्योंकर  हम  हरबार   गिरेंगे?
तुम मंदिर का----------------
 **वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
62-ए, बुद्धि विहार सेक्टर 7 ए
निकट वैदिक वानप्रस्थ आश्रम
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर - 9719275453
            

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी की कविता -- मुझे अंधा हो जाना चाहिए..


तुम सवर्ण हो, अवर्ण हो तुम
तुम अर्जुन हो, कर्ण हो तुम
तुम ऊँच हो , नीच हो तुम
तुम आँगन हो, दहलीज हो तुम
तुम बहु, अल्पसंख्यक हो तुम
तुम धर्म हो, मज़हब हो तुम
कहने को तो,
नारों में भाई - भाई हो तुम
पर असलियत में,
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई हो तुम।
और न जाने
क्या - क्या तुम हो,
सही मायने में
कुत्ते की दुम हो ।
तुम कहते हो कि तुम
ग़रीब, असहाय और नंगे हो,
यह अलग बात है कि तुम
सिर्फ लड़ाई, झगड़े और दंगे हो।
तुम कहते हो कि तुम
जाँत-पाँत से
ऊपर उठ कर सुलझे हुए हो ,
ये अलग बात है कि तुम
आज तक भी
मन्दिर, मस्जिद, चर्च और
गुरुद्वारे में उलझे हुए हो ।
तुम्हारी करतूतों ने
देश में
दुखड़े ही दुखड़े भर दिये हैं ,
तुम अपने आप को
दूसरों से तो जोड़ते क्या
तुमने अपनी-अपनी
आस्थाओं के भी टुकड़े कर लिए हैं ।
फिर भी कहतो हो कि
तुम हरेक पल
देश और समाज की
प्रगति की फ़रियाद में हो ,
ये अलग बात है कि तुम
सबकुछ पहले हो
बस,हिन्दुस्तानी बाद में हो ।
इसीलिए तो
तुम हो नहीं पाये
इंसान से आदमी
आदमी से इंसान ,
ईमान से धर्म
और धर्म से ईमान ।
तुम चाहते हो
इस महावृक्ष की
शाख-शाख को काटो ,
फिर मनचाहे अनुपात में
आपस में बाँटो ।
क़द्र करने लायक तुम्हारे हौसले हैं ,
काटो, बाँटो पर सोचो
महावृक्ष की इन
शाखों पर कुछ और भी घोंसले हैं ।
जिनमें
कल फिर निर्माण यात्रा पर
निकल पड़ने वाले
सुस्ता रहे होंगे, सो रहे होंगे ,
सोते हुए भी रो रहे होंगे ।
सँजोए हुए केवल यही डर ,
उनकी ज़िंदगी भी
न जाने कब
हो जाए किसी बम का सफ़र ।
क्या कहा ?
तुम्हें कोई याद नहीं
गाँधी, सुभाष
ऊधमसिंह या अब्दुल हमीद,
तुम्हारी करतूतों पर
शर्मिंदा होते
दिखाई नहीं देते, तुमको
अपने देश के
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और शहीद ।
तो सुनो, मैं कहता हूँ--
मुझे अंधा हो जाना चाहिए
यदि अपने देश में
रहने वाले सब
मुझे अपने दिखाई नहीं देते ,
बेशक,
मेरा गला काटकर
शहर के
किसी ख़ास चौराहे पर
लटका देना चाहिए
यदि मुझे
भारत में रहकर
भारत के
सपने दिखाई नहीं देते ।।

 ## डॉ मक्खन मुरादाबादी
झ-28, नवीन नगर, कांठ रोड
मुरादाबाद- 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9319086769


मुरादाबाद की साहित्यकार अस्मिता पाठक की कविता - सच मत बोलो ...

