हिन्दी, संस्कृत, फारसी, बंगला, मराठी, गुजराती तथा अंग्रेजी भाषाओं के ज्ञाता, उपन्यासकार, नाटककार, इतिहासकार, टीकाकार, कवि एवं सम्पादक पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र ने अत्यन्त अल्प समय में हिन्दी साहित्य की जो सेवा की है उसे शब्दों की सीमा रेखाओं में बाँधना असम्भव है । मात्र 36 वर्ष के जीवन काल में उन्होंने पचास से भी अधिक कृतियाँ हिन्दी साहित्य को दी तथा अनेक समाचार पत्रों का सफलतापूर्वक सम्पादन किया ।
विद्यावारिधि पंडित ज्वाला पंसाद मिश्र के भ्राता, *इस बहुमुखी प्रतिभा का जन्म उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद नगर में पौष शुक्ल 11 संवत् 1926 (सन् 1869 ई०) में हुआ था।* इनके पिता का नाम पंडित सुखानंद मिश्र तथा माता का नाम श्रीमती गंदा देवी था । कात्यायन मुनि के गोत्र में उत्पन्न पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र के पूर्वज सुठियांय के रहने वाले थे । इनके दादा पंडित शिवदयालु मिश्र आयुर्वेद के प्रसिद्ध वैद्य थे। कहा जाता है कि एक बार पटना जिलाधीश विल्सन क्यालेक्टर की पत्नी के पेट में शूल का दर्द उठा। अनेक कुशल चिकित्सकों को दिखाने के उपरान्त भी उनकी पत्नी रोगमुक्त नहीं हुई तो पंडित शिवदयाल मिश्र जी को बुलाया गया उन्होंने मात्र एक घंटे में श्रीमती विल्सन को दर्द से मुक्ति दिला दी। यह देखकर जिलाधीश महोदय ने पंडित शिवदयालु मिश्र को एक बहुमूल्य शाल, पाँच सौ रूपये तथा प्रशंसापत्रादि से सम्मानित किया । साथ ही उन्हें अपना पारिवारिक चिकित्सक भी बना लिया । कुछ समय पश्चात् जब श्री विल्सन का स्थानान्तरण पटना से मुरादाबाद हुआ तो पंडित शिवदयालु मिश्र भी यहाँ आ गये ।
पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र को आरम्भ में देवनागरी की शिक्षा दी गयी थी। अंग्रेजी शिक्षा के लिए आपके पिता ने इनका प्रवेश गवर्नमेंट हाईस्कूल में कराया जहाँ आपने लगभग 6 वर्ष अध्ययन किया। उन्हें बहुभाषाविद थे। हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, फारसी के अतिरिक्त बंगला, मराठी और गुजराती भाषाओं में आपने अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली थी। बांग्ला भाषा का ऐसा अभ्यास था कि बंगला पुस्तक हाथ में लेकर एक साथ ही उसका अनुवाद असली पुस्तक के समान बोलते जाते थे, यही नहीं वह मराठों के साथ मराठी,गुजरातियों के साथ गुजराती और बंगालियों के साथ बंगाली में ही बोलते थे।
वर्ष 1886 से अपने हिन्दी भाषा में लेखादि लिखने आरम्भ कर दिये । 20 वर्ष की अवस्था में आपने समाचार-पत्रों का सम्पादन करना आरम्भ कर दिया । आपने 'साहित्य सरोज', सत्य-सिंधु, भारतवासी, भारत भानु और सोलजर पत्रिका का सम्पादन किया। कुछ समय पश्चात आपने मुरादाबाद नगर में ही मित्रों के साथ 'तन्त्र - प्रभाकर' प्रेस खोला तथा एक साप्ताहिक पत्र तन्त्र प्रभाकर निकाला । कुछ समय बाद वह उससे अलग हो गए।
पंडित बलदेव प्रसाद समाचार-पत्रों के पढ़ने के शौकीन थे। आयुर्वेद और तन्त्रशास्त्र में भी विशेष रुझान था । इतिहास, धर्म आदि में भी उनकी रूचि थी । दिन-रात आप स्वाध्याय व लेखन कार्य में संलग्न रहते थे। इस कारण आपको विवाह करने की तनिक भी इच्छा नहीं थी। कुटुम्ब तथा माता और पं० ज्वाला प्रसाद मिश्र के आग्रह पर आपने सन् 1900 ई० में दिनरा (बरेली) निवासी श्रीमती केतकी देवी के साथ विवाह किया।
हिन्दी नाट्य साहित्य को उनकी प्रथम भेंट मीराबाई नाटक है। जिसका प्रकाशन श्री बैंकटेश्वर स्टीम मुद्रणालय से हुआ है। इस नाटक का रचनाकाल सन् 1897 है। 96 पृष्ठों के इस धर्मगुलक ऐतिहासिक नाटक की प्रस्तावना में मुरादाबाद निवासी लाला शालिग्राम तथा विद्यावारिधि पंडित ज्याला प्रसाद मिश्र द्वारा रचित नाटकों का भी उल्लेख किया गया है । मीराबाई नाटक को पाँच अंकों में विभक्त किया गया है। नाटक में पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र ने गीत, गजल, पद, चौपाई, ठुमरी, दादरा, हरिगीतिका छन्द का भी भरपूर प्रयोग किया है । ऐतिहासिक दृष्टि से नाटक में काफी विसंगतियाँ है इस नाटक को रचने का मुख्य उद्देश्य जनता में भक्ति भावना पैदा करना ही रहा है।
पंडित बलदेव प्रसाद का दूसरा नाटक प्रभास मिलन है। इसका कुछ अंश 'सत्य- सिन्धु' मासिक पत्र में प्रकाशित हुआ था जिसे बाद में पुस्तकाकार रूप में श्री वेंकटेश्वर प्रेस ने प्रकाशित किया 144 पृष्ठों के इस नाटक में छह अंक है। यह एक पौराणिक एवं भक्तिप्रधान नाटक है। इसके उपरान्त मौलिक नाटक के रूप में तीसरा 'नन्द विदा नाटक है । इसका प्रकाशन मुरादाबाद स्थित 'लक्ष्मी नारायणः यन्त्रालय में सन् 1906 ई० में हुआ था। 66 पृष्ठ के इस नाटक को पाँच अंकों में विभक्त किया गया है।
पंडित बलदेव प्रसाद जी ने सन् 1900 में 'लल्ला बाबू' शीर्षक से एक प्रहसन की भी रचना की। तीस पृष्ठीय इस प्रहसन के माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियों, आर्थिक विषमताओं को भी बखूबी उजागर किया है
हिन्दी उपन्यास साहित्य को भी पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र ने कई अच्छी कृतियाँ दी। आपके द्वारा रचित उपन्यास 'पानीपत', पृथ्वीराज चौहान' 'तांतिया भील', का उल्लेख मिलता था। इसके अतिरिक्त आपने 'संसार वा महास्वप्न' नामक उपन्यास की भी रचना की 127 पृष्ठ के इस उपन्यास का प्रकाशन श्री बॅकटेश्वर स्टीम प्रेस, बम्बई से हुआ है । प्रेम परक सामाजिक उपन्यास की श्रेणी में आने वाला आपका 'मयंकमाला' उपन्यास है। यह 60 पृष्ठ का उपन्यास है ।
मौलिक उपन्यासों की रचना के अतिरिक्त पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र ने बंगला भाषा के भी कई उपन्यासों का अनुवाद किया है। सर रमेश चन्द्र दत्त कृत शिवाजी विजय' उपन्यास का आपने 'जीवन प्रभात' शीर्षक से अनुवाद किया । इस उपन्यास का अनुवाद लगभग सन् 1889 ई0 के आसपास किया गया है। उपन्यास की शुरूआत में महाराज शिवाजी की जन्म - पत्रिका भी दी गयी है । यह 224 पृष्ठों का उपन्यास है तथा प्राप्य प्रति का प्रकाशन काल सन् 1909 ई० है ।