मीडिया तुम बोलो,
माइक्रोफोन को हाथ में पकड़ो
और ऊँची आवाज़ में छोटे-मोटे मामलों पर
बहस करो....
उनके नीचे
....हालात खुद ब खुद दब जाएंगे।
क्योंकि आम लोग तुम पर
 विश्वास करते हैं
इसलिए कहो
कहो कि सब अच्छा है,
कहो कि रात हो रही है
और सुबह सूरज दीख रहा है।
कि तापमान कम है तो क्या हुआ,
कंबल, हीटर, छत सबके पास है।
मगर;
मगर, मत कहना जो सच है
मत कहना कि कोई मुश्किल में है
और कोई रोज़ मर रहा है
वरना जो लोग तुम पर विश्वास करते हैं
वे लड़ने लगेंगे,
वे उस भगवान से लड़ने लगेंगे
जिसने तुम्हें खरीद लिया था
इसलिए तुम सब बोलो
मगर,
सच मत बोलो...
**अस्मिता पाठक
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ राकेश चक्र की कविता -- मेरे देश में ....

ये है मेरा देश
यहाँ है मुक्त लोकतंत्र
बेलौश आजादी का
राह चलते
कोई भी कस सकता है तंज
मेरी दुलारी बेटियों पर
आबरू पर प्रहार
बलात्कार
है कर सकता
आग ही आग से सत्कार
सदा खामोश हैं रहते
देशद्रोही गद्दार

है खा सकता
कोई भी
कमीशन दलाली
सफेद झक्क कपड़े पहनकर
महिमामण्डित होकर
खुले आम ढिढोरा पीटता
कि मैं हूँ दूध से धुला
ईमानदार आदमी
है कहता रहा कब से
मुझे वोट दो
कुर्सी दो
स्वयं का इंसाफ करने के लिए

यहाँ है जला सकता
सफाई करके कूड़ा-कचरा
कूड़े के पहाड़
ई कचरा
या कुछ भी

यहाँ कोई भी
है चला सकता
लापरवाही से वाहन
है बजा सकता
तेज आवाज का हॉर्न
या डीजे कहीं भी
कभी भी
दाग सकता है बम -पटाखा
पर्व त्यौहारों
क्रिकेट मैच के जीतने पर
विदेशी साल के आगमन पर
या भ्रष्टाचार की विजय पर भी
सीना चौड़ा करके

यहाँ मूत और है शौच
कर सकता कहीं भी
खुले में
सड़कों और रेल पटरियों के किनारे
है डाल सकता
कूड़ा कचरा

यहाँ कोई भी
करा सकता है दंगा-फसाद
तिल का पहाड़
मजहब का
झंडा उठाए
अर्थ का अनर्थ करके

यहाँ कोई भी
लूट खसोट कर है सकता
नकली सामान
और कंपनी बनाकर
व्यापार का अनर्गल प्रचार कर
कभी भी
कहीं भी

यहाँ कोई भी है काट सकता
आदमी
आदमी की जेब
हरियाली के रखवाले पेड़ों को
कहीं भी
कैसे भी
सड़कों के चौड़ीकरण
के नाम पर
जला सकता है जंगल
खेतों में पराली
धूल झोंककर आँखों में

यहाँ कानून तोड़ है सकता
कोई भी
कहीं भी
कैसे भी
क्योंकि है पूर्ण आजादी
मेरे देश में

कहाँ मिटा भ्रष्टाचार
सभी चाहते संविधान प्रदत्त
अधिकार ही अधिकार
कर्तव्यों पर प्रहार 
बस दलाली
कमीशन खोरी
अनाचार
पापाचार
बेटियों पर बलात्कार
मेरे देश में

बढ़ती रही
भीड़ ही भीड़ हर जगह
प्रदूषण
खरदूषण
शोषण
शोर शराबा चीत्कार
महंगाई
नोट की छपाई
कूड़ा कचरा
और न जाने क्या-क्या

रहे पीठ थपथपाते
सफेदपोश
केवल वोट की तलाश में
मेरे देश में
सत्तर वर्षों से

** डॉ राकेश चक्र
90 बी, शिवपुरी
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456201857
Rakeshchakra00@gmail.com

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह के पांच दोहे ....


शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल मधुकर की गजल - कभी जब मांगने वालों ने मिलकर अपने हक मांगे हमेशा जातियों मजहब में उलझाया गया उनको


मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार की गजल - जहर नफरत का जो इंसान के लहू में घोलें ऐसे नागों से अब इंसान को बचाया जाए


मुरादाबाद के शायर अनवर कैफ़ी की गजल -तमन्ना आज तन्हाई का जेवर मांगती है


मुरादाबाद के शायर मंसूर उस्मानी की गजल --बुझने न दो चरागे वफ़ा जागते रहो पागल हुई है अब के हवा जागते रहो ...


मुरादाबाद के शायर जिया जमीर की गजल - पत्थर मारकर चौराहे पर एक औरत को मार दिया सबने मिलकर फिर ये सोचा उसने गलती क्या की थी ...


मुरादाबाद के शायर सैयद हाशिम मुरादाबादी की गजल - इंसान को इंसान मिटाने पर तुला है ये कैसा अजब खेल जमाने में चला है....


मुरादाबाद के शायर जमीर दरवेश की बेहतरीन गजलें ....


मुरादाबाद के शायर रिफ़त मुरादाबादी की गजल -- न सोने से न चांदी से न धन से प्यार करता हूं मैं अपनी जान से बढ़कर वतन से प्यार करता हूं ....


मुरादाबाद के शायर तहसीन अहमद मुरादाबादी की गजल - जोर दिल पर अगर चला होता तुझको कब का भुला दिया होता ...


मुरादाबाद के शायर डॉ मुजाहिद फराज की गजल - बुढ़ापा चैन से गुजरे किसी पर बोझ न हूं ...


गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ राकेश चक्र का गीत -- जो वतन पर मिट गए उनको श्रद्धा आचमन


मुरादाबाद के साहित्यकार( वर्तमान में आगरा निवासी ) ए टी जाकिर की कविता ---इन्होंने की बेईमानी है .....


य गुल  बेचते हैं, चमन बेचते हैं,
औ ज़रूरत पड़े तो कफ़न बेचते हैं |
ये कुरसी की ख़ातिर अमन बेचते हैं,
मेरा हिन्द – मेरा वतन बेचते हैं |
--तो अपने वतन के लोगों को इक बात बतानी है !
सर से अब गुज़रा पानी है,
इन्होंने की बेईमानी है |

सोने की चिड़िया भारत की अब इतनी पहचान है,
पर्वत से सागर तक भूखा – नंगा हिन्दुस्तान है |
रिश्वत का बाज़ार गर्म, और हाय ! दलाली शान है,
सुनकर गाली सा लगता है, यहाँ सुखी इंसान है |
--तो बात तरक्क़ी की करना एक ग़लतबयानी है !
बात हमको कह्लानी है,
इन्होंने की बेईमानी है |

बरसों से खाते आये हैं, पेट नहीं पर भर पाया,
पहले हिन्दू – मुस्लिम बांटे, फिर सिखों को उकसाया |
हक़ इनके हिस्से में आये, फ़र्ज़ है जनता ने पाया,
इस पर भी कुरसी डोली तो, बेशुमार को मरवाया |
--तो ऐसा लगता है कि होनी ख़तम कहानी है !
कि अब इक आँधी आनी है |
 इन्होंने की बेईमानी है |

जब तक तुम बांटे जाओगे गीता और क़ुरान में,
तब तक बांटेंगे तुमको ये दीन – मज़हब, ईमान में |
कभी लड़ायेंगे तुमको ये नक्सल के मैदान में,
मोहरा कभी बनायेंगे तुमको ये ख़ालिस्तान में |
--तो छोटी सी इक बात मुझे तुमसे मनवानी है !
कि  तुममें एकता आनी है,
तो उनकी कुरसी जानी है,
जिन्होंने की बेईमानी है |


✍️ ए. टी. ज़ाकिर
फ्लैट नम्बर 43, सेकेंड फ्लोर
पंचवटी, पार्श्वनाथ कालोनी
ताजनगरी फेस 2, फतेहाबाद रोड
आगरा-282 001
मोबाइल फोन नंबर. 9760613902,
847 695 4471.

Mail-  atzakir@gmail.com

मुरादाबाद के साहित्यकार अखिलेश वर्मा की लघुकथा .....