बंगला भाषा के किसी उपन्यासकार के देवी उपन्यास का भी आपने अनुवाद किया था । उपन्यास की भूमिका पढ़ने से ज्ञात होता है कि इसका अनुवाद सन् 1887 ईo में हुआ था लेकिन उस समय कोई मित्र उनसे वह हस्तलिखित प्रति माँग कर ले गया तब बलदेव प्रसाद जी ने इसका सन् 1890 में दोबारा अनुवाद किया । बंगला भाषा से अनुदित एक अन्य उपन्यास 'कुन्दनदिनी या विषवृक्ष' का उल्लेख प्राप्त होता है
भाषा टीकादि ग्रन्थों में पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र के पुरूषसूक्त, लघु भागवतामृत, कल्कि पुराण, आध्यात्म रामायण, बाराही संहिता, सूर्य सिद्धान्त, आयुर्वेद चिन्तामणि, चिकित्साजन, रखेन्द्र चिन्तामणि, आश्चर्य योगमाला तंत्र, गायत्री तंत्र, मंत्र चिन्तामणि, क्रिपोहीश तन्त्र, नित्य तंत्र तथा मेघदूत प्रमुख है ।
पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र को मेसरेजिम से भी अत्यधिक प्रेम था। मेसमरेजिम विद्या की सर्वप्रथम 'जागती कला' नामक पुस्तक आपने लिखी । इसका द्वितीय संस्करण सन् 1897 ई० में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद 'मृतक मिलाप' (सन् 1897 ई0), 'महाविद्या' (सन् 1914 ई0) पुस्तकें प्रकाश में आयी ।
ऐतिहासिक पुस्तकों में आपके द्वारा 'टाड राजस्थान' का हिन्दी अनुवाद प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त 'नेपाल का इतिहास भी आपने रचा।
महर्षि दयानन्द सरस्वती कृत 'सत्यार्थ प्रकाश' का खण्डन करते हुए आपके ज्येष्ठ भ्राता विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र ने 'दयानन्द तिमिर भाष्कर की रचना की थी। यह ग्रन्थ सन् 1890 में प्रकाशित हुआ था। इस ग्रन्थ का मेरठ के किसी आर्यसमाजी पं० तुलसीराम ने खण्डन करते हुए 'भाष्कर प्रकाश' रचा जिसमें 'सत्यार्थ प्रकाश' का मण्डन करते हुए सनातन धर्म पर अनेक आक्षेप लगाये । 'भाष्कर प्रकाश' के उत्तर में पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र ने पं० ज्वाला प्रसाद रचित 'दयानन्द तिमिर भाष्कर का मण्डन और दयानंदीय मत का खण्डन करते हुए 'धर्म- दिवाकर' की रचना की । यह कृति सन् 1898 ई० में आर्य भाष्कर प्रेस से प्रकाशित हुई थी।
पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र की अधिकांश कृतियाँ श्री बैंकेटेश्वर स्टीम प्रेस से ही प्रकाशित हुई है। इसके अतिरिक्त भगवान जैन प्रेस लखनऊ, हिमालय प्रेस मुरादाबाद, लक्ष्मीनारायण प्रेस मुरादाबाद, तंत्र प्रभाकर प्रेस मुरादाबाद, तंत्र प्रभाकर प्रेस मुरादाबाद तथा हरि प्रसाद भागीरथ बम्बई से भी कुछ कृतियों का प्रकाशन हुआ है ।
आपका निधन श्रावण शुक्ल सप्तमी, संवत् 1962 तदनुसार 6 अगस्त 1905 ई० को रात्रि आठ बजे हुआ था ।
✍ डॉ मनोज रस्तोगी8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
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