#ज़हर

"क्या करें ...
हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ गया है ...यही हाल रहा
तो पूरा सर्प समाज कीड़ों के नाम से जाना जाएगा ।". सर्पो की सभा में कोबरा साँप उठकर बोला ..
"सत्य है सत्य है ।"..सभी बूढ़े और जहरीले सांपों ने एक साथ समर्थन किया ..
"हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा ! पर क्यूँ ?".. नन्हा साँप आश्चर्यचकित होकर बोला.
"अरे बेटा ! क्या बताएँ तुम्हें !! आज आदमी हम साँपों से कहीं ज्यादा ज़हरीला हो गया है . उसकी ज़बान में ही नहीं .. शरीर में ही नहीं .. ख़ून में ही नहीं ... उसकी नीयत में भी ज़हर भरा हुआ है .. पैसे कमाने के लिए षडयंत्र और झूठ उसके हथियार बने हुए हैं ... धन के लालच में हर वस्तु में मिलावट ! ज़हर ही खाता है .. ज़हर ही उगलता है. ऐसे में हमारा ज़हर बेकार है हम कीड़े बनकर रह जाएँगे ।" ... मोटे अजगर ने नन्हें साँप को समझाते हुए कहा ।

- अखिलेश वर्मा
   मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की कहानी ...

#मज़बूरी

नन्ही रौनक गुब्बारे को देख कर मचल उठी, "अम्मा अम्मा हमें भी गुब्बारा दिलाओ ना.. दिलाओ ना अम्मा, हम तो लेंगे वो लाल बाला, दिलाओ ना अम्मा।"
"भइया कितने का है ?" कांता ने गुब्बारे वाले से पूछा।
"दस रुपए का है बहन जी, ले लीजिए बच्ची का दिल बहल जाएगा।" गुब्बारे वाले ने आशा भरी निगाह से देखकर कहा।

" द..स रुपया", कांता के मुंह से जैसे उसकी निराश उसकी मजबूरी निकली हो।

"रहने दो भय्या बाद में दिला दूंगी , अभी (पैसे,, )खुल्ले नहीं है भय्या", वह अपने चेहरे के भावों को छिपाती हुई बोली।

"चल रौनक हमें तेरे पापा की दवाई भी लेनी है ना",
कांता रौनक का हाथ पकड़े लगभग घसीटते हुए चल पड़ी।

कांता एक पच्चीस छब्बीस वर्ष की आकर्षक महिला है, लेकिन शायद गरीबी के चलते उसका रूप कुछ दब सा गया है।
वह चलते चलते सोचने लगती है :- सात साल पहले उसकी शादी हुई थी, साधारण से समारोह में मोहन के साथ।

गरीबी के चलते उसके पिता उसके लिए बहुत अच्छा घर-वर तो नहीं ढूंढ पाए फिर भी अपनी हैसियत से बढ़कर उन्होंने मोहन से इसकी शादी की।
मोहन गांव का सीधा सादा नौजवान था, सांवला रंग, मजबूत बदन, आकर्षक चेहरा, ऊपर से गोरी, छरहरी, अप्सरा सी कांता से उसे प्रेम भी बहुत था।
कांता खुश थी अपनी किस्मत पर।

मोहन का गांव में पक्का मकान था, जो उसने अपनी मेहनत की कमाई से बनाया था।
कांता अपने जीवन में बहुत खुश थी, मोहन कारखाने में काम करता था और इतने पैसे कमा लेता था कि उनकी जिंदगी आराम से चल रही थी।
 शादी के दो साल के अंदर ही उनके घर 'रौनक' ने जन्म लिया, दोनों ने बहुत उत्सव मनाया मिठाइयां बांटी।
जिंदगी बहुत अच्छी चल रही थी लेकिन शायद उनके सुख को किसी की नज़र लग गयी।

रौनक का पांचवा जन्मदिन था, मोहन ने ठेकेदार से बता दिया था कि वह आज जल्दी जाएगा, लेकिन ठेकेदार ने उसे काम का ढेर बता कर कहा, "इसे खत्म करके चले जाना बाकी तुम देखलो।"

कुछ काम का दबाब, कुछ घर जाने की जल्दी, इसी हड़बड़ाहट में मोहन चूक कर गया और मशीन में माल की जगह उसके हाथ चले गए.....।
जब अस्पताल में उसे होश आया वह अपने दोनों हाथ कोहनी से नीचे, खो चुका था।
कांता का रो रोकर बुरा हाल था, ठेकेदार  उसकी मरहम पट्टी करा कर पांच हजार रुपए और आठ सौ का उसका हिसाब देकर कर्तव्य मुक्त हो गया ।
मोहन के हाथों में सेप्टिक हो गया था डॉक्टरों ने कहा कि मोहन को बचाना मुश्किल है।
 सारी जमापूंजी, अपने सारे जेवर जो मोहन ने बड़े प्यार से इसके लिए बनाए थे और मकान बेचकर मिले सारे पैसे लगाकर कांता ने मोहन की जिंदगी तो खरीद ली, लेकिन उसके पास रहने और खाने को कुछ नहीं बचा।

हार कर कांता ने शहर में किराए से एक झोंपड़ी ली है, जहां वह लोगों के घरों में साफ सफाई का काम करती है।
रौनक को वह ज्यादातर अपने साथ ही रखती है।
उसकी कमाई का ज़्यादातर हिस्सा तो मोहन की दवाइयों पर ही खर्च हो जाता है और खाने कपड़े की उसकी चिंता हमेशा बनी रहती है।
यूँ तो शहर में कई लोगों ने उसकी खूबसूरती को देखकर उसकी मजबूरी का फायदा उठाने की कोशिशें की, उसे बड़ा लालच भी दिया लेकिन उसने कभी अपनी मज़बूरी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया, उसने कभी अपनी मजबूरी को जरूरत नहीं बनाया।
वह अपनी जिंदगी से समझौता कर चुकी है लेकिन कभी अपनी मज़बूरी से समझौता नहीं किया उसने।

आज भी अपनी मजबूरी के चलते वह रौनक को गुब्बारा नहीं दिला पाई जिसका पछतावा आँसू बनकर उसकी  आंख से ढलक गया जिसे उसने सफाई से रौनक की नज़र बचाकर पोंछ दिया...।

©नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा
जिला मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज कुमार मनु की लघुकथा

*दांव-पेंच*

किसी गाँव में एक दिन कुश्ती स्पर्धा का आयोजन किया गया । हर साल की तरह इस साल भी दूर -दूर से बड़े- बड़े पहलवान आये। उन पहलवानों में एक पहलवान ऐसा भी था, जिसे हराना सब के बस की बात नहीं थी। जाने-माने पहलवान भी उसके सामने ज्यादा देर टिक नहीं पाते थे।
स्पर्धा शुरू होने से पहले मुखिया जी आये और बोले , ” भाइयों , इस वर्ष के विजेता को हम 3 लाख रुपये इनाम में देंगे। “
इनामी राशि बड़ी थी , पहलवान और भी जोश में भर गए और मुकाबले के लिए तैयार हो गए।कुश्ती आरम्भ हुई और वही पहलवान सभी को बारी-बारी से चित करता रहा । जब हट्टे-कट्टे पहलवान भी उसके सामने टिक न पाये तो उसका आत्म-विश्वास और भी बढ़ गया और उसने वहाँ मौजूद दर्शकों को भी चुनौती दे डाली – " है कोई माई का लाल जो मेरे सामने खड़े होने की भी हिम्मत करे !! … "
वहीं खड़ा एक दुबला पतला व्यक्ति यह कुश्ती देख रहा था, पहलवान की चुनौती सुन उसने मैदान में उतरने का निर्णय लिया,और पहलवान के सामने जा कर खड़ा हो गया।
यह देख वह पहलवान उस पर हँसने लग गया और उसके पास जाकर कहा, तू मुझसे लड़ेगा…होश में तो है ना?
तब उस दुबले पतले व्यक्ति ने चतुराई से काम लिया और उस पहलवान के कान मे कहा, “अरे पहलवान जी मैं कहाँ आपके सामने टिक पाऊंगा,आप ये कुश्ती हार जाओ मैं आपको ईनाम के सारे पैसे तो दूँगा ही और साथ में 3लाख रुपये और दूँगा,आप कल मेरे घर आकर ले जाना। आपका क्या है , सब जानते हैं कि आप कितने महान हैं , एक बार हारने से आपकी ख्याति कम थोड़े ही हो जायेगी…”
कुश्ती शुरू होती है ,पहलवान कुछ देर लड़ने का नाटक करता है और फिर हार जाता है। यह देख सभी लोग उसकी खिल्ली उड़ाने लगते हैं और उसे घोर निंदा से गुजरना पड़ता है।
अगले दिन वह पहलवान शर्त के पैसे लेने उस दुबले व्यक्ति के घर जाता है,और 6लाख रुपये माँगता है.
तब वह दुबला व्यक्ति बोलता है , ''भाई किस बात के पैसे?"

“अरे वही जो तुमने मैदान में मुझसे देने का वादा किया था।", पहलवान आश्चर्य से देखते हुए कहता है।
दुबला व्यक्ति हँसते हुए बोला “वह तो मैदान की बात थी,जहाँ तुम अपने दाँव-पेंच लगा रहे थे और मैंने अपना… पर इस बार  मेरे दांव-पेंच तुम पर भारी पड़े और मैं जीत गया। ''
** मनोज कुमार मनु
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की लघुकथा ....

लूट..

सुपरररर...!.वाहहहहहह..!!क्या  डिज़ाइनर पीस है..!!!
क्या प्राइज़ है इसका..?सुधा ने एक चाइनीज़ आइटम की ओर इशारा करते हुए,सेल्समैन से पूछा।"ओनली फोर थाउजेंड मैम..!"सेल्समैन ने बड़ी ही शालीनता से उत्तर दिया।"ओके,प्लीज़ पैक इट,फोर मी.."यह सुनकर सुधा के पति रमेश ,जो कि बहुत देर से चुप थे,थोड़ा फुसफुसाते हुए बोले,तुम्हें ये पीस ज्यादा महँगा नहीं लग रहा,कहीं ओर देखते हैं न..!" सुधा ने हलके से कोहनी मारते हुए रमेश से चुप रहने का इशारा किया,और बनावटी हँसी हँसते हुए सैल्समैन से बोली,"प्लीज़,हरी अप..हमें अभी और भी शापिंग करनी है....," "जी मैम"कहते हुए सैल्समैन ने आइटम पैक कर दिया।
   "तुम हर जगह अपनी कंजूसी दिखाते रहते हो...कम से कम प्रेस्टीज  का तो ध्यान रखा करो...."सुधा ,रमेश को लैक्चर देते हुए शापिंग माल की सीढिय़ों से नीचे उतरते हुए बोली।"ओके बाबा...जो करना है करो..,थोड़े दिये भी तो ले लो,दीवाली पूजन के लिये"रमेश ने थोड़ी तल्ख़ी से कहा।"ओहहहह...यार मैं तो भूल ही गयी थी..."कहते हुए सुधा शापिंग माल के बाहर  दिये लेकर बैठी एक बूढ़ी महिला की ओर बढ़ी और उपेक्षा से पूछा ,"ये दीपक कैसे दिये?."
बूढ़ी बोली,"ले लो बेटा...पचास रुपये सैकड़ा ...लगा दूँगी","  "हैं...!! पचास रुपये सैकड़ा....!!.अरे लूट मचा रखी है तुम लोगो ने...!पचास रुपये सैकड़ा कहाँ हो रहे हैं ?  चलो जी...आगे देखते हैं...।"
इसके पहले बूढ़ी कुछ कह पाती ,बड़बड़ाती हुई सुधा  रमेश  के साथ तेजी से बाज़ार की भीड़ में आगे बढ़ गयी....।
 **मीनाक्षी ठाकुर
 मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा

अभिशाप
--------------
उन्होंने अपने बेटे के विवाह पर बहुत मासूमियत से कहा था - "अरे, यह कोई दहेज थोड़े ही है। यह तो दो परिवारों के बीच बनने वाले आपसी सम्बंधों का शगुन है। इतना तो सभी करते हैं।"
आज उन्हीं की बेटी का विवाह है। वह गला फाड़-फाड़ कर फिर चिल्ला रहे हैं - "दहेज एक सामाजिक अभिशाप है, इसे जड़ से समाप्त करना ही होगा.
- राजीव 'प्रखर'
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

मुरादाबाद के शायर जिया जमीर की गजल -- हमारी चाल में छत पर सितारा चल रहा है ...


मुरादाबाद के हास्य व्यंग्य कवि फक्कड़ मुरादाबादी की कविताएं


मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ अजय अनुपम के दो मुक्तक -- शब्द संबोधनों से बड़े हो गए ...